अमेरिकन कांग्रेस में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के स्पीच के लिए तालीयों की गड़गड़ाहट क्यो?
अमेरिकन कांग्रेस में भारतीय प्रधानमंत्री के लिए तालीयों की गड़गड़ाहट : क्या वजह हो सकती है इसकी जबकि अमेरिका जैसा शुद्ध व्यापारिक देश बिना अपने मतलब के किसी अन्य तीसरी दुनिया के देश के प्रधानमन्त्री की इतनी स्वागत नहीं करता. ऐसी तालियाँ भारत के पिछले प्रधानमंत्रियों को भी अमेरिका में मिल चुकीं हैं, आप गूगल पर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
वस्तुतः जो नेता, मंत्री अमेरिका की गुलामी करता है, वो ताली उसी की बजवाता है.
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अमेरिका किसी का सगा नहीं है. नेहरु को अपने पक्ष में खींचना था, उतना नहीं सफल हुआ. इंदिरा का अपना स्वतन्त्र क़द था तो कभी गुड बुक में नहीं रहीं अमेरिका के.
राजीव गांधी को मुक्त बाज़ार चाहिए था तो उनके या मनमोहन के लिए अमेरिका थोड़ा मेहरबान होता ही., सोचिये मिला क्या उससे?
अमेरिकी कपास भारत में भर गई, अपने किसान आत्महत्या करने लगे और कर रहे हैं.
अमेरिकी माल से पट गया भारतीय बाज़ार और हम उनके माल के उत्पादन के लिए सस्ता श्रम बाज़ार उपलब्ध कराते बर्बाद हो गए..
कहानी देखनी है न अमेरिकी मुहब्बत की तो दुनिया भर में देखिये. ज्यादा दूर नहीं, वहीँ बगल के लैटिन अमेरिका को ही देखिये. होने को तो ओसामा भी उसका प्रिय ही था, पाकिस्तान भी है.
अमेरिका का हित उसके पूंजीपतियों का हित है. उन्हें अपने माल के लिए मुक्त बाज़ार और सस्ता श्रम चाहिए. इसके लिए वह ताली भी बजवा सकता है और गोली भी चलवा सकता है.
मालिक की तारीफ़ से ख़ुश नौकर की किस्मत में हर हाल में केवल और पिसना लिखा होता है.
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अब भगत बगुले ये बोलेंगे की पहले इसी अमेरिका ने मोदी को वीसा देने से मना किया था, अब वही तो मोदी की जय जय कार कर रहे हैं? बात ये है की उस वक्त जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस समय उन्होंने और बीजेपी के तमाम नेताओं ने ऍफ़ डी आई, बीफ मांस निर्यात, गो-वध, बांग्लादेशियों के घुसपैठ जैसे कई मुद्दों का विरोध किया था, जोअमेरिका के हित में नहीं था, अतः इस स्थिति में अमेरिका ने मोदी को वीसा न देने का समर्थन अपनी कूटनीति के अनुसार किया.
लेकिनभारतीय राजनेताओं को अमेरिका वाली कूटनीति केन्द्रीय सत्ता में जाने से पहले समझ नहीं आती. फिर उनके समर्थक जो वैचारिक अपांग हैं, उन्हें कहाँ से समझ में आएगी?
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मोदी की स्पीच पर आखिर अमेरिकी संसद में सब ताली क्यों न बजाएं.. ?
उन्हें पता है 60 साल में पूरी जुगत लगा के भी जो वो भारत से हासिल नहीं कर सके, इस बन्दे ने वो चुटकियों में दे दिया.. अपने सारे एयर बेस अमेरिका के क़दमों में रख दिए.. हाँ भक्तों पता है.. शानदार "कूटनीति" ना?? ज़रा इतिहास पढ़ो.. जिस जिस देश ने अपने सैन्य अड्डे अमेरिका के हवाले किये उन देशों का क्या अंजाम हुआ.. एक भी अपवाद मिल जाए तो ज़रूर बताना.. फिर सुनेंगे तुम्हारा "कूटनीति" का महाज्ञान.
