भारत में भुखमरी का समाधान

आपलोग ये वीडियो देखो जरा , इसकी हालत कैसी है , क्यों भारत गरीब है ? हमारी गरीबी इसलिए नहीं है कि हम जनसँख्या में ज्यादा है,
हमारी गरीबी इसलिए है क्योंकि हमारे यहाँ भ्रष्टराजकारिणी पैदा हो गए हैं। https://www.youtube.com/watch?v=f31mb3lNxrw
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इस धरती पे उपलब्ध संसाधनों को जो मिल बाँट के उपयोग करना जान जाते हैं वे देवता बन जाते हैं. असली यज्ञ का मतलब ये है कि जिससे हम दूसरों के कष्टों को मिटाने का कार्य करें, वही यज्ञ है.
अब आप सोच सकते हैं कि कौन किसका देवता है और वे लोग किस तरह का यज्ञ कर रहे हैं..
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★हमारी सरकारें बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन व निजी क्षेत्र के लाभ वाले उपक्रम विदेशियों को कौड़ियो के भाव में दे रही हैं। कांग्रेस ने छ्तीसगढ की नदी शिवनाथ ही विदेशी कंपनी को बेच डाली. उड़ीसा का सबसे ज्यादा जड़ी बूटी देने वाला गंधमाधन पर्वत बेचने के पुरी तैयारी हैं. हीरे की खदाने,तो पहले ही deVere नाम की कम्पनी को बेच चुकी हैं।
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★अभी तक कि सभी सरकारें कम या अधिक और अब आभासी तारणहार माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी देश बेचने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहते उन्होंने तो 100% FDI के जरिये भारत के लाभ वाले सारे सेक्टर ही विदेशियों को बेचते जा रहें हैं वे तो मनमोहन से भी तेजी से विदेशी विकास कर रहे हैं।
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कृपया जरा सोचिये कि :--
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जब भारत की सरकार देश की नदिया, पहाड़,जंगल, हीरे की खदाने,लोहे के खदाने,सोने के खदाने जल थल व वायु मार्ग आदि सब विदेशी कंपनियो को बेच देगी तो आपके पास क्या बचेगा ?
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मेरे हिसाब से तो केवल गुलामी ही बचेगी और मैंने सुना है गुलाम को ऊँची आवाज में बोलने का अधिकार भी नहीं होता यदि फिर से विदेशियों की लैटरीन साफ़ करने से बचना है तो सरकार से अपनी भूमि बचानी होगी।
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★ समाधान ?
भारत के हर प्राकृतिक संसाधन पर हर भारतीय का समान अधिकार है जिसे चंद लोग लूट व लुटवा रहें हैं इसे बचाने के लिए सरकार से नीचे दिए हुए क़ानून को लागू करवाने के लिए दबाव बनाएं।
.आपको करना ये है कि स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक क़ानून सुधार के लिए नीचे दिए गए ड्राफ्ट को गजेट नोटिफिकेशन में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून के रूप में लागू करने के लिए आप सब अपने अपने सांसदों विधायकों को अपना मात्र एक आदेश भेजें एवं ये कार्य पूर्णतया सांवैधानिक है, क्यूंकि ये देश एक गणतंत्र है, कोई तानाशाही नहीं है यहाँ, कि जनता भ्रष्टों द्वारा थोपे गए कानूनों को जबरदस्ती ढोने के लिए बाध्य है क्योंकि जनतंत्र में जनता मालिक है और नेता नौकर .
