यूक्रेन सङ्कट — १२

यूक्रेन सङ्कट — १२
इस युद्ध के बारे में सबसे महत्वपूर्ण इस तथ्य को छुपाया जा रहा है कि २४ फरवरी से ही उक्राइन की समूची वायुसेना और समूची नौसेना युद्ध से पूरी तरह दूर है । आजतक उक्राइन का एक भी युद्धविमान अथवा एक भी समुद्री युद्धपोत ने युद्ध में भाग नहीं लिया । झेलेन्स्की नैटो से रूसी युद्धविमान माँग रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि उक्राइन के पॉयलटों को केवल रूसी मॉडल के युद्धविमान के सञ्चालन का अनुभव है । पौलैण्ड जैसे नैटो सदस्यों के पास रूस द्वारा दिये गये युद्धविमान हैं किन्तु रूस की चेतावनी के कारण वह देने का साहस नहीं करता ।

किन्तु उक्राइन के पास पहले से सैकड़ों युद्धविमान हैं,उनको आकाश में उड़ाने की क्षमता झेलेन्स्की की सेना के पास नहीं है तो दूसरे देशों द्वारा दिये गये युद्धविमानों को कौन उड़ायेगा?स्पष्ट है कि पॉयलट भी नैटो से ही चाहिए,जो नैटो द्वारा युद्ध में प्रत्यक्ष भागीदारी होगा और विश्वयुद्ध करायेगा ।

अतः स्पष्ट है कि उक्राइन की वायुसेना के सारे पॉयलट और नौसेना की ईच्छा रूस से लड़ने में नहीं है । तो क्या केवल उक्राइन की थलसेना ही रूस की विरोधी है और रूस से लड़ रही है?यह कैसे सम्भव है कि किसी देश की थलसेना मरणान्तक युद्ध में रत हो और उसी देश की वायुसेना एवं नौसेना अपनी ही थलसेना का साथ न दे और अपने ही थलसैनिकों को मरते हुए देखती रहे?दाल में कुछ काला है,अथवा पूरी दाल ही काली है?

पूरी दाल ही काली है । थलसेना भी नहीं लड़ रही है । थलसेना के सारे वरिष्ठ अधिकारियों का प्रशिक्षण रूसी सेना ने ही कराया था और समस्त शस्त्र आदि भी रूस ने ही दिये एवं उनके कारखाने बनवाये । उक्राइनी सेना के सारे वरिष्ठ अधिकारियों को पता है कि वर्तमान युद्ध का एकमात्र कारण है नैटो द्वारा रूस की घेराबन्दी करने में उक्राइन का दुरुपयोग ।

उक्राइनी थलसेना के अजोव बटालियन जैसे कुछ अवैध शाखायें तथा स्वयंसेवको की आड़ में CIA द्वारा दर्जनों देशों में प्रशिक्षित आतङ्की ही लड़ रहे हैं । भारतीय मीडिया में भी यह समाचार आया था कि झेलेन्स्की का सर्वोत्तम स्नाइपर नैटो सदस्य कनाडा का है जो १९ वर्ष की अवस्था से ही अफगानिस्तान में अमरीकियों की ओर से लड़ रहा था और २० वर्षों तक वहाँ लड़ने के पश्चात अब स्वयंसेवी के तौर पर झेलेन्स्की की ओर से लड़ रहा है । १९ वर्ष की कच्ची अवस्था से ही जो व्यक्ति लड़ रहा है उसे राजनीति को समझने का कितना समय मिला होगा?अजोव बटालियन की स्थापना उक्राइनी सेना की एक नयी शाखा के तौर पर तब की गयी थी जब उक्राइन के रूसी भाषियों का नरसंहार करने का निर्णय CIA द्वारा अवैध तरीके से सरकार में स्थापित उक्राइनी नेताओं ने लिया । उक्राइन की सेना ऐसे युद्धापराध के लिये तैयार नहीं थी जिस कारण दर्जनों देशों से CIA द्वारा प्रशिक्षित गुण्डों को बुलाकर नयी बटालियनें बनायी गयीं । अजोव बटालियन का मुख्यालय अब रूस के आधिपत्य में है और उनको वेष बदलकर भागने भी नहीं दिया गया । दुधमुँहे बच्चों की सामूहिक हत्या करने वालों को रूसी न्यायालयों में प्रस्तुत किया जायगा ।

