भारत के भ्रष्ट व्यवस्था में क़ानून न्याय नहीं रह गया है.
कानून का काम न्याय करना नहीं है। कानून का काम प्रूफ के आधार पर फैसला करना है। अगर आप झुठे सबूत पेश कर सकते हैं तो आप केस जीत जाएंगे। न्याय का मतलब है सही फैसला देना। जो उचित है उसका निर्णय करना। जो वंचित है सबूत नहीं भी है तो उसकी गहराई में जाना और सच पता करना।
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कानून में हम लोग एक शब्द जस्टिस को जानते हैं जिसका अर्थ लोग न्याय लगाते हैं। पर ये लैटिन भाषा का एक शब्द जस से बना है। जिसका मतलब होता है धनवान के हक में फैशला करना। असली अर्थ उस समय भी वही था अभी भी वही है। उस समय भी धनवान के हक में फैसला होता था अभी भी होता है।
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भारत में पंचायत की न्याय व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए ये जुडिसरी सिस्टम अंग्रेज़ो ने लागु किया। इसका मकसद था लोगो को न्याय का भ्रम हो और वो गाओं की पञ्च व्यवस्था से टूटकर अलग हो। सुरुवात में तेजी से और अच्छा न्याय भी किया गया जो मछली को फ़साने का चारा ही था। धीरे धीरे लोग कोर्ट को ही न्याय का जरिया मानने लगे और हमारी पञ्च व्यवस्था टूट गई। आज़ादी के बाद इसी न्याय व्यवस्था को संविधान का हिस्सा बनाया गया। असली रूप इसके बाद दिख रहा है अब । 3 करोड़ से ज्यादा मुक़दमे अटके पड़े हैं । 20 से ज्यादा समय में एक मुकदमा हल हो रहा है। ये सिस्टम एक ठगी का सिस्टम है और fail हो गया है। जज करप्ट हैं और आप उनको कुछ नहीं बोल सकते हैं। संविधान के खिलाफ बोल नहीं सकते हैं । चिकनी चुपड़ी बातों से सबको फुसला के रखा गया है।
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सबसे बड़ा कारण।
वास्तव में जब आप गीता कुरान बाइबिल पर हाँथ रखकर झूठ बोल देते हैं तो न्याय के सभी सिद्धांत मर जाते हैं। भारत में लोग हमेसा धर्म को मानते रहे हैं चाहे वो किसी भी धर्म के हैं । अँगरेज़ ये जानते थे। अभी भी गांव के पञ्च के सामने कोई व्यक्ति मंदिर मस्जिद में झूठ कसम नहीं खायेगा। चाहे उसको कितना ही बड़ा जुरमाना या सजा मिले । ये धार्मिकता ही न्याय व्यवस्था की मूल आत्मा है। लोगो में धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न करके ऐसा माहोल बनाया जा सकता है की वो झूठी सपथ नहीं लें। लाखों सालो से पूरी दुनिया में ये सपथ ही न्याय का सबसे बड़ा जरिया रहा हैं और भारत में इसी पर ग्रहण लग गया है।जब तक इसे ठीक नहीं किया गया न्याय की आशा तभी रखिये जब आप को सबूत खरीदने के लायक पर्याप्त धन हो।
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★ समाधान ?
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निम्नलिखित प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली में जनता अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकते हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकते हैं अगर आप चाहते हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं.
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इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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★★★★ आप सबको यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली एवं सभी सरकारी पदों पर राईट-टू-रिकॉल के कानूनों को गजेट में प्रकाशित करवा कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने को लेकर अपने अपने सांसदों, विधायकों, प्रधानमंत्री को अपना एक जनतांत्रिक आदेश भेजकर उनपर नैतिक दबाव बनाना चाहिए.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
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◆ ★★★आप अपने नेताओं को अपना जनतांत्रिक आदेश इस तरह भेजें, जैसे की-
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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◆ अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे: www.nocorruption.in
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◆★★★ जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
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◆★★★ जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम [ ज्यूरी सिस्टम के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809746209143617 ] बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट, वेल्थ टैक्स, राईट-टू-रिकॉल एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
एवं अपने नेताओं को ऊपर बताए जा चुके तरीके से एक जनतांत्रिक आदेश भेजें.