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खनिज रॉयल्टी सीधे नागरिको के खाते में भेजे जाने के लिए प्रस्तावित कानून (DDMRCM) का ड्राफ्ट :-
fb.com/bittoo.jury/posts/637890959702538
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ज्यूरी सिस्टम के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :-
fb.com/bittoo.jury/posts/637887756369525
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◆ जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
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◆ जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है,
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आप अपना जनतांत्रिक आदेश अपने सांसदों को विधायकों को इस प्रकार भेजें-
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" माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में खनिज रॉयल्टी सीधे नागरिको के खाते में भेजे जाने के लिए प्रस्तावित कानून (DDMRCM) का ड्राफ्ट :-
fb.com/bittoo.jury/posts/637890959702538 क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून भारत में लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz, धन्यवाद "
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.◆ अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे: www.nocorruption.in
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★नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) क़ानून-ड्राफ्ट मानवाधिकारों की मांग में सबसे बड़ी (लैण्डमार्क) मांग है क्योंकि यह भोजन और दवाएं खरीदने के लिए पैसे की कमी के कारण होने वाली मौतों की संख्या कम करेगी। दुख की बात है कि सभी बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और मेरे विचार से, कार्यकर्ताओं को इन बुद्धिजीवियों से तो सदैव के लिए किनारे कर ही लेना चाहिए।
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★इससे आम लोगों की आय भी बढ़ेगी। एक बार यदि भूमि किराया अधिनियम लागू हो जाता है तो इन दो बातों में से एक बात होगी –
1. या तो हम आम लोगों को लगभग 500 या 1000 रूपया प्रति व्यक्ति हर महीने जमीन का किराया मिलेगा। अथवा
2. जमीन की कीमत घटेगी क्योंकि सार्वजनिक भूमि का किराया देना होगा और इसीलिए भूमि-संग्रह करना बहुत महंगा पडेगा ।
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दूसरी बात के होने की ज्यादा संभावना है। अब यदि जमीन की कीमत गिरती है तो घरों की कीमत भी कम होगी जिससे हम आम लोगों का जीवन सुधरेगा। हम आम लोगों मे से कई लोग, जो झुग्गियों में रहते हैं वे शायद एक शयनकक्ष-हॉल-रसोई (वन–बी-एच-के.) फ्लैटों में जा सकेंगे।
और यदि जमीन की कीमत घटती है तो व्यवसायों की संख्या बढ़ेगी (क्योंकि जब रियल एस्टेट की लागत गिरती है तो कारीगरों के लिए व्यवसाय बढ़ाना आसान हो जाता है) और हम आम लोगों को ज्यादा रोजगार और वेतन मिलेगा।
अधिक औधोगिकीकरण से खनिजों के मूल्य बढ़ेंगे और इसलिए खनिजों की रॉयल्टी भी बढ़ेगी। इसलिए किसी भी स्थिति में आई.आई.एम.-ए प्लॉ ट और आई.आई.एम./जे.एन.यू. प्लॉ‍टों व हजारों अन्य प्लॉटों और खदानों, जो हम आम लोगों का है , से किराए के प्रस्ताव से हम आम लोगों को बहुत भारी लाभ होगा।
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इसलिए जमीन किराया ओर खदान की रॉयल्टी के प्रस्ताावों से आय बढ़ेगी और गरीबी कम होगी। गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों को जमीन और घर ज्यादा उपलब्ध होंगे। इस प्रकार इससे गरीबों और मध्यंम वर्ग के लोगों की क्रयशक्ति/खरीदने की क्षमता बढेगी। क्रयशक्ति के बढ़ने से मांग बढ़ेगी और इस प्रकार उधोग धंधे बढ़ेंगे और इससे हमारी सेना भी मजबूत होगी।
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★तब किसको हानि होगी ? अपराधी और ठेकेदार को कम ही हानि होगी । असली घाटा, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, मत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, उच्चवर्गीय लोग जो बड़े खदानों के मालिक हैं, जजों के सगे-संबंधी वकीलों आदि को होगी। और वे लोग जो एम. आर.सी.एम.-रिकाल प्रस्तावों का विरोध करते हैं वे केवल अपराधियों, खनिज-अयस्कर ठेकेदारों, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, जजों के सगे-संबंधी वकीलों, उच्चवर्गीय लोग जो बड़े खदानों के मालिक हैं, को ही लाभ पहुंचाएंगे किसी और को नहीं। कई बुद्धिजीवी इनसे वेतन लेते हैं और इसलिए उनके हितों का ध्यान रखते हुए एम.आर.सी.एम-रिकाल का जोरदार विरोध करते हैं ।
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★स्पेक्ट्रम रॉयल्टी (आमदनी) कितनी है? तीन स्पेक्ट्रम- 2G, 3G तथा S-बैंड के लीज का मूल्य बीस वर्ष के लिए लगभग दो लाख करोड़ रुपये था I अगर स्पेक्ट्रम को बीस वर्ष के लिए लीज पर न देकर ६ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर पर किराए पर दे दिया जाए और किराए को प्रति वर्ष के हिसाब से वसूला जाए, तो EYI (equated वार्षिक installment) लगभग पंद्रह हजार करोड़ रुपये अर्थात 120 रुपये प्रति नागरिक प्रति वर्ष होगा I ध्यान रहे कि अभी हमने केवल तीन ही स्पेक्ट्रम को लेकर गणना की है, अगर सभी स्पेक्ट्रम को लेकर गणना की जाए तो नागरिको को मिलने वाला वार्षिक किराया लगभग दोगुना हो जाएगा.
