मोहनदास गांधी का मुख्य काम था देश में चल रहे असली स्वराज के आन्दोलन को कमजोर करना
मोहनदास गांधी का मुख्य काम था देश में चल रहे असली स्वराज के आन्दोलन को कमजोर करना एवं अंग्रेजों को उनकी योजनाएं लीक करवाना, बदले में अंग्रेजों एवं उनकी उस समय की मीडिया प्रबंधन के द्वारा गांधी को महान साबित करवाना !!
जिस तरह महादुरात्मा गांधी ने महात्मा भगत सिंह जी की स्वराज मूवमेंट(राईट टू रिकोल ) को कमजोर करने के लिए दांडी मार्च निकाला था उसी तरह से असहयोग आंदोलन भी महात्मा विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चल रहे बिजौलियां किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए चलाया गया था।
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कृपया विजय सिंह पथिक, असहयोग आंदोलन और बिजौलिया किसान आंदोलन पर गूगल करें।
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https://hi.wikipedia.org/…/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A…
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महात्मा पथिक और गोपाल सिंह खरवा ने सशस्त्र विद्रोह के लिए दो हजार युवकों का दल तैयार किया और तीस हजार से अधिक बन्दूकें जुटा ली थी। लेकिन उनकी योजना लीक हो गयी, और महात्मा पथिक 500 क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन 1915 में महात्मा पथिक जेल से भाग निकले और बिजौलियां पहुँच कर किसान आंदोलन की कमान संभाल ली।
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तब ब्रिटिश राज द्वारा किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे और किसानों की मुख्य माँगें भूमि कर, युद्व कोष कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थी। प्रत्येक गाँव में शाखाएं खोली गयी और पंचायतो ने भूमि कर देना बंद कर दिया। किसान वास्तव में हाल ही में हुयी 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, और महात्मा पथिक ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था। जल्दी ही महात्मा विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेशशंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र 'प्रताप' के माध्यम से बिजौलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया।
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1919 में अमृतसर कांग्रेस में महात्मा पथिक के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजौलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। तब दुरात्मा गांधी ने वचन दिया था कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजौलिया सत्याग्रह का संचालन करेगें। किन्तु दुरात्मा गांधी किसी तरह आंदोलन को कमजोर करने के लिए टाइम पास करना चाहते थे।
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1920 में पथिक जी अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजौलिया के किसानों की दुर्दशा के बारे में दुरात्मा गांधी को बताया।
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महात्मा पथिक अहमदाबाद अधिवेशन में फिर से इस विषय को लेकर प्रस्तुत हुए लेकिन दुरात्मा गांधी ने तब सामंतो और अंग्रेजो का पक्ष लिया, जिससे महात्मा विजय सिंह पथिक नाराज हो गये और उन्होंने दुरात्मा गांधी को खूब खरी खोटी सुनायी।
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कृपया विजय सिंह पथिक, असहयोग आंदोलन और बिजौलिया किसान आंदोलन पर गूगल करें।
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https://hi.wikipedia.org/…/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A…
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महात्मा पथिक और गोपाल सिंह खरवा ने सशस्त्र विद्रोह के लिए दो हजार युवकों का दल तैयार किया और तीस हजार से अधिक बन्दूकें जुटा ली थी। लेकिन उनकी योजना लीक हो गयी, और महात्मा पथिक 500 क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन 1915 में महात्मा पथिक जेल से भाग निकले और बिजौलियां पहुँच कर किसान आंदोलन की कमान संभाल ली।
