निजी क्षेत्र बनाम सरकारी शेत्र में वेतन वृद्धि एवं इन क्षेत्रों द्वारा दिए जाने वाले सेवाओं की स्थिति
निजी क्षेत्र में निचले और मध्य स्तर पर वेतन आदि बेहद कम हैं और कोई सुरक्षा भी नहीं है. आप उससे तुलना करके चाहते हैं शासकीय क्षेत्र में भी वेतन कम कर दिए जाएँ क्योंकि सरकारी कर्मचारी को उसके काम की तुलना में अधिक वेतन मिलता है!
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दिक्कत यह है कि आप भी पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों के तर्क से संचालित है. पहली बात ये कि निजी सेक्टर लाभ के लिए काम करता है तो उसके कर्मचारी का दिखने वाला काम और शासकीय कर्मचारी के दिखने वाले काम में अंतर स्वाभाविक है. दूसरी बात यह कि आवश्यकता से अधिक वेतन क्या होता है?
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आपको वह फ़ॉर्मूला पता होगा जिसके तहत एक निर्धारित जीवन स्तर मेंटेन करने के लिए वेतन दिया जाता है. अपने कर्मचारियों को वह जीवन स्तर सुनिश्चित करना सरकार का काम है. तीसरी बात यह कि अगर निजी क्षेत्र में वेतन स्तर निचले स्तर का है तो उसे गौर से देखिये. वहां न्यूनतम अधिकतम का अंतर बेहद अधिक है, कारण यह कि समानता तो छोडिये उनके लिए लाभ ही सबकुछ है, और इसे अनुमति किसने दी? किसने निजी क्षेत्र को हायर एंड फायर की सुविधा देकर श्रमिकों से सुरक्षा छीन ली? श्रम सुधार के लिए पगलाई क्यों है सरकार?
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क्या समानता लाने के लिए सबसे सुविधाएं छीन ली जानी चाहिए? क्या शासकीय कर्मचारियों का वेतन न बढ़ाकर सरकार बाक़ी कर्मचारिओं के हित में काम करने जा रही है? नहीं. अजीब यह है कि जहां मांग निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन और नौकरी की शर्तों को बेहतर करने की होनी चाहिए वहां मांग हो रही है कि जिनकी स्थिति थोड़ी बेहतर है उन्हें भी ख़राब कर दिया जाए. सोचियेगा यह क्यों है?
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सोचियेगा इस देश में किसी को कभी एक बहस का पांच लाख मांगने वाले वकीलों, एक ऑपरेशन का पांच लाख लेने वाले डॉक्टरों, महीने के पचीस-पचास लाख पाने वाले सीईओज़, एक मैच का कई लाख पाने वाले क्रिकेटरों, एक फ़िल्म का कई करोड़ पाने वाले कलाकारों, खरबों का लाभ कमाने वाले धनपशुओं की कमाई उनके काम से ज्यादा नहीं लगी. लेकिन चपरासी, क्लर्क, सेल्समैन, किसान आदि की कमाई तुरंत संसाधनों की बर्बादी लगने लगती है. आम आदमी को मिलने वाली सब्सीडी यहाँ भीख होती है और खा-पचा लिए गए बैंक लोन सिर्फ नॉन परफोर्मिंग एसेट!
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या आपने भी मान लिया है कि कार-बँगला-यात्रा आदि पर हक़ सिर्फ पूंजीपतियों और उनके चाकरों का है और बाक़ी जनता को पेट पर पट्टी बाँध के भारत माता की जय का नारा लगाना चाहिए.
#7thCPC_धोखा_है.
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दिक्कत यह है कि आप भी पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों के तर्क से संचालित है. पहली बात ये कि निजी सेक्टर लाभ के लिए काम करता है तो उसके कर्मचारी का दिखने वाला काम और शासकीय कर्मचारी के दिखने वाले काम में अंतर स्वाभाविक है. दूसरी बात यह कि आवश्यकता से अधिक वेतन क्या होता है?
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आपको वह फ़ॉर्मूला पता होगा जिसके तहत एक निर्धारित जीवन स्तर मेंटेन करने के लिए वेतन दिया जाता है. अपने कर्मचारियों को वह जीवन स्तर सुनिश्चित करना सरकार का काम है. तीसरी बात यह कि अगर निजी क्षेत्र में वेतन स्तर निचले स्तर का है तो उसे गौर से देखिये. वहां न्यूनतम अधिकतम का अंतर बेहद अधिक है, कारण यह कि समानता तो छोडिये उनके लिए लाभ ही सबकुछ है, और इसे अनुमति किसने दी? किसने निजी क्षेत्र को हायर एंड फायर की सुविधा देकर श्रमिकों से सुरक्षा छीन ली? श्रम सुधार के लिए पगलाई क्यों है सरकार?