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★क्या इससे सरकारी आय कम नहीं होगी?
आज की खनिज रॉयल्टी पर विचार कीजिए।
आज एक ग्रेनाइट ब्लॉक जिसका मूल्य बाजार में 100 रूपए है और जिसपर खनन और परिवहन/ढ़ुलाई की लागत 10 रूपए से कम है, उसपर सरकार 5 रूपए या उससे भी कम रॉयल्टी प्राप्त करती है। ये बोलियां इतनी कम क्यों हैं?
क्योंकि स्थानीय खनन ठेकेदार यह सुनिश्चि्त करने के लिए अपराधियों को भाड़े पर लेते हैं कि ज्यांदा खदान मालिक बोली जमा कराने के लिए कलेक्टर के कार्यालय में ना आ पाए और बोली ना लगा पाए ।
लेकिन ये अपराधी अपना काम करने में इसलिए सफल हो जाते हैं कि उन्हें विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकीलों का सहयोग प्राप्त होता है ।
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दूसरे शब्दोंा में, आज अपराधियों के उपयोग से , विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकील ये सुनिश्चित करते हैं कि उस माने गए (deemed) रॉयल्टी में से अधिकतर हिस्सा उनके हाथों मे आता है उन खदान ठेकेदारों और अपराधियों के जरिए, जिनपर उनका वरदहस्त होता है ।
आज अब हम कार्यकर्ताओं को आम लोगों को यह बताना ही पड़ेगा कि आम लोगों को इन मत्रियों भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकीलों के खिलाफ लडाई लड़नी होगी । तब दो प्रश्न उठते हैं –
i. एक आम आदमी कैसे लडाई लड़ सकता है?
ii. क्यों एक आम आदमी को अपना जीवन खतरे में डालना चाहिए या अपना समय बरबाद करना चाहिए?
`★नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.)-रिकॉल(भ्रष्ट को हटाने का अधिकार) का नाम इन दोनों मुख्यज प्रश्नों( का उत्तर देता है । `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी `(एम.आर.सी.एम.)
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दूसरे प्रश्ने का उत्तर इस प्रकार देता है कि यदि खनिज की रॉयल्टी नागरिकों को मिल रही हो तो नागरिकों के पास यह सुनिश्चिएत करने का पर्याप्त कारण है कि वे अपराधी जो खदान के अच्छे ठेकेदार को रोकते हैं उन्हें जान से मार दिया जाना चाहिए या बन्दी बना लेना चाहिए ।
और रिकॉल(भ्रष्ट को हटाने का अधिकार) पहले प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार देता है: पुलिस वालों, जजों, मुख्यमंत्रियों , आदि पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल का उपयोग करके नागरिक यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे पुलिस प्रमुखों, जजों, मंत्रियों, जो अपराधियों को बढ़ावा देते हैं, उन्हेंं, जैसा उचित हो, उन व्यंक्तिियों से बदला जाए जो आम लोगों का भला चाहते हैं । इसलिए एम.आर.सी.एम. खनिज की रॉयल्टी कई गुना बढ़ा देगा और इससे बह रॉयल्टी बढ़ेगी जो सेना को जाती है। इसलिए खनिजों से सरकार की आय का कुल योग इस दूसरे प्रस्तावित सरकारी आदेश से बढ़ेगा ही, घटेगा नहीं।
