बलिदानी भारतीय और जनता की देशभक्ति का अंतर

कहते हैं कोई विदेशी सूली पर चढ़ा और भारतीय लोग लग गए मेरी क्रिसमस मेरी क्रिसमस करने को.
कल प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब वो भी सजा रहा था जो 24 घंटे आँक्सीजन देने वाले तुलसी के पेड़ के पास दीप जलाने को अंधविश्वास कहता है.
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भारत-भूमि को विदेशियों के आक्रमण से बचाने को अनगिनत स्वतंत्रता-सेनानी और देशवासी मौत की भेंट चढ़े, उनकी याद में आप क्या मनाते हो?
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उस विदेशी के सूली पे चढ़ने से प्रेरणा लेकर लोग विदेशी धर्म भारत में फैला रहे हैं, क्या इतने बलिदानी देशवासियों की मौत से आप विजातीय धर्म को बढाने कि बजाय अपने धर्म को फैलाने की प्रेरणा लेकर अपने धर्म की रक्षा के लिए इसे नहीं फैला सकते?
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क्या भारत-भूमि को पुनः विदेशी-कंपनियों से बचाने को आप क़ानून-सुधार-प्रक्रिया नहीं फैला सकते?
क्यूंकि विदेशी-कंपनियां भारत की प्राकृतिक संसाधनों को मिटटी के भाव खरीद कर उसका उत्पाद कहीं अधिक दामों में हम भारतीयों को बेचते हैं.
विदेशी कंपनियां कम्पटीशन के नाम पर भारतीय कंपनियों को बंद कर रहीं हैं, क्योंकि आप शायद ये जानते होंगे कि कम्पटीशन एक जैसे लेवल पे होता है, जमीन और आसमान की कंपनियों में कैसा कम्पटीशन? ये सरासर मूर्खता है.
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FDI के साथ साथ कंपनियां अपने देश का धर्म भी भारत में लाती हैं और फैलाती हैं और आपकी कंपनियां सिकुड़ने के साथ साथ आपका धर्म भी नष्ट कर रहीं हैं, क्योंकि आपके देश कि कंपनियों i कोई लॉबी नहीं है. आप धार्मिक रूप से भी संगठित नहीं है. खैर...क़ानून-सुधार लाकर विदेशी कंपनियों को रोका जा सकता है.
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क़ानून-सुधार-प्रक्रिया कैसे लायी जा सकती हैं, कृपया देखें-
जय हिन्द.

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