नोट-बंदी एवं विमुद्रीकरण से किसका भला हुआ?
नोटबन्दी एवं छोटे नोट न छाप सकने की विफलता ने सारे लघुउद्योग बंद कर दिए, कानपुर का चमड़ा, आगरा का जूता, खुर्जा का पाल्ट्री, बनारस का हथकरघा, कन्नौज का इत्र, फीरोजाबाद का चूड़ी आदि सारे उद्योग ठप हैं, मजदूर पलायन कर गए, दिहाडी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है.
छोटे दुकानदार, व्यापारी, ठेले वाले, सब्जी वाले सब के सब परेशान हैं. केवल माल चल रहे हैं, अदानी, अम्बानी चल रहे हैं और उनका व्यापार चल रहा है. बैंकों में नयी करेंसी नहीं है, पर भाजपा नेताओं के पास करोड़ों नए नोट निकल रहे हैं.
अन्ना हजारे अपनी मांद में सुखासीन हैं,
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◆भारत का प्रधानमंत्री कहता है, नगद नहीं है, तो पेटीएम करो.
जिस तरह किसी समय फ़्रांस की रानी ने भूखे लोगों से कहा था कि रोटी नहीं है, तो केक खाओ. उस रानी की तरह ही प्रधानमंत्री भी भूखे गरीबों का मजाक उड़ा रहा है.
निर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय---
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◆कैशलेस सोसायटी बनाने के इस दौर मेँ पेटीएम की काफी चर्चा हो रही है. दरअसल, पेटीएम एक घोटाला है. यह कंपनी गैर कानूनी ढंग से काम कर रही है या कर रही थी और वह भी वित्त मंत्रालय के अधिकारियोँ की मिलीभगत से. यह हजारोँ करोडोँ का घोटाला है जिसके बारे में आपको आने वाले दिनों में जानकारी मिलेगी कि ये कंपनी आपको फायदा देने के लिए चलाई जा आरही है या भारतीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए चलाई जा रही है, इसको चलाने वाले लोग यहाँ के हैं या दुश्मन देशों के लोग शामिल हैं?
वस्तुतः देखा जाए तो दुश्मन देश जन भी यहाँ आते हैं, हमें झापड़ मार कर चले जाते हैं और हमारे देश के अंध भगत लोग दांत निकालते रह जाते हैं.
इस कंपनी के संचालक मंडल में दुश्मन देश के लोग शामिल हैं.
इससे आपको ये समझ जाना चाहिए कि आपके अपने देश कि cashless अर्थव्यवस्था का नियंत्रण आपके देश के लोगों के हाथ में नहीं बल्कि किसी अन्य देश के हाथ में है और ये कंपनी अपना काम देश-भक्त प्रधानमंत्री, देशभक्त वित्त मंत्री एवं इनके देशभक्त अन्धब्क्तों के आँखों के नीचे खुलेआम आपके देश की अर्थव्यवस्था का नियंत्रण करने वाली है.
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ये सब एक साजिश है, जो इस देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए किया जा रहा है.
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◆काला धन, काली कमाई और नोट-बंदी तीनों अलग अलगमुद्दे हैं लेकिन इसे एक मान लिया गया है जबकि देश में चल रही काले धन की अर्थव्यवस्था में काली नगदी का प्रतिशत दो से छह फ़ीसदी है और उसे ही ख़त्म करने की सारी क़वायद की जा रही है।
काले धन पर कई किताबें लिखने वाले प्रो अरूण कुमार की मानें तो इस क़दम से माँग, आपूर्ति, रोज़गार और निवेश सब कुछ प्रभावित होगा।
सामर्थ्यवानों पर नोटबंदी का ज्यादा असर नहीं होगा, उनके लिये अपनी काली कमाई को सफ़ेद करने के कई तरीक़े हैं। कुछ बड़े व्य्व्सायियोंने , अपने कर्मचारियों को चार माह का वेतन, पहले ही दे दिया, और किसी ने अपने कर्मचारियों को घर-गाडी-बंगला वगैरह भी दे दिया था, नोट-बंदी के आदेश से चाँद दिनों पहले, कोई राजनेता बता सकते हैं, कि उनके पास इतनी संपत्ति कहाँ से आ गयी? नहीं.
