बिहार में एवं अन्य पीड़ित राज्यों में शिक्षा की हकीकत एवं समाधान:-

बिहार में एवं अन्य पीड़ित राज्यों में शिक्षा की हकीकत एवं समाधान:-
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मित्रों, आप सबने शिक्षक दिवस तो खूब मनाया होगा, क्योंकि हम सब आज जिस भी स्थिति में हैं उसमेकुछ न कुछ तो हमारे शिक्षकों की भूमिका रही ही है, लेकिन शिक्षा क्षेत्र में जिस तरह से बिहार को पूरे देश में बदनाम किया जा रहा है, एवं बिहारियों को जिस तरह से अन्य राज्यों में बदनाम किया जा रहा है, उसके लिए बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ साथ हमारे पूरे देश की विदेश-नियंत्रित मीडिया का काफी बड़ा हाथ है, जो सरकारों से अपनी बात मनवाने के लिए अपनी ही तरह से कुशासनों को बदनाम कुछ इस तरह से करती है, जैसे की अन्य राज्यों की शिक्षा वयवस्था पूरी तरह से इमानदार है?
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अगर शिक्षा व्यवस्था एवं अन्य क्षेत्रों में व्याप्त सरकारी अपंगता को हटा दिया जाए तो इस देश में किसी भी प्रकार की विदेशी निवेश की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस देश के इतनी बड़ी जनसँख्या ही इसकी शक्ति है. अतः आप अपनी शक्ति को पहचाने.
आरोप प्रत्यारोप से किसी भी राज्य की प्रशासनिक कुव्यवस्था का जनहित में सुव्यवस्था परिवर्तन नहीं होता, क्यूंकि किस भी देश में प्रशासनिक व्यवस्था का निर्धारण वहां के कानूनों एवं नीतियों से किया जाता है, ना कि समाचारों द्वारा, जैसा की इस देश के भ्रष्ट व्यवस्था में हुआ करता है.
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बिहार में नीतीश बाबू के नाम पर सुशासन का प्रचार तो खूब किया जाता है पर बिहार की जमीनी हकीकत ठीक इस प्रचार के विपरीत है.
आईए बात की जाए सुशासन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू शिक्षा की. बिहार में प्राथमिक एवं माध्यमिक एवं अन्य स्टारों पर शिक्षा की दिशा और दशा दोनों ठीक नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि बिहार सरकार ने वार्षिक बजट का करीब 20 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च के लिए रखा है एवं शिक्षा व्यवस्था की बदहाली के बावजूद सन १९५१ से लेकर सन २०११ तक यहाँ की साक्षरता दर में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है.
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वैसे शिक्षा व्यवस्था में देखा जाए तो अन्य उद्योगों की तरह अपनी रुकी हुई सैलरी को लेकर बात करने कोई जिला शिक्षा अधिकारी के ऑफिस जाए तो उसे उस दिन एक दिन की छुट्टी लगानी पड़ती है, जबकि अन्य उद्योगों में ऐसा कम ही होता है, इसके साथ ही बिहार में न तो विद्यालयों की पर दस हजार पर उचित संख्या में विद्यालय-महाविद्यालय हैं, और जितने भी हैं, उनमे हर विषय के शिक्षक तक नहीं हैं.जितने भी हैं उनमे से स्थायी शिक्षकों की सैलरी चार-पांच महीनो में सरकार एक बार देती है, जैसे की शिक्षकों की मेहनत सरकार के लिए कोई मायने नहीं रखती, जबकि शिक्षकों के ऊपर पढाई के अलावा बिहार की सरकारी व्यवस्था हर तरह के काम करवाती है.
नियोजित शिक्षकों का वेतन तो वहां के चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों से भी कम निर्धारित है, एवं वो भी साल में भूल से एक बार मिल जाया करती है.
महाविद्यालयों में भी यही स्थिति है, वहां तो लैब की समुचित व्यवस्था के लिए विद्यार्थियों को अपने शिक्षा के दिनों से ही हड़ताल इत्यादी करने पड़ते हैं.
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मिड डे मील एवं साईकिल मिलने जैसी सरकारी लालचों के बावजूद बच्चे विद्यालाओं से इस लिए भाग आते हैं क्यूंकि वहां पढाई से शिक्षकों को कोई मतलब नहीं होता. उन्हें समय से वेतन मिलना तो दूर, जीवन में एक अदद प्रमोशन की भी कोई गुंजाइश नहीं रहती, क्यूंकि वे शिक्षक हैं.
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खैर...विस्तार में ये रिपोर्ट इस लेख के अंतिम भाग में पढ़ें, अभी समाधान की तरफ ध्यान दें.