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तब ब्रिटिश राज द्वारा किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे और किसानों की मुख्य माँगें भूमि कर, युद्व कोष कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थी। प्रत्येक गाँव में शाखाएं खोली गयी और पंचायतो ने भूमि कर देना बंद कर दिया। किसान वास्तव में हाल ही में हुयी 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, और महात्मा पथिक ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था। जल्दी ही महात्मा विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेशशंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र 'प्रताप' के माध्यम से बिजौलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया।
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1919 में अमृतसर कांग्रेस में महात्मा पथिक के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजौलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। तब दुरात्मा गांधी ने वचन दिया था कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजौलिया सत्याग्रह का संचालन करेगें। किन्तु दुरात्मा गांधी किसी तरह आंदोलन को कमजोर करने के लिए टाइम पास करना चाहते थे।
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1920 में पथिक जी अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजौलिया के किसानों की दुर्दशा के बारे में दुरात्मा गांधी को बताया।
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महात्मा पथिक अहमदाबाद अधिवेशन में फिर से इस विषय को लेकर प्रस्तुत हुए लेकिन दुरात्मा गांधी ने तब सामंतो और अंग्रेजो का पक्ष लिया, जिससे महात्मा विजय सिंह पथिक नाराज हो गये और उन्होंने दुरात्मा गांधी को खूब खरी खोटी सुनायी।
महादुरात्मा गांधी ने अहमदाबाद अधिवेशन में महात्मा पथिक से कहा कि, "किसानों को अपनी जमीन हिजरत (छोड़ देना) कर देनी चाहिए"। पथिक जी ने इसे अपनाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि "यह हिजड़ो का काम है मर्दो का नहीं"।
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महात्मा पथिक ने तब आंदोलन को और भी तेज कर दिया और पूरे देश से किसान इस आंदोलन में जुड़ने लगे।
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इसी समय अंग्रेजो के आदेश पर महादुरात्मा गांधी ने महात्मा पथिक की मूवमेंट तोड़ने के लिए 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया, ताकि अंग्रेजो और सामंतो के खिलाफ उठते सशस्त्र आंदोलन को कमजोर किया जा सके। अंग्रेज जानते थे कि आंदोलन का नेतृत्व पथिक जैसे क्रांतिकारी कर रहे है और इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। किन्तु 1921 के आते-आते आंदोलन बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर तक फ़ैल चुका था और पूरे राज्य में पैर पसार रहा था।
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अंतत अंग्रेजो को झुकना पड़ा और किसानों की अनेक माँगें मान ली गईं। चौरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गईँ, जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए और किसानों की अभूतपूर्व विजय हुयी। मेवाड सरकार ने पथिक जी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पाँच वर्ष की सजा सुना दी गई।
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दुरात्मा गांधी, अंग्रेजो और सामंतो के प्रत्यक्ष प्रतिरोध के बावजूद यह आंदोलन सफल रहा और ब्रिटिश सरकार को किसानो के आगे झुकना पड़ा था। किन्तु अंग्रेज और दुरात्मा गांधी इस आंदोलन को पूरे देश में फैलने से रोकने में सफल हो गए थे।
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दरअसल असहयोग आंदोलन को जनता का समर्थन मिलने के पीछे भी बिजौलिया आंदोलन की भूमिका थी। बिजौलिया आंदोलन पिछले 6 वर्षो से उत्तरोत्तर मजबूत हो रहा था क्योंकि यह किसानों की वास्तविक समस्या से जुड़ा हुआ था। यदि यह आंदोलन फ़ैल जाता तो अंग्रेजो को लगान का भारी नुकसान होता, और अंग्रेज इतना बड़ा मौद्रिक घाटा सहने को तैयार नहीं थे। साथ ही 1919 में हुए जलियांवाला काण्ड के कारण में जनता में भारी असंतोष था।
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पूरे देश में अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन के लिए जनता में पर्याप्त असंतोष पनप चुका था, और दुरात्मा गांधी अवसर गँवाना नहीं चाहते थे। साथ ही अंग्रेजो को यह भी अंदेशा था कि यदि बिजौलिया किसान आंदोलन आगे बढ़ता रहा तो सशस्त्र विद्रोह हो सकता है। क्योंकि इस आंदोलन का नेतृत्व क्रांतिकारी कर कर रहे थे।