इस देश का मध्य व ग़रीब वर्ग ही सिर्फ़ परेशान हो रहा है। इस साक्षात्कार को जरूर पढ़ें। नोटबंदी के चलते आँखों पर चढ़ी देशभक्ति की पट्टी कमज़ोर पड़ेगी
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◆दो हजार के नोट मार्किट में चलाने से मार्किट का रक्त अर्थात कॅश तो निकलवा लिया गया, और फिर 5-5 प्रतिशत की दर से रक्त पुनः चढ़ाए जाने से तो रेगुलर आमदनी वाले लोगों द्वारा अपनी सलारी को कम खर्च क्र पाने कि मजबूरी के चलते पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था(बड़ी कंपनियों को छोडकर) का सर्वनाश ही होगा..
आज लोग मोबाइल फ़ोन भी कम recharge करवा रहे हैं, लोग अपने कपड़ों को आने वाले महीनों में खरीदने के लिए लंबित कर धन का जुगाड़ कर रहे हैं.
छोटे रोज वाले व्यवसायी छोटे नोटों की कमी की वजह से अपना सामान नही बेच पा रहे हैं. ये सब बातें देखने सुनने में छोटीं हैं, लेकिन ये ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह से मार्किट में मुद्रा का चलन कमजोर होता जा रहा है, जिससे अर्थ व्यवस्था में गिरावट आएगी, मांग और उत्पादन में कमी आएगी, रोजी-रोजगार में कमी आएगी. लोग इन रोजगारों में इन्वेस्टमेंट करना भी छोड़ देंगे. इस तरह से हमारे देश के गिने चुने गृह-उद्योग तथा अन्य देशी उद्योग धंधों को बंद करना पड़ेगा जो ये विदेशी बैंकर्स एवं हथियार-बंद देश चाहते हैं, जिसके चलते हमको इनकी कंपनियों के माल जबरन खरीदना पड़े, तमाम मुनाफा ये उठाएं और हमारे लोग भूखों मरें. ये इस सरकार का कहाँ का न्याय है?
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अगर सब कुछ इसी तरह एक महीना चला तो इसका प्रभाव को ठीक करने में अगले ढाई वर्षो का समय लगेगा.
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◆आतंकवादियों को काले धन के सप्लाई पहुंचाकर हमले करवाने के मामले की संख्या में भारी कमी का उदाहरन दिया जा रहा है, क्या समाचारों में दिखलाये गए न्यूज़ ही न्यूज़ हैं, समाचारों में जो नहीं दिखाया गया हो पूरी तरह के सोची समझी रणनीति के द्वारा , क्या वो समाचार नहीं हैं? क्या पाठकों में से कोई सीमा पर देखने गया था कि आतंकी हमले हुए हैं या नहीं? नहीं, किसी ने नहीं देखा, तो हम इन विदेशी मालिकाना हकों वाले समाचार पत्रों पर कैसे विश्वास कर सकते हैं, जो मुख्य मुद्दा केवल उन मुद्दों को बनाते हैं जिनसे उनके हाथ में हमारी संपत्ति जा रही हो?
◆आतंकियों को धनराशी कोई नोट में ही नहीं, अकाउंट से ट्रान्सफर द्वारा भी दी जा सकती है या चेक से कॅश निकलवा कर भी. अकाउंट धारी व्यक्ति की आय का रास्ता अनैतिक भी हो तो सरकार कोई आपत्ति नहीं जता सकती.
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◆काले धन को पकड़ने के लिए आय से अधिक संपत्ति रखने के केस को मजबूत बनाकर फास्ट ट्रैक केस बनाकर सबको क़ानून के दायरे में लाकर दण्डित किया जा सकता था, सरकार जो डी मोनी टैजेशन की है, उसका नाम अधिक नोट पकड़ने के काम में बेवजह ही लिया जा रहा है.
नोत्बंदी को अधिक धनराशि से कोई सम्बन्ध नहीं है. क्यूंकि बड़ी नोट आने से पहले भी भ्रष्टाचार होता था, घोटालों में करेंसी का उपयोग नहीं होता है, घूसखोरी में होती है, जिसे राईट-टू-रिकॉल एवं सर्विलांस था जूरी सिस्टम लाकर रोका जा सकता है, लेकिन कोई सरकार कड़े क़ानून नहीं लाना चाहती, क्यूंकि इससे उसकी अपनी ही पार्टी कि कमाई के खतरे में आ जाने की अत्यधिक संभावना है.
