बीजेपी और कांग्रेस तथा सभी अन्य राजनैतिक पार्टियाँ मौसेरे भाई हैं. भाग-1

मनमोहन सिंह सरकार के दौरान रिजर्व बैंक की लिबरलाइज्ड रिमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत विदेश में धन भेजने की सीमा सिर्फ 75,000 डाॅलर हुआ करती थी. मोदी जी ने सत्ता में आने के एक हफ्ते के अंदर यानी 03 जून 2014 को यह सीमा बढाकर 1,25,000 डाॅलर कर दी.
https://rbi.org.in/scripts/NotificationUser.aspx
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इसके बाद पिछले साल 26 मई 2015 को दोबारा LRS की सीमा बढाकर 2,50,000 डाॅलर कर दी गई.
https://rbi.org.in/scripts/NotificationUser.aspx
यह फैसला हवाला कारोबार को कानूनी दर्जा देने जैसा था. इस फैसले के चलते जून 2015 से पिछले 11 महीने में 381 करोड़ 
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डाॅलर यानी करीब 26,500 करोड़ रुपए की रकम विदेशी खातों में ट्रांसफर कर दी गई.
http://indianexpress.com/…/1-billion-was-sent-overseas-for…/
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सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह कि ये मनी ट्रांसफर उस वक़्त भी जारी रहा जब RBI 500 और 1000 के नोट बंद करने की तैयारी कर रहा था. RBI के पास आज भी इस बात का स्पष्ट जवाब नहीं है कि अचानक इतनी बड़ी रकम लोगों ने किसलिए विदेशों खातों में ट्रान्सफर की.
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LRS के तहत लोगों को कानूनी रूप से यह अधिकार है कि वे विदेश में रह रहे अपने किसी रिश्तेदार को जीवन यापन अथवा उपहार स्वरूप धन भेज सकते है. इसी कानून के तहत लोगों को विदेश में संपत्ति खरीदने या निवेश के लिए भी धन भेजने की सुविधा मिलती है.

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उपरोक्त आंकड़े जानने के बाद संदेह होता है कि जिस काले धन के बैंक में आने के नाम पर गरीब एवं मध्यम वर्ग को लंबी कतार में लगाया जा रहा है वो कहीं इससे पहले ही विदेश में स्थानांतरित तो नहीं किया जा चुका है? और अब सिर्फ जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है?

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'पार्टी पोलिटिक्स'
धारावारिक स्तम्भ : भाग-1
यदि आप कोई राजनेतिक पार्टी या राजनेतिक पृकृति के सामाजिक संघठन को चला रहे है या पूर्ण/अंश कालिक राज नेता है, तो ये स्तम्भ आपके काम का हो सकता है ।
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संघठन के कई प्रकार हो सकते है, लेकिन राजनेतिक संघठन सबसे महत्त्वपूर्ण होते है, क्योंकि इनकी सफलता आपको राज्य या देश का भाग्य विधाता बना देती है ।
अमूमन पार्टी का जनाधार बढाने और उसे बनाए रखने के कुछ सामान्य सिद्धांत होते है, जिनके विधिवत पालन करने से पार्टी का पालन पोषण बेहतर तरीके से होता है ।
हम इस धारावारिक स्तम्भ में उन दर्ज़न भर सिद्धांतो के बारे में चर्चा करेंगे जिनकी सहायता से पार्टी को संचालित किया जाता है ।
