स्कर्ट दोष


मंदिरों में ‘स्कर्ट दोष’ के शिकार सभी लोगों को भी आगंतुकों की संस्कृति का ख्याल रखना चाहिए !!
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भारत में बहुत बड़ी तादाद में विदेशी महिलाएँ आ रही हैं। एक यूनियन-मिन्सिटर द्वारा उनको कहा गया है कि वे भारत के मंदिरों में भारतीय भावना का ख़्याल रखें. अपने लिए न सही लेकिन, भारतीय भावना के लिए ठीक से सजें. 
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वैसे महिलाओं के बारे में ऐसे घृणित बयान देने वाले मंत्रियों को उनके पदों से निकाल बाहर फेंकना चाहिए. जिनके विचार ही घृणा का पदर्शन करते हों, उनसे भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के लिए उचित समाधान दिखाए जाने की क्या उम्मीद की जा सकती है?
सबको www.TinyURL..com/RTRMinister के ड्राफ्ट को राष्ट्रीय राजपत्र में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का मांग करना चाहिए.
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वैसे, क्या मंत्री जी द्वारा प्रदर्शित की गयी भावना क्या वाकई में आम तौर पर धार्मिक स्थलों के परिसरों में होती है? ये लोग वहां भी अपने नज़रों द्वारा हम महिलाओं के ध्यान एवं पूजा करने को भी असहज कर देते हैं, साथ ही पंडो द्वारा 
भी हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा महिलाओं द्वारा किये जाने को लेकर देश के अलग अलग मंदिरों के पण्डे एवं स्व-घोषित पुजारी एवं अन्य बूढ़े लोग अपनी ही तरफ से क़ानून बनाए रहते हैं, जो महिलाओं द्वारा वहां पूजा किये जाने को असहज बना देते हैं. ऐसे मामलों में हिन्दू धर्म भी इस्लामिक-हिंदुत्व का प्रदर्शन करता है, जहाँ के भगवान महिलाओं द्वारा पूजा को अगर पंडो द्वारा बताये विधियों एवं रूकावटों के साथ न करें तो ऐसे हिन्दुओं के भगवान हम महिलाओं की पूजा को स्वीकार ही नहीं करेंगे.
क्या हिन्दू के देवी-देवता इन्ही पंडो-बिद्धो-पुरुषों का कहा मानते हैं?
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खैर...जो भी है, उपरोक्त कारणों से मंदिर जाना मेरे जैसे भक्तों का बंद हो गया है. वैसे भी हिन्दु०देव०द्व्ताओन की जरूरत आज भक्तों से अधिक इन्ही पंडो-पुजारियों-पुरुषों को ज्यादा है.
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इनकी ऐसे भावनाएं मंदिरों तक ही नहीं, हर उस जगह पर होतीं हैंजहाँ कोई महिलाउपस्थित होती है.
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मुझे नहीं मालूम था कि हिन्दुओ के धार्मिक स्थलों में भी मर्दों की भावना असभ्यता एवं पाशविक प्रवृत्ति को प्रदर्शित करने को उद्दत रहती है, मुझे तो यही लगता था कि हिन्दू मंदिरों में हिन्दू मर्दों की भावना को अपनी भक्ति से मतलब रहता होगा एवं अपने देवी-देवताओं एवं अन्य धार्मिक मुद्दों का ध्यान रहता होगा.
मुझे अब तक यही लगता था कि हिन्दू धार्मिक स्थल पर किसी की नज़र ही नहीं पडती होगी कि कोई स्कर्ट में है या..सारी में या लंगोट में? 
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ध्यान के अलावा किसे ध्यान होता होगा कि बाक़ी ने क्या पहना है, क्या नहीं।
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विदेशी महिलाओं की तो बात ही छोड़ दें, हिन्दू की संस्कृति भी कुछ न कुछ मुद्दों पर फतवा-वादी ही है, एवं हिन्दुओं की मुख्य-धारा में एक तरह से इस्लामिक-हिंदुत्व की नयी धारा को भी प्रदर्शित करती है.