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◆जिस तरह से दिखाया जा रहा है कि इस नोत्बंदी के चलते यहाँ वहां नोट के गट्ठर पकडे गए, पकडे तो आज से पहले भी गए थे, लेकिन आज तक भ्रष्ट व्यवस्था में किसी को दंड नहीं मिला है. अभी भी जो लोग पकडे जा रहे हैं, उनमे से किसी को दंड नहीं मिलने वाला.
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अगर मान लिया जाए कि व्यवस्था कैशलेस भी हो जाती है तो भी, अधिक संपत्ति के मामलों में लोग लैंड, सोने और चेक से निकासी करवाकर काला धन बना ही लेंगे, काले धन के मुद्दे को कैशलेस-व्यवस्था से से कोई मतलब नहीं है.
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◆हाँ एक बात है कि , इस तरह से सरकार प्राइवेट कंपनियों के लिए मार्केटिंग जरूर कर रही है. अब वे कंपनियां भी प्रोसेस करने का चार्ज तो लेंगी हीं, चाहे वे व्यापारी या दुकानदार से लें या आपसे, कमजोर तो होंगे ही सब तरफ से, भले ही सरकार ने गांव वालों को छूट दी हो, लेकिन वे बचत हुई राशि उन प्राइवेट कंपनिया ले लेंगी, तो जनता को कहाँ फायदा हुआ.
◆ * सरकार ये नहीं बता रही है कि डेबिट कार्ड से खरीदी करने पर रिटेलर को ०.५ % से १% तक प्रत्येक खरीदी पर चार्ज लगता है,
◆ * क्रेडिट कार्ड से खरीदी करने पर 1.5%-2.5% पर्त्येक खरीदी पर रिटेलर के अकाउंट से पैसे कटते हैं.
◆ *PayTM/Freecharge/ Jio Money के e-वॉलेट से जब आप पैसे को अपने अकाउंट में ट्रान्सफर करते हैं तो 2.5% -3.5% तक पैसे आपके उस इ-वॉलेट के पैसों से कट जाते हैं..
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆इस तरह से ये कंपनियां प्रत्येक वर्ष डेढ़ लाख करोड़ रुपये कमा लेती हैं, जो केवल और केवल आप जैसे भोलेभाले कैशलेस ग्राहाकों के अकाउंट से धोखे द्वारा हड़पी हुई धनराशी है.
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◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆अब, गाँव वालों को छूट देने का राजनीति ये है कि जब कोई मरती हुई मुर्गी के सामने उसका कसाई भी उनके खाने का दाना फेंका जाता है ना, तब भी वो मुर्गी उस अन्न फेंकने वाले कसाई का ही साथ देती है. ऐसा ही मामला गाँव वालों के साथ निभाया जा रहा है.
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इसके बदले हमारा प्राइवेट डाटा उन माफिया संचालित कोम्पन्यों के पास जाएगा सो अलग.
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◆ दानव(बैंकर एवं हथियार-बंद देश) समाज सिर्फ दो वर्ग के लोग ही चाहते हैं । अमीर वर्ग जो दानव समाज के साथी बन सकते हैं वो और दुसरा गरीब वर्ग, जीनको मदद करने के बहाने से मध्यम वर्ग को लूटा जा सके । मिडल क्लास को गरीब बना कर गरीब वर्ग के साथ मिला देना है । अमीर वर्ग दानव के साथी बन के गरीबों पर हकुमत करे । सरकार का हर कदम इसी तरफ इशारा करता है । और दानव समाज की केतली ने खूद कबूल कर लिया है ।
कम से कम एक बाबत पर तो हम को गलत साबित कर दो । हमें कोइ शौक नही है सच्चाई का पूतला बनने का ।
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मिडल क्लास ने बचत की और आज हडप ली ।
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इस तरह से आप देख सकते हैं कि कॅश-लेस व्यवस्था लाने से पहले हमारे अपने देश की सारी व्यवस्थाएं एवं उद्यों धंधे तथा तकनीक स्वदेशी, हो, तब ये कैशलेस व्यवस्था उचित मायने में सही होगी, अन्यथा ये सब कुछ एक ऐसा कदम है, जो हमारे अर्थव्यवस्था को विदेशी हाथों में सौंपने के अलावे कुछ नहीं है, अर्थात आप गुलाम बनने जा रहे हैं.
