GST बिल का हमारे देश के छोटे एवं मंझोले व्यापारियों पर प्रभाव



आखिर जीएसटी बिल को लेकर सुनियोजित प्रचार क्यूँ किया जा रहा है? जी.एस.टी. को क्यों संजीवनी की तरह प्रचारित किया जा रहा है?
इस मामले में लगभग सारे बयान भी इतने प्रभावी क्षेत्रो से आते है कि कई बार तो वास्तव में ऐसा लगने लगे कि इस क्रांति को जबरदस्ती रोका जा रहा है.

दरअसल प्रस्तावित जीएसटी एक मास्टर स्ट्रोक है, जो छोटे व्यापारियों का धंधा खींचकर बड़े व्यापारियों को दे देगा। कैसे, जानने के लिए इस लेख के मध्य भाग में पढ़ें.

सन 2006 जबसे जी.एस.टी. की चर्चा इस देश में प्रारम्भ हुई थी तब से जी.एस.टी. को एक “संजीवनी” की तरह प्राचारित किया जा रहा है जैसे कि इसके आने पर देश के उद्योग एवं व्यापार जगत में कोई क्रांति आ जायेगी और इसके सारे प्रचार में इस बात को छुपाया जा रहा है कि यह मात्र एक कर प्रणाली है और इसे मात्र एक तरह की कर प्रणाली की तरह ही वर्णित एवं प्रचारित किया जाना चाहिए.

दरअसल जी.एस.टी. का उद्देश्य, कर-व्यवस्था का राजनीतीकरण करना है.

जी.एस.टी. एक अप्रत्यक्ष कर प्राणाली है. इससे किसी बड़े क्रांतीकारी परिवर्तन की इतनी बड़ी उम्मीद करना बेमानी है.
सरकार जी.एस.टी. को लेकर जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास ना करे, क्यूंकि जनता उतनी मूर्ख नहीं है, जितने ये डिग्रीधारी सांसद-विधायक-नेता-मंत्री लोग होते हैं.
सरकारें आम उद्योग एवं व्यापार जगत तथा आम उपभोक्ता के साथ साथ हम जनता को जी.एस.टी. के काल्पनिक परिणामो के बारे में दिग्भर्मित ना करे.

जी.एस.टी. को लेकर सबसे बड़ा भ्रम तो यह है कि यह एक एकल कर है जो सभी अप्रत्यक्ष करों का स्थान लेगा लेकिन यदि जी.एस.टी. को भारत में इसके आदर्श स्वरुप में लागू किया जाता तब तो यह एकल कर होता लेकिन हमारे यहाँ जी.एस.टी. के रूप में केंद्र एवं राज्य दोनों ही अपना – अपना कर वसूलेंगे इसलिए यह एक दोहरा कर है .

दूसरा मसला यह है कि जी.एस.टी. के कारण सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी और चूँकि जी.एस.टी. एक अप्रत्यक्ष कर है इसलिए यह कहना कि उपभोक्ता पर कर का अधिक भार डाले बिना राजस्व में वृद्धि हो जायेगी यह कैसे संभव है ? यदि उपभोक्ता को १२ प्रतिशत राज्य का जी.एस.टी. एवं १४ प्रतिशत केंद्र का जी.एस.टी. देने को मजबूर किया जाएगा तो निश्चित रूप से राजस्व में वृद्धि होगी ही लेकिन क्या भारतीय उपभोक्ता इतना कर का भार उठाने में समर्थ भी है या नहीं इसके बारे में सोचना अभी किसी ने प्रारंभ नहीं किया है .

