किसी रईस की संतान को मुक़दमे का सामना करना पड़ता है तो जुवेनाइल बोर्ड के सदस्य बिकने के लिए उनके घर पर कतार बाँध कर खड़े हो जाएंगे

2012 में हुए निर्भया बलात्कार काण्ड का मुख्य आरोपी सभी राजनैतिक पार्टियों की तरफ से आज रिहा कर दिया गया, क्योंकि ---
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१) कांग्रेस ने 2012 से 2014 तक सत्ता में रहते हुए जुवेनाइल एक्ट में संशोधन करने से इंकार कर दिया।
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२) क्योंकि मई 2014 से दिसम्बर 2015 तक मोदी साहेब ने ऐसे किसी भी प्रस्ताव को संसद में रखने से इंकार कर दिया जिससे मुख्य आरोपी की रिहाई पर रोक लगाईं जा सके।
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३) क्योंकि मोदी साहेब ने ऐसे किसी अध्यादेश को लागू करने से भी इंकार कर दिया, जिससे मुख्य आरोपी को सलाखों के पीछे रखा जा सके
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४) क्योंकि मुख्य आरोपी की रिहाई पर रोक लगाने की जनहित याचिका लगाने वाले सुब्रह्मनियम स्वामी ने भी सरकार से ऐसा अध्यादेश लाने की मांग करने से इंकार कर दिया।
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५) क्योंकि अरविन्द केजरीवाल ने भी ऐसे किसी भी अध्यादेश या प्रस्ताव की मांग करने से इंकार कर दिया।
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६) क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी मुख्य आरोपी की रिहाई पर रोक लगाने के लिए आवश्यक प्रस्ताव या अध्यादेश की मांग करने से इंकार कर दिया।
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७) क्योंकि पिछले 3 साल से सड़को पर उतर कर मोमबत्तियां जलाने, महिला सुरक्षा के लिए धरना प्रदर्शन करने वाले और सोशल मिडिया पर स्त्रियों के प्रति संवेदनशील सामग्री सर्कुलेट करने वाले कार्यकर्ताओ ने भी सरकार से ऐसी किसी भी मांग करने से इंकार कर दिया।
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ये सभी राजनैतिक पार्टियां, नेता और कार्यकर्त्ता स्त्री सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से "संवेदनशील और प्रतिबद्ध" है, तथा इन सभी को यह अच्छी तरह से मालूम था कि भारत के जुवेनाइल एक्ट के अनुसार अमुक आरोपी 20 दिसंबर को रिहा हो जाएगा। अत: महिलाओ की सुरक्षा के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले इन सभी दुरात्माओं ने तीन साल तक जम कर टाइम पास किया ताकि बलात्कार का सबसे क्रूर अभियुक्त रिहा हो सके।
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पेड मिडिया रिपोर्ट कर रहा है कि, बीजेपी ने जुवेनाइल एक्ट में संशोधन पास कर दिया था, किन्तु वह राज्य-सभा में कांग्रेस ने रोक दिया है, अत: मुख्य आरोपी के रिहा होने की दोषी कांग्रेस है। जबकि सच्चाई यह है कि अमुक क़ानून के राज्य सभा से पारित हो जाने पर भी इसे रिहा होना ही था, क्योंकि मोदी साहेब ने प्रस्तावित क़ानून में '2012 से प्रभावी' का प्रावधान जोड़ने से साफ़ मना कर दिया था।
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इसके अलावा मोदी साहेब चाहते तो लोकसभा में प्रस्ताव पास करके या सीधे ही अध्यादेश लागू करके इसकी रिहाई पर रोक लगा सकते थे, लेकिन वे भी इस पर चुप्पी इसीलिए साध गए क्योंकि उन्हें मालूम है कि, अब 2019 से पहले जनता उनका कुछ भी बिगाड़ सकती नहीं है।
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अरविन्द केजरीवाल ने भी अपने सांसदों को यह स्पष्ट निर्देश दे रखे थे कि ऐसा कोई भी 'निजी बिल' संसद में पेश नहीं करे जिससे मुख्य आरोपी की रिहाई पर रोक लग सके।
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महिला आयोग, पेड स्तंभकार, पेड बुद्धिजीवी और सुब्रह्मनियम स्वामी आदि से तो ऐसे क़ानून की मांग करने की उम्मीद करना भी उनके साथ ज्यादती होगी, लेकिन देश की करोडो महिलायें और कार्यकर्ताओ से यह आशा थी कि वे सरकार से इस सम्बन्ध में प्रस्ताव पास करने की मांग करेंगे, किन्तु इन गाफिलो ने सबसे अधिक निराश किया।
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क्या कोई ऐसा समूह है जो पिछले 3 वर्ष से नागरिको से अपील कर रहा था कि यदि जुवेनाइल एक्ट में संशोधन नहीं किया गया और इसे '2012 से प्रभावी' नहीं किया गया तो ऐसे किसी कानून के अभाव में यह तय है कि इस घटना का मुख्य आरोपी रिहा हो जाएगा ?