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◆कुछ विद्वानों के हिसाब से स्वीडन जैसे देश से हमें सीखना चाहिए, लेकिन वे यह नहीं बता पा रहे है कि स्वीडन काफी छोटा देश है और वहां कि अर्थव्यवस्था में विविधता भारत के जितनी नहीं है, फिर भी स्वीडन अभी तक पूरी कि पूरी तरह से कॅश लेस नहीं हुआ है, अतः मेरे विचार से स्वीडन से भारत जैसे विशाल एवं विविधता पूर्ण अर्थव्यवस्था वाले देश कि तुलना नहीं की जानी चाहिए..
आज के एडवांस तकनिकी युग में तमाम तरहों कि प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न करवाना तकनिकी रूप से संभव है, और दुश्मन देशों या जो देश उन माफियाओं के मुताबित संधियाँ नहीं करेंगे उनके ऊपर ये सब एक तरह से threat के जैसे ही होगा.
◆अब भारत कि स्थिति को ले लें तो अगर इसका दुश्मन देश चाहे या जिस देश में पार्टली हमारी बैंकिंग सिस्टम का सर्वर रखा होगा या जहाँ से संचालित होता रहेगा, उन देशों की शर्तों को हमें मानना पड़ेगा.
.जो कम्पनियां हमे इंटरनेट द्वारा कैशलेस होने की सुविधा देंगीं उनके सर्वर दूसरे देशों में होंगे और उन देशों की संधियां इतनी घातक होंगी कि भारत हमेशा के लिए उनका गुलाम हो सकता है। इन देशों एवं माफियाओं के एक हाथ में लड्डू एवं दुसरे हाथ में लाठी होती है, जिससे लाठी देखकर लड्डू के लालच में भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों को हारकर उनकी बात माननी ही पडती है.
जब तक हम अपने देश में ही इन सर्वर और इन कम्पनियों का निर्माण नहीं कर लेते (विदेशी निवेश से अछूत रहकर) तब तक हमे इस व्यवस्था से दूर रहना चाहिए और तब तक जनता की शिक्षा और कैशलेस के लिए जमाई जाने वाली स्वदेशी व्यवस्था का विकास करना चाहिए जैसे नेटवर्क सिस्टम सॅटॅलाइट सिस्टम अदि..
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◆ इसके साथ साथ, वे विदेशी माफियाएं ही आपके लिए तय करेंगी कि आपके कौन्कौं से कदम सरकार एवं उन माफियाओं के विरोध में हैं और कौन से नहीं हैं, इस तरह से आपके कार्ड एवं आपके बैंक से सम्बंधित धना को भी दंड-स्वरुप ब्लाक कर सकते हैं .
समय पड़ने पर क्या मालूम होगा कि मेरे जैसे सरकार विरोधी एवं माफिया-विरोधी लोगों को जरूरत पड़ने पार दवा इत्यादि भी मिलेगा या नहि .
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इसके साथ ही, प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक गड़बड़ी के वक्त भी ये कॅश-लेस सामाजिक व्यवस्था कार्य करना बंद कर देगा, जिससे माफियाओं के द्वारा संचालित किये जाने वाले दे्शों कि अर्थव्यवस्था को चौपट किया जा सके,
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★ समाधान ?
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निम्नलिखित प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली में जनता अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकते हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकते हैं अगर आप चाहते हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं.
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इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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★★★★ आप सबको यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली एवं सभी सरकारी पदों पर राईट-टू-रिकॉल के कानूनों को गजेट में प्रकाशित करवा कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने को लेकर अपने अपने सांसदों, विधायकों, प्रधानमंत्री को अपना एक जनतांत्रिक आदेश भेजकर उनपर नैतिक दबाव बनाना चाहिए.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
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◆ ★★★आप अपने नेताओं को अपना जनतांत्रिक आदेश इस तरह भेजें, जैसे की-
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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◆ अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे: www.nocorruption.in
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◆★★★ जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
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◆★★★ जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट, वेल्थ टैक्स, राईट-टू-रिकॉल एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
एवं अपने नेताओं को ऊपर बताए जा चुके तरीके से एक जनतांत्रिक आदेश भेजें.