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1. मुद्दे - मुद्दे पार्टी की रीढ़ होते है । इनका चयन सावधानी से करे । मूलत: मुद्दे 3 प्रकार के होते है, बेसिक मुद्दे, मौसमी मुद्दे और सदाबहार मुद्दे ।किसी भी पार्टी में कार्यकर्ताओं को जोड़ने और जोड़े रखने के लिए बेसिक मुद्दों की बड़ी भूमिका होती है । यही वो फेविकोल है जो कार्यकर्ताओं को पार्टी से चिपकाये रखता है ।
अ. बेसिक मुद्दे - ये पार्टी की जान होते है । जिस दिन किसी पार्टी के बेसिक मुद्दे हल हो जाते है उस दिन पार्टी की ज़रूरत ख़त्म हो जाती है, इसलिए बेसिक मुद्दों को कभी हल न करे और न किसी दूसरी पार्टी को हल करने देवें ।
बेहतर यही होगा की सभी पार्टिया आपस में मुद्दे बाँट ले तथा एक दुसरे के मुद्दों में हस्तक्षेप न करे ।
बेसिक मुद्दों के लिए लड़ने का अभिनय करे तथा इस तरीके का ड्रामा स्टेज करे ताकि जनता को वाकई लगे कि पार्टी मुद्दों के हल को लेकर 'सीरियस' है ।
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कुछ बेसिक मुद्दों के उदाहरण :
बीजेपी - राम जन्म भूमि, कृष्ण जन्म भूमि, काशी विश्वनाथ देवालय, समान नागरिक संहिता, धारा 370, स्वदेशी , हिन्दू राष्ट्र, अखंड भारत के सपने आदि आदि ।
कोंग्रेस - गरीबी , भुखमरी, सेकुलरिस्म, भ्रष्टाचार*, गांधी परिवार और उनकी शहादत आदि आदि ।
*यह मुद्दा पहले कोंग्रेस के पास था पर मुद्दे की 'मिस हेंडलिंग' की वजह से हाथ से निकल गया ।
आम आदमी पार्टी - लोकपाल, भ्रष्टाचार, आम आदमी वाद, भ्रष्टाचार लोकपाल भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार, गांधीवाद भगत सिंह वाद (दोनों साथ में ), सिस्टम बदलना है आदि आदि ।
सपा - समाजवाद, लोहिया वाद, सेकुलरिस्म, सेकुलर समाजवाद , कभी कभी पिछड़ा वाद मतलब यादववाद ।
बसपा - दलित, महादलित, कभी कभी ब्राह्मण, फिर दलित और महादलित ।
लेफ्ट - गरीबी, साम्यवाद ।
डीएमके और एआईडीएमके - तमिलवाद ।
तृणमूल कोंग्रेस - गरीबी, सेकुलरिज्म ।
जनता दल यूनाइटेड व राष्ट्रीय जनता दल - सुशासन, लोहिया वाद, सेकुलरिज्म, पिछड़ा वाद ।
अन्य पार्टिया इसलिए उल्लेखनीय नही है, क्योंकि वे पार्टियां बेसिक मुद्दे को 'प्लांट' करने में नाकाम रही, अत: वे सिकुड़ती जा रही है ।
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जब किसी मुद्दे का ध्यान आते ही सम्बंधित पार्टी की छवी दिमाग में आ जाती है, तो कहा जा सकता है कि अमुक पार्टी ने उस मुद्दे पर कब्ज़ा कर लिया है । उदाहरण के लिए यदि हम धारा 370 या भ्रष्टाचार शब्द सुने तो आपको बरबस ही क्रमश: बीजेपी और आम आदमी पार्टी की याद हो आएगी ।
इस उपलब्धि को पाए बिना पार्टी खड़ी नही की जा सकती, और इस परिस्थिति को लगातार बनाए रखना पड़ता है, ताकि रंग गाढ़ा होता चले ।
इस हेतु पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को निम्नलिखित गतिविधियों में सतत रूप से संलग्न रहना चाहिए :