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ऐसे में महा दुरात्मा गांधी ने जनता में व्याप्त इस असंतोष को असहयोग आंदोलन में डायवर्ट कर दिया और ज्योंही उन्हें लगा कि बढ़ता हुआ असहयोग आंदोलन हाथ से बाहर हो सकता है, तभी 1922 में उन्होंने चौरी चौरा के नाम पर असहयोग आंदोलन भी वापिस ले लिया।
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इसके बाद महादुरात्मा गांधी अगले 7 वर्ष तक शीत निद्रा में रहे और ज्योंही महात्मा भगत सिंह के स्वराज्य आंदोलन(राईट टू रिकोल ) ने गति पकड़ी उसी समय वे इसे तोड़ने के लिए दांडी मार्च लेकर आ गए।
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यदि अंग्रेजो ने दुरात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन करने का आदेश नही दिया होता तो पूरी संभावना थी कि क्रांतिकारियों के नेतृत्व में बिजौलिया किसान आंदोलन राष्ट्रव्यापी हो जाता।
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महात्मा पथिक ने तब आंदोलन को और भी तेज कर दिया और पूरे देश से किसान इस आंदोलन में जुड़ने लगे।
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इसी समय अंग्रेजो के आदेश पर महादुरात्मा गांधी ने महात्मा पथिक की मूवमेंट तोड़ने के लिए 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया, ताकि अंग्रेजो और सामंतो के खिलाफ उठते सशस्त्र आंदोलन को कमजोर किया जा सके। अंग्रेज जानते थे कि आंदोलन का नेतृत्व पथिक जैसे क्रांतिकारी कर रहे है और इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। किन्तु 1921 के आते-आते आंदोलन बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर तक फ़ैल चुका था और पूरे राज्य में पैर पसार रहा था।
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अंतत अंग्रेजो को झुकना पड़ा और किसानों की अनेक माँगें मान ली गईं। चौरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गईँ, जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए और किसानों की अभूतपूर्व विजय हुयी। मेवाड सरकार ने पथिक जी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पाँच वर्ष की सजा सुना दी गई।
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दुरात्मा गांधी, अंग्रेजो और सामंतो के प्रत्यक्ष प्रतिरोध के बावजूद यह आंदोलन सफल रहा और ब्रिटिश सरकार को किसानो के आगे झुकना पड़ा था। किन्तु अंग्रेज और दुरात्मा गांधी इस आंदोलन को पूरे देश में फैलने से रोकने में सफल हो गए थे।
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दरअसल असहयोग आंदोलन को जनता का समर्थन मिलने के पीछे भी बिजौलिया आंदोलन की भूमिका थी। बिजौलिया आंदोलन पिछले 6 वर्षो से उत्तरोत्तर मजबूत हो रहा था क्योंकि यह किसानों की वास्तविक समस्या से जुड़ा हुआ था। यदि यह आंदोलन फ़ैल जाता तो अंग्रेजो को लगान का भारी नुकसान होता, और अंग्रेज इतना बड़ा मौद्रिक घाटा सहने को तैयार नहीं थे। साथ ही 1919 में हुए जलियांवाला काण्ड के कारण में जनता में भारी असंतोष था।
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पूरे देश में अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन के लिए जनता में पर्याप्त असंतोष पनप चुका था, और दुरात्मा गांधी अवसर गँवाना नहीं चाहते थे। साथ ही अंग्रेजो को यह भी अंदेशा था कि यदि बिजौलिया किसान आंदोलन आगे बढ़ता रहा तो सशस्त्र विद्रोह हो सकता है। क्योंकि इस आंदोलन का नेतृत्व क्रांतिकारी कर कर रहे थे।
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ऐसे में महा दुरात्मा गांधी ने जनता में व्याप्त इस असंतोष को असहयोग आंदोलन में डायवर्ट कर दिया और ज्योंही उन्हें लगा कि बढ़ता हुआ असहयोग आंदोलन हाथ से बाहर हो सकता है, तभी 1922 में उन्होंने चौरी चौरा के नाम पर असहयोग आंदोलन भी वापिस ले लिया।
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इसके बाद महादुरात्मा गांधी अगले 7 वर्ष तक शीत निद्रा में रहे और ज्योंही महात्मा भगत सिंह के स्वराज्य आंदोलन(राईट टू रिकोल ) ने गति पकड़ी उसी समय वे इसे तोड़ने के लिए दांडी मार्च लेकर आ गए।
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यदि अंग्रेजो ने दुरात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन करने का आदेश नही दिया होता तो पूरी संभावना थी कि क्रांतिकारियों के नेतृत्व में बिजौलिया किसान आंदोलन राष्ट्रव्यापी हो जाता।
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.