अमेरिका में मोदी को मिली ताली या मनमोहन सिंह को मिली ताली पे गर्व करना भारतियों के आत्मसम्मान के स्तर को भी दर्शाती है.
मुद्दा ये नहीं है कि मोदी जी ने अमेरिका को नतमस्तक कर दिया तो लोगों को परेशानी हो रही है.. मुद्दा ये है कि इसके पहले आपने किस प्रधानमन्त्री का भाषण सुना और किस चैनल ने इसे लाइव टेलीकास्ट किया?
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उस समय भारतीय मीडिया कभी भी किसी प्रधानमन्त्री का ऐसा पीछा नहीं करता था और न ये सारे भाषण लाइव दिखाता था..
मनमोहन सिंह जी का विडियो देखिये.. जगह वही है जहाँ मोदी जी थे कल.. 2005 में भी अमेरिका नतमस्तक हो गया था.. उसके पहले राजीव जी औरअटल जी के सामने भी ऐसे ही नतमस्तक था.. मगर बस मीडिया नहीं था ये बताने को की कितने मिनट और कितनी बार ताली बजी और कितनी बार लोग खड़े हुवे..
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और उस वक़्त "teleprompters" भी नहीं होते थे इसलिए स्पीच पढ़ पढ़ के देनी पड़ती थी.. बाकी मनमोहन जी का भाषण अमेरिका के ही चैनल ने लाइव दिखाया था इसलिए हमे लगा की शायद बस मोदी जी का ही स्वागत ऐसे होता है..
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आपका सर अगर मनमोहन सिंह जी को देख कर झुकता है तो कल से जाने कितनो ने कहा है मुझसे कि उनका सर मोदी जी की अंग्रेजी सुन कर झुक जाता है..
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उस समय भारतीय मीडिया कभी भी किसी प्रधानमन्त्री का ऐसा पीछा नहीं करता था और न ये सारे भाषण लाइव दिखाता था..
मनमोहन सिंह जी का विडियो देखिये.. जगह वही है जहाँ मोदी जी थे कल.. 2005 में भी अमेरिका नतमस्तक हो गया था.. उसके पहले राजीव जी औरअटल जी के सामने भी ऐसे ही नतमस्तक था.. मगर बस मीडिया नहीं था ये बताने को की कितने मिनट और कितनी बार ताली बजी और कितनी बार लोग खड़े हुवे..
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और उस वक़्त "teleprompters" भी नहीं होते थे इसलिए स्पीच पढ़ पढ़ के देनी पड़ती थी.. बाकी मनमोहन जी का भाषण अमेरिका के ही चैनल ने लाइव दिखाया था इसलिए हमे लगा की शायद बस मोदी जी का ही स्वागत ऐसे होता है..
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आपका सर अगर मनमोहन सिंह जी को देख कर झुकता है तो कल से जाने कितनो ने कहा है मुझसे कि उनका सर मोदी जी की अंग्रेजी सुन कर झुक जाता है..
तो सर झुकाने और नतमस्तक होने के बहुत बहाने हैं सबके पास.. बहरहाल.. देखिये और तालियों के समय की गणना कीजिये.. टोटल कितने मिनट ताली किसके लिए बजी यही मुद्दा होगा अगले चुनाव का
मैंने शुरुवाती पांच मिनट का विडियो attach किया है.. बाकी मनमोहन सिंह जी की पूरी स्पीच के लिए यहाँ जाईये
https://www.youtube.com/watch?v=2XC7N00XgcU
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क्या हम सचमुच ही नहीं चाहते कि देश में आपके अलावा कोई और इस पर गर्व कर सके...?
अर्थ यह भी है कि दशकों पूर्व लोग अमेरिकन संसद में भारतीय प्रधानमंत्रियों द्वारा दिए भाषणों को देखने के लिए बरनाॅल लगा कर नहीं बैठे थे, जबकि तब कोई ऐसी सलाह नहीं देता था. न ही विरोध करने वालों को लोग इस वक्त बर्नोल लगाने का सलाह दिया करते ते, क्योंकि विरोध जीवन के हर भाग का एक पहलू होता है. नियंत्रित तरीके से निंदा आपको सिखाती है कि आप कहाँ पे चुके हो.
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कल से मोदी भक्त एक ही बात पकड़ के बैठे है अमेरिकी संसद में सांसदों ने 9 बार खड़े होकर मोदी के भासण पर तालिया बजायी, और इसी को लेकर वो अपने प्रभु का गुणगान करने में व्यस्त है । वैसे यदि अपने देश के किसी प्रधानमंत्री का विदेश में कहीं पर आदर सम्मान होता है तो वो पूरे देश के लिए गर्व की बात होती है वशर्ते उस आदर सम्मान के पीछे ठोस कारण होना चाहिए न की किसी निजी स्वार्थ, चापलूसी या मुम्बई के लोगो की भाषा मे कहे तो चने के झाड पर चढाने के लिऐ वह आदर सम्मान किया गया हो ...खैर...
