नोटबंदी/नोटबदली तमाशा का सार
1. कुल मुद्रा प्रचलन में (4 नवम्बर 2016)= रु. 17.97 लाख करोड़
2. कुल मुद्रा निकासी (8 नवम्बर 2016) = रु. 15.45 लाख करोड़
3. कुल मुद्रा वापसी (30 जून 2017) = रु. 15.28 लाख करोड़
4. शेष मुद्रा जो वापस नहीं आयी = रु. 16000 करोड़
5. एक जमाकर्ता ने पैसे जमा कराये = रु. 3 लाख करोड़ (15 अगस्त 2017 की जानकारी में ये पता चला)
रिजर्व बैंक के अनुसार 500 रु. और 2000 रु. और अन्य राशि के नोट छापने में रु. 7,965 करोड़ का खर्चा आया|
रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में एक सर्वे के अनुसार बताया जा रहा है कि 500 रु. के 10 लाख नोटों में से सिर्फ 7 नोट ही नकली थे और जबकि 1000 रु. के 10 लाख नोटों में से सिर्फ 19 नोट ही नकली थे| रिजर्व बैंक के आंकड़े कहते है कि लगभग रु.1000 के 1.3 % नोट वापस नहीं आये हैं और रु. 500 के कितने नोट नहीं आये इसका कुछ पता नहीं|
रिजर्व बैंक और बैंकों का नोटबंदी (या नोटबदली) से जो खर्चा हुआ वो कमाए गए 16000 करोड़ रु. से कहीं ज्यादा था| और यह 16000 करोड़ रु. काला धन नहीं है | कुछ नोट लुप्त या नष्ट कर दिये गए और ये वास्तविकता में कमाए जा सकते थे बिना नोटबंदी के भी | और कुछ नोट नेपाल में थे क्योंकि वे हम पर विश्वास करते हैं और कुछ दुबई में और कुछ अप्रवासी भारतीयों के पास थे और शायद कुछ पैसा काला हो सकता है|
बैंकों को नोटबंदी के दौरान अस्थायी तौर पर क्लर्क और अन्य करमचारियों की मदद लेनी पड़ी, जिसके लिए उन्हें रु. 500 से रु. 2000 प्रति दिन का भत्ता देना पड़ा और स्थायी कर्मचारियों को ओवरटाइम के लिए अलग से परोक्ष रूप से भुगतान करना पड़ा|
एटीएम में पैसा जमा करने वाली कंपनियों ने 50% अधिक शुल्क लिया और रात्रि 8 के बाद लगाये फेरे अधिक कीमत लेते हैं और इन सबके एटीएम में पैसा जमा करने वाली कंपनियों की तेयारी नहीं थी इसलिए उन्हें अस्थायी कर्मियों की मदद लेनी और उन्हें अधिक मूल्य चुकाना पड़ा |
निर्माण और उद्योगों की हालत बद से बदतर हो गयी और पिछले साल इसी अवधि के मुकाबले बिजली खपत नवम्बर 10 से 30 के बीच कुछ 15% से 20% तक कम हुई | नकद पैसा ना होने के कारण छोटे और मझौले व्यापारियों का तेल निकल आया क्योंकि उनके खरीदारों के पास भी पैसा नहीं होने से उनके माल की कीमत एक दम गिर गयी | ऊपर से लोगों को अपना काम धंधा छोड़कर बैंकों की लाइन में घंटो खड़े रहना पड़ा|
गरीब इसलिए खुश हो रहे थे क्योंकि अमीरों की नींद उड़ चुकी थी और ये सबसे अच्छा समय होता है फर्जी कल्यान्कारियों का गरीबो को ये जताने के लिए-- देखों इस फैसले ने अमीरों का दिवाला निकल दिया| ऐसे में गरीबों को ज्यादा कुछ हासिल तो नहीं होता, पर एक सुकून मिलता है अमीरो को परेशान देखकर !!