शिक्षकों एवं उनसे पढ़ चुके विद्यार्थियों का ये कर्तव्य बनता है कि विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं शिक्षकों की बदहाली दूर कर वहां व्याप्त भ्रष्ट प्रशानिक व्यवस्था के लिए जनता द्वारा लगाम कसी जाए, और मुझे विश्वास है कि ये कार्य वहां की जनता एवं अन्य पीड़ित प्रदेशों की जनता अवश्य करेगी.
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सबसे पहले तो आप ये ध्यानदें, कि आप अपने आस पास पड़ी दुर्व्यवस्था की जो भी शिकायत अपने आस पास करते हैं, उससे सरकारों को इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे समझते हैं, कि आप असंगठित हैं, एवं आपमें अपनी शिकायतों को ऐसी किसी संसाधान पर उन्हें सार्वजनिक करने का कोई संसाधन नहीं है, क्यूंकि आप अपनी शिकायतों का एफिडेविट करवाकर माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर नहीं रख सकते, जिसे अन्य नागरिक भी बिना लॉग-इन किये ही उन सब शिकायतों को देख सकें एवं उसपर अपने प्रस्तावित सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव रख सकें. इस वेबसाइट की एक डेमो के लिए smstoneta.com वेबसाइट में देख सकते हैं, जिसमे कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं. यह डिमांड सांविधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
पब्लिक एस.एम.एस सर्वर का क्या स्वरूप हो सकता है ? https://goo.gl/41HTRF
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इस प्रणाली को पारदर्शी शिकायत प्रणाली बोलते हैं. इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं-rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
इसे राज्य एवं राष्ट्र के गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने के लिए आप अपने सांसदों/विधायकों को sms/ईमेल/ट्विटर एवं माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट तथा ट्विटर पर भी अपना मात्र एक सांवैधानिक आदेश भेजें.
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आप ये आदेश इस तरह से लिखें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP को भारत एवं बिहार राज्य के राजपत्र में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz
धन्यवाद "
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अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे: www.nocorruption.in
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इसके साथ साथ जिला शिखा अधिकारी के भ्रष्ट एवं पीड़ादायी आचारण के कारण उन्हें हटाने एवं इस डर से भविष्य के सभी शिक्षा एवं उनके ऊपर के अधिकारियों मंत्रियों के द्वारा जनता के प्रति इमानदारी पूर्ण आचरण को सुनिश्चित करने के लिए आपको http://www.tinyurl.com/RTRDeo
राईट टू रिकॉल दूरदर्शन अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/811073719010866
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राईट टू रिकॉल मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/811071415677763
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राइट-टू-रिकॉल विधायक के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/813343768783861
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राइट-टू-रिकॉल जिला प्रधान जज के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/826540930797478
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राइट टू रिकॉल महापौर का प्रस्तावित क़ानून-ड्रॉफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/844000699051501
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राईट टू रिकॉल सांसद के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/860633484054889
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राईट टू रिकॉल मंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/853974814720756
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राईट टू रिकाल जिला पुलिस प्रमुख के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/867725646679006
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के कानूनों को गजेट में प्रकाशित करवाकर इन्हें तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिया जा सकता है. इसके लिए आप सबको एकजुट होकर मात्र एक सन्देश अपने नेताओं को भेजना है.
सभी आदेश उपरोक्त प्रकार से भेजें.