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जय हिन्द.
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अधिक जानकारी के लिए देखिये- https://www.youtube.com/watch?v=pTPx_h_KQaA
अधिक जानकारी के लिए देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1192616490831338:0
छोटे दुकानदार, व्यापारी, ठेले वाले, सब्जी वाले सब के सब परेशान हैं. केवल माल चल रहे हैं, अदानी, अम्बानी चल रहे हैं और उनका व्यापार चल रहा है. बैंकों में नयी करेंसी नहीं है, पर भाजपा नेताओं के पास करोड़ों नए नोट निकल रहे हैं.
अन्ना हजारे अपनी मांद में सुखासीन हैं,
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◆भारत का प्रधानमंत्री कहता है, नगद नहीं है, तो पेटीएम करो.
जिस तरह किसी समय फ़्रांस की रानी ने भूखे लोगों से कहा था कि रोटी नहीं है, तो केक खाओ. उस रानी की तरह ही प्रधानमंत्री भी भूखे गरीबों का मजाक उड़ा रहा है.
निर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय---
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◆कैशलेस सोसायटी बनाने के इस दौर मेँ पेटीएम की काफी चर्चा हो रही है. दरअसल, पेटीएम एक घोटाला है. यह कंपनी गैर कानूनी ढंग से काम कर रही है या कर रही थी और वह भी वित्त मंत्रालय के अधिकारियोँ की मिलीभगत से. यह हजारोँ करोडोँ का घोटाला है जिसके बारे में आपको आने वाले दिनों में जानकारी मिलेगी कि ये कंपनी आपको फायदा देने के लिए चलाई जा आरही है या भारतीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए चलाई जा रही है, इसको चलाने वाले लोग यहाँ के हैं या दुश्मन देशों के लोग शामिल हैं?
वस्तुतः देखा जाए तो दुश्मन देश जन भी यहाँ आते हैं, हमें झापड़ मार कर चले जाते हैं और हमारे देश के अंध भगत लोग दांत निकालते रह जाते हैं.
इस कंपनी के संचालक मंडल में दुश्मन देश के लोग शामिल हैं.
इससे आपको ये समझ जाना चाहिए कि आपके अपने देश कि cashless अर्थव्यवस्था का नियंत्रण आपके देश के लोगों के हाथ में नहीं बल्कि किसी अन्य देश के हाथ में है और ये कंपनी अपना काम देश-भक्त प्रधानमंत्री, देशभक्त वित्त मंत्री एवं इनके देशभक्त अन्धब्क्तों के आँखों के नीचे खुलेआम आपके देश की अर्थव्यवस्था का नियंत्रण करने वाली है.
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ये सब एक साजिश है, जो इस देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए किया जा रहा है.
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◆काला धन, काली कमाई और नोट-बंदी तीनों अलग अलगमुद्दे हैं लेकिन इसे एक मान लिया गया है जबकि देश में चल रही काले धन की अर्थव्यवस्था में काली नगदी का प्रतिशत दो से छह फ़ीसदी है और उसे ही ख़त्म करने की सारी क़वायद की जा रही है।
काले धन पर कई किताबें लिखने वाले प्रो अरूण कुमार की मानें तो इस क़दम से माँग, आपूर्ति, रोज़गार और निवेश सब कुछ प्रभावित होगा।
सामर्थ्यवानों पर नोटबंदी का ज्यादा असर नहीं होगा, उनके लिये अपनी काली कमाई को सफ़ेद करने के कई तरीक़े हैं। कुछ बड़े व्य्व्सायियोंने , अपने कर्मचारियों को चार माह का वेतन, पहले ही दे दिया, और किसी ने अपने कर्मचारियों को घर-गाडी-बंगला वगैरह भी दे दिया था, नोट-बंदी के आदेश से चाँद दिनों पहले, कोई राजनेता बता सकते हैं, कि उनके पास इतनी संपत्ति कहाँ से आ गयी? नहीं.