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★इसी प्रकार, सरकारी प्लॉटों के मामले पर विचार कीजिए। आज प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अनेक सरकारी प्लॉट्स को बाजार मूल्‍य के आंशिक कीमत पर दे देते हैं। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल ( मुख्य्मंत्रियों, प्रधानमंत्री को बदलने की प्रक्रिया) एक ऐसा साधन उपलब्ध कराता है जिससे नागरिक इसे रोक सकते हैं और एम.आर.सी.एम. अर्थात आम लोगों तथा सेना को जमीन का किराया देना नागरिकों को वह कारण उपलब्ध कराता है कि वे इसे रोकें। हर बार एक मुख्य मंत्री, प्रधानमंत्री जमीन को किराए के लिए बाजार के मूल्य् से कम पर दे देता है। तब नागरिक घाटे का अनुमान करेंगे और जब यह घाटा उनके संयम की सीमा पार कर जाएगा तो वे उसे (मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री) बदलने के लिए 3 रूपए खर्च करेंगे। और इससे भी बेहतर बात कि बदले जाने और उसके बाद के दण्ड का डर मुख्य मंत्रियों, प्रधानमंत्री पर(घूस के बदले जमीन कम किराए पर देने पर) अंकुश लगाएगा । इसलिए कुल किराया बढ़ेगा और इस तरह किराए का तिहाई हिस्सा जो सरकार(सेना) को जाएगा, वह भी बढ़ेगा।
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★ध्यान रहे गुलामी बहुत बुरी होती है पहले वे हमारी संपत्ति को लूटने लूटेरे बनकर आये थे लेकिन अब तो वे संपत्ति खरीदकर मालिक बनकर आएंगे फिर हम उन्हें किस आधार पर भागने को कहेंगे ?
.अधिक जानने के लिए निम्न लिंक में दिए को विडियो को सुनें-
फुल वीडियो लिंक https://www.youtube.com/watch?v=hCcPuXVYmKI
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★★★खनिज रॉयल्टी सीधे नागरिको के खाते में भेजे जाने के लिए प्रस्तावित कानून (DDMRCM) के विषय में:- यहाँ देखें- http://www.righttorecall.info/301.h.htm#_Toc302905472
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★अथर्व-वेद कहता है कि “अहम राष्ट्र्म वसुनाम संगमनी” अर्थात मैं एक राष्ट्र प्राकृतिक संसाधनों का मालिक हूँI
अमेरिका के दूसरे राष्ट्र-पति थॉमस-जेफ़र्सन ने कहा था कि- “ये एक विवादास्पद प्रश्न है कि क्या सभी संपत्तियों का मूल प्रकृति से लिया गया है......इस प्रश्न का समर्थन उन सभी लोगों ने किया जिन्होंने ये समझा की किसी व्यक्ति के पास ये प्रकृतिक अधिकार नहीं है, उदाहरण के लिए एक एकड़ भूमि पर एक व्यक्ति का अधिकारI
★सार्वभौमिक नियम के तहत, वास्तव में जो भी चल अथवा अचल सम्पत्ति है, सभी मनुष्यों में बराबर का हिस्सा रखती है, और सामान्य रूप से तात्क्षणिक रूप से वह भूमि उस व्यक्ति कि है, लेकिन जब वो व्यक्ति अपने व्यवसाय का त्याग करेगा तब, यह संपत्ति ...... की हो जायेगी....” यह वक्तव्य सन 1813 ईस्वी में थॉमस-जेफ़र्सन ने आइजैक मैक फर्सन को कही थींI
अमेरिका के संस्थापक या जन्मदाता पिता थॉमस पेन ने 1790 ईस्वी में अपने युगांतरकारी लेख एग्रेरियन-जस्टिस में कहा था की “सभी भूमि चाहे वह सरकारी हो या व्यक्तिगत, का किराया जमा किया जाना चाहिए एवं सभी नागरिकों में बराबर के हिस्से में बाँट दिया जाना चाहिएI” अतः जब से कई महान लोगों ने यह विचार व्यक्त किया है कि सरकारी भूमि में सभी नागरिकों का बराबर का हिसा है, तब से जमीन का मालिकाना हक़ बहुत ही विवादास्पद विषय हैI एम्.आर.सी.एम्. इसी सुझाव का विस्तारण हैI