मैंने पहले भी लिखा था कि वर्तमान उक्राइन युद्ध से मुझे हिटलर और स्तालिन के बीच शतरञ्ज वाले युद्ध की स्मृति आ रही है । अन्तर केवल यह है कि इस बार शतरञ्ज के खिलाड़ी क्रेमलिन और पेण्टागन में हैं,झेलेन्स्की तो केवल एक प्यादा है । किन्तु शतरञ्ज की योजना और चालों पर मैंने कुछ नहीं लिखा । भारतीय सेना के जिन वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी यदि थी भी तो वे चुप थे ।

अब रूस ने स्वयं कुछ खुलासा कर दिया है जिस कारण इस विषय पर लिखने से कोई क्षति नहीं । रूसी आक्रमण के प्रथम चरण का अन्त हो गया — यह रूस ने स्वयं कहा है । किन्तु प्रथम चरण का अर्थ रूस ने नहीं बताया ।

प्रथम चरण की मुख्य चाल थी उक्राइन की राजधानी क्यिव पर छोटी सेना भेजकर उसे भारी−भरकम मुख्य लक्ष्य के तौर पर दिखाना,ताकि उक्राइन का ध्यान राजधानी की रक्षा पर लगा रहे । क्यिव पर वास्तविक आक्रमण करने का कभी भी रूस ने प्रयास ही नहीं किया क्योंकि आक्रमण केवल दक्षिण से ही सम्भव है जिधर रूसी सेना ने कभी जाने का प्रयास तक नहीं किया । राजधानी पर नकली खतरा दिखाकर रूस ने वास्तविक ध्यान उक्राइन के रूसी भाषा की बहुलता वाले क्षेत्रों पर आधिपत्य करने में दिया । प्रथम चरण की पूर्णाहुति तब हुई जब दोनवास के अधिकांश भूभाग से उक्राइन की पकड़ उखड़ गयी,अजोव बटालियन की कमर टूट गयी,और शेष पूर्वी उक्राइन में भी रूसियों को निर्णायक बढ़त मिल गयी ।

इस कार्य में समय अधिक लगा क्योंकि उक्राइनियों ने नागरिक मुहल्लों को ढाल बनाया । इस कमीनेपन को भारतीय मीडिया “गुरिल्ला” युद्ध कहती है । गुरिल्ला युद्ध में निर्दोष नागरिकों को ढाल नहीं बनाया जाता,उनके बच्चों और महिलाओं को पोलैण्ड भेजकर पुरुषों को बलपूर्वक लड़ने अथवा ढाल बनने के लिये विवश नहीं किया जाता । गुरिल्ला युद्ध तो चन्द्रगुप्त मौर्य और शिवाजी लड़ते थे । उक्राइन में जितने लड़ाके अभी रूसियों से लड़ रहे हैं वे गुरिल्ला नहीं,आतङ्की हैं,दोनवास नरसंहार के युद्धापराधी हैं ।

उक्राइन युद्ध के बारे में न केवल मीडिया द्वारा एकपक्षीय मिथ्या प्रचार अभियान नैटो देशों के पक्ष में चलाया जा रहा है,बल्कि इण्टरनेट की गूगल सर्च जैसे एप्प भी उसी दुष्प्रचार का सुनियोजित अङ्ग हैं ।

कल रात मैंने गूगल सर्च किया — “Germany agrees to pay in Ruble for Russian gas” । सारे उत्तर झूठे समाचार दिखा रहे थे कि जर्मनी ने रूसी गैस के बदले रूबल देने से मना कर दिया!एक भी सही उत्तर नहीं मिला । तब मुझे सन्देह हुआ कि रिपब्लिक−भारत ने झूठा समाचार तो नहीं फैलाया कि रूसी गैस के बदले रूबल की स्वीकृति जर्मनी ने दी तो डॉलर का मूल्य तेजी से गिर गया । परन्तु गूगल सर्च करने पर डॉलर का मूल्य तेजी से गिरने की बात सच निकली,अब रूबल और डॉलर का परस्पर मूल्य २४ फरवरी वाले स्तर पर है ।

आज पुनः मैंने गूगल सर्च में उपरोक्त ढूँढा तो कल जैसे ही सारे झूठे उत्तर मिले । इसका अर्थ यह हुआ कि गूगल सर्च इञ्जन में जानबूझकर पश्चिमी देशों के मनोनुकूल झूठी बातें दिखाकर जनमानस को प्रभावित करने का षडयन्त्र प्रोग्राम्ड है!