इस देश का मध्य व ग़रीब वर्ग ही सिर्फ़ परेशान हो रहा है। इस साक्षात्कार को जरूर पढ़ें। नोटबंदी के चलते आँखों पर चढ़ी देशभक्ति की पट्टी कमज़ोर पड़ेगी
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◆दो हजार के नोट मार्किट में चलाने से मार्किट का रक्त अर्थात कॅश तो निकलवा लिया गया, और फिर 5-5 प्रतिशत की दर से रक्त पुनः चढ़ाए जाने से तो रेगुलर आमदनी वाले लोगों द्वारा अपनी सलारी को कम खर्च क्र पाने कि मजबूरी के चलते पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था(बड़ी कंपनियों को छोडकर) का सर्वनाश ही होगा..
आज लोग मोबाइल फ़ोन भी कम recharge करवा रहे हैं, लोग अपने कपड़ों को आने वाले महीनों में खरीदने के लिए लंबित कर धन का जुगाड़ कर रहे हैं.
छोटे रोज वाले व्यवसायी छोटे नोटों की कमी की वजह से अपना सामान नही बेच पा रहे हैं. ये सब बातें देखने सुनने में छोटीं हैं, लेकिन ये ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह से मार्किट में मुद्रा का चलन कमजोर होता जा रहा है, जिससे अर्थ व्यवस्था में गिरावट आएगी, मांग और उत्पादन में कमी आएगी, रोजी-रोजगार में कमी आएगी. लोग इन रोजगारों में इन्वेस्टमेंट करना भी छोड़ देंगे. इस तरह से हमारे देश के गिने चुने गृह-उद्योग तथा अन्य देशी उद्योग धंधों को बंद करना पड़ेगा जो ये विदेशी बैंकर्स एवं हथियार-बंद देश चाहते हैं, जिसके चलते हमको इनकी कंपनियों के माल जबरन खरीदना पड़े, तमाम मुनाफा ये उठाएं और हमारे लोग भूखों मरें. ये इस सरकार का कहाँ का न्याय है?
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अगर सब कुछ इसी तरह एक महीना चला तो इसका प्रभाव को ठीक करने में अगले ढाई वर्षो का समय लगेगा.
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◆आतंकवादियों को काले धन के सप्लाई पहुंचाकर हमले करवाने के मामले की संख्या में भारी कमी का उदाहरन दिया जा रहा है, क्या समाचारों में दिखलाये गए न्यूज़ ही न्यूज़ हैं, समाचारों में जो नहीं दिखाया गया हो पूरी तरह के सोची समझी रणनीति के द्वारा , क्या वो समाचार नहीं हैं? क्या पाठकों में से कोई सीमा पर देखने गया था कि आतंकी हमले हुए हैं या नहीं? नहीं, किसी ने नहीं देखा, तो हम इन विदेशी मालिकाना हकों वाले समाचार पत्रों पर कैसे विश्वास कर सकते हैं, जो मुख्य मुद्दा केवल उन मुद्दों को बनाते हैं जिनसे उनके हाथ में हमारी संपत्ति जा रही हो?
◆आतंकियों को धनराशी कोई नोट में ही नहीं, अकाउंट से ट्रान्सफर द्वारा भी दी जा सकती है या चेक से कॅश निकलवा कर भी. अकाउंट धारी व्यक्ति की आय का रास्ता अनैतिक भी हो तो सरकार कोई आपत्ति नहीं जता सकती.
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◆काले धन को पकड़ने के लिए आय से अधिक संपत्ति रखने के केस को मजबूत बनाकर फास्ट ट्रैक केस बनाकर सबको क़ानून के दायरे में लाकर दण्डित किया जा सकता था, सरकार जो डी मोनी टैजेशन की है, उसका नाम अधिक नोट पकड़ने के काम में बेवजह ही लिया जा रहा है.
नोत्बंदी को अधिक धनराशि से कोई सम्बन्ध नहीं है. क्यूंकि बड़ी नोट आने से पहले भी भ्रष्टाचार होता था, घोटालों में करेंसी का उपयोग नहीं होता है, घूसखोरी में होती है, जिसे राईट-टू-रिकॉल एवं सर्विलांस था जूरी सिस्टम लाकर रोका जा सकता है, लेकिन कोई सरकार कड़े क़ानून नहीं लाना चाहती, क्यूंकि इससे उसकी अपनी ही पार्टी कि कमाई के खतरे में आ जाने की अत्यधिक संभावना है.