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★80-G के सभी कार्यकर्ताओं का ये मुख्य तर्क है कि नकद राशि नागरिकों को सीधे नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि वे उसे अल्कोहल इत्यादि मे उड़ा देंगे, अतः नकद के स्थान पर नकद राशि को नागरिकों के शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क इत्यादि में व्यय करना चाहिएI
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अब उस दृश्य में जिसमे भ्रष्ट अधिकारियों एवं मंत्रियों को बदलने के लिए राईट-टू-रिकाल जैसे क़ानून नहीं है और `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का क़ानून भी नहीं है, उस दृश्य में समस्त धनराशी खनन-माफिया, उच्च-वर्ग एवं मंत्रियों/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी/जजों इत्यादि के हाथ लग जायेगी और वे भी इसे शराब इत्यादि में बर्बाद कर देंगेI चूंकि खनन माफिया, उच्च वर्गीय लोग, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी एवं जज इत्यादि कम संख्या में होते है, तथापि वे काफी महंगे शराब जैसे कि शैम्पेन, व्हिस्की इत्यादि में खर्च देंगेI अतः वैसी स्थिति जिसमे `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) एवं भ्रष्ट अधिकारियों/नेताओं को बदलने के लिए राईट-टू-रिकॉल का क़ानून है, वैसे दृश्य में शराब इत्यादि में कम धन-राशि खर्च की जायेगी, बजाय उस दृश्य के जिसमे उपरोक्त कोई भी क़ानून नहीं होI
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★★★नागरिकों के द्वारा धनराशी को शराब इत्यादि में बर्बाद कर दिए जाने के तर्क का खंडन:-
1. कुछ x% नागरिक जरूर ही रॉयल्टी से मिलने वाले धन का पूरा या आंशिक तौर पर शराब इत्यादि में बर्बाद कर देते होंगेI लेकिन कितने प्रतिशत शराब के चिरकालिक व्यसनी हैं? 10% से कम पुरुष एवं 5% से भी कम महिलाएं शराब के चिरकालिक व्यसनी हैंI ख़ास तौर पर, अगर 120 करोड़ नागरिकों को 400 रुपये प्रति माह मिलता हो अर्थात 48,000 करोड़ प्रति माह या 576,000 करोड़ प्रति वर्ष उन्हें संयुक्त रूप से प्राप्त होता हो तो, शराब इत्यादि पर कितने करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे?
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2. `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) के क़ानून में रॉयल्टी और किराये की धनराशी परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को मिलेगी, ऐसा नहीं है कि रॉयल्टी और किराये से मिलने वाला धन परिवार के मुखिया को ही मिलेगाI
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3. `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) के क़ानून में 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मिलने वाली रॉयल्टी और किराए की राशि उनकी माँ को मिलेगीI (`नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) के खंड या क्लॉज़-4.8 जो इस लेख के भाग 5.12 में दिया गया है) को देखें, अगर कोई पिता अपने बच्चो का परवाह करने वाला नहीं है तो ज्यूरी-मंडल राष्ट्रीय-भूमि-किराया-अधिकारी (एन.एल.आर.ओ.) को ये आदेश दे सकता है कि पिता को मिलने वाली राशि का आधा बच्चों की माँ को मिलेI
