आर्थिक सबल एवं अत्याधुनिक तकनीक वाले देश, बैंकर्स माफिया अर्थात इल्लुमिनती का हथियार है, तीसरी दुनिया के देशों को नियंत्रित करने का !!
अधिकतर लोग, बैंकर्स को दुनिया का सबसे स्ट्रोंग माफिया समझते हैं, जिनके अंतर्गत एम् एन सी कंपनियां आतीं हैं, लेकिन कई बार लोगों को बताने के बावजूद कि बैंकर्स केवल स्ट्रोंग मिलिट्री वाले देशों को सपोर्ट करते हैं एवं अधिकतर इन्हीं देशों को विकसित देशों की श्रेणी में रखा गया है, ना की अन्य देशों के पास से अधिकतर चीज़ों को मांग मांग कर अपना विकास करने वाले देशों को विकसित माना गया है तथा दुनिया भर कि संधियाँ इन स्ट्रोंग मिलिट्री देशों के पक्ष में होतीं हैं,
ये मिलिट्री ही है, जिसके दम पर वे हमें उनके फायदे के लिए होने वाली शर्तों एवं संधियों को न मानने पर हमारे यहाँ युद्ध करवाती हैं, एवं आतंरिक कलह करवातीं हैं.
लोग हमारा विश्वास नहीं करते हैं. सामान्यतया लोग इन योजनाओं को कांस्पीरेसी थ्योरी का नाम देते हैं, लेकिन वे ये भूल जाते हैं, की इस संसार में सारे कार्यों को पूरा करने के लिए कुछ योजनाएं बनानी पड़तीं हैं, और जो लोग इन योजनाओं को अंशतः या पूर्णतः जानते हैं, वे इन्हें इस थ्योरी का नाम देते हैं.
इसी बात को यहाँ आप समझ सकते हैं और खुद अपनी खुली आँखों एवं खुले दिमाग से पढ़ सकते हैं, बंद दिमाग से पढियेगा तो भक्त के अलावा कुछ न बन सकिएगा .-
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इन देशों में अपने उद्योगों को मजबूत करने के लिए अच्छे क़ानून हैं, लोगों को त्वरित एवं सही न्याय दिलाने के लिए ज्यूरी व्यवस्था है, एवं अन्य चीज़ें हैं, जिससे वहां के लोग, अपनी सुरक्षा के लिए निश्चिन्त होकर कार्य कर सकें, जिससे उन देशों की क्षमता काफी बढ़ जाती है,
हमारे देश में तमाम अच्छे कहे जाने नेताओं के रहते हुए भी, भ्रष्ट कानूनों की वजह तो कुछ हद तक उपलब्ध साधनों में खुश रह लेने की अकर्मण्यता पूर्ण मानसिक स्थिति के चलते, हमारे देश की कार्य क्षमता नकारात्मक ही है.
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अतः सभी लोगों को इस देश में राईट-टू-रिकॉल, ज्यूरी व्यवस्था एवं नार्को टेस्ट तथा वेल्थ टैक्स जैसे कानूनों को लाने के लिए कार्य करना चाहिए.
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किसी क़ानून को लाने के लिए, संसद में चर्चा करवाए जाने की कोई आवश्यकता नहीं बल्कि गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून लाया जा संकता है,
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इसके साथ ही दुनिया की अधिकतम समाचार एजेंसी इनके ही हाथ की कठपुलियाँ हैं, जिसका उपयोग जनता की मानसिकता को अपने स्वार्थ के लिए नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, अधिकतर समाचार वास्तविक समाचार को सही न दिखाकर manipulated अर्थात तोड़-मरोड़कर कर अपनी स्वार्थ पूर्ती के हिसाब से आपके सामने पेश किया जाता है.
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अधिक जानकारी के लिए देखें- http://www.alternativenewsnetwork.net/cia-hundreds-of-agents-routinely-create-fake-news/
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इसके साथ ही दुनिया की अधिकतम समाचार एजेंसी इनके ही हाथ की कठपुलियाँ हैं, जिसका उपयोग जनता की मानसिकता को अपने स्वार्थ के लिए नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, अधिकतर समाचार वास्तविक समाचार को सही न दिखाकर manipulated अर्थात तोड़-मरोड़कर कर अपनी स्वार्थ पूर्ती के हिसाब से आपके सामने पेश किया जाता है.
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अधिक जानकारी के लिए देखें- http://www.alternativenewsnetwork.net/cia-hundreds-of-agents-routinely-create-fake-news/
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बाकी चर्चा करवाना तो नियमो में सुधार को टालने के लिए एक बहाना है .
http://theantimedia.org/forget-the-new-world-order/
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फ्रॉम- The New World Order should more accurately be called the Deep State.
(ANTIMEDIA) For decades, extreme ideologies on both the left and the right have clashed over the conspiratorial concept of a shadowy secret government often called the New World Order pulling the strings on the world’s heads of state and captains of industry.
The phrase New World Order is largely derided as a sophomoric conspiracy theory entertained by minds that lack the sophistication necessary to understand the nuances of geopolitics. But it turns out the core idea — one of deep and overarching collusion between Wall Street and government with a globalist agenda — is operational in what a number of insiders call the “Deep State.”
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A complex web of revolving doors between the military-industrial-complex, Wall Street, and Silicon Valley consolidates the interests of defense contractors, banksters, military campaigns, and both foreign and domestic surveillance intelligence.
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According to Mike Lofgren and many other insiders, this is not a conspiracy theory. The deep state hides in plain sight and goes far beyond the military-industrial complex President Dwight D. Eisenhower warned about in his farewell speech over fifty years ago.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.