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◆जिस तरह से दिखाया जा रहा है कि इस नोत्बंदी के चलते यहाँ वहां नोट के गट्ठर पकडे गए, पकडे तो आज से पहले भी गए थे, लेकिन आज तक भ्रष्ट व्यवस्था में किसी को दंड नहीं मिला है. अभी भी जो लोग पकडे जा रहे हैं, उनमे से किसी को दंड नहीं मिलने वाला.
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अगर मान लिया जाए कि व्यवस्था कैशलेस भी हो जाती है तो भी, अधिक संपत्ति के मामलों में लोग लैंड, सोने और चेक से निकासी करवाकर काला धन बना ही लेंगे, काले धन के मुद्दे को कैशलेस-व्यवस्था से से कोई मतलब नहीं है.
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◆हाँ एक बात है कि , इस तरह से सरकार प्राइवेट कंपनियों के लिए मार्केटिंग जरूर कर रही है. अब वे कंपनियां भी प्रोसेस करने का चार्ज तो लेंगी हीं, चाहे वे व्यापारी या दुकानदार से लें या आपसे, कमजोर तो होंगे ही सब तरफ से, भले ही सरकार ने गांव वालों को छूट दी हो, लेकिन वे बचत हुई राशि उन प्राइवेट कंपनिया ले लेंगी, तो जनता को कहाँ फायदा हुआ.
◆ * सरकार ये नहीं बता रही है कि डेबिट कार्ड से खरीदी करने पर रिटेलर को ०.५ % से १% तक प्रत्येक खरीदी पर चार्ज लगता है,
◆ * क्रेडिट कार्ड से खरीदी करने पर 1.5%-2.5% पर्त्येक खरीदी पर रिटेलर के अकाउंट से पैसे कटते हैं.
◆ *PayTM/Freecharge/ Jio Money के e-वॉलेट से जब आप पैसे को अपने अकाउंट में ट्रान्सफर करते हैं तो 2.5% -3.5% तक पैसे आपके उस इ-वॉलेट के पैसों से कट जाते हैं..
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆इस तरह से ये कंपनियां प्रत्येक वर्ष डेढ़ लाख करोड़ रुपये कमा लेती हैं, जो केवल और केवल आप जैसे भोलेभाले कैशलेस ग्राहाकों के अकाउंट से धोखे द्वारा हड़पी हुई धनराशी है.
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◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆अब, गाँव वालों को छूट देने का राजनीति ये है कि जब कोई मरती हुई मुर्गी के सामने उसका कसाई भी उनके खाने का दाना फेंका जाता है ना, तब भी वो मुर्गी उस अन्न फेंकने वाले कसाई का ही साथ देती है. ऐसा ही मामला गाँव वालों के साथ निभाया जा रहा है.
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इसके बदले हमारा प्राइवेट डाटा उन माफिया संचालित कोम्पन्यों के पास जाएगा सो अलग.
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◆ दानव(बैंकर एवं हथियार-बंद देश) समाज सिर्फ दो वर्ग के लोग ही चाहते हैं । अमीर वर्ग जो दानव समाज के साथी बन सकते हैं वो और दुसरा गरीब वर्ग, जीनको मदद करने के बहाने से मध्यम वर्ग को लूटा जा सके । मिडल क्लास को गरीब बना कर गरीब वर्ग के साथ मिला देना है । अमीर वर्ग दानव के साथी बन के गरीबों पर हकुमत करे । सरकार का हर कदम इसी तरफ इशारा करता है । और दानव समाज की केतली ने खूद कबूल कर लिया है ।
कम से कम एक बाबत पर तो हम को गलत साबित कर दो । हमें कोइ शौक नही है सच्चाई का पूतला बनने का ।
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मिडल क्लास ने बचत की और आज हडप ली ।
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इस तरह से आप देख सकते हैं कि कॅश-लेस व्यवस्था लाने से पहले हमारे अपने देश की सारी व्यवस्थाएं एवं उद्यों धंधे तथा तकनीक स्वदेशी, हो, तब ये कैशलेस व्यवस्था उचित मायने में सही होगी, अन्यथा ये सब कुछ एक ऐसा कदम है, जो हमारे अर्थव्यवस्था को विदेशी हाथों में सौंपने के अलावे कुछ नहीं है, अर्थात आप गुलाम बनने जा रहे हैं.