इस समय केन्द्रीय उत्पाद शुल्क एक बहुत बड़ा अप्रत्यक्ष कर है जो कि केन्द्रीय सरकार वसूल करती है और यह अभी “निर्माण की स्तिथी” तक ही लगता है एवं जी.एस.टी. के तहत इसे “बिक्री की स्तिथी” तक लगाया जाएगा एवं अभी केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की जो सीमा है उसे भी एक करोड़ पचास लाख से घटा कर केवल 10 लाख या 15 लाख पर ला दिया जाएगा . निश्चित रूप से इससे सरकार का राजस्व तो बढेगा ही लेकिन देश के उद्योग धंधे एवं व्यापार इससे कैसे तरक्की करेंगे, इस सवाल का किसी सांसद-विधायक-मंत्री-प्रधानमन्त्री-वित्तमंत्री-राष्ट्रपति तक के पास कोई ठोस जवाब नहीं है.
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लाखों छोटे एवं लघु उद्योग एवं व्यापार को जो कि इस समय केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर से दूर है को भी इस केन्द्रीय कर का भुगतान कर इसकी प्रक्रियाओं का पालन करना होगा . इसे हम सरलीकरण कैसे कह सकते है . इससे लघु, छोटे एवं मंझोले उद्योगों पर काफी बुरा असर पड़ेगा, जिससे वे बाजार से ही बाहर हो सकते हैं.
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हमारी सरकारों द्वारा प्रस्तावित जी एस टी का क़ानून भारत में आने से किस प्रकार छोटे एवं मंझोले उद्योग धंधे बंद होंगे:- समझने के लिए ध्यान से पढ़ें- जीएसटी आने से छोटी इकाइया बाजार से बाहर हो जायेगी और बड़ी कम्पनियो को फायदा होगा। इसीलिए सोनिया-मोदी-केजरीवाल तीनो मिलकर जीएसटी का समर्थन कर रहे है।

माना कि उत्पादक M, 1000 रूपये का सामान एक ट्रेडर T1 को बेचता है।
ट्रेडर T1 यही सामान ट्रेडर T2 को 1020 में बेचता है।
अब ट्रेडर T2 यह सामान ट्रेडर T3 को 1050 रू में बेचता है।

माना कि मोदी साहेब के जीएसटी की दर यदि 20% है तो बिलिंग इस प्रकार से होगी

M का T1 को बिल विक्रय मूल्य - 1000 रू
जीएसटी - 200 रू
कुल देय राशि - 1200 रू
अत: M सरकार को जीएसटी के 200 रू चुकाएगा

T1 का T2 को बिल
विक्रय मूल्य - 1020 रू
जीएसटी - 204 रू
कुल देय राशि - 1224 रू
इस स्थिति में T1 सरकार को जीएसटी के 204 - 200 = 4 रूपये चुकाने होंगे।

T2 का T3 को बिल
विक्रय मूल्य - 1050 रू
जीएसटी - 210 रू
कुल देय राशि - 1260 रू
अत: T2 सरकार को जीएसटी के 210 - 204 = 6 रू चुकाएगा

अब मान लीजिये कि M जीएसटी के 200 रूपये सरकार को चुकाता है लेकिन T1 जीएसटी नहीं चुकाता और फरार हो जाता है।
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तब जीएसटी क़ानून के अनुसार T2 को जीएसटी के पूरे 210 रूपये सरकार को चुकाने होंगे !!! उसे उस राशि में छूट नहीं मिलेगी जो राशि M ने T1 से ली थी।

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कैसे यह क़ानून बड़े उत्पादकों और बड़े ट्रेडर्स को गलत फायदा पहुंचाएगा और छोटे उत्पादको और ट्रेडर्स को बाजार से बाहर कर देगा ?

मान लीजिये कि बाजार में 10 बड़े उत्पादक या ट्रेडर्स L1, L2,…… L10 है।

और 1000 छोटे ट्रेडर्स S1, S2,…S1000 है।

ऐसी स्थिति में L1 से L10 तक कोई भी उत्पादक या ट्रेडर फरार नही होगा, क्योंकि उनके पास काफी फैली हुयी और प्रचुर संपत्तियां होती है। तथा घाटे की स्थिति में वे अकार्यशील सम्पत्तियो के विवरण देकर खुले आम कर चोरी की कानूनी व्यवस्था बना लेते है और भागने की नौबत नहीं आती।

लेकिन ज्यादातर संभावना है कि इन 1000 छोटे (S1000) में से 1% ट्रेडर धोखाधड़ी या घाटा खाने के कारण कर चोरी करेंगे और फरार हो जायेगे।

ऐसा होने पर शेष 990 ईमानदार छोटे ट्रेडर्स को भी संदेह की नजरो से देखा जाएगा, और जोखिम के चलते व्यापारी उंसके साथ धंधा करने से घबराएंगे।

अत: इस क़ानून के चलते सिर्फ 1% बेईमानो के कारण 99% ईमानदार व्यापारी अपना व्यापार खो देंगे !!!