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क्या आप जानते हैं- जापान के लोग कभी भी अमेरिका के विरोध नारेबाजी क्यों नहीं करते हैं। जबकि अमेरिका ही वो देश है जिसने जापान के विरुद्ध एटम बम गिराया था किन्तु इस पर भी हमने कभी जापान की सडकों पर अमेरिका के विरोध में कोई रैली, जुलुस नहीं सुने, और ना ही कभी "अमेरिका" मुर्दाबाद कहते हुए सूना होगा. जब ये प्रश्न एक जापानी से पूछा गया तो उसने कहा "मात्र नारेबाज़ी करना और अपने ही देश में अपने शत्रु का विरोध कर दंगा फसाद करना उन कमज़ोर कौमों की पहचान रही जो वास्तव में कुछ नहीं करते हैं । आज अमेरिका के राष्ट्रपति के ऑफिस में "मेड इन जापान" पेनासोनिक टेलीफोन और सोनी टेलीविज़न रखा हुआ है,यही हमारी अमेरिका के विरुद्ध जीत भी है और प्रतिशोध भी......वहां के लोग क़ानून-सुधार प्रक्रिया पर ध्यान देते हैं, व्यर्थ के भावुकता भरे राजनीति गतिविधियों पर नहीं, क्योंकि वे समझते हैं, की राजनीति भावनात्मक रूप से हैंडल करने की चीज़ नहीं है.वस्तुतः प्रतिशोध लेने का और अपनी सफलता को प्रदर्शित करने का यही उचित उपाय भी है. खैर..
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वस्तुतः यही(वर्तमान भारत का प्रधानमन्त्री) ही वो बन्दा है जिसने पिछले उनहत्तर साल से बीफ के मांस एक्सपोर्ट के ऊपर सब्सिडी दी, जानवरों के क़त्ल करने वाली मशीन के आयात पे राहत दी, पहले तीस-चालीस प्रतिशत ऍफ़ डी आई था, वो भी सभी क्षेत्रों में नहीं, था, लेकिन इसने सत्ता में आते ही लगभग सभी क्षेत्रों में सौ प्रतिशत ऍफ़ डी आयी ला दी.
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हमेशा की तरह एक बार फिर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शानदार प्रदर्शन ! वैसे भी मोदी सरकार ने अपने कई भाषणों ने टेली-प्रोम्प्टर का उपयोग किया है, जिसके चलते उनका भाषण में शब्द शब्द प्रभावी बना दिया जाता है, अगर आपको इस विषय पर अधिक जानकरी चाहिएतो गूगल पर मिल जायेगी..
सभी को ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि मोदी का हर भाषण पिछले भाषण से अच्छा होता है और अगला भाषण इस से भी अच्छा होगा और टैलिप्राम्प्टर उपयोग में लाया जाएगा..
सामान्यतः जो कथित नेता टैलिप्राम्प्टर का उपयोग करते हैं, वे कोई बड़े नेता नहीं होते, इस टेक्नीक में वक्ता के दोनों तरफ एक परदे जैसा एक छोटा मशीन लगा होता है, दाए व बाएँ ओर, वक्ता अपने बोलने के शब्दों को इसमें देखते हुए बोलता है, दायें व बायें, लेकिन टीवी समाचार देखने वालों को यह लगता है की वक्ता अपने श्रोताओं दर्शकों को देख रहा है. खैर..ये लिंक देखें- http://m.rediff.com/…/the-teleprompters-behind…/20160609.htm
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इस पर भी "सबसे तेज़ और सबसे सटीक" की गलाकाट दौड़ में माइक और कैमरे की जगह भाला और ढाल लेकर दौड़ते दिखाई देने वाले भारतीय चैनलों ने भी कल रात "देश का सर ऊँचा" करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।
लेकिन अफ़सोस हम में से किसी को इस पल को देखकर शर्म नहीं आई !!!!!
क्या हुआ ????
आप लोग सोच में पड गए या मैंने क्या कह दिया ?
लेकिन सच यही है ! वो पल इस देश के लिए एक शर्मनाक पल था ।
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सुई से लेकर हथियार तक पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद जग ज़ाहिर है । और उसी पाकिस्तान को पालने वाला यही अमेरिका हमारे प्रधानमंत्री के पाकिस्तान के प्रति आलोचनात्मक लहजे का ताली बजा कर स्वागत कर रहा था ?
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क्या कोई बता सकता है ये क्या मायाजाल है ?