- जब भी आपके मुहँ के सामने माईक आ जाए या श्रोताओं की भीड़ हो, तो इन मुद्दों और सम्बंधित शब्दों का इफरात से इस्तेमाल करे । प्रसंग के चक्कर में कभी न पड़े, विषय कोई भी हो और सवाल कुछ भी पूछा जाए, घुमा फिरा कर बात को अपने बेसिक मुद्दों से जोड़ दे ।
- इन मुद्दों पर खूबसूरत नारे गढ़े, तथा अखबारों, पोस्टरों और विज्ञापनों में चलाये । ध्यान रहे कि भावुक कार्यकर्ता नारों से आकर्षित होते है, तथा नारे लगाने से उन्हें यह भ्रम बना रहता है कि वे वाकई इस समस्या के समाधान पर कार्य कर रहे है ।
- कार्यकर्ताओं को मीटिंगो और रेलियो में बुलाकर उन्हें सेद्धान्तिक लेक्चर देते रहे और मालाए ,साफे , पगड़ियाँ आदि पहनाने और पहनने में व्यस्त रखे । कार्यकारिणीयां बनाते रहे और छोटे नेताओं के फोटो वगेरह शहरो के चोराहो और समय समय पर अखबारों में छपवाते रहे । इस से कार्यकर्ता 'खुश' रहते है और संघठन के लिए कुछ भी करने को तैयार बने रहते है ।
- महीने दो महीने में कार्यकर्ताओं को 'इकठ्ठा' कर के भोजन परसाद वगेरह के आयोजन करते रहे , इस से कार्यकर्ताओं का मनोरंजन होता है तथा एकता बनी रहती है ।
- कार्यकर्ताओं को रसीद बुक्स पकड़ा कर नए मेंबर बनाने को कहेे
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* ध्यान रहे यह सब गतिविधियों का मूल उद्देश्य कार्यकर्ताओं का टाइम पास करना है, ताकि कार्यकर्ताओं का ध्यान समस्याओं के वास्तविक समाधान की और न जाए वरना वे खाली टाइम में इधर उधर तांक झाँक करेंगे और उन संघ्ठनो तक पहुँच जायेंगे जो कि वास्तविक समाधानों पर कार्य कर रहे है ।
इसलिए यदि फिर भी कार्यकर्ताओं के पास समय ज्यादा बच रहा हो तो उनके टाइम को खपाने के लिए निम्नलिखित तरीको का इस्तेमाल करे :
- खून दान करने, गायो को चारा खिलाने, पेड़ पौधे लगवाने प्याऊ खुलवाने टाइप के चिल्लर कार्यो में फंसा देवे ।
- महापुरषो की जयंतियो पर पैदल या वाहन रेलियाँ निकलवाये या विचार गोष्ठिया आयोजित करवा दें ।
फिर भी यदि उनमे उर्जा बच रही हो तो :
- होशियार और पढ़े लिखे कार्यकर्ताओं को सोशल मिडिया में उलझा ले, नेताओं की प्रशंषा में लम्बे लम्बे पोस्ट भेजे, ये पोस्ट उनका बचा खुचा टाइम चूस लेंगे और वे जरूरी सूचनाये पढने से वंचित रह जायेंगे ।
- विपक्षी दलों के खिलाफ ज्ञापन देना, प्रदर्शन करना, रास्ते रुकवाना, धरने आदि करवाना, पुतले फूंकवाना आदि में फंसा देवे ।
- इन सब गोरख धंधो के दौरान यदि किसी कार्यकर्ता को चोट लग जाती है या जेल हो जाती है तो, एक छोटा मोटा आयोजन करके नेता जी से उन्हें प्रशस्ति पत्र दिलवाकर उनके फोटो खिंचवा दे । हो सके तो अखबार में भी छपवा देवें ।
इस प्रकार इन अनुत्पादक कार्यो में कार्यकर्ताओं को लगाए रहे तथा अपने संघठन में सदस्य संख्या बढाते रहे ।
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¶ सावधानी :