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इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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इस सम्बन्ध में और भी जानकारी चाहते हों तो यहाँ देखें-www.righttorecall.info/301.htm
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लेख का अंतिम भाग-
बिहार के शिक्षा की बदहाली की स्थिति
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माध्यमिक शिक्षा की बदहाल स्थिति को तो खुद बिहार सरकार के आँकड़े साबित करते हैं. आँकड़ों के अनुसार 5500 ग्राम पंचायतों में अब भी एक भी माध्यमिक स्कूल नहीं है। राज्य में 8400 से अधिक ग्राम पंचायत है, जिनमें से 5500 में एक भी माध्यमिक स्कूल (सेकेंडरी) नहीं है। यानि कि 65 प्रतिशत से भी ज्यादा पंचायतों में एक भी माध्यमिक स्कूल नहीं है।
जबकि केन्द्र सरकार सर्वशिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के तहत हजारों करोड़ रुपये राज्यों को मुहैया कराती है। आरएमएसए के तहत 949 मध्य विद्यालयों को उन्नत किया जाना है। केंद्र ने आरएमएसए के तहत पांच किलोमीटर की परिधि में कम से कम एक माध्यमिक स्कूल खोलने का लक्ष्य रखा है।बिहार इन लक्ष्यों की प्राप्ति से कोसों दूर है l
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बिहार के अधिकतर गाँवों में प्राथमिक शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं खोजे नहीं मिलती हैं और अगर प्राथमिक शिक्षा का साधन उपल्ब्ध है भी तो वो केवल दिखावे के लिए ही है l प्राथमिक शिक्षा की इस दयनीय स्थिति के बारे में ग्रामीण इलाकों के लोग कहते हैं कि “ सरकार चाहे किसी की भी हो, लालू-राबड़ी की या नीतिश कुमार की , किसी ने भी प्राथमिक शिक्षा की स्थिति सुधारने की तरफ ध्यान नहीं दिया। हमें अब किसी सरकार से कोई उम्मीद नहीं है कि कोई इधर ध्यान देगा ! हमारे यहाँ सही मायनों में प्राथमिक शिक्षा नाम की कोई चीज नहीं है। इसीलिए हमारे बच्चे अभी भी मजदूरी करने या गाय-गोरू चराने के लिए विवश हैं प्राथमिक शिक्षा की तरफ सरकार की ओर से ध्यान दिया जाता तो हालात कुछ अलग होते । “
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बिहार के ज्यादातर इलाकों , विशेषकर ग्रामीण इलाकों , में अशिक्षा का साम्राज्य फैला हुआ है l बिहार में अधिकतर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की संरचनाएँ अपनी बदहाली की व्यथा बयां कर रही हैं। पटना , गया , जहानाबाद और अरवल जिले के लगभग 30 गाँवों के भ्रमण , प्राथमिक / माध्यमिक शिक्षा के संरचनाओं के अवलोकन व ग्रामीणों से साक्षात्कार के पश्चात एक चौंकाने वाली बात ऊभर कर आयी कि ज्यादातर गाँवों में जो बच्चा सबसे उच्च शिक्षा प्राप्त है वह भी मात्र छठी कक्षा पास है।
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आज यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि आज सरकारी प्राथमिक / माध्यमिक विद्यालय केवल दोपहर के भोजन देने का केन्द्र बनकर रह गए हैं । शिक्षा के इन केन्द्रों में शिक्षा देने के अलावा अन्य सारे कार्य पूरी तन्मयता से किए जाते हैं । बिहार में प्राथमिक / माध्यमिक विद्यालयों पर नजर रखने के लिए प्रखंड संसाधन केन्द्र की की शुरुआत की गई थी परन्तु यह बिहार का दुर्भाग्य ही है कि आज रक्षक ही भक्षक कि भूमिका में है। जिस केन्द्र की स्थापना इस आशा का साथ की गई थी कि यह पूरे प्रखंड के शिक्षकों का पठन पाठन के क्षेत्र में मार्गदर्शक की भूमिका निभायेगा वह केन्द्र आज पूरी तरह से भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गया है। इस बात से समस्त बिहार भली-भाँति परिचित है कि आज बिहार में सर्व शिक्षा अभियान अपने लक्ष्य से भटक चुका है। इस भटकाव मे में भ्रष्टाचार की कितनी भूमिका है यह शायद बिहार के शीर्ष- सत्ता से छुपा हुआ नहीं होगा !
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विगत वर्ष नॉबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री श्री अमर्त्य सेन द्वारा पटना में प्रस्तुत एक सर्वेक्षण -रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में प्राथमिक / माध्यमिक शिक्षा के उत्थान की राह में शिक्षकों और विद्यालय-भवन संबंधी बुनियादी ज़रूरतों का अभाव ही सबसे बड़ी रूकावट है l रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य के विद्यालयों में शिक्षकों के पढ़ाने और छात्रों के सीखने का स्तर अभी भी नीचे है l 76 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में आंकड़ों की भरमार थी लेकिन निष्कर्ष में चार मुख्य बातें कही गईं थीं :
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१. पहली ये कि सरकारी प्राथमिक / माध्यमिक विद्यालयों में इन्फ्रास्ट्रकचर यानी बुनियादी ज़रूरतों वाले ढाँचे का घोर अभाव यहाँ स्कूली शिक्षा की स्थिति को कमज़ोर बनाए हुए है l
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२. दूसरी बात ये कि शिक्षकों और ख़ासकर योग्य शिक्षकों की अभी भी भारी कमी है l जो शिक्षक हैं भी, उनमें से अधिकांश स्कूल से अक्सर अनुपस्थित पाए जाते हैं l
