संत कौन है और इसकी परिभाषा क्या है ?

संत कौन है और इसकी परिभाषा क्या है ?
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भौतिक एवं व्यवहारिक जगत में इस प्रकार की परिभाषाओ पर बहस या विचार करना समय काटने एवं विद्वता झाड़ने के साधन है। इनकी परिभाषा मान्यता, स्वीकार्यता , आदर्श , धारणा आदि तत्वों से तय होती है। यदि आप किसी आध्यात्मिक विषय या धर्म के गूढ़ उपदेशो की मीमांसा कर रहे है तो इस तरह की चर्चा का महत्त्व है। किन्तु राजनैतिक एवं व्यवहारिक मामलो में इस मुद्दे को लाकर पटक देना कि संत क्या होता है और उसके लक्ष्ण क्या है, एक खुराफात है।
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हम 2017 में रह रहे है। संत की परिभाषा जो भी है वह आदर्शवादी समय की बात है। आज आपको ऐसा कोई ढूँढने से भी नहीं मिलेगा। अत: आदर्शवाद की लपेट में आकर आज के दौर के लोगो को पुराने दौर की कसौटी पर न कसे। चीजो और व्यक्तियों को क़ानून एवं चलन के अनुसार देखें। क्योंकि वैसे शुचितावादी तो आज आप भी नहीं रहे है जैसे आपके पुरखे थे।
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श्री राम रहीम जी एवं आसाराम जी को आप संत माने या न माने यह आपकी मान्यता पर निर्भर करता है। और एक ही व्यक्ति के बारे में एक ही समय में आपकी मान्यता के उलट भी कई मान्यताएं चलन में हो सकती है। अत: इस तरह के ऐलान देना बंद करे कि कौन संत है और कौन नहीं। क्योंकि जिन किन्ही लोगो को आप संत मान रहे है उन्हें कई लोग लट्ठ लेकर ढूंढ रहे है। और जिन्हें आप असंत ठहराने पर तुले हुए है उन्होंने कई लोगो की जिंदगियां बदल दी है। और इसीलिए वे उन्हें पूज रहे है।
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इन आदर्शो के चकमे में आने की जगह इस बात पर गौर करे कि इन लोगो ने जो दान प्राप्त किया उनमे से कितना हिस्सा गैर उत्पादक कार्यो एवं तडक भड़क में खर्च किया एवं कितनी राशी से उन्होंने स्कूल चलाए , दवाइयाँ बांटी, अस्पताल चलाये , लोगो में धर्म का प्रचार किया, उन्हें नशे से दूर किया, उन्हें आध्यामिक सलाहें दी आदि। आप पायेंगे कि उन्होंने सिर्फ दान से प्राप्त राशि में से सिर्फ 1% का ही गैर उत्पादक कार्यो में उपयोग किया है तथा शेष राशि परोपकार के कार्यो में लगायी।
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यदि मंदिरों ने ऐसा किया होता तो ये नए सम्प्रदाय कभी उभरते नहीं थे। मंदिरों ने जो पीड़ा दी उसका मरहम इन्होने उपलब्ध कराया। और आज भी हर लिहाज से ये नए सम्प्रदाय धर्म एवं परोपकार के क्षेत्र में ज्यादातर मंदिरों से बेहतर कार्य कर रहे है। श्रधालुओ ने जब मंदिरों में भ्रष्टाचार देखा तो दान में कमी आने लगी। मंदिरों में परोपकार के कार्य कम होने से एक वैक्यूम बना। इस वैक्यूम को इन लोगो ने पूरा किया। इन्होने मंदिरो की अपेक्षा ज्यादा बेहतर तरीके से परोपकार के कार्य किये और इसी वजह से इन्हें श्रद्धालु मिले और इन्हें मिलने वाले दान में वृद्धि हुयी।
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तो यदि आपको विचार करना है तो निम्नलिखित बिन्दुओ पर करे तथा अपना प्रतिभाव अपनी फेसबुक वाल पर लिखे :
१) मंदिरों में भ्रष्टाचार होने की क्या वजह है। क्यों मंदिर परोपकार के कार्यो को तवज्जो नहीं दे रहे है ?
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२) क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे मंदिरों के प्रशासन को मजबूत बनाया जा सके ?
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३) क्या ऐसा कोई तरीका है जिससे इस प्रकार के परोपकार के कार्य करने वाले डेरा / आश्रम प्रमुखों में मौजूद कतिपय* अनियमितताओ को और भी दुरुस्त किया जा सके ? ताकि इन सम्प्रदायो में मौजूद "मामूली खामियों" को बहाना बनाकर इन्हें नष्ट करने के षड्यंत्रों पर लगाम लगाई जा सके।
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४) मंदिरों के टूटने और इन नए सम्प्रदायों के उखड़ने का सबसे अधिक लाभ मिशनरीज को होगा। किन कानूनों की सहायता से हम मिशनरीज के बढ़ते प्रभाव को कम कर सकते है और हिन्दू मंदिरों के प्रशासन को मजबूत बना सकते है ?
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