यह सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है कि संगठन से कार्यकर्ताओं को गोंद की तरह चिपकाए रहने के लिए यह ज़रूरी है कि कार्यकर्ताओं तक निम्नलिखित जानकारी किसी भी सूरत में नही पहुंचे ।
- यह कि हर मुद्दा एक समस्या है, और हर समस्या का समाधान क़ानून है ।
- यह कि शाशन की मशीन कानूनों से चलती है, नारों और बयानों से नही ।
- यह कि यदि कोई संघठन किसी समस्या पर 24×7 घंटे बात कर रहा है लेकिन समाधान की बात नही कर रहा तो, वह संघठन समस्या से प्यार करता है समाधान से नही ।
- यह कि यदि किसी समस्या का समाधान कानूनी ड्राफ्ट के रूप में नही है , तो वह समाधान ही नही है ।
- यह कि यदि समाधान का वादा हो, तो लिखित कानूनी ड्राफ्ट के रूप में होना चाहिए । मौखिक नारों के रूप में नही ।
यदि यह कीमती जानकारी कार्यकर्ताओ तक पहुँच जाती है तो पार्टी को निम्नलिखित संकट का सामना करना पड़ सकता है ।
- जिस समस्या पर आप पार्टी खड़ी करके बैठे है, कार्यकर्ता उस समस्या के समाधान का कानूनी ड्राफ्ट मांगेगे ।
आप ड्राफ्ट नही देंगे तो आप एक्सपोज़ हो जायेंगे और देंगे तो पार्टी को निम्नलिखित साइड इफेक्ट्स का सामना करना पड़ेगा ।
- कानूनी ड्राफ्ट स्पष्ट और सुपरिभाषीत , लिखित वादा होता है, इसलिए उस मुद्दे पर मौका देख कर U और M टर्न लेने की आपकी कला व्यर्थ हो जायेगी ।
- लिखित ड्राफ्ट का प्रचार होने से आप मुद्दे को 'नियंत्रित' करने की क्षमता खो देंगे और ड्राफ्ट के प्रति बाईंड हो जायेंगे ।
- आपने कमज़ोर ड्राफ्ट दिया तो आप एक्स्पोस हो जायेंगे ।
- सत्ता में आने के बाद आपको तैयार पडे ड्राफ्ट को क़ानून बनाना पड़ेगा और आपको कमेटी वगेरह बना कर टाइम पास करने का मौका नही मिलेगा ।
- यदि आप क़ानून पास कर देते है तो आपका बेसिक मुद्दा हल हो
जाएगा और पार्टी की प्रासंगिकता ख़त्म हो जायेगी ।
- यदि आप विपक्ष में रहते हुए अच्छा कानूनी ड्राफ्ट देते है, और वह ड्राफ्ट पॉपुलर हो जाता है तो सत्ता पक्ष उस ड्राफ्ट को पास कर देगा, और आपके हिस्से कुछ नही बचेगा ।
एक उदाहरण से समझते है - मान लीजिये की कोंग्रेस कहती है कि हम सत्ता में आये तो गरीबी दूर करेंगे । और गरीबी दूर करने का कानूनी ड्राफ्ट देती है । ड्राफ्ट पॉपुलर हो जाता है और नमो उस ड्राफ्ट को गेजेट में छाप कर क़ानून बना देते है । तो अब कोंग्रेस सत्ता में आने के लिए क्या बोलेगी ? उसके मुद्दे का हल तो हो चुका है ।
लब्बेलुआब यह कि किसी भी संघठन को इस पर कड़ी नज़र बना कर् रखनी चाहिए कि कानूनी ड्राफ्ट्स की जानकारी उसके कार्यकर्ताओं तक नही पहुंचे ।
वरना लेने के देने पड़ सकते है ।
कार्यकर्ता बेफिजूल की हरकतों में अपने आप को व्यस्त रखे, टोपी पहने, झंडे उठाये, नारे लगाए और नये मेंबर बनाए । यही संघठन के हित में है ।
अगले अंक में हम दो अन्य मुद्दों, मौसमी मुद्दे और लोकलुभावन मुद्दों पर तब्सरा करेंगे ।
प्रजा अधीन राजा @ p
 Ishwar Choudhary Rrg
17 दिसंबर 2015 

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