पुतिन के एक कड़े निर्णय ने रूबल की तुलना में डॉलर के मूल्य को एक झटके में लगभग ५०% सुधार दिया !

रूपये का विनिमय दर रूपये की वास्तविक क्रयशक्ति का केवल २६% है और रूबल का विनिमय दर रूबल की वास्तविक क्रयशक्ति का केवल ३३% है (यह कुछ पुरानी पाश्चात्य रिपोर्ट है)। बहुत पहले ही डॉलर की नकली विनिमय दर से मुक्ति पाने के लिए ब्राजील,रूस,भारत और चीन (BRIC) ने परस्पर वस्तु−विनिमय का निर्णय लिया था । किन्तु भारत के कई नेताओं में अद्भुत अमरीका−भक्ति है!BRIC के सम्मेलनों में हम जाते हैं किन्तु वेनजुएला से पेट्रोलियम आयात घटाकर सउदी अरब से पेट्रोलियम आयात बढ़ाते रहे हैं ताकि अमरीका भी प्रसन्न रहे है और पेट्रो−डॉलर पर पलने वाले आतङ्की भी । यही कारण है कि पुतिन के उपरोक्त निर्णय से रूबल को बहुत लाभ हुआ किन्तु रूपया को आंशिक लाभ ही हुआ — भारत को लाभ तब होगा जब अमरीका के सिवा अन्य देशों से भारत बिना डॉलर के व्यापार करे । अभी सारे देश ऐसा करने की स्वीकृति नहीं देंगे,किन्तु BRIC तैयार है तो उसका पूरा लाभ भी भारत नहीं ले रहा है ।

निम्न रिपोर्ट पढ़ें —
https://www.eximbankindia.in/blog/blog-content.aspx?BlogID=9&BlogTitle=Dollar%20Dominance%20in%20Trade:%20Facts%20and%20Implications

रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण अंश है=
“In the case of India, 86% of its imports are invoiced in dollars, while only 5% of India’s imports originate in the U.S. Similarly 86% of India’s exports are invoiced in dollars while only 15% of India’s exports are to the U.S. While China makes up 16% of India’s imports these are mainly invoiced in dollars.”

अर्थात् भारत को आयातित वस्तुओं के ८६% का मूल्य डॉलर में देना पड़ता है जबकि केवल ५% आयात ही अमरीका से है;
और भारत के निर्यात का भी ८६% का मूल्य डॉलर में भारत माँगता है जबकि केवल १५% ही अमरीका जाता है । भारत के आयात का १६% चीन से है किन्तु उसके अधिकांश का मूल्य भी डॉलर में देना पड़ता है!

क्यों?अमरीका न माने तो न सही,जब रूस और चीन बिना डॉलर के ही भारत से व्यापार के लिये दशकों से तैयार हैं तो हम डॉलर का गुलाम बने रहने के लिये क्यों जिद किये बैठे हैं?

२०१४ ई⋅ में जब मोदी सरकार बनी तबसे आर्थिक विकास दर में भारत सभी प्रमुख देशों में अग्रणी है और अमरीका फिसड्डी! 
फिर भी डॉलर की तुलना में रूपया ६४ से कमजोर होकर ७६ पर आ गया!हमारी अर्थव्यवस्था बेहतर रहे तब भी हमारी मुद्रा गिरती रहती है क्योंकि हमारी ही जिद है डॉलर पर निर्भर रहने की । पिछले ८ वर्षों में रूपया लगभग २०% गिरा,जो कि इन ८ वर्षों में अमरीका की कुल आर्थिक वृद्धि भी नहीं थी!रूपया में २०% गिरावट का अर्थ यह हुआ कि २०१४ ई⋅ से पहले की बात जाने भी दें तो आयात और निर्यात में २०% की अतिरिक्त लूट हुई — इन आठ वर्षों के दौरान लगभग १४०० अरब डॉलर भारत ने अतिरिक्त दिये!