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क्या समानता लाने के लिए सबसे सुविधाएं छीन ली जानी चाहिए? क्या शासकीय कर्मचारियों का वेतन न बढ़ाकर सरकार बाक़ी कर्मचारिओं के हित में काम करने जा रही है? नहीं. अजीब यह है कि जहां मांग निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन और नौकरी की शर्तों को बेहतर करने की होनी चाहिए वहां मांग हो रही है कि जिनकी स्थिति थोड़ी बेहतर है उन्हें भी ख़राब कर दिया जाए. सोचियेगा यह क्यों है?
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सोचियेगा इस देश में किसी को कभी एक बहस का पांच लाख मांगने वाले वकीलों, एक ऑपरेशन का पांच लाख लेने वाले डॉक्टरों, महीने के पचीस-पचास लाख पाने वाले सीईओज़, एक मैच का कई लाख पाने वाले क्रिकेटरों, एक फ़िल्म का कई करोड़ पाने वाले कलाकारों, खरबों का लाभ कमाने वाले धनपशुओं की कमाई उनके काम से ज्यादा नहीं लगी. लेकिन चपरासी, क्लर्क, सेल्समैन, किसान आदि की कमाई तुरंत संसाधनों की बर्बादी लगने लगती है. आम आदमी को मिलने वाली सब्सीडी यहाँ भीख होती है और खा-पचा लिए गए बैंक लोन सिर्फ नॉन परफोर्मिंग एसेट!
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या आपने भी मान लिया है कि कार-बँगला-यात्रा आदि पर हक़ सिर्फ पूंजीपतियों और उनके चाकरों का है और बाक़ी जनता को पेट पर पट्टी बाँध के भारत माता की जय का नारा लगाना चाहिए.
#7thCPC_धोखा_है.
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सरकारी कर्मचारियों में कोई नैतिक बोध नहीं होता, इन्हें अपने अधिकार एवं अन्य के अधिकारों को हनन करने की ही चिंता होती है हर वक्त, अपने कर्तव्यों की कदापि नहीं. सरकारी कर्मचारी कोई एकलौता समूह तो नहीं है, कि इनके हड़ताल पर जाने से उत्पादकता पर कोई ख़ास असर पड़ेगा.
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लड़ाई सबको अच्छी तनख्वाह के लिए है, लड़ाई सबको रोजगार की है, किसी की कीमत पर किसी को रोजगार देने की नहीं, न ही यह संभव है। इस देश मे हजारो करोड़ के लोन को नॉन परफ़ार्मिंग एसेट कह दिया जाता है, यहाँ माल्या का डुबाया धन विकास है और ग़रीब को मिली सबसीडी बरबादी?
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7वें वेतन आयोग ने केंद्रीय कर्मियों को 23 % वेतन वृद्धि दी है. इनमे से वे सभी कर्मचारी भी शामिल हैं जो कोई काम नहीं करते. जबकि एक सीमित सीमा से अधिक काम करने वालों की ही सैलरी बढनी चाहिए.
फिर भी सरकार के लिए सरकारी कर्मचारियों की धमकी महत्वपूर्ण है ।
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वैसे इस बढ़ोत्तरी को भी समझिए - सातवें वेतन आयोग का गणित .
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लड़ाई सबको अच्छी तनख्वाह के लिए है, लड़ाई सबको रोजगार की है, किसी की कीमत पर किसी को रोजगार देने की नहीं, न ही यह संभव है। इस देश मे हजारो करोड़ के लोन को नॉन परफ़ार्मिंग एसेट कह दिया जाता है, यहाँ माल्या का डुबाया धन विकास है और ग़रीब को मिली सबसीडी बरबादी?
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7वें वेतन आयोग ने केंद्रीय कर्मियों को 23 % वेतन वृद्धि दी है. इनमे से वे सभी कर्मचारी भी शामिल हैं जो कोई काम नहीं करते. जबकि एक सीमित सीमा से अधिक काम करने वालों की ही सैलरी बढनी चाहिए.
फिर भी सरकार के लिए सरकारी कर्मचारियों की धमकी महत्वपूर्ण है ।
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वैसे इस बढ़ोत्तरी को भी समझिए - सातवें वेतन आयोग का गणित .
जिसे सात हज़ार मिलता था, उसे सौ प्रतिशत से अधिक (125%) डी ए मिलता था. यानी दोनों मिलाकर हुए 15750/-. 18000/- मिलने पर कुल बढ़ोत्तरी हुई 2250/-. यही "बोनान्जा" है जिस पर आप ख़ुश/दुखी हो रहे हैं.
और अब दस साल तक क़ीमतों को नहीं, उसे आकाश कुसुम निहारना है. .