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दूसरे शब्दों में सोनिया-मोदी-केजरीवाल एवं अन्य नेता द्वारा प्रस्तावित जीएसटी मास्टर स्ट्रोक है, जो छोटे व्यापारियों का धंधा खींचकर बड़े व्यापारियों को दे देगा।

मेरे द्वारा प्रस्तावित समाधान यह है कि जीएसटी/वैट/एक्साइज़/सर्विस टैक्स को समाप्त किया जाए और संपत्ति कर को लागू किया जाए।.
संपत्ति कर का प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : tinyurl.com/SampattiKarBharat
इस क़ानून को भारत में लाने के लिए आप अपना मात्र एक सन्देश अपने नेताओं, मंत्रियों, विधायकों, प्रधामंत्री, राष्ट्रपति को sms, ट्विटर, पोस्टकार्ड, ईमेल इत्यादि माध्यमों द्वारा भेज सकते हैं, जो पूर्णतया सांवैधानिक है. क्योंकि यह अधिकार भारत के संसदीय गणतंत्र होने से यहाँ के नागरिकों को स्वतः ही प्राप्त है.
आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको संपत्ति कर का प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : tinyurl.com/SampattiKarBharat में दिए गए ड्राफ्ट को क़ानून का रूप देने के लिए राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित करें, और इसे क़ानून के रूप में लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz | और कृपयाsmstoneta.com जैसे पब्लिक एस.एम.एस. सर्वर बनाएँ ताकि नागरिकों की एस.एम्.एस राय उनके वोटर आई.डी. के साथ सभी को दिखे "
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विश्व की कई अर्थव्यवस्थाओं में क्रांती हुई है और कई देश अपनी बिगड़ी हुई अर्थ व्यवस्था को तरक्की की और ले गए है इसके लिए स्वदेशी उत्पादन और वितरण की प्रणालियों में सुधार किये गए, स्वदेशी उत्पादन के नए क्षेत्रो एवं स्वदेशी तकनीक का विकास किया गया , विदेशी निवेश को नए तरीकों से प्रोहात्सान दिया गया ना की भारत में विदेशी निवेश की तरह, जिसमे यहाँ मुद्रा-स्फीति तेजी से बढती है, एवं डॉलर महंगा हुआ जाता है. जिससे बचने के लिए भारत की लगभग सभी सरकारें वर्ल्ड-बैंक से कर्जे लेती आयीं हैं.विकसित देशों में स्वदेशी उत्पादों के निर्यात बढाए गए, कृषी एवं श्रम सुधार किये गए, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया, सरकारी नियंत्रण कम किये गए, लेकिन कभी भी कोई विकसित देश किसी एक कर प्रणाली के चमत्कार पर निर्भर नहीं रहा जैसा कि हमारे यहाँ प्राचारित किया जा रहा है एवं इन्तजार किया जा रहा है .

जीएसटी की दर क्या होगी इसे लेकर अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है. राज्य सरकारें जहां इसकी दर 26 फीसदी करना चाहती हैं वहीं केन्द्र 16 से18 फीसदी दर के पक्ष में है. अगर 16 फीसदी की दर से भी कर वसूला जाता है तो ग्राहक के लिए एक भारी बोझ हो सकता है. नतीजतन फुटकर स्तर पर बड़े पैमाने पर छोटेव्यापारियों एवं मंझोले व्यापारियों को मार्केट से ही बाहर किया जाएगा.
[समाधान पढने एवं करने के लिए इस लेख के समाधान वाले हिस्से में पढ़ें जो इस लेख के दुसरे हिस्से में बताया गया है.]