पुतिन का “अपराध” यही है कि रूस की लूट को घटाने का वह सच्चा प्रयास कर रहा है और कुछ सीमा तक सफल भी रहा है,किन्तु पूर्ण सफलता किसी एक देश के प्रयास से सम्भव नहीं है क्योंकि सारे विकसित देशों के सम्मिलित षडयन्त्र को अकेले रूस अथवा अकेले भारत नहीं तोड़ सकता । मुद्रा की वास्तविक क्रयशक्ति के अनुसार ही विदेश व्यापार भी हो तो सारे विकसित देशों का समूचा विकास टाँय−टाँय फिस्स हो जायगा और भारत जैसे देशों को विकसित बनने में देर नहीं लगेगी । किन्तु अचानक ऐसा करेंगे तो ये विकसित देश विश्वयुद्ध छेड़ देंगे । सुनियोजित दीर्घकालीन योजना और दृढ़ संकल्प चाहिए । भारत सरकार सच्चाई से अवगत है,डॉलर के चँगुल से मुक्ति की भी ईच्छा है,किन्तु भारत के हर डाल पर झेलेन्स्की जैसे लोग भी बैठे हैं ।

उक्राइन युद्ध का द्वितीय चरण आरम्भ हो चुका है । इसमें रूसी भाषा की बहुलता वाले भूभाग पर रूसी सेना की पकड़ को बढ़ाना और उक्राइनी भाषा की बहुलता वाले भूभाग से रूसी सेना को हटाना लक्ष्य है । अतः क्यिव और चेर्नोबिल जैसे क्षेत्रों से रूसी सेना को हटाया जा रहा है क्योंकि उक्राइनी भाषा की बहुलता वाले क्षेत्रों पर आधिपत्य करने से रूस को कोई लाभ नहीं है तो व्यर्थ का खर्च और हिंसा क्यों करे?उधर सेना की टुकड़ियाँ भेजना तो केवल शतरञ्ज की चाल थी । रूसी सेना उन क्षेत्रों से हट रही है तो CIA से घूस खाने वाले पत्तलकार कहते हैं कि वीर झेलेन्स्की की वीर सेना कायर रूसी सेना को पीटकर भगा रही है!वायुसेना का कभी युद्ध नहीं हुआ,नौसेना का कभी युद्ध नहीं हुआ,थलसेना का एक भी सम्मुख युद्ध नहीं हुआ,किन्तु वेश बदलकर नैटों के भाड़े पर लड़ने वाले आतङ्कियों की बहादुरी सिद्ध हो गयी!

उक्राइन की ओर से लड़ने वाले सारे सैनिक विदेशी अथवा आतङ्की नहीं हैं,किन्तु सञ्चालन वैसे तत्वों के ही हाथों में है जो देशभक्ति की हवा बहाकर निर्दोष उक्राइनी युवाओं का रक्त बहा रहे हैं । युद्ध की समाप्ति का एकमात्र उपाय है रूस की सुरक्षा जिसपर उक्राइन ने नैटो के बहकावे में आकर खतरा उत्पन्न किया था ।

अब स्वीडन को नैटो में लाने के लिये बहाना बनाया जा रहा है कि रूस के वायुयान अणुबम लेकर स्वीडन के आकाश में गये थे । उन विमानों में बाइडेन बैठे थे जिन्होंने देख लिया कि अणुबम रखे हुए थे?

Comments

Popular posts from this blog

चक्रवर्ती योग :--

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

द्वापर युग में महिलाएं सेनापति तक का दायित्त्व सभाल सकती थीं. जिसकी कल्पना करना आज करोड़ों प्रश्न उत्पन्न करता है. .

पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

ब्राह्मण का पतन और उत्थान

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण

भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई

मोहनजोदड़ो की सभ्यता ? हड़प्पा की संस्कृति?