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दरअसल इस घटना के तीन पहलू है । पहला अमेरिका, दूसरा भारत सरकार और तीसरा भारत की जनता ।
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अमेरिका भारत सरकार को बेवकूफ बना रहा है और भारत सरकार दुनिया की सबसे घटिया मीडिया भारतीय मीडिया के साथ मिलकर भारत की जनता को बेवकूफ बना रही है ।
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जिस अमेरिका ने भारत को F-18 बेचने की भूमिका बनाने के लिए पहले पाकिस्तान को F-16 विमान मुफ़्त में दे दिए हो वो अमेरिका भारतीय प्रधानमंत्री के उस भाषण की तारीफ कर रहा है जिसमें पाकिस्तान के आतंकवाद का ज़िक्र हो रहा है ?
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अमेरिका का इतिहास देखें तो पता चलता है अमेरिका शुद्ध रूप से एक व्यापारी देश है और मूल व्यापारी है हथियारों का ।
.19वी शताब्दी में हुए किसी भी युद्ध की के कारणों को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि ये युद्ध अमेरिका द्वारा तैयार किया गया माहौल था हथियार बेचने के लिए, चाहे वो ईरान ईराक का लंबा मतभेद हो या पहला दूसरा विश्वयुद्ध ।
वस्तुतः जो नेता, मंत्री अमेरिका की गुलामी करता है, वो ताली उसी की बजवाता है.
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अमेरिका किसी का सगा नहीं है. नेहरु को अपने पक्ष में खींचना था, उतना नहीं सफल हुआ. इंदिरा का अपना स्वतन्त्र क़द था तो कभी गुड बुक में नहीं रहीं अमेरिका के.
राजीव गांधी को मुक्त बाज़ार चाहिए था तो उनके या मनमोहन के लिए अमेरिका थोड़ा मेहरबान होता ही., सोचिये मिला क्या उससे?
अमेरिकी कपास भारत में भर गई, अपने किसान आत्महत्या करने लगे और कर रहे हैं.
अमेरिकी माल से पट गया भारतीय बाज़ार और हम उनके माल के उत्पादन के लिए सस्ता श्रम बाज़ार उपलब्ध कराते बर्बाद हो गए..
कहानी देखनी है न अमेरिकी मुहब्बत की तो दुनिया भर में देखिये. ज्यादा दूर नहीं, वहीँ बगल के लैटिन अमेरिका को ही देखिये. होने को तो ओसामा भी उसका प्रिय ही था, पाकिस्तान भी है.
अमेरिका का हित उसके पूंजीपतियों का हित है. उन्हें अपने माल के लिए मुक्त बाज़ार और सस्ता श्रम चाहिए. इसके लिए वह ताली भी बजवा सकता है और गोली भी चलवा सकता है.
मालिक की तारीफ़ से ख़ुश नौकर की किस्मत में हर हाल में केवल और पिसना लिखा होता है.
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अब भगत बगुले ये बोलेंगे की पहले इसी अमेरिका ने मोदी को वीसा देने से मना किया था, अब वही तो मोदी की जय जय कार कर रहे हैं? बात ये है की उस वक्त जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस समय उन्होंने और बीजेपी के तमाम नेताओं ने ऍफ़ डी आई, बीफ मांस निर्यात, गो-वध, बांग्लादेशियों के घुसपैठ जैसे कई मुद्दों का विरोध किया था, जोअमेरिका के हित में नहीं था, अतः इस स्थिति में अमेरिका ने मोदी को वीसा न देने का समर्थन अपनी कूटनीति के अनुसार किया.
लेकिनभारतीय राजनेताओं को अमेरिका वाली कूटनीति केन्द्रीय सत्ता में जाने से पहले समझ नहीं आती. फिर उनके समर्थक जो वैचारिक अपांग हैं, उन्हें कहाँ से समझ में आएगी?
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मोदी की स्पीच पर आखिर अमेरिकी संसद में सब ताली क्यों न बजाएं.. ?
उन्हें पता है 60 साल में पूरी जुगत लगा के भी जो वो भारत से हासिल नहीं कर सके, इस बन्दे ने वो चुटकियों में दे दिया.. अपने सारे एयर बेस अमेरिका के क़दमों में रख दिए.. हाँ भक्तों पता है.. शानदार "कूटनीति" ना?? ज़रा इतिहास पढ़ो.. जिस जिस देश ने अपने सैन्य अड्डे अमेरिका के हवाले किये उन देशों का क्या अंजाम हुआ.. एक भी अपवाद मिल जाए तो ज़रूर बताना.. फिर सुनेंगे तुम्हारा "कूटनीति" का महाज्ञान.