इस नोटबदली के दौरान शीर्ष राष्ट्रवादी नेताओं ने कुछ 50000 करोड़ रु. से 100000 करोड़ रु. तक कमाए क्योंकि सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSU बैंक) इनके मुट्ठी में थे| अपनाया गया तरीका --
(1) एक PSU बैंक के ऐसे मेनेजर को पकड़ो जिसके ख़िलाफ़ मामलें चल रहे हों
(2) उसे मदद करने या चल रहे मामलों में सख्त कार्यवाही का सामना करने के लिए धमकाओ| और मदद करने पर नोट बदली का उसे 1% और स्टाफ को 2% तक कमीशन दो|
(3) मान लीजिये शीर्ष राष्ट्रवादी नेता 1 करोड़ रु. के पुराने नोट जूनियर कार्यकर्ता को देता है और वह कार्यकर्ता उस बैंक मेनेजर को झुग्गी बस्ती में रहने वाले गरीब लोगो के खाते पर बने निकासी चेक के साथ ये नोट देता है|
(4) पुराने नोट उन बस्ती वाले के खातों में जमा कराये गए और नए नोटों की निकासी की गयी| इस तरह झुग्गी बस्ती वालों को लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ा|
(5) झुग्गी बस्ती वालों को 5%, बैंक मेनेजर को 1% , स्टाफ को 2%, जूनियर कार्यकर्ता को 5% और सीनियर राष्ट्रवादी नेता को 25% और 65% पुराने नोटों के मालिक को प्राप्त हुआ |
इसके बाद एक राष्ट्रवादी ने दूसरे राष्ट्रवादी को उत्तरप्रदेश चुनाव में मदद की और फिर ऐसे ही आगे .. | इसी कारण राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा समर्थित उम्मीदवारों ने अखबार विज्ञापन देने में 10-50 गुना खर्चा किया!!!
बहुत से रिजर्व बैंक के शीर्ष अधिकारीयों ने भी इस नोटबदली में हजारों करोड़ों कमाए |
धर्मनिरपेक्ष (या अधर्मी) नेता और कार्यकर्ता इसलिए नाराज है क्योंकि वे ऐसा महा घोटाला 70 सालों में खुले आम करने की हिम्मत नहीं दिखा पाए| सौ बात की एक बात, नोटबंदी “राष्ट्रवादी नेताओं” की सबसे बड़ी जीत बनी | तो जिसके गुर्दे में दम था - वो जीता यानी “जो जीता वही सिकंदर” !!!
सबूत क्या है --यदि आप घास नहीं खाते हैं तो समझ सकते है कि सरकारी और सहकारी बैंकों के मैनेजर और डायरेक्टर किसकी मुट्ठी में है? बड़े स्तर नोटबदली में बैंक मैनेजर और सीनियर मैनेजमेंट की भी सहायता की ज़रूरत होती है | बैंक मेनेजर इतनी आसानी से पुराने नोटों को लेकर नए नोट नहीं दे सकता | उसे झुग्गी वालों के बैंक खाते की जानकारी और भरी गयी जमा पर्ची और उनके द्वारा साईन किये निकासी चेक की ज़रूरत लगती है |
सारा लिपिक कागजी- कार्य जमीनी कार्यकर्ता द्वारा किया गया | एक बार ये होने पर, मेनेजर स्टाफ को जमा करने और निकासी देने को कहेगा | मेनेजर को भी इसके लिए कुछ खर्चा पानी लगता हैं |
बहुत से मेनेजरों के विरुद्ध सही या गलत मुक़दमे चल रहे हैं और ऐसे मेनेजरों को ही इस तरह का काम करने को मजबूर किया जा सकता हैं | स्टाफ ने इसलिए शांति बनाये रखी क्योंकि उनके पास खोने को कुछ नहीं था पर पाने को अच्छा खासा पैसा था !!
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और अब जीएसटी अगले चरण में क़त्ल करेगा , दिसम्बर आएगा, और लाखों व्यापारियों और निर्माताओं को नोटिस प्राप्त होगा कि जिन लोगो से उन्होंने माल ख़रीदा था, उन्होंने जीएसटी नहीं चुकाया है !! तो जीएसटी विभाग एक बार फिर से उन सभी को जीएसटी राशि चुकाने को कहेगा!! और तब बहुत से छोटे और मझौले व्यापारी अपना धंधा खोना शुरू कर देंगे (इस समय, इनवॉइस अभी दर्ज नहीं की गयी है और प्रत्येक व्यापारी को अभी उतना ही चुकाना है जितना वह सोचता है और उसकी चुकाने की जिम्मेदारी बनती है )|
सबकुछ सोनिया-मोदी-केजरीवाल और कांग्रेस-संघ-आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की योजना के अनुसार चल रहा है जैसे उन्होंने अपने मालिकों (अमेरिका-ब्रिटेन के धनिकों) से वादा किया था | हर नेता और कार्यकर्ता (अमेरिका-ब्रिटेन के धनिकों) के पैसे से चलने वाली बिकाऊ मीडिया के बिकाऊ अर्नब, बिकाऊ सरदेसाई आदि के समर्थन का भूखा है | और धनिकों को छोटे और मझौले व्यापारी को खत्म करने वाले जीएसटी और अन्य योजनाये चाहिए | इसलिए सोनिया-मोदी-केजरीवाल और कांग्रेस-संघ-आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने संपत्ति कर का विरोध और जीएसटी का समर्थन करते हैं !!
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.