सूक्ष्म शरीर में सब कुछ चीरंजिवी ही है
सूक्ष्म शरीर में दुनिया का हर व्यक्ति है. जब भी कोई चीज़ दृश्यमान सत्ता से उस पार होजाए, तो उसे सूक्ष्म कहा जाता है.
इस सूक्ष्म में ब्रम्हांड में हर कुछ घटित होता रहता है, जिसे चर्म चक्षुओं से दृष्टिगोचर नहीं होता.
कितने तरह की तरंगे चारों और घूम रहीं हैं, आप उन्हें नहीं देख पाते. ये सब कुछ सूक्ष्म कही जाती है.
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इसीलिए जो भी सदेह नहीं हैं, वे सभी सूक्ष्म है. सूक्ष्म शरीर में सब कुछ चीरंजिवी ही है.
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आत्मा को सर्व-व्यापक कहा गया है. सब गुणों को धारण करने वाला कहा गया है और ये आत्मा चेतना को धारण किये हुए होती है. व्यापक का अर्थ है कि ये सर्वत्र सामान रूप से फैला हुआ है.
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शरीर में आत्मा किसी एक जगह पर नहीं है, ये शरीर को संचालित करतीहै. मष्तिष्क के भीतर जहाँ शिव-बिंदु होता है, उस बिंदु में आत्मा का वास होता हा ना की ह्रदय चक्र में.
इस शिव-बिंदु को ह्रदय गुहा भी कहा जाता है, जो भ्रम उत्पन्न करता है. लोग समझते हैं की ह्रदय चक्र में आत्मा का वास होता है.
इसे गुहा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वहां पर कुछ भावनाएं उत्पन्न होने लगतीं हैं, जिन्हें नवरस कहा जाता है, जबकि योगी अपनी आध्यात्मिक यात्रा में उसे बहुत पीछे छोड़ दिए होते हैं. तथापि ध्यान में ये भावनाएं कुछ क्षणों के लिए प्रकट होने लगतीं है, इसीलिए इसे ह्रदय गुहा बोला जाता है. लेकिन इसका सम्बन्ध ह्रदय के अनाहत चक्र से होता है, जब योगी इस चक्र में स्थितहोता है, तब उसे अद्भुत स्पंदन एवं अनुभूतियाँ महसूस होने लगतीं हैं.
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मष्तिस्क के भीतर कुछ छोटे तंतुओं के मध्य में प्राण-उर्जा की चेतना शक्ति विद्यमान रहती है, जो वहां से सम्पूर्ण देह को संचालित करती है, एवं शरीर इस चेतना शक्ति के कारण ही जीवित रहता है.
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इसीलिए शरीर की पीड़ित हिस्से को काटकर अन्य हिस्सा लगा देने के बाद भी वो काम करता है. पूरा शरीर भी बदल दिया जाए, फिर भी ये काम करता है.
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लेकिन अगर मष्तिष्क के वे तंतुओं एवं नाड़ियों जिसके मध्य में ह्रदय-गुहा होती है, जहाँ प्राण एवं चेतना का वास होता है, इन नाड़ियों को निकाल देने से ही शरीर से प्राण एवं चेतना अलग हो जाती है. लेकिन अन्न-मय चेतना जीवित रहती है, इसीलिए योगी लोग अन्नमय शरीर के बाहर भी गति कर लेते हैं एवं शरीर जीवित भी रहता है.
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प्राण का वास शिव-बिंदु में ही रहता है, जो अन्नमय शरीर की चेतना को छोड़कर अलग भीहो सकता है, तो भी ये शरीर जीवित रहता है.
इस सूक्ष्म में ब्रम्हांड में हर कुछ घटित होता रहता है, जिसे चर्म चक्षुओं से दृष्टिगोचर नहीं होता.
कितने तरह की तरंगे चारों और घूम रहीं हैं, आप उन्हें नहीं देख पाते. ये सब कुछ सूक्ष्म कही जाती है.
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इसीलिए जो भी सदेह नहीं हैं, वे सभी सूक्ष्म है. सूक्ष्म शरीर में सब कुछ चीरंजिवी ही है.
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आत्मा को सर्व-व्यापक कहा गया है. सब गुणों को धारण करने वाला कहा गया है और ये आत्मा चेतना को धारण किये हुए होती है. व्यापक का अर्थ है कि ये सर्वत्र सामान रूप से फैला हुआ है.
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शरीर में आत्मा किसी एक जगह पर नहीं है, ये शरीर को संचालित करतीहै. मष्तिष्क के भीतर जहाँ शिव-बिंदु होता है, उस बिंदु में आत्मा का वास होता हा ना की ह्रदय चक्र में.
इस शिव-बिंदु को ह्रदय गुहा भी कहा जाता है, जो भ्रम उत्पन्न करता है. लोग समझते हैं की ह्रदय चक्र में आत्मा का वास होता है.
इसे गुहा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वहां पर कुछ भावनाएं उत्पन्न होने लगतीं हैं, जिन्हें नवरस कहा जाता है, जबकि योगी अपनी आध्यात्मिक यात्रा में उसे बहुत पीछे छोड़ दिए होते हैं. तथापि ध्यान में ये भावनाएं कुछ क्षणों के लिए प्रकट होने लगतीं है, इसीलिए इसे ह्रदय गुहा बोला जाता है. लेकिन इसका सम्बन्ध ह्रदय के अनाहत चक्र से होता है, जब योगी इस चक्र में स्थितहोता है, तब उसे अद्भुत स्पंदन एवं अनुभूतियाँ महसूस होने लगतीं हैं.
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मष्तिस्क के भीतर कुछ छोटे तंतुओं के मध्य में प्राण-उर्जा की चेतना शक्ति विद्यमान रहती है, जो वहां से सम्पूर्ण देह को संचालित करती है, एवं शरीर इस चेतना शक्ति के कारण ही जीवित रहता है.
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इसीलिए शरीर की पीड़ित हिस्से को काटकर अन्य हिस्सा लगा देने के बाद भी वो काम करता है. पूरा शरीर भी बदल दिया जाए, फिर भी ये काम करता है.
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लेकिन अगर मष्तिष्क के वे तंतुओं एवं नाड़ियों जिसके मध्य में ह्रदय-गुहा होती है, जहाँ प्राण एवं चेतना का वास होता है, इन नाड़ियों को निकाल देने से ही शरीर से प्राण एवं चेतना अलग हो जाती है. लेकिन अन्न-मय चेतना जीवित रहती है, इसीलिए योगी लोग अन्नमय शरीर के बाहर भी गति कर लेते हैं एवं शरीर जीवित भी रहता है.
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प्राण का वास शिव-बिंदु में ही रहता है, जो अन्नमय शरीर की चेतना को छोड़कर अलग भीहो सकता है, तो भी ये शरीर जीवित रहता है.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.