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अब जब महिलाएँ पुरुषों द्वारा बनायी गयी धर्म की परिभाषा एवं संस्कृति का ख़्याल रख सकती हैं तो मर्दों को भी हम महिलाओं की संस्कृति का ख़्याल रखना ही चाहिए। 
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मर्दों को भी महिलाओं के सामने दिन दहाड़े लुंगी, गंजी और लंगोट और टाइट इलास्टिक वाले अंडरवियर पहनकर नहीं घूमना चाहिए। 
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वे चाहें तो रात में इन सब में से कोई एक पहनकर घूम सकते हैं क्योंकि रात में तो क्या, शाम ढलते ही ठंढी हवा में मात्र टहलने के लिए महिला यहाँ के अधिकतर जगहों पर स्वतन्त्रता पूर्वक नहीं घूम सकती, मगर तगड़ी धूप में अकेली निकल सकती हैं। अजीब संस्कृति है यहाँ की. अकेले या अपने दोस्त या पति के साथ। 
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इसलिए पूरे दिन में आप मर्द जात, बुशर्ट या टी शर्ट पहनकर ही बाहर निकलें। फुलपैंट या केप्री पहनें। बेपर्दा रहना ठीक नहीं है।
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लुंगी और लक्स कोज़ी पहनने वाले मर्दों से अपील है कि वे धार्मिक स्थलों पर अच्छा और पूरा पहनकर जायें। पुजारी भी ऊपरी हिस्से को नग्न न रखें। अगर विदेशी पर्यटक महिलाओं ने देख लिया कि ये लोग ख़ुद ही कम कपड़ों में या बग़ैर कपड़ों के हैं तो उन्हें सदमा लग सकता है। आरोप लगा सकती हैं कि सरकार भेदभाव कर रही है। हम कुछ जगहों पर जेंडर आधारित भेदभाव में यक़ीन नहीं रखते हैं। लुंगी पहनें भी तो लुंगी की तरह पहनें। स्कर्ट न बनायें।
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हम एयरपोर्ट पर विदेशी महिला से स्कर्ट ले लेंगे। बदले में उन्हें राजू लेडीज़ टेलर वाली दो जोड़ी सलवार क़मीज़ दे देंगे। 
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मर्दों को अपने ख़र्चे पर फुलपैंट का इंतज़ाम करना होगा। संघ ने तो पहले ही से आपकी बातों का लिहाज़ कर हाफ पैंट त्याग दिया है। उनका यह लॉजिक मुझे पसंद आयाै। 
जब विदेशी संस्कृति के कपड़ों को ही अपनाना है तो हाफ क्यों, फुल क्यों नहीं। मुझे नहीं मालूम हाफ पैंट भारतीय खोज है या किसी ने हमारी खोज धोती से हाफ पैंट बना डाला था। संघ की आलोचना हुई कि बेतरतीब सिले हाफ पैंट में शालीनता की कुछ कमी प्रतीत होती है तो संघ ने तुरंत ही बात मान ली। हाफ पैंट की जगह फुलपैंट आ गया। संघ ने यह त्याग भारतीय संस्कृति के अपर्यटकों के लिए किया है। 
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क्या आप महिलाओं के लिए लुंगी छोड़ फुलपैंट नहीं पहन सकते? वैसे फुलपैंट की जगह भारतीय संस्कृति वाली धोती भी ठीक रहती।
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क्या मर्द-जाति केवल अपनी मूर्खता सिर्फ औरतों पर ही लादने के लिए मशहूर है?