जीएसटी का सबसे बड़ा फायदा जो हमें समाचारों के माध्यम से बताया जा रहा है वो है- कई करों के बजाय एक कर लगेगा. जबकि बात ये है कि आर्टिकल 246 ए संसद और सभी राज्यों के विधानसभाओं को ये अधिकार देता है कि वो सामान और सेवाओं पर कर लगा सकते हैं. ऐसे में कर को लेकर एक संससदीय कानून और 28 राज्य कानून हैं जो जीएसटी वसूल करेंगे. ऐसे में सबमें तालमेल नहीं बैठा तो नतीजे बुरे हो सकते हैं.

पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस और भाजपा कम से कम इस मुद्दे पर बात कर रही हैं जिससे उम्मीद की जा रही है कि संसद के इस सत्र में ये बिल राज्य सभा से भी पास हो जाएगा.
सरकार नागरिकों से दो तरह के कर लेती है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष. इनकम टैक्स यानी आयकर प्रत्यक्ष कर है और किसी सामान पर लगा हुआ कर या टैक्स अप्रत्यक्ष कर माना जाता है.
अप्रत्यक्ष कर से सरकार की कमाई प्रत्यक्ष कर के मुकाबले कहीं ज़्यादा है और इसका एक हिस्सा राज्यों को भी मिलता है. लेकन इस कर प्रणाली में एक दिक्कत है. कई सामानों पर अप्रत्यक्ष टैक्स की दरों में एक राज्य से दूसरे राज्य में ही फर्क है. एक चीज़ के अलग अलग प्रोडक्ट पर कर की दर भी अलग अलग है. अब राज्यों के बीच इस टैक्स की दरों में फर्क ख़त्म होने से कुछ सामानों की कीमतों में थोड़ा फेरबदल हो सकता है.

खाने के कई सामान पर टैक्स नहीं लगाया जाता है और जीएसटी लागू होने के बाद कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है. इसलिए अनाज की कीमतों में कोई बदलाव नहीं आएगा.
लेकिन जब भी किसी खाने की वस्तु को ब्रांड के रूप में बनाया जाएगा तो उस पर टैक्स ज़रूर लगेगा. तो गेहूं पर टैक्स नहीं लगेगा लेकिन अगर आटे का इस्तेमाल बिस्कुट के लिए किया जाएगा तो उस पर पहले की तरह ही जीएसटी लगेगा.
छोटी गाड़ियों पर फिलहाल एक्साइज ड्यूटी 8 फीसदी लगती है जबकि एसयूवी जैसी बड़ी गाड़ियों पर ये दर 30 फीसदी है. साफ़ है अगर सभी राज्यों ने मिलकर जीएसटी की दर को 18 फीसदी तय किया तो छोटी गाड़ियां महंगी हो जाएंगी और बड़ी गाड़ियां सस्ती. राज्यों के बीच टैक्स दरों में फर्क ख़त्म होने के कारण अलग राज्य में गाडी रजिस्टर करके कम टैक्स देने की प्रथा भी अब ख़त्म हो जायेगी.

सभी सर्विसेज यानी सेवाएं अब महंगी हो जाएंगी. टेलीकॉम, रेस्टोरेंट में खाना, हवाई टिकट, अस्पताल, स्टॉक ब्रोकर, ब्यूटी पार्लर, बीमा, ड्राई क्लीनिंग जैसी सेवाओं पर केंद्र सरकार सर्विस टैक्स लगाती है. स्वच्छ भारत टैक्स और किसान कल्याण सेस (उपकर) मिलाकर ऐसी 100 से भी ज़्यादा सेवाएं हैं जिन पर टैक्स देना पड़ता है. अगर सभी राज्य मिल कर 18 फीसदी की जीएसटी रेट तय करते हैं तो चपत सभी की जेब पर लगेगी.
इसके अलावा राज्यों को ये छूट दी गयी है कि वो ज़्यादा से ज़्यादा दो साल तक अपनी तरफ से ऐसे सामान पर ज़्यादा से ज़्यादा एक फीसदी टैक्स लगा सकते हैं जो उनके राज्य की अधिकार क्षेत्र में आ रहा है लेकिन बन रहा है किसी और राज्य में. इन कुछ राज्यों में सामान की खरीदारी पर सीमित समय के लिए आपको टैक्स भरना पड़ सकता है.