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क्या आप जानते हैं- जापान के लोग कभी भी अमेरिका के विरोध नारेबाजी क्यों नहीं करते हैं। जबकि अमेरिका ही वो देश है जिसने जापान के विरुद्ध एटम बम गिराया था किन्तु इस पर भी हमने कभी जापान की सडकों पर अमेरिका के विरोध में कोई रैली, जुलुस नहीं सुने, और ना ही कभी "अमेरिका" मुर्दाबाद कहते हुए सूना होगा. जब ये प्रश्न एक जापानी से पूछा गया तो उसने कहा "मात्र नारेबाज़ी करना और अपने ही देश में अपने शत्रु का विरोध कर दंगा फसाद करना उन कमज़ोर कौमों की पहचान रही जो वास्तव में कुछ नहीं करते हैं । आज अमेरिका के राष्ट्रपति के ऑफिस में "मेड इन जापान" पेनासोनिक टेलीफोन और सोनी टेलीविज़न रखा हुआ है,यही हमारी अमेरिका के विरुद्ध जीत भी है और प्रतिशोध भी......वहां के लोग क़ानून-सुधार प्रक्रिया पर ध्यान देते हैं, व्यर्थ के भावुकता भरे राजनीति गतिविधियों पर नहीं, क्योंकि वे समझते हैं, की राजनीति भावनात्मक रूप से हैंडल करने की चीज़ नहीं है.वस्तुतः प्रतिशोध लेने का और अपनी सफलता को प्रदर्शित करने का यही उचित उपाय भी है. खैर..
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वस्तुतः यही(वर्तमान भारत का प्रधानमन्त्री) ही वो बन्दा है जिसने पिछले उनहत्तर साल से बीफ के मांस एक्सपोर्ट के ऊपर सब्सिडी दी, जानवरों के क़त्ल करने वाली मशीन के आयात पे राहत दी, पहले तीस-चालीस प्रतिशत ऍफ़ डी आई था, वो भी सभी क्षेत्रों में नहीं, था, लेकिन इसने सत्ता में आते ही लगभग सभी क्षेत्रों में सौ प्रतिशत ऍफ़ डी आयी ला दी.
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हमेशा की तरह एक बार फिर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शानदार प्रदर्शन ! वैसे भी मोदी सरकार ने अपने कई भाषणों ने टेली-प्रोम्प्टर का उपयोग किया है, जिसके चलते उनका भाषण में शब्द शब्द प्रभावी बना दिया जाता है, अगर आपको इस विषय पर अधिक जानकरी चाहिएतो गूगल पर मिल जायेगी..
सभी को ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि मोदी का हर भाषण पिछले भाषण से अच्छा होता है और अगला भाषण इस से भी अच्छा होगा और टैलिप्राम्प्टर उपयोग में लाया जाएगा..
सामान्यतः जो कथित नेता टैलिप्राम्प्टर का उपयोग करते हैं, वे कोई बड़े नेता नहीं होते, इस टेक्नीक में वक्ता के दोनों तरफ एक परदे जैसा एक छोटा मशीन लगा होता है, दाए व बाएँ ओर, वक्ता अपने बोलने के शब्दों को इसमें देखते हुए बोलता है, दायें व बायें, लेकिन टीवी समाचार देखने वालों को यह लगता है की वक्ता अपने श्रोताओं दर्शकों को देख रहा है. खैर..ये लिंक देखें- http://m.rediff.com/…/the-teleprompters-behind…/20160609.htm
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इस पर भी "सबसे तेज़ और सबसे सटीक" की गलाकाट दौड़ में माइक और कैमरे की जगह भाला और ढाल लेकर दौड़ते दिखाई देने वाले भारतीय चैनलों ने भी कल रात "देश का सर ऊँचा" करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।
लेकिन अफ़सोस हम में से किसी को इस पल को देखकर शर्म नहीं आई !!!!!
क्या हुआ ????
आप लोग सोच में पड गए या मैंने क्या कह दिया ?
लेकिन सच यही है ! वो पल इस देश के लिए एक शर्मनाक पल था ।
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सुई से लेकर हथियार तक पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद जग ज़ाहिर है । और उसी पाकिस्तान को पालने वाला यही अमेरिका हमारे प्रधानमंत्री के पाकिस्तान के प्रति आलोचनात्मक लहजे का ताली बजा कर स्वागत कर रहा था ?
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क्या कोई बता सकता है ये क्या मायाजाल है ?