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आपने ख़ुद के ऊपर भी तमाम मूर्खताएं थोपी हैं। बकलोलपन मर्दों का गहना है। मर्द अपनी रक्षा भले न कर पायें लेकिन औरतों के पहरेदार बने फिरते हैं। फिर भी रात को आपकी वजह से कोई न निकले तो आप भी दिन में उनकी वजह से न निकलें। भारतीय मर्द ‘स्कर्ट दोष’ के शिकार हैं। ख़ासकर छोटे शहरों के मर्द ‘स्कर्ट दोष’ के कारण अपराध कर बैठते हैं। अगर स्कर्ट न होती तो भारतीय मर्दों की शालीनता ही देखने लाखों महिलाएँ जर्मनी न जापान से आ जातीं। स्कर्ट ने मर्दों को निकम्मा कर दिया वर्ना ग़ालिब जी थे ये बड़े काम के।
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भारत फ़िजी नहीं है जहाँ औरत और मर्द सुलु नाम की स्कर्ट पहनते हैं। जैसे हमारे पूर्वोत्तर की महिलाएँ पहनती हैं। भूटन वाले पड़ोसी भी स्कर्ट जैसा पहनते हैं। अगर भारतीय मर्द स्कर्ट से इतने आतंकित और पतित हैं,तो वे फ़िजी से सुलु मँगा कर पहन सकते हैं। स्कर्ट के ऊपर भी टाई और कोट पहन सकते हैं। तमाम छोटे शहरों में लड़कियाँ स्कर्ट पहनकर ही स्कूल जाती हैं मगर वहाँ पर विदेशों से कोई महिला स्कर्ट पहनकर नहीं आ सकती। बड़े शहरों की बात ही कुछ और होती है। वहाँ के मर्द छोटे कपड़ों पर ध्यान ही नहीं देते।
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हम अतिथि देवो भव: में यक़ीन करने वाले लोग हैं लेकिन भारत में हम लोग जिन देवी देवताओं के अतिथि हैं, उनका भी तो ख़्याल रखना है। हम इन बाहरी देव देवियों को कुछ भी पहनने की छूट नहीं दे सकते। इसलिए जो बाहरी देव हैं उनसे उम्मीद की जाती है कि ख़ुद को अतिथि से ज़्यादा न समझें। हम अतिथि का सत्कार ही नहीं करते, उन्हें सलवार भी दे सकते हैं । मल्लब पहनने की सलाह देते हैं।
वैसे हर बात को गंभीरता से न लिया करें। किसी ने कह दिया तो कह दिया। सफाई भी तो दे दी है। वैसे आगरा में हर साल करीब साठ लाख देसी विदेशी पर्यटक आते हैं। इनमें से साढें पाँच लाख विदेशी इस साल आए हैं। आगरा में पर्यटकों के लिए अलग से एक थाना है। 2007 में यह थाना बन गया था। जिस देश में जहाँ साठ साल में कुछ नहीं हुआ, वहाँ आगरा में नौ साल से पर्यटक थाना चल रहा है। वहाँ दर्ज शिकायतों के अनुसार इस साल जनवरी से लेकर अब तक थाने में सिर्फ चौदह एफ आई आर दर्ज हुई हैं। छह विदेशी पर्यटकों ने दर्ज कराई हैं और आठ देसी। 
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इनमें से ज़्यादातर मोबाइल लूटने की घटना है। कई मामलों में मोबाइल की बरामदगी हो गई है और गिरफ़्तारी भी। सिर्फ दो मामले विदेशी महिला पर्यटकों के साथ छेड़खानी के हैं। दोनों ही मामले में गिरफ़्तारी हुई है। साठ लाख पर्यटक जहाँ आते हों, वहाँ के हिसाब से यह रिकार्ड शानदार है। कई साल से बलात्कार की कोई घटना नहीं है। इसके लिए आगरा के लोगों को बधाई। पुलिस को भी। पर्यटक का ख़्याल रखें। इसलिए नहीं कि वे देव हैं। बल्कि इसलिए कि वे इंसान हैं।
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वैसे जिन देशों को अतिथियों को देव कहने का यह फ़ार्मूला नहीं मालूम है सबसे अधिक पर्यटक वहीं जाते हैं। फ्रांस, अमरीका, इटली, स्पेन मैक्सिको। भारत उन दस देशों में नहीं है जहाँ दुनिया में सबसे अधिक पर्यटक जानते हैं। इसलिए अतिथि देवों भव को ज़रूरत से ज़्यादा न घिसें। पता नहीं कौन कहाँ से क्या कुकर्म किये आ रहा है और हम सिर्फ अतिथि के नाम पर उसे देव बनाए जा रहे हैं।

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