तामिलनाडु जैसे राज्य को करीब 3500 करोड़ रुपये का सालाना नुकसान हो सकता है क्योंकि जीएसटी आने के बाद 1 फीसदी सेंट्रल सेल्स टैक्स को बंद करना पड़ेगा.
महाराष्ट्र को सालाना 14000 करोड़ की कमाई आक्ट्राई यानी चुंगी (शहर में बाहर से आने वाले माल पर लगने वाला कर) से होती है. चुंगी यदि हट जाती है तो छोटे बिज़नेस के लिए काम करना ज़रूर थोड़ा सस्ता हो जाएगा. जब किसी छोटे बिज़नेस का सामान एक छोटे ट्रक में महाराष्ट्र जाएगा तो उसे राज्य की सीमा पर कर देने के लिए इतंजार नहीं करना पड़ेगा. और इससे ऐसे बिज़नेस के लिए परेशानी भी जरूर कम होगी.
लेकिन इन सब के जाने से राज्यों को एक नया हथियार मिलेगा. मौजूदा क़ानून के अनुसार सर्विस पर टैक्स लगाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. जीएसटी आने के बाद ये अधिकार राज्यों को भी मिल जाएगा.
तो अब कुछ वैसे नए सर्विस पर टैक्स देने के लिए तैयार हो जाइये जिसके पैसे सिर्फ राज्य सरकारों को जाएंगे. यह अधिकार राज्यों को मिल रहा है. इसलिए वो सेंट्रल सेल्स टैक्स और ऑक्ट्राई से होने वाली मोटी कमाई की अनदेखी करने को तैयार हैं.

फिलहाल तम्बाकू और पेट्रोल-डीजल को लें तो इस बात पर आम सहमति नहीं बनी है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इन उत्पादों पर टैक्स कैसे लगाया जाना चाहिए. देश भर में जीएसटी लागू करने की प्रक्रिया दस साल पहले शुरू की गई थी. पिछले महीने पूर्व राज्य वित्त मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा था कि मानसून सत्र में बिल पास हो जाने से अप्रैल 2017 से जीएसटी लागू हो सकता है.

नौ साल बाद भी जीएसटी को आसान करने के संविधान संशोधन का काम पूरा नहीं हुआ है. ये बस बीजेपी कांग्रेस द्वारा एन नए लूट की शुरुआत है. शेयरधारकों की सलाह के बिना इसका खाका तैयार कभी सरकारें नहीं करेंगी.

जीएसटी की खिचड़ी खाने के लिए भारत की केन्द्रीय एवं सभी राज्य सरकार को राज्यों के लिए समाचारों में थोड़ी घी शायद और मिलानी होगी, जिससे जनता उन्हें पुनः आने वाले चुनावों में भारी मतों से जीता सकें. लेकिन वे यह कभी नहीं बताएंगे आपको कि ये क़ानून २०१७ में लागू होगा तो छोटे एवं मंझोले व्यापारियों पे करों का बोझ का असर पड़ने में दो साल लगेंगे, तब तक २०१९ का लोकसभा चुनाव आ जाएगा, एवं बीजेपी की सरकार पुनः भारी मतों से केंद्र में आएगी.
समाचार वाया- http://www.bbc.com/hindi/india/2016/07/160719_gst_effect_price_cost_cheap_sk?SThisFB

देखें "जी एस टी बिल किस तरह से छोटे व्यापारियों एवं उद्योगों को खतम करने का एक साधन है, जिससे बाजार पर बड़ी कंपनियों का कब्ज़ा और बढेगा How GST will kill small businesses and small factories -
H2305" on YouTube - https://youtu.be/K06hucHflfk