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जय हिन्द.
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कानून में हम लोग एक शब्द जस्टिस को जानते हैं जिसका अर्थ लोग न्याय लगाते हैं। पर ये लैटिन भाषा का एक शब्द जस से बना है। जिसका मतलब होता है धनवान के हक में फैशला करना। असली अर्थ उस समय भी वही था अभी भी वही है। उस समय भी धनवान के हक में फैसला होता था अभी भी होता है।
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भारत में पंचायत की न्याय व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए ये जुडिसरी सिस्टम अंग्रेज़ो ने लागु किया। इसका मकसद था लोगो को न्याय का भ्रम हो और वो गाओं की पञ्च व्यवस्था से टूटकर अलग हो। सुरुवात में तेजी से और अच्छा न्याय भी किया गया जो मछली को फ़साने का चारा ही था। धीरे धीरे लोग कोर्ट को ही न्याय का जरिया मानने लगे और हमारी पञ्च व्यवस्था टूट गई। आज़ादी के बाद इसी न्याय व्यवस्था को संविधान का हिस्सा बनाया गया। असली रूप इसके बाद दिख रहा है अब । 3 करोड़ से ज्यादा मुक़दमे अटके पड़े हैं । 20 से ज्यादा समय में एक मुकदमा हल हो रहा है। ये सिस्टम एक ठगी का सिस्टम है और fail हो गया है। जज करप्ट हैं और आप उनको कुछ नहीं बोल सकते हैं। संविधान के खिलाफ बोल नहीं सकते हैं । चिकनी चुपड़ी बातों से सबको फुसला के रखा गया है।
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सबसे बड़ा कारण।
वास्तव में जब आप गीता कुरान बाइबिल पर हाँथ रखकर झूठ बोल देते हैं तो न्याय के सभी सिद्धांत मर जाते हैं। भारत में लोग हमेसा धर्म को मानते रहे हैं चाहे वो किसी भी धर्म के हैं । अँगरेज़ ये जानते थे। अभी भी गांव के पञ्च के सामने कोई व्यक्ति मंदिर मस्जिद में झूठ कसम नहीं खायेगा। चाहे उसको कितना ही बड़ा जुरमाना या सजा मिले । ये धार्मिकता ही न्याय व्यवस्था की मूल आत्मा है। लोगो में धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न करके ऐसा माहोल बनाया जा सकता है की वो झूठी सपथ नहीं लें। लाखों सालो से पूरी दुनिया में ये सपथ ही न्याय का सबसे बड़ा जरिया रहा हैं और भारत में इसी पर ग्रहण लग गया है।जब तक इसे ठीक नहीं किया गया न्याय की आशा तभी रखिये जब आप को सबूत खरीदने के लायक पर्याप्त धन हो।
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★ समाधान ?
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निम्नलिखित प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली में जनता अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकते हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकते हैं अगर आप चाहते हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं.
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इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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★★★★ आप सबको यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली एवं सभी सरकारी पदों पर राईट-टू-रिकॉल के कानूनों को गजेट में प्रकाशित करवा कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने को लेकर अपने अपने सांसदों, विधायकों, प्रधानमंत्री को अपना एक जनतांत्रिक आदेश भेजकर उनपर नैतिक दबाव बनाना चाहिए.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
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◆ ★★★आप अपने नेताओं को अपना जनतांत्रिक आदेश इस तरह भेजें, जैसे की-
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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◆★★★ जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
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◆★★★ जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम [ ज्यूरी सिस्टम के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809746209143617 ] बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट, वेल्थ टैक्स, राईट-टू-रिकॉल एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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जय हिन्द.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.