और अब दस साल तक क़ीमतों को नहीं, उसे आकाश कुसुम निहारना है. .
याद रखिएगा, अगर आप यह नहीं समझ रहे तो असल मे फंस रहे हैं पूंजीवादी लेखकों के (कु) तर्कों के जाल मे। हाँ अगर आप भक्त हैं तो वाया साहेब अदानी-अंबानी भक्ति सहज है।
#7th_CPC
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भारत की नब्बे प्रतिशत जनता को लूटने मे देश के राजनेताओं, न्यायाधीशो , खिलाडियों, पूंजीपतियो मीडिया कर्मियों के साथ सरकारी कर्मचारियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किन्तु लूट के माल मे जो हिस्सा अन्य वर्गो का है उससे कर्मचारी अपना हिस्सा कम मानकर चल रहे है जबकि योगदान उनका अधिक हैं।
दूसरी बात यह भी है कि यदि सरकारी कर्मचारियों का वेतन बहुत ज्यादा बढाया जायगा तभी तो नेता न्यायाधीश तथा अन्य लोग भी अपना वेतन भत्ता और सुविधा बढाने की मांग कर सकेंगे, अन्यथा उनकी मांग महत्वहीन हो जायगी। ये सभी वर्ग एक दूसरे के पूरक होते है।
किसी एक वर्ग के वेतन के निर्धारण की महत्वपूर्ण भूमिका दूसरे वर्गो की होती है तथा सभी बदल बदल कर एक दूसरे का वेतन तय करते रहते है। नब्बे प्रतिशत नागरिक की ऐसे वेतन निर्धारण मे कोई भूमिका नही होती। उनका काम तो सिर्फ बढा हुआ वेतन भत्ता चुपचाप देते रहने तक सीमित है
मैं कड़वा सच बोलने के लिए कुख्यात हूँ ।
खुद केंद्र सरकार में अधिकारी थी फिर भी ये नौकरी छोड़ दी ।
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मैं ये बात पूरी जिम्मेवारी से और पूरे होशो हवास में लिख रही हूँ । सरकारी संस्थानों में अस्सी प्रतिशत कर्मचारी कोई काम नहीं करते, सिर्फ दूसरों द्वारा किये हुए काम का क्रेडिट लेकर अपना प्रमोशन समय से पहले पाते हैं.
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सरकारी कर्मचारियों को इतना नॉलेज भी नहीं होता जितना प्राइवेट वालों को अपने क्षेत्रों में होता है.
हम तो कहते हैं, कि जिनको टैलेंट नहीं होता, वही सरकारी संस्थानों में टिके रहते हैं, कोई ज्ञान होगा तब तो प्राइवेट में टिक पायेगा. खैर..
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सरकार को चाहिए कि ये जो 23 % बढ़ाया है इसको cancel करके जितना वेतन ले रहे हैं , उसमे से भी 23 % कम कर दें ।
और घोषणा कर दे कि हम ना देते ........ जिसको नहीं पोसाता वो चला जाए ।
देख लेना कोई चूं भी करेगा ।
इस तरह 23 % वेतन में बचत करने के बाद अपने आधे से ज़्यादा कर्मचारी निकाल दे ।
सरकारी कर्मचारी कोई काम नहीं करता । एक सरकारी कर्मचारी पूरे एक हफ्ते में जितना काम करता है उतना एक प्राइवेट कर्मी एक दिन में करता है ।
सरकार को चाहिए कि 4 में से 2 को निकाल दे । जो दो बचें उनको बोलो , देखो भाई तुम दो बचे हो , तुम्हारे में से भी एक की छुट्टी होनी है ।
जो बचेगा उसको जो 3 गए हैं उनका काम भी करना होगा ।
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दूसरी बात ये कि tender होगा । तुम दोनों में से जो कम से कम सैलरी quote करेगा उसकी जॉब बचेगी , दूसरे की चली जायेगी ।
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माँ कसम , एक बार try करके देख लो । आज जो केंद्रीय कर्मी 50,000 ले रहा उसको 23 % raise देने के बजाय घटा दो । अब उसकी salary रह जायेगी , लगभग 32,000 ....... 4 में से 3 को निकाल दो और टेंडर में पक्की बात है कि वो 32 वाला 25000 में काम करने को तैयार हो जाएगा ।
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काम तो साले चारों कुछ करते नहीं थे सो एक अकेला उन चारों का काम भी सिर्फ 3 घंटे में निमटा के शेष समय में पान पत्ता , चाय पानी , सुरती खैनी का टाइम निकाल लेगा ।
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इसके अलावा , केंद्र और राज्य सरकारों को सभी सरकारी नौकरियां ख़त्म कर contract पे दे देनी चाहिए । tender भराओ , जो काम न करे GPL मार के भगा दो , जो साला आँख दिखाए साले की गाँ* पे गोली मारो ........
