ट्रिपल तलाक़ एवं निकाह-हलाला एवं ऐसे ही अन्य मुद्दों को पारदर्शी शिकायत प्रणाली की मदद से दूर किया जा सकता है:-
आजकल मुस्लिम बहनों की जिंदगी से शरिया आधारित ट्रिपल तलाक़ एवं निकाह-हलाला को हटाकर मानवीय जीवन पद्धति को स्थापित करने की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जा रही है, जिसका मुस्लिम-भाई इस्लामिक क़ानून के आधार पर विरोध कर रहे हैं. क्या ये भाई बता सकते हैं कि मानवीय नियम कानून क्या केवल पुरुषों की संपत्ति है, क्या महिला को साधारण मानव सी जिदगी जीने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है आपके धर्म में? महिला होना कोई गलत बात तो नहीं है, कि धार्मिक नेता घृणित बयान देते रहते हैं, कि अमुक अमुक कानूनों के हटाये एवं उनके स्थान पर अन्य कानूनों को लाये जाने से महिलाओं को भुगतना पड़ेगा.
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आप ये ध्यान दें, कि आप अपने आस पास पड़ी दुर्व्यवस्था की जो भी शिकायत अपने आस पास दोस्तों इत्यादि से करते हैं, उससे सरकारों को इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे समझते हैं, कि आप असंगठित हैं, एवं आपमें अपनी शिकायतों को ऐसी किसी संसाधान पर उन्हें सार्वजनिक करने का कोई संसाधन नहीं है, क्यूंकि आप अपनी शिकायतों का एफिडेविट करवाकर माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर नहीं रख सकते, जिसे अन्य नागरिक भी बिना लॉग-इन किये ही उन सब शिकायतों को देख सकें एवं उसपर अपने प्रस्तावित सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव रख सकें.
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धार्मिक नेता केअनुसार, इनका धर्म में देश की कोई परिकलपना भी नहीं है, मतलब ये कि जहाँ की हवा-पानी में जी रहे हैं, उस भूमि के लिए इनका कोई धर्म नहीं है, जबकि वास्तविक कुरआन में मादरे वतन के लिए अपनी जिम्मेदारी अन्य जिम्मेदारियों से ऊपर बतायी हुई है. उसमे गायों को पशुओं का राजा कहने के साथ साथ उसकी रक्षा भी किये जाने को कहा गया है. खैर...हमारा मुद्दा इन टॉपिक्स को लेकर नहीं है. क्यूंकि उपरोक्त परेशानियां अलग किस्म की हैं. यहाँ ट्रिपल-तलाक़ एवं निकाह-हलाला की चर्चा हो रही थी.
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कुछ धार्मिक नेताओं ने तो यहाँ तक कहा कि इन कानूनों के हट जाने से मुस्लिम महिलाओं को ही परेशानियों का अधिक सामना करना पड़ेगा, मतलब ये हुआ कि ये भाई लोग ही अपने घरों की महिलाओं का जीना मुहाल कर देंगे.
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इन महिलाओं की आवाज कितनी ऊपर पहुँच रही है, ये बताना मुश्किल है, क्यूंकि यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली नहीं है, जिसमे आप अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकतीं हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं
मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकतीं हैं अगर आप चाहतीं हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं.
इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी मेंwww.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
इसे राज्य एवं राष्ट्र के गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने के लिए आप अपने सांसदों/विधायकों को sms/ईमेल/ट्विटर एवं माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट तथा ट्विटर पर भी अपना मात्र एक सांवैधानिक आदेश भेजें.