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३. निरीक्षण करने वाले सरकारी तंत्र और निगरानी करने वाली विद्यालय शिक्षा समिति के निष्क्रिय रहने को इस बदहाल शिक्षा-व्यवस्था का तीसरा कारण माना गया है l
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४. चौथी महत्वपूर्ण बात ये है कि बिहार के स्कूलों में शिक्षकों के पढ़ाने और बच्चों के सीखने का स्तर, गुणवत्ता के लिहाज़ से बहुत नीचे है l
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इस रिपोर्ट में कहा गया था कि बिहार सरकार वयस्क साक्षरता, ख़ासकर स्त्री-साक्षरता बढ़ाकर प्राथमिक / माध्यमिक शिक्षा के प्रति ग्रामीण जनमानस में रूझान बढ़ा सकती है l इस रिपोर्ट के प्रस्तुतिकरण को एक साल से ज्यादा हो गए लेकिन प्रदेश की सरकार की तरफ़ से इस में सुझाए गए उपायों पर अमल करने की अब तक कोई पहल नहीं हुई है l
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विगत वर्ष ही बिहार को लेकर जारी एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार करीब 96.4 प्रतिशत विद्यालयों में शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक नहीं है। 52.3 प्रतिशत विद्यालयों में शिक्षक-क्लास रूम का अनुपात ठीक नहीं है। 37 प्रतिशत विद्यालयों में अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं है। 40 प्रतिशत विद्यालयों में पुस्तकालय नहीं है। बच्चों की उपस्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। लडकियों की उपस्थिति कम होती जा रही है, क्योंकि न तो विद्यालयों में शौचालय की व्यवस्था है और न पढाई लिखाई को लेकर ही संतोषजनक माहौल है।
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एक तरफ़ बिहार का गौरवशाली शैक्षणिक अतीत है और दूसरी तरफ़ आज इस राज्य का शैक्षणिक पिछड़ापन. ये सचमुच बहुत कचोटने वाला विरोधाभास है l राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के आँकड़ों के मुताबिक बिहार में साक्षरता का प्रतिशत 63.8 तक ही पहुँच पाया है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफ़ी कम है l
किसी भी राज्य के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण उसके जन-मानस विशेषकर उसके " भविष्य (बच्चों ) " का शिक्षित होना है। कभी बिहार पूरी दुनिया में शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। लेकिन धीरे - धीरे शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य पिछड़ता चला गया। पिछले कुछ दशकों में यह राज्य शिक्षा के सबसे निचले पायदान पर जा पहुंचा है । वर्तमान सरकार ने भी इसमें सुधार के लिए कोई गंभीर और सार्थक प्रयास नहीं किया है । शायद " सुशासन की राजनीत में बुनियादी शिक्षा का कोई स्थान नहीं है “ ! प्राथमिक / माध्यमिक शिक्षा को बेहतर बनाने की योजनाएँ जमीन से अधिक फ़ाईलों और सचिवालय के कमरों में ही सिमटती नजर आती हैं ।
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शिक्षा में गुणवता को लेकर सरकार के दावों की कलई तब खुलती नजर आती है जब यह पता चलता है कि बच्चे दाखिला सरकारी विद्यालयों में कराते हैं, जबकि विधिवत पढाई निजी विद्यालयों में करते हैं । सरकार ने बच्चों के लिए ऐसे शिक्षको की व्यवस्था की है जिसे कायदे से शिक्षक कहा नहीं जा सकता है l ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित अधिकांश विद्यालयों में आँकड़ों के बाजीगरी के खेल में नामांकन 90 प्रतिशत हो गए हैं, लेकिन आरंभिक शिक्षा से जुडे ग्रामीण क्षेत्रों के 47 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट टयूशन के भरोसे हैं । आधे से अधिक प्राइमरी पास बच्चे कक्षा दो की किताबें नहीं पढ पाते हैं।
शिक्षा के अधिकार कानून-2009 के तहत प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेवारी है, लेकिन बिहार में शिक्षा को लेकर संरचनाओं की उपलब्धता, गुणवत्ता और सभी के लिए समान अवसरों का होना हमेशा से चिन्ता के विषय रहे हैं l हालांकि सुशासन की सरकार ने आँकड़े तो ऐसे प्रस्तुत किए हैं मानों बिहार में शिक्षा को लेकर क्रांति हो गई हो, परन्तु जमीनी सच्चाई किसी से छिपी नहीं है।
विकास को लेकर प्रदेश सरकार भले ही दावे करती रही है , किन्तु शिक्षा को लेकर प्रदेश सरकार की ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता सवालों के घेरे में है । पूर्व की ही तरह बिहार में शिक्षा - व्यवस्था आज भी अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से ही ग्रसित है l
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अतः सबसे ऊपर भाग में बताए हुए उपाय कितने लागू होते हैं, ये आप पर एवं इस लेख को पढने वाले हर जागरूक नागरिक की इच्छा पर निर्भर है.
अगर आप इतना सा भी नहीं करना चाहेंगे तो इसका यही मतलब होगा की समाधान ना करने वाले व्यक्ति ही समस्या का रूप हैं.
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जय हिन्द

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