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ये सॉफ्ट टेरोरिज्म है, और अमेरिका इसका समर्थक है. यहां तक कि राम चरित मानस में भी समाज के सोच का वर्णन है. "समरथ को नहीं दोष गुसाईं " रामचरित मानस में इस श्लोक को इस सन्दर्भ में लिखा गया है की ये समाज का वर्णन करता है, ऐसा नहीं है की दोषी अगर समार्थ्य्वान है तो वो दोष से छुटकारा पा लेगा, ये श्लोक हर काल के सामाजिक संरचना को दिखाने के लिए वहां लिखा गया है.
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निम्नलिखित तथ्य उन लोगों के किसी काम के नहीं हैं जिनका इतिहास बोध की शुरुआत मई 2014 से शुरू होता है....
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यहाँ कुछ जानकारियां और देना ठीक रहेगा...
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एक तो यह कि *किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने कोई पहली बार अमरीकी संसद को संबोधित नहीं किया है*...
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*पं जवाहरलाल नेहरू,राजीव गांधी,पीवी नरसिम्हाराव,अटल बिहारी बाजपेयी और मनमोहन सिंह* तक अमरीकी संसद को संबोधित कर चुके हैं...
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हां ये फर्क ज़रूर है कि ये सब *भारत के प्रधानमंत्री* थे लेकिन नाम *नरेंद्र दामोदरदास* नहीं था...
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हां तब *तालियों की गिनती* का रिवाज़ नहीं था....।
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और *क्या पता अमरीका के सांसद तब ताली बजाना भी न जानते हों*...!
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तो ज़रा पूछिये तो अपने घर के बड़े बूढ़ों से कि *नेहरु से लेकर मनमोहन* तक के भाषणों के बाद कितनी *बरनाॅल* लगानी पड़ी थी और कितने दिन *रतजगा* किया था,
सचमुच बहुत यातना सही होगी आपके पुरखों ने,सोच कर ही मन भारी हो रहा है..
..
सामान्य स्वागत,शिष्टाचार की बातें पर लहालोट होने वालों को यह बता देना ठीक रहेगा कि *नेहरू की अगवानी को केनेडी दौड़ कर विमान में अंदर तक चढ़ गए थे*और हाथ थम कर अमरीका की धरती पर उतारा था...
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*अमरीका के इतिहास में ऐसा न पहले कभी हुआ न बाद में*...
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*अब जो लोग मेक्सिको के पीएम द्वारा कार खुद ड्राइव करने पर इतरा रहे हैं वे तो ये समझ भी नहीं सकते कि उस दौर में केनेडी के विमान में चढ़ कर अगवानी का क्या मतलब होता है*..!
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*हेनरी किसिंजर की किताब बता देती है कि इंदिरा गांधी ने निक्सन जैसे सर्वशक्तिमान अमरीकी राष्ट्रपति को नाकों चने चबवा दिए थे*...
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*राजीव गांधी को विदा करने आये रोनाल्ड रीगन ने उन्हें बारिश से बचाने को खुद छाता थाम लिया था*।( वीडियो गूगल पर आसानी से मिल जायेगा)
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और *अटल बिहारी बाजपेयी ..अहा कैसे ओजस्वी वक्ता हैं वे यह दुनिया ने तब जाना था जब अमरीकी संसद में उनकी धीर गंभीर आवाज़ गूंजी थी*...
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क्लिंटन सहित तमाम अमरीकी सांसद अटल बिहारी बाजपेयी के मुरीद हो गए थे।
और इन *पाँचों प्रधानमंत्रियों के लिए इसी तरह खड़े होकर तालियां बजायी गयीं थीं*...
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हाँ ये सारे तथ्य उन लोगों के किसी काम के नहीं हैं जिनका इतिहास बोध मई 2014 से शुरू होता है.
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नेताओ के अन्धभक्त ना बने .
राजनिती करनी चाहिए लेकिन समस्या का हल हो जाये तबतक
.नहीं तो देश व अपने को बर्बाद कर देंगे ये नेता
मैंने शुरुवाती पांच मिनट का विडियो attach किया है.. बाकी मनमोहन सिंह जी की पूरी स्पीच के लिए यहाँ जाईये
https://www.youtube.com/watch?v=2XC7N00XgcU
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क्या हम सचमुच ही नहीं चाहते कि देश में आपके अलावा कोई और इस पर गर्व कर सके...?
अर्थ यह भी है कि दशकों पूर्व लोग अमेरिकन संसद में भारतीय प्रधानमंत्रियों द्वारा दिए भाषणों को देखने के लिए बरनाॅल लगा कर नहीं बैठे थे, जबकि तब कोई ऐसी सलाह नहीं देता था. न ही विरोध करने वालों को लोग इस वक्त बर्नोल लगाने का सलाह दिया करते ते, क्योंकि विरोध जीवन के हर भाग का एक पहलू होता है. नियंत्रित तरीके से निंदा आपको सिखाती है कि आप कहाँ पे चुके हो.
