भारत का इलेक्ट्रॉनिक-तकनीकी में अन्य देशों पर निर्भर रहने का, विमुद्रीकरण से होने वाले दूरगामी प्रभाव एवं समाधान

भारत में जीमेल, एंड्रॉइड आदि अमेरिका की गूगल के नियंत्रण में है, तथा फेसबुक भी अमेरिकी कंपनी है। इस तरह से हम डिजिटली पूरी तरह से अमेरिकी कंपनियों पर निर्भर है। और अब कैशलेस इकोनॉमी होने से हमारा पैसा भी गूगल के नियंत्रण में रहेगा। अतः अमेरिका भारत को यह कह कर धमका सकता है कि अमुक अमुक कानूनों को पास करो वर्ना हम अपनी कंपनियों से कह कर तुम्हे 24 घंटे में पाषाण युग में पहुंच देंगे। 
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एफडीआई से जो निवेश आता है वह निजी कंपनियों के माध्यम से आता है। अतः देश में जो निवेश आ रहा है वह निजी कंपनियों का है। इसका इस्तेमाल कंपनिया अपनी योजनाओ के अनुसार करती है। तथा लाभ में बने रहने के लिए अपनी योजनाओ के अनुसार सांसदों से क़ानून लागू करवाती है। इससे कंपनियों को एवं देशो को दोनों को फायदा होता है। कंपनियों को मौद्रिक लाभ होता है जबकि अमुक देश अपनी कंपनियों के माध्यम से अन्य देशो को धमकाने में इनका इस्तेमाल करते है।
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अधिक जानकारी के लिए देखें- http://ow.ly/Qf2J3078aga
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यदि इस देश नें दलों की बजाय मुद्दों को पकड़ा होता तो ये राजनीतिक दल इस देश को धोखा न दे पाते..
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◆★★★ kaanoon sudhaar ke liye dekhiye ्प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
एवं अपने नेताओं को एक जनतांत्रिक आदेश भेजें.
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हमारे पैसे हमारे अपने हैं। उन्हें हम नगद खर्च करें या ऑनलाइन - यह हमारी मर्ज़ी है। देश की सरकार को अगर कैशलेस ऑनलाइन व्यवस्था लागू करने की जल्दबाजी है तो बेहतर होगा कि वह इसकी शुरूआत ख़ुद से करके हमारे आगे उदाहरण उपस्थित करे। काले धन की गोद में पली-बढ़ी पार्टियां जब देश को सदाचार का पाठ पढ़ाती है तो गुस्सा तो आएगा ही।
हम भारत सरकार के कैशलेस लेन-देन के प्रस्ताव को तबतक के लिए खारिज करते हैं जबतक सरकार हमारी तीन मांगे नहीं मान लेती।
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★ पहली मांग यह कि सरकार क़ानून बनाकर यह सुनिश्चित करे कि भाजपा सहित तमाम राजनीतिक दल भविष्य में कैश में कोई चंदा स्वीकार नहीं करेंगे। उन्हें दिया जाने वाला कोई भी चंदा या दान सिर्फ चेक, डेबिट कार्ड या इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट के माध्यम से ही दिया जाए। जैसे हम आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं, हर पार्टी वित्तीय वर्ष के अंत में अपने आमद- खर्च का हिसाब अपने वेबसाइट पर ज़ारी करे। इनमें से किसी भी शर्त का उल्लंघन करने वाले दल की मान्यता ख़त्म करने का प्रावधान हो।
★दूसरी मांग यह कि देश के सभी दलों के राजनेता उड़नखटोले से घूम-घूमकर महंगी-महंगी रैलियों और जन सभाओं में अपनी बात रखने या चुनाव प्रचार करने के बजाय आम जनता से ऑनलाइन संपर्क ही करें। इसके लिए सरकार एक ऐसे टीवी चैनल की व्यवस्था करे जहां राजनीतिक दलों के लिए अपनी पार्टी का पक्ष रखने का समय निर्धारित हो। राजनेता अगर चाहें तो अपना भाषण रिकॉर्ड कर यूट्यूब या सोशल साइट्स पर डाल दे सकते हैं।
★तीसरी और अंतिम मांग यह है कि हैकिंग और कार्ड क्लोनिंग के इस दौर में सरकार या बैंक हमारे पैसों की सौ प्रतिशत सुरक्षा का ज़िम्मा ले। ऑनलाइन लेन-देन में जालसाजी होने पर हमारे पैसे ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह में जांच कर लौटाने की निश्चित व्यवस्था की जाय !
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जबतक ऐसा नहीं हो जाता, सरकार को हमें कैशलेस हो जाने का सुझाव देने का क्या कोई नैतिक अधिकार है ?
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जय हिन्द.



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