पारसी वैवाहिक कोर्ट; भारत का अकेला जीता जागता ज्यूरी trial

पारसी वैवाहिक विवादों में ज्यूरी प्रणाली

पारसी समाज में विवाह विच्छेद का निर्णय लेने के लिए कानूनन ज्यूरी व्यवस्था का प्रयोग होता है. इस व्यवस्था में अचानक से चुने हुए पारसियों को सदस्य बनाया जाता है, जिन्हें प्रतिनिधि कहा जाता है, जो पारसियों में वैवाहिक संबंधों में विवादों का निर्णय लेते हैं.पारसियों की ये ज्यूरी व्यवस्था एक तरह से पंचायती व्यवस्था एवं विकसित देशों के ज्यूरी व्यवस्था का मिला जुला रूप होता है. पारसी समाज में इस ज्यूरी व्यवस्था का शासन ‘पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम १९३६, १९८८ में संशोधित के द्वारा होता है.
१९५० के दशक में जब कांग्रेस/जनसंघ के सांसदों ने भारत में ज्यूरी व्यवस्था को बंद करवा दिया जिससे जनता को लूटना अधिक आसान हो सके, तब पारसियों ने ज्यूरी व्यवस्था को बंद करने के सरकार के निर्णय का प्रबल विरोध किया था और सरकार पर ये दबाव बनाया कि पारसियों के वैवाहिक विवाद व विच्छेद के निर्णयों के लिए ज्यूरी व्यवस्था को जस का तस रखा जाए. पारसियों के आर्थिक शक्ति एवं प्रभुत्त्व के कारण सांसदों को झुकना पड़ा एवं पारसियों के विवाह विवाद में ज्यूरी व्यवस्था को रहने दिया गया.

पारसी समाज में वैवाहिक विवादो में ज्यूरी व्यवस्था के लाभ:

पारसी समाज में वैवाहिक विवादों को सुलझाने के लिए ज्यूरी व्यवस्था का उपयोग किया जाता है. यद्यपि पारसी समाज में वैवाहिक विवादों को सुलझाने के लिए ज्यूरी सिस्टम की बैठक साल में दो बार ही बुलाई जाती है, तथापि इन चंद दिनों के बैठकों में ही जज व्यवस्था की तुलना में सभी मामलों को शीघ्र सुलझा लिया जाता है और निष्पक्ष व उचित निर्णय दे दिए जाते हैं.जबकि जज सिस्टम में मामले कई सालो तक पड़े रहते हैं और निष्पक्ष निर्णय भी नहीं दिया जाता और उचित फैसले कम ही मामलों में लिए जाते हैं. ज्यूरी व्यवस्था फ़ास्ट-ट्रैक कोर्ट से भी अधिक त्वरित निर्णय देती है और ज्यादा सक्षम भी है. जज व्यवस्था में वैवाहिक विवाद कई वर्षों तक कोर्ट में घसीटे जाते हैं जबकि ज्यूरी व्यवस्था में ज्यूरी प्रतिनिधि निर्णय शीघ्र दे देते हैं.
ज्यूरी व्यवस्था होने के चलते ही, पारसियों में दहेज़ प्रथा होने के बावजूद भी दहेज़-उत्पीड़न के झूठे मामले नहीं उठते जैसे कि हिन्दू समाज में दहेज़ सम्बन्धी झूठे केस चलते हैं, उदाहरण के लिए गुजराती जैन समुदाय में दहेज़ प्रथा नहीं है, फिर भी दहेज़-उत्पीड़न सम्बन्धी झूठे मामले दायर कर दिए जाते हैं.
(रिफरेन्स- http://iranchamber.com/culture/articles/iranian_marriage_ceremony.php)
ज्यूरी प्रणाली के सदस्य तथ्यों का निर्धारण करते हैं जबकि पीठासीन जज सम्बंधित कानूनों का निर्धारण करते हैं. ज्यूरी सदस्य का कार्य उनके समुदाय के प्रति सेवा को दर्शाता है हालाँकि उन्हें केवल यात्रा तथा भोजन के लिए नाममात्र का भरपाई मिलता है.

पारसी वैवाहिक मामलों में ज्यूरी प्रणाली का संक्षेप:

पारसी वैवाहिक मामलों के लिए कचहरी बॉम्बे उच्च न्यायालय के केन्द्रीय हॉल में लगता है. सभी मामलों में सभापति जज होता है, एवं पांच ज्यूरी सदस्य जिन्हें प्रतिनिधि कहा जाता है वे गवाही के कठघरे के सामने बैठते हैं जो अपने परीक्षण को विस्तार में पुस्तिका में लिखकर नोट्स बनाते हैं तथा वैवाहिक विवादों से सम्बंधित सभी मामलों के निर्णय का निर्धारण करते हैं.
पारसी विवाह एवं तलाक एक्ट के अनुच्छेद-२५ के अनुसार राज्य सरकार को ये अधिकार है कि पारसी वैवाहिक विवादों को सुलझाने में अचानक से किस व्यक्ति को ज्यूरी सदस्य के रूप में अचानक से चुना जाए व चुने गए ये प्रतिनिधि इंडियन-पेनल-कोड के अनुसार लोक-सेवक के रूप में मानी होंगे और ज्यूरी सदस्य के रूप में अपना कार्य दस वर्षों तक जारी रख सकते हैं. ज्यूरी मंडल में ज्यूरी के रूप में प्रतिनिधि चुनने का कार्य पारसी=पंचायत का होता है, जो लिस्ट तैयार कर उच्च न्यायलय को दे देता है. इस लिस्ट में से प्रतिनिधियों का चुनाव अचानक से किया जाता है.