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4. एक बार अगर शराब पर लगने वाला कर, शराब से होने वाली बीमारियों के सरकारी खर्चे के बराबर हो जाता है, तो शराब की कीमत अत्यंत कम हो जायेगी, इस स्थिति में जनता को मिलने वाला किराया और रॉयल्टी से मिलने वाली आय का कम हिस्सा ही शराब इत्यादि पर खर्च होगा, शेष राशि नागरिक के पास ही रहेगीI नैतिक रूप से अगर कहा जाए तो शराब पर लगने वाला कर इतना ही होना चाहिए जिससे शराब से उत्पन्न होने वाले रोगों में लगने वाले सरकारी खर्चों में वृद्धी को समाविष्ट किया जा सकेI
आज के समय में, शराब पर कर बहुत ज्यादा है क्योंकि उच्च-वर्ग के लोगों ने विधायकों/सांसदों इत्यादि को घूस दिया कि पुलिस-अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों का खर्चा संपत्ति कर से न चूका कर, लिकर-टैक्स से चुकाया जाएI
अगर जनता की आवाज़ का क़ानून-पारदर्शी-शिकायत-प्रणाली का ड्राफ्ट राजपत्र में प्रकाशित होकर क़ानून बन जाएगा तो, संपत्ति कर का क़ानून भी आ जाएगा, तब शराब पर कर इससे होने वाले रोगों पर व्यय होने वाले सरकारी खर्चों में कमी लाएगाI अतः शराब के मूल्य में भी कमी आएगीI
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5. अगर नागरिक अफीम पर लगने वाले कानूनी दंड को हटाने का निर्णय लेते हैं और सामाजिक दंड तक ही सीमित रहते हैं तो अफीम का खपत बढ़ेगा लेकिन शराब की खपत कम हो सकती हैI अफीम इतना सस्ता है कि इसमें व्यसनी हो चुके लोगों के आय का कोई बड़ा हिस्सा खर्च नहीं होगाI कृपया ध्यान दें कि मेरे कहने का ये मतलब नहीं है कि “जब राईट-टू-रिकॉल पार्टी सत्ता में आएगी तब ये अफीम का सेवन करने वाले व्यक्ति को दण्डित नहीं करेगीI”
मेरे कहने का हमेशा ही यही अर्थ है कि “हम साधारण जनता को जनता की आवाज़-पारदर्शी-शिकायत-प्रणाली(टी सी पी) के ड्राफ्ट एवं ज्यूरी-सिस्टम के ड्राफ्ट को कानूनी रूप देने के लिए मुहीम चलानी चाहिए, और एक बार टी सी पी एवं ज्यूरी सिस्टम का ड्राफ्ट राजपत्र में प्रकाशित हो जाता है तो नागरिक अफीम की खपत पर दंड के प्रावधान पर अपना समर्थन अथवा विरोध दर्ज कर सकते हैंI” अगर नागरिक अफीम सेवन पर दंड का विरोध करती है तो शराब का मूल्य भी कम होगा, अर्थात एम्.आर.सी.एम्. से मिलने वाली रॉयल्टी एवं सरकारी भूमि से मिलने किराए की राशि का बहुत कम हिस्सा ही शराब या अफीम पर खर्च होगाI
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अतः कुल मिलाकर नागरिक “नागरिक रॉयल्टी एवं सरकारी भूमि से मिलने वाले किराए की पूरी राशि शराब इत्यादि नशे पर खर्च देंगे, ये बात केवल दस प्रतिशत तक ही सही है अर्थात मात्र दस प्रतिशत धनराशी का प्रयोग ही शराब इत्यादि पर खर्च होगाI और उस स्थिति में एम्.आर.सी.एम्. क़ानून के अभाव में यह राशि खनन माफिया, उच्च-वर्ग के लोगों, मंत्रियों, जजों इत्यादि के द्वारा हड़प कर लिया जाएगा और इस धनराशी का अधिक हिस्सा महंगे शराब शैम्पेन, व्हिस्की इत्यादि पर खर्च हो जाएगाI
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★★★क्या किराए से मिलने वाले धन का उपयोग बुनियादी-व्यवस्था एवं शिक्षा इत्यादि पर नहीं करना चाहिए?क्या किराए से मिलने वाले धन का उपयोग बुनियादी-व्यवस्था एवं शिक्षा इत्यादि पर नहीं करना चाहिए?क्या किराए से मिलने वाले धन का उपयोग बुनियादी-व्यवस्था एवं शिक्षा इत्यादि पर नहीं करना चाहिए?
