क्या आर्टिकल 498A के तहत पुरुषों और उनके परिवारों पर लगाए जाने वाले झूठे केस बंद होंगे?


सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A पर गाइड लाइन जारी की है। इन निर्देशों से हालात में कोई बदलाव नहीं आएगा किन्तु पेड मीडिया ने इसे ऐसे दिखाया है जिससे नागरिको में यह भ्रम खड़ा हो कि 498A के दुरूपयोग का समाधान कर दिया गया है !!
इस देश में प्रशासनिक मशीनरी के तीन अंग है -- a) नेता b) पुलिस / प्रशासनिक अधिकारी c) जज। इन तीनो अंगो में शक्ति को झपटने का निरंतर अंतर्द्वंद चलते रहता है। जिस शक्ति पुंज के पास ज्यादा पॉवर रहेगी उन्हें घूस खाने का ज्यादा अवसर मिलेगा। अब तक 498A से होने वाले मुकदमो से होने वाली कमाई का ज्यादातर हिस्सा पुलिस महकमे में जा रहा था। केस दर्ज होने के बाद सबसे पहले गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ही पहुँचती है। अत: पुलिस का घूस पर पहला अधिकार होता था। जज सिर्फ तब कमाते थे जब गिरफ्तारी हो जाती थी और मुलजिमो को जमानत लेनी होती थी।
घूस में जजों का हिस्सा बढाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइड लाइन जारी की है कि प्रत्येक जिले में 498A के लिए तीन सदस्यों की एक "कल्याण कमेटी" बनायी जाए। गिरफ्तारी से पहले पुलिस अधिकारी को इस कमिटी से अनुमति लेनी पड़ेगी। तो अगर कमिटी कहती है कि गिरफ्तार कर लो तो गिरफ्तारी हो जायेगी और यदि कमिटी कहती है कि गिरफ्तार न करो, तो गिरफ्तारी नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह कमिटी जिला शेषन जज को रिपोर्ट करेगी। और इस कमिटी में एक रिटायर्ड जज या न्यायिक सेवाओं से संबधित अधिकारी होगा और इनकी पत्नियाँ भी मेंबर हो सकेगी। कमिटी गठित करने वाले भी जज है और कमिटी में आने वाले भी जज है। या उनके चमचे और पत्नियाँ !! तो इस तरह अब आरोपियों के गिरफ्तार होने या न होने का फैसला भी जज एवं उनके चमचे करेंगे। और गिरफ्तारी से बचने या मामला सुलटाने के लिए समृद्ध आरोपियों को ऊँचे दाम चुकाने होंगे।
इस तरह 498A से होने वाली आय पर जजों ने लम्बा हाथ मारा है। अब वे गिरफ्तारी करने या न करने का आदेश देने से भी कमाएंगे और फिर जमानत देने या न देने से भी कमाएंगे। भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्ट आदमी कहीं बैठे है तो वे न्यायलयो में बैठे है। और इसीलिए जजों ने इस तरह का क़ानून बनाया है कि जजों को भ्रष्ट कहने वालो को अदालत की अवमानना का दोषी माना जाएगा। इनका चरित्र चोर उच्च्क्को से किसी भी तरह से कमतर नहीं है, किन्तु इन्होने पूरे देश के नागरिको को बाध्य किया हुआ है कि इन्हें "his lordship" कह के संबोधित किया जाए !!! हद है मक्कारी की।
समाधान :
498A तथा अन्य मुकदमो के निष्पक्ष एवं त्वरित न्याय के लिए हमारा प्रस्ताव है कि भारत में ज्यूरी प्रथा लागू की जाए। जिले की मतदाता सूचियों में से रेंडमली 12 नागरिको का चयन किया जाएगा और यह ज्यूरी मंडल मुकदमे की सुनवाई करके फैसला देगा। प्रत्येक मुकदमे के लिए नागरिको की भिन्न ज्यूरी होगी। एक ज्यूरी मंडल सिर्फ एक ही मुकदमे की सुनवाई करेगा और फैसला देने के बाद भंग हो जाएगा। साथ ही जजों का दिमाग ठिकाने करने के लिए राईट टू रिकॉल जज के क़ानून को लागू किया जाना चाहिए। इस क़ानून के लागू होने से "his lordship" जमीन पर आ जायेगे और तमीज से पेश आने लगेंगे। .