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कल से मोदी भक्त एक ही बात पकड़ के बैठे है अमेरिकी संसद में सांसदों ने 9 बार खड़े होकर मोदी के भासण पर तालिया बजायी, और इसी को लेकर वो अपने प्रभु का गुणगान करने में व्यस्त है । वैसे यदि अपने देश के किसी प्रधानमंत्री का विदेश में कहीं पर आदर सम्मान होता है तो वो पूरे देश के लिए गर्व की बात होती है वशर्ते उस आदर सम्मान के पीछे ठोस कारण होना चाहिए न की किसी निजी स्वार्थ, चापलूसी या मुम्बई के लोगो की भाषा मे कहे तो चने के झाड पर चढाने के लिऐ वह आदर सम्मान किया गया हो ...खैर...
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ये सॉफ्ट टेरोरिज्म है, और अमेरिका इसका समर्थक है. यहां तक कि राम चरित मानस में भी समाज के सोच का वर्णन है. "समरथ को नहीं दोष गुसाईं " रामचरित मानस में इस श्लोक को इस सन्दर्भ में लिखा गया है की ये समाज का वर्णन करता है, ऐसा नहीं है की दोषी अगर समार्थ्य्वान है तो वो दोष से छुटकारा पा लेगा, ये श्लोक हर काल के सामाजिक संरचना को दिखाने के लिए वहां लिखा गया है.
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निम्नलिखित तथ्य उन लोगों के किसी काम के नहीं हैं जिनका इतिहास बोध की शुरुआत मई 2014 से शुरू होता है....
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यहाँ कुछ जानकारियां और देना ठीक रहेगा...
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एक तो यह कि *किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने कोई पहली बार अमरीकी संसद को संबोधित नहीं किया है*...
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*पं जवाहरलाल नेहरू,राजीव गांधी,पीवी नरसिम्हाराव,अटल बिहारी बाजपेयी और मनमोहन सिंह* तक अमरीकी संसद को संबोधित कर चुके हैं...
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हां ये फर्क ज़रूर है कि ये सब *भारत के प्रधानमंत्री* थे लेकिन नाम *नरेंद्र दामोदरदास* नहीं था...
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हां तब *तालियों की गिनती* का रिवाज़ नहीं था....।
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और *क्या पता अमरीका के सांसद तब ताली बजाना भी न जानते हों*...!
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तो ज़रा पूछिये तो अपने घर के बड़े बूढ़ों से कि *नेहरु से लेकर मनमोहन* तक के भाषणों के बाद कितनी *बरनाॅल* लगानी पड़ी थी और कितने दिन *रतजगा* किया था,
सचमुच बहुत यातना सही होगी आपके पुरखों ने,सोच कर ही मन भारी हो रहा है..
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सामान्य स्वागत,शिष्टाचार की बातें पर लहालोट होने वालों को यह बता देना ठीक रहेगा कि *नेहरू की अगवानी को केनेडी दौड़ कर विमान में अंदर तक चढ़ गए थे*और हाथ थम कर अमरीका की धरती पर उतारा था...
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*अमरीका के इतिहास में ऐसा न पहले कभी हुआ न बाद में*...
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*अब जो लोग मेक्सिको के पीएम द्वारा कार खुद ड्राइव करने पर इतरा रहे हैं वे तो ये समझ भी नहीं सकते कि उस दौर में केनेडी के विमान में चढ़ कर अगवानी का क्या मतलब होता है*..!
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*हेनरी किसिंजर की किताब बता देती है कि इंदिरा गांधी ने निक्सन जैसे सर्वशक्तिमान अमरीकी राष्ट्रपति को नाकों चने चबवा दिए थे*...
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*राजीव गांधी को विदा करने आये रोनाल्ड रीगन ने उन्हें बारिश से बचाने को खुद छाता थाम लिया था*।( वीडियो गूगल पर आसानी से मिल जायेगा)
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और *अटल बिहारी बाजपेयी ..अहा कैसे ओजस्वी वक्ता हैं वे यह दुनिया ने तब जाना था जब अमरीकी संसद में उनकी धीर गंभीर आवाज़ गूंजी थी*...
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क्लिंटन सहित तमाम अमरीकी सांसद अटल बिहारी बाजपेयी के मुरीद हो गए थे।
और इन *पाँचों प्रधानमंत्रियों के लिए इसी तरह खड़े होकर तालियां बजायी गयीं थीं*...
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हाँ ये सारे तथ्य उन लोगों के किसी काम के नहीं हैं जिनका इतिहास बोध मई 2014 से शुरू होता है.
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नेताओ के अन्धभक्त ना बने .
राजनिती करनी चाहिए लेकिन समस्या का हल हो जाये तबतक
.नहीं तो देश व अपने को बर्बाद कर देंगे ये नेता
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.