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दरअसल इस घटना के तीन पहलू है । पहला अमेरिका, दूसरा भारत सरकार और तीसरा भारत की जनता ।
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अमेरिका भारत सरकार को बेवकूफ बना रहा है और भारत सरकार दुनिया की सबसे घटिया मीडिया भारतीय मीडिया के साथ मिलकर भारत की जनता को बेवकूफ बना रही है ।
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जिस अमेरिका ने भारत को F-18 बेचने की भूमिका बनाने के लिए पहले पाकिस्तान को F-16 विमान मुफ़्त में दे दिए हो वो अमेरिका भारतीय प्रधानमंत्री के उस भाषण की तारीफ कर रहा है जिसमें पाकिस्तान के आतंकवाद का ज़िक्र हो रहा है ?
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अमेरिका का इतिहास देखें तो पता चलता है अमेरिका शुद्ध रूप से एक व्यापारी देश है और मूल व्यापारी है हथियारों का ।
.19वी शताब्दी में हुए किसी भी युद्ध की के कारणों को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि ये युद्ध अमेरिका द्वारा तैयार किया गया माहौल था हथियार बेचने के लिए, चाहे वो ईरान ईराक का लंबा मतभेद हो या पहला दूसरा विश्वयुद्ध ।
तो क्या वाक़ई भारतीय मीडिया के अनुसार इसे कल हुए भाषण की तारीफ, स्टेंडिंग ओवेशन और जयजयकार, नाद गूँज कहना ठीक है ?
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हमारी अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है,
सीमाएं आज पहले से भी ज़्यादा असुरक्षित है,
युवाओं को रोज़गार के अवसर पहले से भी कम मिल रहे है,
किसान त्राहिमाम के चरम पर बैठा है,
आयात बढ़ रहा है निर्यात घट रहा है,
रूपया रोज़ नई गिरावट की तरफ जा रहा है,
पेट्रोल डीज़ल के दाम और महँगाई रोज़ बढ़ रहे है,
और ये आरोप नहीं सरकारी आंकड़ों के साथ साथ ज़मीनी सच है जिसे सब समझ चुके है ।
.
यद्यपि ये एक अटल सत्य है कि अपने छह दशक के राज में कांग्रेस ने इस देश की राजनीति में कई गलत परम्पराओं को जन्म दिया लेकिन अब इस "कांग्रेसमुक्त भारत" में स्थिति और भी बदतर है ।
.
क्योंकि कांग्रेस के राज में जो मीडिया गलत देखकर "चुप" रहता था वो "कांग्रेसमुक्त भारत" में न सिर्फ बड़बोला हो गया है बल्कि चुप्पी के जगह झूठ की कीमत वसूलने के व्यापार में लग गया है ।
.
पद्मविभूषण की रेवड़ी से लेकर राज्यसभा सीट की मलाई तक तमाम चीज़ें इस कीमत का हिस्सा है जिसे ख़ुशी ख़ुशी एक आत्ममुग्ध किन्तु असफल प्रधानमंत्री ने चुकाया है ।
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जिन कांग्रेसी,मोदी,खुजलीवाल अंधभक्तो को लगता है की सिर्फ मोदी के स्पीच से अमेरिका के संसद में तालियां बजी है वो अन्धभक्त आँख खोलकर देख ले की #मंदमोहनके स्पीच पर भी तालियां बजी थी तो तब भारत को 30% बेचा गया था,अब मोदी के स्पीच पर तालियों का मतलब कितने % देश को और बेचा जायेगा ये तो साफ़ दिख ही रहा है, वैसे ऐसे सभी नेताओ को "देश को बेचना वाला दलाल" ही कहना उचित होगा, चाहे जो हो, मंदमोहन-मोदी-केजरू-सोनिया या अन्य कोई दो टके का नेता हो, आप मोदी वाले अमेरिकी संसद में भाषण के बाद मनमोहन सिंह द्वारा वहां उसी संसद में दिए स्पीच को भी सुनिए जिसके बाद वहां उपस्थित सभी श्रोताओं ने तालियों से अच्छा रेस्पोंसे दिया
.ये रहा लिंक- .
https://www.youtube.com/attribution_link…
.
दरअसल ये मामला देशप्रेम की आड़ में भावनात्मक रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है लेकिन प्रश्नचिन्ह हम भारतीयों की समझ, तर्कशक्ति और जागरूकता पर लग गया है ।
.देश की जनता इस सामान्य सच जिसे वो बचपन से अगर समाचारों पर ध्यान दिया होगा तो जरूर उसे पता होता, लेकिन नहीं, इस देश के बच्चों को ये सम्जहाया ही नहीं जाता कि डेली समाचार को फॉलो करते हीरहना चाहिए, और ये एक जागरूक जनता का कर्तव्य है.