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आप ये आदेश इस तरह से लिखें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP को भारत एवं बिहार राज्य के राजपत्र में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz
धन्यवाद "
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अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे:www.nocorruption.in
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जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो, तो सजा देने का अधिकार भी जनता को ही रहना चाहिए, नकि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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इस सम्बन्ध में और भी जानकारी चाहते हों तो यहाँ देखें-www.righttorecall.info/301.htm
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आप ये ध्यान दें, कि आप अपने आस पास पड़ी दुर्व्यवस्था की जो भी शिकायत अपने आस पास करते हैं, उससे सरकारों को इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे समझते हैं, कि आप असंगठित हैं, एवं आपमें अपनी शिकायतों को ऐसी किसी संसाधान पर उन्हें सार्वजनिक करने का कोई संसाधन नहीं है, क्यूंकि आप अपनी शिकायतों का एफिडेविट करवाकर माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर नहीं रख सकते, जिसे अन्य नागरिक भी बिना लॉग-इन किये ही उन सब शिकायतों को देख सकें एवं उसपर अपने प्रस्तावित सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव रख सकें. इस वेबसाइट की एक डेमो के लिएsmstoneta.com वेबसाइट में देख सकते हैं, जिसमे कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं. यह डिमांड सांविधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
पब्लिक एस.एम.एस सर्वर का क्या स्वरूप हो सकता है ? https://goo.gl/41HTRF
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जय हिन्द .
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आप ये ध्यान दें, कि आप अपने आस पास पड़ी दुर्व्यवस्था की जो भी शिकायत अपने आस पास दोस्तों इत्यादि से करते हैं, उससे सरकारों को इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे समझते हैं, कि आप असंगठित हैं, एवं आपमें अपनी शिकायतों को ऐसी किसी संसाधान पर उन्हें सार्वजनिक करने का कोई संसाधन नहीं है, क्यूंकि आप अपनी शिकायतों का एफिडेविट करवाकर माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर नहीं रख सकते, जिसे अन्य नागरिक भी बिना लॉग-इन किये ही उन सब शिकायतों को देख सकें एवं उसपर अपने प्रस्तावित सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव रख सकें.
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धार्मिक नेता केअनुसार, इनका धर्म में देश की कोई परिकलपना भी नहीं है, मतलब ये कि जहाँ की हवा-पानी में जी रहे हैं, उस भूमि के लिए इनका कोई धर्म नहीं है, जबकि वास्तविक कुरआन में मादरे वतन के लिए अपनी जिम्मेदारी अन्य जिम्मेदारियों से ऊपर बतायी हुई है. उसमे गायों को पशुओं का राजा कहने के साथ साथ उसकी रक्षा भी किये जाने को कहा गया है. खैर...हमारा मुद्दा इन टॉपिक्स को लेकर नहीं है. क्यूंकि उपरोक्त परेशानियां अलग किस्म की हैं. यहाँ ट्रिपल-तलाक़ एवं निकाह-हलाला की चर्चा हो रही थी.
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कुछ धार्मिक नेताओं ने तो यहाँ तक कहा कि इन कानूनों के हट जाने से मुस्लिम महिलाओं को ही परेशानियों का अधिक सामना करना पड़ेगा, मतलब ये हुआ कि ये भाई लोग ही अपने घरों की महिलाओं का जीना मुहाल कर देंगे.
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इन महिलाओं की आवाज कितनी ऊपर पहुँच रही है, ये बताना मुश्किल है, क्यूंकि यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली नहीं है, जिसमे आप अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकतीं हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं
मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकतीं हैं अगर आप चाहतीं हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं.
इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी मेंwww.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
इसे राज्य एवं राष्ट्र के गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने के लिए आप अपने सांसदों/विधायकों को sms/ईमेल/ट्विटर एवं माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट तथा ट्विटर पर भी अपना मात्र एक सांवैधानिक आदेश भेजें.
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आप ये आदेश इस तरह से लिखें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP को भारत एवं बिहार राज्य के राजपत्र में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz
धन्यवाद "
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अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे:www.nocorruption.in
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जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो, तो सजा देने का अधिकार भी जनता को ही रहना चाहिए, नकि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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पब्लिक एस.एम.एस सर्वर का क्या स्वरूप हो सकता है ? https://goo.gl/41HTRF
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जय हिन्द .
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.