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इस विरोध का हमेशा स्वागत है जिसमे यह विकल्प है कि सरकारी जमीन के किराए की राशि नागरिकों में प्रत्यक्ष रूप से वितरित न करके उस राशि का उपयोग शिक्षा तथा बुनियादी बदलाव में करना चाहिए I
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नागरिक यह तय करेंगे कि वे किस विकल्प के ऊपर समर्थन के रूप में “हाँ” दर्ज करेंगे और किस विकल्प के विरोध के रूप में “न” दर्ज करेंगे I अंततः माननीय प्रधानमन्त्री यह निर्णय लेंगे कि किस क़ानून के ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित किया जाना है I
इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
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◆ आप अपने नेताओं को अपना जनतांत्रिक आदेश इस तरह भेजें, जैसे की-
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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◆ अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे: www.nocorruption.in
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`★नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) के समर्थन तथा विरोध करने वाले लोग एक ही स्तर पर हैं और साधारण जनता एवं प्रधानमन्त्री से एक ही दूरी पर हैं I अतः इस विरोध का संक्षेप यह है कि --------- जनता की आवाज़-पारदर्शी शिकायत प्रणाली लागू हो जाने देते हैं और तब नागरिक और/या प्रधानमन्त्री यह निर्णय लेंगे कि `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का भविष्य क्या होगा और इसका विकल्प क्या होगाI
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★दूसरा विरोध वास्तविक जीवन से सम्बंधित है I मान लें कि मैंने आपका एक फ्लैट किराए पर लिया है I जब आप मुझसे किराया मांगते हैं तो अगर मैं आपको यह उत्तर देता हूँ कि “मैं आपको किराए के रूप में नकद राशि नहीं दूंगा क्योंकि आप नकद राशि को शराब पीने इत्यादि में उड़ा सकते हैं. इसीलिए किराए का नकद भुगतान के बदले मैं आपको स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, आपके समाज में बुनियादी सुधार इत्यादि के रूप में भुगतान करूंगा” I
मेरा यह जवाब सुनकर आप मुझे किरायेदार के रूप में रखना स्वीकार नही करेंगेI यहाँ मुद्दा विवेक और विश्वास दोनों की कमी का हैI अगर मैं यह निर्णय करूं कि आपके लिए अच्छा क्या है, अगर मैं इमानदार और निष्ठावान हूँ फिर भी आपको मेरा निर्णय अच्छा नहीं लग सकता हैI अगर मैं बेईमान हूँ तो मैं आपके किराए की पूरी राशि ही हड़प कर लूँगा और आपको किराए की न ही नकद राशि मिलेगी और न ही कोई सुविधा मिलेगीI अतः क्या आज की तारीख जुलाई-२०१२ में भारतीय नागरिक भारत-सरकार(मंत्री, भारतीय प्रशासनिक अधिकारी, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी, जजों इत्यादि) के ऊपर विश्वास करती है? जैसा की आप अपने फ्लैट या जमीन/प्लाट का किराया नकद रूप में चाहते हैं, और किसी दूसरी व्यवस्था के रूप में नहीं, ठीक उसी तरह से हम 120 करोड़ नागरिक भी अपनी संपत्ति के अंतर्गत आने वाले भारतीय जमीन का किराया नकद रूप में (35 प्रतिशत सेना के लिए छोड़कर) प्राप्त करना चाहते हैं I
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★तीसरा विरोध इस प्रकार हैI इसमें दो मामले(केस) हैं, मान ले केस-I में जिसमे 66 प्रतिशत धन नागरिकों के पास जा रहा है तथा 34 प्रतिशत धन सरकार के पास जा रहा है और केस-II में 100 प्रतिशत धन सरकार के पास ही जा रहा है तथा नागरिकों को कुछ नही मिल रहा है, तो केस-I में सरकार के पास अधिक धनराशी जायेगी ! क्यों?
