17 बार युद्ध वाली बात भी झूठी है
जो आदमी अपनी पहचान और स्मृति खो दे उसे पागल कहा जाता है । जो देश या जाति अपनी पहचान और इतिहास भुला दे और दुश्मनो द्वारा प्रचारित झूठ को ही स्वीकारे उसे क्या कहा जाय ? हज़ार साल की खुमारी और बीमारी के बाद हिन्दू जाति के जागने का समय आ गया है ।
पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द का अपमान किया, गुजरात के राजपूतों पर आक्रमण किया, और चंदेल राज्य पर आक्रमण करके आल्हा ऊदल की हत्या की -- और मुहम्मद गोरी को पकड़ने के बाद भी छोड़ दिया और पंजाब को स्वतन्त्र नहीं कराया -- जिसका फल आजतक पूरा देश भुगत रहा है !! पृथ्वीराज रासो के 90% दोहे बहुत बाद में मुगलों की चाकरी करने वाले दरबारियों ने जोड़े,
.
समाजवादी पार्टी तो मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि बुन्देलखण्ड में कोई गरीबी है , और उसके प्रवक्ता टीवी पर बकते हैं कि घास की रोटी पौष्टिक होती है ! कांग्रेस के प्रवक्ता कहते हैं कि कांग्रेस और राहुल गांधी ने बुन्देलखण्ड के विकास की सही योजना बनायी और पैसे भी भेजे, लेकिन मोदी सरकार ने लागू नहीं होने दिया ! इन मक्कारों को क्या मालूम नहीं है मोदी सरकार को केवल डेढ़ साल ही हुए है, उससे पहले बुन्देलखण्ड का विकास क्यों नहीं हुआ ? इस नेताओं को पकड़-पकड़ कर जबरदस्ती घास की "पौष्टिक" रोटी खिलानी चाहिए, देह बने न बने लेकिन दिमाग के ताले अवश्य ही खुल जाएंगे ! गरीबों को लूटकर भी जी नहीं भरा , घास को पौष्टिक कहकर जले पर नमक छिड़कते हैं ! घास को गधा ही "पौष्टिक" कह सकता है ।
1857 का स्वतन्त्रता-संग्राम मुख्य रूप से बिहार और यूपी का विद्रोह था जहाँ के लगभग सारे हिन्दुस्तानी सिपाहियों और किसानों ने विद्रोह में भाग लिया था । जिन क्षेत्रों की आम आबादी ने अंग्रेजों के विरुद्ध सक्रीय भूमिका निभाई, आज वे क्षेत्र भिखमंगे बने बैठें हैं । जिन क्षेत्रों ने ब्रिटिश की सहायता में अपनी पूरी की पूरी फौजें भेजी उन्हें पुरस्कृत किया गया : माधवराव सिन्धिया मन्त्री बने, नेपाल को अलग देश बना दिया गया, और पंजाब में नहरों का जाल बिछाया गया । अन्य क्षेत्रों के विकास की नीति भी इसी आधार पर निर्धारित की जाती थी कि 1857 के स्वतन्त्रता-संग्राम में उस क्षेत्र की भूमिका कैसी थी । यह राजनैतिक अर्थशास्त्र हमारे शासक हमें नहीं पढ़ाते, छुपाकर रखते हैं ।
पूर्वांचल यूपी और बिहार में 1857 का स्वतन्त्रता-संग्राम सर्वाधिक प्रखर था, अतः इस क्षेत्र को फटेहाल बनाने के हर सम्भव प्रयास हुए जो आजतक जारी हैं , क्योंकि अस्थायी (राजनैतिक) कार्यपालिका तो बदलती रहती है, किन्तु प्रशासनिक कार्यपालिका तो अंग्रेजों की राह पर ही चल रही है जो संविधान के अनुसार स्थायी सरकार है । यह "स्थायी भारत सरकार " (अर्थात IAS गिरोह) मैकॉले की शिक्षा नीति को हटाना नहीं चाहती यह तो पिछले साल UPSC की परीक्षा में अग्रेजी को लेकर हुए विवाद में सिद्ध हो गया था ।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की पंक्तियाँ बुन्देलखण्ड पर कितनी सटीक बैठती है :--
"सूख रही है बोटी-बोटी
मिलती नहीं घास की रोटी
गढ़ते हैं इतिहास देश का
सहकर कठिन क्षुधा की मार
नमन उन्हें मेरा शत बार !"
भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को जिस दिन जबरन घास की रोटी खिलाई जाएगी, समझिए उस दिन कलियुग समाप्त हो गया ! फिलहाल तो राणा प्रताप जैसों के भाग्य में ही घास की रोटियां हैं, कलियुग है न ! लेकिन यह कलियुग हमारे शासकों के पापों के कारण भाग नहीं रहा है ।
(सुभद्रा कुमारी चौहान जी और दिनकर जी की उपरोक्त कवितायें मैंने बचपन में पढ़ी थी, स्मृति से दुहराया है, आशा है स्मृति दुरुस्त है)
Google Search shows dozens of govt schemes for development of Bundelkhand, but they are all implemented through govt officials. NGOs have mostly no and sometimes small role in such schemes. Real poor folks have no access to govt officials. Unless and until govt officials give up the "ruler syndrome" in their minds, there will be little benefit of such schemes. I firmly believe that the colonial IAS system must be disbanded. Such bureaucracies are not present even in UK, there technocracy rules, and all ministries recuit staff according to its special needs, there being no common national civil service. A common national civil service in a large country like India can serve only one purpose : colonize and loot the peoples. Unfortunately, even the public does not feel the need to disband the colonial civil service which is most uncivil, and almost every student wants to join civil service.
पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द का अपमान किया, गुजरात के राजपूतों पर आक्रमण किया, और चंदेल राज्य पर आक्रमण करके आल्हा ऊदल की हत्या की -- और मुहम्मद गोरी को पकड़ने के बाद भी छोड़ दिया और पंजाब को स्वतन्त्र नहीं कराया -- जिसका फल आजतक पूरा देश भुगत रहा है !! पृथ्वीराज रासो के 90% दोहे बहुत बाद में मुगलों की चाकरी करने वाले दरबारियों ने जोड़े,
.
17 बार युद्ध वाली बात भी झूठी है, क्योकि इतिहास मे पृथ्वीराज और गौरी के बीच की दो ही लडाई है ( तडाईन का युद्ध)॥
दिल्ली स्थित बिरला मंदिर के पार्क में भी पृथ्वीराज चौहान की मूर्ती के नीचे कुछ ऐसा ही लिखा हुआ है:-
पृथ्वीराज के दरबारी चारण चन्दरबरदाई की कविता को इतिहास मानने वालों ने स्कूल में इतिहास का अध्ययन ठीक से नहीं किया, चोरी करके परीक्षा में उत्तीर्ण होते रहे हैं, वरना NCERT की इतिहास की पुस्तक पढ़े रहते तो जानते कि पृथ्वीराज युद्ध में नहीं मरा और मुहम्मद गोरी को दिल्ली सौंपकर उसके अधीन अजमेर का राजा बना रहा जिसके सबूत के तौर पर सिक्के मिले हैं जिनके एक ओर मुहम्मद गोरी को बादशाह मानकर दूसरी ओर पृथ्वीराज को अजमेर का अधिपति बताया गया है । चन्दरबरदाई के झूठ का प्रमाण यह है कि उसके अनुसार पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण द्वारा मुहम्मद गोरी को मारा जिसके बाद पृथ्वीराज और चन्दरबरदाई ने एक दूसरे को वहीं पर मार डाला । इस सफ़ेद झूठ को इतिहास मानने वाले इतना भी नहीं सोचते कि यदि यह सच है और चन्दरबरदाई वहीं मर गया तो 'पृथ्वीराज रासो' क्या उसके भूत ने लिखा ! मुहम्मद गोरी से लड़ते हुए युद्ध के मैदान में जयचन्द शहीद हुआ था । शहीदों को गरियाने और पृथ्वीराज जैसे आवारा लफंगों को पूजने के कारण ही भारत गुलाम हुआ । संयोगिता धकेलकर पृथ्वीराज को युद्ध के मैदान में भेजती थी यह तो चन्दरबरदाई ने भी लिखा है, वरना वह लफंगा राजधानी पर संकट के काल में भी रनिवास से निकलने के लिए तैयार नहीं था । भारत को गुलामी के अन्धकार में पृथ्वीराज ने धकेला, चारों ओर के राजपूत राजाओं से उसने वैर मोल ले रखा था जिस कारण राजपूतों में एकता नहीं हो सकी । जयचन्द को पृथ्वीराज केवल इस कारण पसन्द नहीं था क्योंकि पृथ्वीराज आवारा और झगड़ालू था ।
घास की रोटी :--