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◆कुछ विद्वानों के हिसाब से स्वीडन जैसे देश से हमें सीखना चाहिए, लेकिन वे यह नहीं बता पा रहे है कि स्वीडन काफी छोटा देश है और वहां कि अर्थव्यवस्था में विविधता भारत के जितनी नहीं है, फिर भी स्वीडन अभी तक पूरी कि पूरी तरह से कॅश लेस नहीं हुआ है, अतः मेरे विचार से स्वीडन से भारत जैसे विशाल एवं विविधता पूर्ण अर्थव्यवस्था वाले देश कि तुलना नहीं की जानी चाहिए..
आज के एडवांस तकनिकी युग में तमाम तरहों कि प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न करवाना तकनिकी रूप से संभव है, और दुश्मन देशों या जो देश उन माफियाओं के मुताबित संधियाँ नहीं करेंगे उनके ऊपर ये सब एक तरह से threat के जैसे ही होगा.
◆अब भारत कि स्थिति को ले लें तो अगर इसका दुश्मन देश चाहे या जिस देश में पार्टली हमारी बैंकिंग सिस्टम का सर्वर रखा होगा या जहाँ से संचालित होता रहेगा, उन देशों की शर्तों को हमें मानना पड़ेगा.
.जो कम्पनियां हमे इंटरनेट द्वारा कैशलेस होने की सुविधा देंगीं उनके सर्वर दूसरे देशों में होंगे और उन देशों की संधियां इतनी घातक होंगी कि भारत हमेशा के लिए उनका गुलाम हो सकता है। इन देशों एवं माफियाओं के एक हाथ में लड्डू एवं दुसरे हाथ में लाठी होती है, जिससे लाठी देखकर लड्डू के लालच में भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों को हारकर उनकी बात माननी ही पडती है.
जब तक हम अपने देश में ही इन सर्वर और इन कम्पनियों का निर्माण नहीं कर लेते (विदेशी निवेश से अछूत रहकर) तब तक हमे इस व्यवस्था से दूर रहना चाहिए और तब तक जनता की शिक्षा और कैशलेस के लिए जमाई जाने वाली स्वदेशी व्यवस्था का विकास करना चाहिए जैसे नेटवर्क सिस्टम सॅटॅलाइट सिस्टम अदि..
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◆ इसके साथ साथ, वे विदेशी माफियाएं ही आपके लिए तय करेंगी कि आपके कौन्कौं से कदम सरकार एवं उन माफियाओं के विरोध में हैं और कौन से नहीं हैं, इस तरह से आपके कार्ड एवं आपके बैंक से सम्बंधित धना को भी दंड-स्वरुप ब्लाक कर सकते हैं .
समय पड़ने पर क्या मालूम होगा कि मेरे जैसे सरकार विरोधी एवं माफिया-विरोधी लोगों को जरूरत पड़ने पार दवा इत्यादि भी मिलेगा या नहि .
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इसके साथ ही, प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक गड़बड़ी के वक्त भी ये कॅश-लेस सामाजिक व्यवस्था कार्य करना बंद कर देगा, जिससे माफियाओं के द्वारा संचालित किये जाने वाले दे्शों कि अर्थव्यवस्था को चौपट किया जा सके,
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★ समाधान ?
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निम्नलिखित प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली में जनता अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकते हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकते हैं अगर आप चाहते हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं.
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इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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★★★★ आप सबको यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली एवं सभी सरकारी पदों पर राईट-टू-रिकॉल के कानूनों को गजेट में प्रकाशित करवा कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने को लेकर अपने अपने सांसदों, विधायकों, प्रधानमंत्री को अपना एक जनतांत्रिक आदेश भेजकर उनपर नैतिक दबाव बनाना चाहिए.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
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◆ ★★★आप अपने नेताओं को अपना जनतांत्रिक आदेश इस तरह भेजें, जैसे की-
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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◆ अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे: www.nocorruption.in
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◆★★★ जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
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◆★★★ जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट, वेल्थ टैक्स, राईट-टू-रिकॉल एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
एवं अपने नेताओं को ऊपर बताए जा चुके तरीके से एक जनतांत्रिक आदेश भेजें.
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जय हिन्द.
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अधिक जानकारी के लिए देखिये- https://www.youtube.com/watch?v=pTPx_h_KQaA
अधिक जानकारी के लिए देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1192616490831338:0
Pic Received from a creative critic of the #DeMonetisationDisaster
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.