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सिर्फ राइट टू रिकॉल ग्रुप पिछले तीन वर्षो से लगातार नागरिको से अपील कर रहा है कि अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजें कि जुवेनाइल एक्ट की मौजूदा सीमा को घटाकर 16 वर्ष की जाए, इस संशोधित एक्ट को 2012 से प्रभावी किया जाए और हाल ही में हमने अपील जारी की थी कि नागरिक अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे कि तत्काल प्रभाव से अध्यादेश जारी करके निर्भया के मुख्य बलात्कारी की रिहाई पर रोक लगाईं जाए।
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राईट टू रिकॉल ग्रुप के प्रयासों से लगभग 25000 नागरिको ने महिलाओ के प्रति संवेदनशील होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए अपने सांसदों को एसएमएस भेजे और सरकार जुवेनाइल एक्ट में संशोधन लाने के लिए बाध्य हुयी। किन्तु शेष नागरिको ने अपने सांसद से ऐसी कोई मांग नहीं की, फलस्वरूप सरकार पर वांछित दबाव नहीं बन सका और आखिर में वाही हुआ जो सभी राजनैतिक पार्टियां चाहती थी।
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'ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है, हत्या, बलात्कार, डकैती समेत कितना ही जघन्य अपराध क्यों न कर दे, उसे किसी भी हालत में 3 वर्ष से अधिक अवधि के लिए सुधार गृह में नहीं रखा जाना चाहिए' (जेल तो दूर की बात है)। यह क़ानून हमें 1999 में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी और बुद्धिजीवी अरुण जेटली ने दिया था।
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और मोदी साहेब ने भी इस क़ानून का तब तक कोई विरोध नहीं किया, जब तक कि 25000 नागरिको ने इस क़ानून को बदलने के आदेश नहीं भेजे !!
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और इस पर भी मोदी साहेब ने मजबूत क़ानून पास करने की जगह लूला लंगड़ा क़ानून पास करके खाना पूर्ती कर दी, तथा जुवेनाइल की वयस्कता निर्धारित करने का अधिकार जुवेनाइल बोर्ड को दे दिया। जाहिर है यदि किसी रईस की संतान को मुक़दमे का सामना करना पड़ता है तो जुवेनाइल बोर्ड के सदस्य बिकने के लिए उनके घर पर कतार बाँध कर खड़े हो जाएंगे।
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इतना ही नहीं मोदी साहेब ने जुवेनाइल एक्ट को पास करने के लिए संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाने से भी इंकार कर दिया, ताकि बिल को लंबित किया जा सके। साफ दिख रहा है कि मोदी साहेब को इस मामले की कोई परवाह नहीं है कि निर्भया ने अपने बयान में इस मुख्य आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग की थी।
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उन्हें परवाह भूमि अधिग्रहण बिल की है, जिसे लागू करने के लिए वे 3 बार अध्यादेश निकाल चुके है, ताकि देशी और विदेशी धनिकों द्वारा आम नागरिको की कीमती जमीने कब्जाई जा सके।
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जहां तक मोदी भक्तो का प्रश्न है, वे अब भी अपना वही राग अलाप रहे है कि अभी तो बच्चा 18 महीने का ही हुआ है, हमें और वक़्त चाहिए। थोड़ा और रुको, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा।
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इस प्रकरण से पहला सबक यह मिलता है कि देश को क़ानून चलाते है, अत: यदि आप कोई परिवर्तन चाहते है तो कानूनो में परिवर्तन की मांग करनी चाहिए। दूसरा सबक यह है कि सोनिया-मोदी-केजरीवाल एक दूसरे के पर्याय है, इसलिए नागरिक देश में जो भी बदलाव चाहते है उन बदलावों को लाने के लिए नागरिको को वांछित कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने के लिए अपने सांसद को सीधे आदेश भेजने चाहिए।
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मोमबत्तियाँ लेकर घूमना, नारे लगाना, जुलुस निकालना, भावुक अपीले जारी करना, और नेताओ की पूँछ पकड़ कर लटके रहने से निर्भया, दामिनी जैसी पीड़िताएं घाटे में और उनके पीड़क फायदे की स्थिति में बने रहेंगे। 

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