नागरिक किस तरह से भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में ज्यूरी प्रणाली को वापस ला सकते हैं?

सभी प्रकार के घरेलु व वैवाहिक विवाद सम्बंधित मामलों की सुनवाई ज्यूरी मंडल का गठन होना चाहिए एवं निर्णय ज्यूरी प्रतिनिधि द्वारा लिया जाना चाहिए. इस प्रकार लिया जाने वाला निर्णय पारसी समाज के वैवाहिक विवादों की ज्यूरी मंडल द्वारा सुनवाई से कहीं अधिक प्रभावशाली होगा. जनता द्वारा वापस लौटा दिए जाने लायक अधिकारी, लाखो की संख्या वाले जनसमूह में से अचानक से ज्यूरी सदस्य या प्रतिनिधि का चुनाव कर १५ से लेकर १५०० की संख्या तक वाले प्रतिनिधियों वाला ज्यूरी मंडल का गठन कर सही एवं त्वरित निर्णय लेने में सहायक होंगे. प्रत्येक मामले की सुनवाई के बाद, ज्यूरी प्रतिनिधि का समूह बदल लिया जायेगा. सभी तथ्यों एवं कानूनों का निर्धारण ज्यूरी सदस्य अर्थात प्रतिनिधि करेंगे न कि जज करेंगे. इस प्रकार से दोषी एवं जज तथा दोषी व प्रतिनिधि के मध्य कोई बंधन नहीं होगा. इस तरह से सभी मामलों में न्याय जज प्रणाली की तुलना में कहीं ज्यादा निष्पक्ष एवं शीघ्र हो सकेगा.
अभी तक सभी बड़े नेताओं ने या मीडिया-मालिकों के प्रबंधन द्वारा बड़े बना दिए गए नेताओं ने ज्यूरी प्रणाली का विरोध ही किया है, साथ ही उनके अंध-भक्तों एवं कार्यकर्ताओं ने भी विरोध किया है, क्योंकि जज प्रणाली में जजों-वकीलों-दोषियों के मध्य गठबंधन से जनता को धोखा देना एवं संगठित लूट चालू रखा जाना संभव है, जबकि ज्यूरी प्रणाली में ये संभव नहीं है. ज्यूरी प्रणाली में जजों-वकीलों-भ्रष्ट-दोषियों-ज्यूरी के मध्य किसी तरह का गठबंधन न होने से जनता को धोखा दिये जाने एवं लुटा जाने पर रोक लग जायेगी.
अतः, अगर आप घरेलू विवादों में जनता को लुटे जाने से बचाना चाहते हैं तो मीडिया-प्रबंधन से बड़े बने नेताओं की भक्ति को छोड़कर भारत में ज्यूरी प्रणाली को प्रशानिक कार्यवाही में लाये जाने के लिए निम्नलिखित काम करें:
एस एम् एस से या ट्विटर से निम्नलिखित आदेश अपने सांसदों व विधायकों तथा प्रधानमन्त्री को भेजें, अन्य सभी को ऐसा करने को कहें, हत्या, शोषण, भ्रष्टाचार के मामलों एवं मुखबिरों की जिंदगी बचाने के लिए ज्यूरी ट्रायल के ड्राफ्ट को तत्काल प्रभाव से क़ानून बनाये जाने का नैतिक दबाव बनाएं:    
 ‘कृपया अपने वेबसाइट एवं ट्विटर पर ‘शीघ्र एवं उचित निर्णय के लिए ज्यूरी प्रणाली- tinyurl . com / JuryNichliCourt’ को बढ़ावा दें एवं गजेट में प्रकाशित करें. FileSha1Hash = b3035ee77f7eba8c32785a2d97819a73f2f0a705 BitTorrentHash = 020fc292568ba0e079db12635218a9a23180b611 अन्यथा हम आपको वोट नहीं देंगे. नागरिको के SMS-राय के लिए smstoneta . com के सर्वर जैसे ही एक सर्वर का गठन करें जिसमे नागरिक अपने वोटर आई डी के साथ अपनी राय दर्ज कर सके और बिना लॉग इन के देख सके.’
अगर किसी भी क्षेत्र में काफी संख्या में नागरिक-गण उपरोक्त कारण को मतदाता संख्या एवं इन्टरनेट सबूत के द्वारा समर्थन देते हैं तो ज्यूरी प्रणाली को इस क्षेत्र में लागू किया जा सकता है एवं उस क्षेत्र में भ्रष्टाचार, ह्त्या एवं अन्य अपराध कम हो सकते हैं.
संदर्भो व अधिक जानकारी के लिए देखें:
  • तीन लाइन के इस पारदर्शी शिकायत प्रस्ताव एवं ज्यूरी प्रणाली द्वारा नागरिक गन किस तरह से कोर्ट की भागादौड़ी से बच सकते हैं एवं शीघ्र न्याय पा सकते हैं: in/tcp-jury
  • पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम १९३६, १९८८ में संशोधित: org/doc/122564/
  • पारसी तलाक कोर्ट साल में दो बार ही बुलाये जाते हैं: ( gl/jO6jTx )
  • पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम १९३६: http://lawyerslaw.org/the-parsi-marriage-and-divorce-act-1936/
  • पारसी वैवाहिक कोर्ट; भारत का अकेला जीता जागता ज्यूरी परिक्षण: http://www.bbc.com/news/world-asia-india-34322117
जय हिन्द. वन्दे मातरम्

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