उन्नीसवीं शताब्दी में बुन्देलखण्ड (टीकमगढ़) की धार्मिक और दयालु स्वभाव की रानी ने जनकपुर (नेपाल) में जानकी जी का भव्य मन्दिर बनवाया था । तब बुन्देलखण्ड समृद्ध क्षेत्र था । बुन्देलखण्ड आल्हा-ऊदल के विरासत की वीर-भूमि है जिसे शहीद होना पसन्द था, गुलाम बनना नहीं । किन्तु समूचे बुन्देलखण्ड ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया (सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता याद है न : "बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी / खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ...") , जिस कारण अंग्रेजों और नेहरू वंश ने बुन्देलखण्ड का विकास अवरुद्ध कर दिया । आज वहां के गरीब घास की रोटी क्यों खाते हैं यह समझ गए न !समाजवादी पार्टी तो मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि बुन्देलखण्ड में कोई गरीबी है , और उसके प्रवक्ता टीवी पर बकते हैं कि घास की रोटी पौष्टिक होती है ! कांग्रेस के प्रवक्ता कहते हैं कि कांग्रेस और राहुल गांधी ने बुन्देलखण्ड के विकास की सही योजना बनायी और पैसे भी भेजे, लेकिन मोदी सरकार ने लागू नहीं होने दिया ! इन मक्कारों को क्या मालूम नहीं है मोदी सरकार को केवल डेढ़ साल ही हुए है, उससे पहले बुन्देलखण्ड का विकास क्यों नहीं हुआ ? इस नेताओं को पकड़-पकड़ कर जबरदस्ती घास की "पौष्टिक" रोटी खिलानी चाहिए, देह बने न बने लेकिन दिमाग के ताले अवश्य ही खुल जाएंगे ! गरीबों को लूटकर भी जी नहीं भरा , घास को पौष्टिक कहकर जले पर नमक छिड़कते हैं ! घास को गधा ही "पौष्टिक" कह सकता है ।
1857 का स्वतन्त्रता-संग्राम मुख्य रूप से बिहार और यूपी का विद्रोह था जहाँ के लगभग सारे हिन्दुस्तानी सिपाहियों और किसानों ने विद्रोह में भाग लिया था । जिन क्षेत्रों की आम आबादी ने अंग्रेजों के विरुद्ध सक्रीय भूमिका निभाई, आज वे क्षेत्र भिखमंगे बने बैठें हैं । जिन क्षेत्रों ने ब्रिटिश की सहायता में अपनी पूरी की पूरी फौजें भेजी उन्हें पुरस्कृत किया गया : माधवराव सिन्धिया मन्त्री बने, नेपाल को अलग देश बना दिया गया, और पंजाब में नहरों का जाल बिछाया गया । अन्य क्षेत्रों के विकास की नीति भी इसी आधार पर निर्धारित की जाती थी कि 1857 के स्वतन्त्रता-संग्राम में उस क्षेत्र की भूमिका कैसी थी । यह राजनैतिक अर्थशास्त्र हमारे शासक हमें नहीं पढ़ाते, छुपाकर रखते हैं ।
पूर्वांचल यूपी और बिहार में 1857 का स्वतन्त्रता-संग्राम सर्वाधिक प्रखर था, अतः इस क्षेत्र को फटेहाल बनाने के हर सम्भव प्रयास हुए जो आजतक जारी हैं , क्योंकि अस्थायी (राजनैतिक) कार्यपालिका तो बदलती रहती है, किन्तु प्रशासनिक कार्यपालिका तो अंग्रेजों की राह पर ही चल रही है जो संविधान के अनुसार स्थायी सरकार है । यह "स्थायी भारत सरकार " (अर्थात IAS गिरोह) मैकॉले की शिक्षा नीति को हटाना नहीं चाहती यह तो पिछले साल UPSC की परीक्षा में अग्रेजी को लेकर हुए विवाद में सिद्ध हो गया था ।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की पंक्तियाँ बुन्देलखण्ड पर कितनी सटीक बैठती है :--
"सूख रही है बोटी-बोटी
मिलती नहीं घास की रोटी
गढ़ते हैं इतिहास देश का
सहकर कठिन क्षुधा की मार
नमन उन्हें मेरा शत बार !"
भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को जिस दिन जबरन घास की रोटी खिलाई जाएगी, समझिए उस दिन कलियुग समाप्त हो गया ! फिलहाल तो राणा प्रताप जैसों के भाग्य में ही घास की रोटियां हैं, कलियुग है न ! लेकिन यह कलियुग हमारे शासकों के पापों के कारण भाग नहीं रहा है ।
(सुभद्रा कुमारी चौहान जी और दिनकर जी की उपरोक्त कवितायें मैंने बचपन में पढ़ी थी, स्मृति से दुहराया है, आशा है स्मृति दुरुस्त है)
Google Search shows dozens of govt schemes for development of Bundelkhand, but they are all implemented through govt officials. NGOs have mostly no and sometimes small role in such schemes. Real poor folks have no access to govt officials. Unless and until govt officials give up the "ruler syndrome" in their minds, there will be little benefit of such schemes. I firmly believe that the colonial IAS system must be disbanded. Such bureaucracies are not present even in UK, there technocracy rules, and all ministries recuit staff according to its special needs, there being no common national civil service. A common national civil service in a large country like India can serve only one purpose : colonize and loot the peoples. Unfortunately, even the public does not feel the need to disband the colonial civil service which is most uncivil, and almost every student wants to join civil service.
Comments
Post a Comment
कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.