क्योंकि दुसरे केस अर्थात केस-II में पूरी की पूरी धनराशी को मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी/जज/उच्च वर्ग तथा दूसरे लोग हड़प लेंगे और नागरिकों के पास इस हड़प को रोकने का कोई साधन नही है I
इसका केवल एक ही उपाय है कि नागरिक भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल क़ानून के ड्राफ्ट को प्रधानमन्त्री के द्वारा राजपत्र (गजेट) में प्रकाशित करने के लिए माननीय प्रधानमंत्री को तैयार करें I
यदि भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल का क़ानून लागू हो जाता है तो अगले दिन ही `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का क़ानून लाया जा सकता है I
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अतः वैसा केस जिसमे कि नागरिकों को सरकारी जमीन का किराया 0 प्रतिशत मिलता हो, यह तभी संभव है जब भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल क़ानून का कोई प्रावधान नहीं होI इस केस में भ्रष्ट अधिकारी और मंत्री इत्यादि सरकारी जमीन, खदानों/स्पेक्ट्रम रॉयल्टी का पूरा धन हड़प कर जायेंगे और स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा व्यवस्था, बुनियादी सुधार इत्यादि के लिए कोई राशि शेष नहीं रहेगी I
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अतः हमलोगों पास केवल दो ही स्थायी केस हैं ---- एक केस में संयुक्त रूप से भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल क़ानून और `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का क़ानून है और दूसरे केस में `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का क़ानून तथा भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल क़ानून नामक दो कानूनों में से कोई क़ानून नहीं है I
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दूसरा केस जिसमे कि उपर्युक्त कोई क़ानून नहीं है, बिलकुल अस्थायी है, क्योंकि भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल क़ानून के अभाव में भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस सेवा के अधिकारी इत्यादि `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) क़ानून को राजपत्र/गजेट से निकाल देने का प्रयत्न करेंगेI
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`★★नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का क़ानून नागरिकों को मजबूती प्रदान करता है और साथ ही भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस सेवा के अधिकारी इत्यादि को कमजोर करता है, अतः नागरिकों को भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल क़ानून के ड्राफ्ट को राजपत्र में प्रकाशित करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए I जब तक इसमें सफलता नहीं मिल जाती तब तक संघर्ष जारी रहेगाI अगर हम साधारण जनता-गण इस कार्य में सफल हो जाते हैं तो नागरिकों को भ्रष्ट मंत्री/प्रशासनिक अधिकारी/पुलिस अधिकारी इत्यादि को बदलने या नौकरी से निकालने के लिए राईट-टू-रिकॉल एवं `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का क़ानून राजपत्र में प्रकाशित होकर क़ानून का रूप ले लेगा और भारत में एक नए प्राशासनिक पद्धति का दौर आरम्भ होगाI अगर उच्च-वर्ग जो उपरोक्त कानूनों का विरोध करते हैं, अगर वे सफल हो जाते हैं और उपरोक्त कानूनों में से कोई भी क़ानून लागू नहीं होता है तो भ्रष्ट व्यवस्था ही चलती रहेगी, ठीक इसी प्रकार से एम्.आर.सी.एम्. अगर बिना राईट-टू-रिकॉल के लागू हो जाता है तो भी यह स्थायी नहीं रहेगाI क्योंकि राईट–टू-रिकॉल क़ानून आ जाने से नागरिक गण प्रधान-मंत्री के ऊपर `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) का क़ानून लाने के लिए आसानी से दबाव बना सकते हैंI
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★★अतः दो स्थायी दृश्यों के ऊपर ध्यान दें- पहले दृश्य में `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम.आर.सी.एम.) और भ्रष्ट अधिकारियों एवं मंत्रियों को बदलने के लिए राईट-टू-रिकॉल का क़ानून है; दुसरे दृश्य में इन दोनों नियमों में से कोई भी नियम नहीं है. तो दुसरे दृश्य में मंत्री/प्रशासनिक-अधिकारी/पुलिस अधिकारी/जज इत्यादि एवं उच्च वर्ग खदानों-स्पेक्ट्रमों से मिलने वाले रॉयल्टी, सरकारी भूमि से मिलने वाले किराये इत्यादि को हड़प कर लेंगे और सरकारी खजाने में इसका 5% भी नहीं जाएगाI अतः पहले दृश्य में भ्रष्ट अधिकारियों, मंत्रियों के ऊपर राईट-टू-रिकॉल क़ानून आ जाने से भ्रष्ट जन उपरोक्त किराए एवं रॉयल्टी का एक प्रतिशत भी हड़प नहीं कर सकेंगे, साथ ही सरकार के खजाने में 35% धन भी आएगाI अतः दुसरे दृश्य में सरकार के पास राजस्व भी ज्यादा आएगा I
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अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
एवं अपने नेताओं को ऊपर बताए जा चुके तरीके से एक जनतांत्रिक आदेश भेजें.

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