देखें "कौन कौन से क़ानून बीजेपी अपने २८२ सांसदों की मदद से लागू कर सकती है, और ये क़ानून किस तरह से भारत की स्थिति को सुधार सकती है)What Laws Can BJP pass easily with 282 MPs, and how it will improve situation of India -
H195" on YouTube - https://youtu.be/7sJCsrAy_1I
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समाधान:-

इस दुर्व्यवस्था को हटाकर जनहित में एक नयी व्यवस्था कायम करने के लिए इस देश में पारदर्शी शिकायत प्रणाली का आना अत्यावश्यक है, जिसका ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- ( पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186 )
जिसमे पीड़ित नागरिक अपनी समस्या या अपने मोहल्ले इत्यादि की समस्या को मात्र एक एफिडेविट को स्कैन करके जिले के कलेक्टर ऑफिस से माननीय प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रख सकेगा, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लॉग इन के देख सकेंगे. इस व्यवस्था में अन्य नागरिक भी अपनी राय/समर्थन/विरोध/सुझाव/सम्बंधित कानूनों में परिवर्तन रख सकेगा, इस व्यवस्था का एक डेमो देखने के लिए आप इस वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं- smstoneta.com

कुव्यवस्था फैलाने वालों से बचने के लिए इस देश में व्यवस्था परिवर्तन अत्यावश्यक है.
जनहित में व्यवस्था परिवर्तन को सरकार smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है, जहाँ कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं. यह डिमांड सांविधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
पब्लिक एस.एम.एस सर्वर का क्या स्वरूप हो सकता है ? https://goo.gl/41HTRF

चूंकि, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संधियों एवं मौद्रिक नीति का निर्धारण केवल उन्हीं देशों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है एवं किया जाता है, जो देश सामरिक एवं तकनिकी रूप से सबसे ज्यादा मजबूत हो. इस दुनिया में कमजोर देशों का एवं कमजोर जीवों का कोई नहीं होता और ना ही उनसे कोई मित्रता भी करना चाहता है. भारत की सभी व्याव्स्थाएं WTO के मुताबिक़ बनतीं हैं, जिसके तहत WTO का क़ानून किसी देश के संविधान से ऊपर है. हाल ही में अमेरिका ने पौल्ट्री के लिए जो लड़ाई भारत के साथ थी वो जीत गया है, इसके मुताबिक़ अब जैसा देश जब इस संधि को लागु करेगा तो इस संधि के हिसाब से आपको अपने काएदे कानून बदलने पड़ेंगे ना की कायदे कानून के हिसाब से ये संधि बदली जाएगी | यानि हमारे देश का कोई कानून इस संधि के खिलाफ हैं तो आपको अपने कायदे कानून बदलने पड़ेंगे, ये संधि नही बदली जाएगी |
इन सबका कारण एक है कि वो ये कि हमारी सुरक्षा विदेशी हाथों पे निर्भर है. हमारे यहाँ रक्षा व्यवस्था में तीस से अस्सी प्रतिशत तक उपकरण आयातित होते हैं, मेक इन इण्डिया के नाम पे भी विदेशी ही ये सब उपकरण एवं अन्य सामग्री यहाँ बनायेंगे.

भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह संविधानिक अधिकार तथा कर्तव्य है कि, वह देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक आदेश अपने सांसद को भेजे। आप दिए गए ड्राफ्ट्स के लिंक्स में जाकर उनका अध्ययन करें, अगर सहमत हों तो अपने नेता/ मंत्री/ विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति को अपना सांविधानिक आदेश जरूर भेजें.
इस आदेश को अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें
.
आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/809740312477540 क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून भारत में लाये जाने के लिए माननीय प्रधानमन्त्री को प्रेरित करने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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इसी तरह आप पारदर्शी शिकायत प्रणाली के ड्राफ्ट का क़ानून भारत में लाने के लिए कार्य कर सकते हैं, अन्य सम्बंधित कानूनों के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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जय हिन्द

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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.

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