ज्यूरी सिस्टम और राईट टू रिकॉल जज के लिए प्रस्तावित कानूनों के ड्राफ्ट इस लिंक पर देखें जा सकते है -- https://www.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/563544197157112.
सांसद व विधायक के नंबर एवं संपर्क डिटेल यहाँ से लें http://nocorruption.in/.
आप अपने सांसदों/विधायकों को उपरोक्त क़ानून को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून लागू करवाने के लिए उन पर जनतांत्रिक दबाव डालिए, इस तरह से उन्हें मोबाइल सन्देश या ट्विटर आदेश भेजकर कि:-.
" माननीय सांसद/विधायक महोदय, मैं आपको अपना एक जनतांत्रिक आदेश देता हूँ कि ज्यूरी प्रक्रिया के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/548841788627353 को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से इस क़ानून को लागू किया जाए, नहीं तो हम आपको वोट नहीं देंगे.
धन्यवाद,
मतदाता संख्या- xyz "
======
लम्बे समय के लिए, समाधान ये है कि जनता के पास राईट टू रिकॉल, ज्यूरी प्रणाली, वेल्थ टैक्स जैसेे क़ानून आने चाहिए जिसके लिए, जनता को ही अपना अधिकार उन भ्रष्ट लोगों से छीनना होगा, और उन पर यह दबाव बनाना होगा कि इनके ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दें, अन्यथा आप उन्हें वोट नहीं देंगे. .
अन्य कानूनी ड्राफ्ट की जानकारी के लिए देखें
https://www.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/563544197157112
विशेष टिपण्णी - सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि हिंदी भेड़ बकरों की भाषा है इसीलिए जो भी फैसले दिए जाए उन्हें अंग्रेजी में ही दिया जाना चाहिए और विशेष रूप से यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इनका हिंदी अनुवाद प्रकाशित न हो। इसीलिए हमेशा की तरह उन्होंने यह आदेश भी अंग्रेजी में ही निकाला है और हिंदी अनुवाद रखने का आदेश देने से न्याय अनुभाग को मना कर दिया है।
मोदी साहेब भी इसी बात में मानते है। उनका मानना है कि जनता को सिर्फ भाषण ही सुनने चाहिए। क़ानून या आदेशो को पढना भेड बकरियों का काम नहीं है। इसीलिए मोदी साहेब वोट बटोरने के लिए भाषण ( कोलाहल ) तो हिंदी में देते है लेकिन क़ानून के ड्राफ्ट अंग्रेजी में रखते है। इसी से उन्होंने जीएसटी, मोरिशस ट्रीटी एवं भूमि अधिग्रहण आदि कानूनों को "सिर्फ" अंग्रेजी में ही जारी किया। और इस तरह के विशेष आदेश जारी किये कि इन कानूनों के हिंदी अनुवाद जारी नही किये जाए। इस वजह से आज भी इन कानूनों के हिंदी अनुवाद उपलब्ध नहीं है। और मोदी साहेब को यह फैसला लेने के लिए संघ के कार्यकर्ताओ ने ही बाध्य किया। संघ के कार्यकर्ता कभी नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश / फैसले एवं सरकार द्वारा लागू क़ानून हिंदी में उपलब्ध हो।
498A के बारे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की गयी गाइड लाइन का अंग्रेजी लिंक -- https://barandbench.com/…/6593_2017_Judgement_27-Jul-2017-w…
.
जय हिन्द. वन्दे मातरम

Comments

Popular posts from this blog

चक्रवर्ती योग :--

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

द्वापर युग में महिलाएं सेनापति तक का दायित्त्व सभाल सकती थीं. जिसकी कल्पना करना आज करोड़ों प्रश्न उत्पन्न करता है. .

पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

ब्राह्मण का पतन और उत्थान

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण

भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई

मोहनजोदड़ो की सभ्यता ? हड़प्पा की संस्कृति?