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लेकिन नहीं !
जनता तो क्या, यहाँ के अधिकाँश पूर्वज तक चौदह सौ सालों की गुलामी में पैदा होने के कारण आजादी को बनाए रखने जैसे कर्तव्य को अपराध समझते हैं. !!
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अतः देश की नयी अर्थव्यवस्था यहाँ की वैचारिक अपंग जनता को मुबारक !!
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जय हिन्द.
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हमारी अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है,
सीमाएं आज पहले से भी ज़्यादा असुरक्षित है,
युवाओं को रोज़गार के अवसर पहले से भी कम मिल रहे है,
किसान त्राहिमाम के चरम पर बैठा है,
आयात बढ़ रहा है निर्यात घट रहा है,
रूपया रोज़ नई गिरावट की तरफ जा रहा है,
पेट्रोल डीज़ल के दाम और महँगाई रोज़ बढ़ रहे है,
और ये आरोप नहीं सरकारी आंकड़ों के साथ साथ ज़मीनी सच है जिसे सब समझ चुके है ।
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यद्यपि ये एक अटल सत्य है कि अपने छह दशक के राज में कांग्रेस ने इस देश की राजनीति में कई गलत परम्पराओं को जन्म दिया लेकिन अब इस "कांग्रेसमुक्त भारत" में स्थिति और भी बदतर है ।
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क्योंकि कांग्रेस के राज में जो मीडिया गलत देखकर "चुप" रहता था वो "कांग्रेसमुक्त भारत" में न सिर्फ बड़बोला हो गया है बल्कि चुप्पी के जगह झूठ की कीमत वसूलने के व्यापार में लग गया है ।
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पद्मविभूषण की रेवड़ी से लेकर राज्यसभा सीट की मलाई तक तमाम चीज़ें इस कीमत का हिस्सा है जिसे ख़ुशी ख़ुशी एक आत्ममुग्ध किन्तु असफल प्रधानमंत्री ने चुकाया है ।
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जिन कांग्रेसी,मोदी,खुजलीवाल अंधभक्तो को लगता है की सिर्फ मोदी के स्पीच से अमेरिका के संसद में तालियां बजी है वो अन्धभक्त आँख खोलकर देख ले की #मंदमोहनके स्पीच पर भी तालियां बजी थी तो तब भारत को 30% बेचा गया था,अब मोदी के स्पीच पर तालियों का मतलब कितने % देश को और बेचा जायेगा ये तो साफ़ दिख ही रहा है, वैसे ऐसे सभी नेताओ को "देश को बेचना वाला दलाल" ही कहना उचित होगा, चाहे जो हो, मंदमोहन-मोदी-केजरू-सोनिया या अन्य कोई दो टके का नेता हो, आप मोदी वाले अमेरिकी संसद में भाषण के बाद मनमोहन सिंह द्वारा वहां उसी संसद में दिए स्पीच को भी सुनिए जिसके बाद वहां उपस्थित सभी श्रोताओं ने तालियों से अच्छा रेस्पोंसे दिया
.ये रहा लिंक- .
https://www.youtube.com/attribution_link…
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दरअसल ये मामला देशप्रेम की आड़ में भावनात्मक रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है लेकिन प्रश्नचिन्ह हम भारतीयों की समझ, तर्कशक्ति और जागरूकता पर लग गया है ।
.देश की जनता इस सामान्य सच जिसे वो बचपन से अगर समाचारों पर ध्यान दिया होगा तो जरूर उसे पता होता, लेकिन नहीं, इस देश के बच्चों को ये सम्जहाया ही नहीं जाता कि डेली समाचार को फॉलो करते हीरहना चाहिए, और ये एक जागरूक जनता का कर्तव्य है.
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लेकिन नहीं !
जनता तो क्या, यहाँ के अधिकाँश पूर्वज तक चौदह सौ सालों की गुलामी में पैदा होने के कारण आजादी को बनाए रखने जैसे कर्तव्य को अपराध समझते हैं. !!
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अतः देश की नयी अर्थव्यवस्था यहाँ की वैचारिक अपंग जनता को मुबारक !!
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जय हिन्द.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.