ठेके पे काम कराओ सारे सरकारी काम ........ और एक supervisor रखो हाथ में hunter दे के ।
#7th_CPC
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भारत की नब्बे प्रतिशत जनता को लूटने मे देश के राजनेताओं, न्यायाधीशो , खिलाडियों, पूंजीपतियो मीडिया कर्मियों के साथ सरकारी कर्मचारियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किन्तु लूट के माल मे जो हिस्सा अन्य वर्गो का है उससे कर्मचारी अपना हिस्सा कम मानकर चल रहे है जबकि योगदान उनका अधिक हैं।
दूसरी बात यह भी है कि यदि सरकारी कर्मचारियों का वेतन बहुत ज्यादा बढाया जायगा तभी तो नेता न्यायाधीश तथा अन्य लोग भी अपना वेतन भत्ता और सुविधा बढाने की मांग कर सकेंगे, अन्यथा उनकी मांग महत्वहीन हो जायगी। ये सभी वर्ग एक दूसरे के पूरक होते है।
किसी एक वर्ग के वेतन के निर्धारण की महत्वपूर्ण भूमिका दूसरे वर्गो की होती है तथा सभी बदल बदल कर एक दूसरे का वेतन तय करते रहते है। नब्बे प्रतिशत नागरिक की ऐसे वेतन निर्धारण मे कोई भूमिका नही होती। उनका काम तो सिर्फ बढा हुआ वेतन भत्ता चुपचाप देते रहने तक सीमित है
मैं कड़वा सच बोलने के लिए कुख्यात हूँ ।
खुद केंद्र सरकार में अधिकारी थी फिर भी ये नौकरी छोड़ दी ।
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मैं ये बात पूरी जिम्मेवारी से और पूरे होशो हवास में लिख रही हूँ । सरकारी संस्थानों में अस्सी प्रतिशत कर्मचारी कोई काम नहीं करते, सिर्फ दूसरों द्वारा किये हुए काम का क्रेडिट लेकर अपना प्रमोशन समय से पहले पाते हैं.
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सरकारी कर्मचारियों को इतना नॉलेज भी नहीं होता जितना प्राइवेट वालों को अपने क्षेत्रों में होता है.
हम तो कहते हैं, कि जिनको टैलेंट नहीं होता, वही सरकारी संस्थानों में टिके रहते हैं, कोई ज्ञान होगा तब तो प्राइवेट में टिक पायेगा. खैर..
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सरकार को चाहिए कि ये जो 23 % बढ़ाया है इसको cancel करके जितना वेतन ले रहे हैं , उसमे से भी 23 % कम कर दें ।
और घोषणा कर दे कि हम ना देते ........ जिसको नहीं पोसाता वो चला जाए ।
देख लेना कोई चूं भी करेगा ।
इस तरह 23 % वेतन में बचत करने के बाद अपने आधे से ज़्यादा कर्मचारी निकाल दे ।
सरकारी कर्मचारी कोई काम नहीं करता । एक सरकारी कर्मचारी पूरे एक हफ्ते में जितना काम करता है उतना एक प्राइवेट कर्मी एक दिन में करता है ।
सरकार को चाहिए कि 4 में से 2 को निकाल दे । जो दो बचें उनको बोलो , देखो भाई तुम दो बचे हो , तुम्हारे में से भी एक की छुट्टी होनी है ।
जो बचेगा उसको जो 3 गए हैं उनका काम भी करना होगा ।
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दूसरी बात ये कि tender होगा । तुम दोनों में से जो कम से कम सैलरी quote करेगा उसकी जॉब बचेगी , दूसरे की चली जायेगी ।
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माँ कसम , एक बार try करके देख लो । आज जो केंद्रीय कर्मी 50,000 ले रहा उसको 23 % raise देने के बजाय घटा दो । अब उसकी salary रह जायेगी , लगभग 32,000 ....... 4 में से 3 को निकाल दो और टेंडर में पक्की बात है कि वो 32 वाला 25000 में काम करने को तैयार हो जाएगा ।
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काम तो साले चारों कुछ करते नहीं थे सो एक अकेला उन चारों का काम भी सिर्फ 3 घंटे में निमटा के शेष समय में पान पत्ता , चाय पानी , सुरती खैनी का टाइम निकाल लेगा ।
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इसके अलावा , केंद्र और राज्य सरकारों को सभी सरकारी नौकरियां ख़त्म कर contract पे दे देनी चाहिए । tender भराओ , जो काम न करे GPL मार के भगा दो , जो साला आँख दिखाए साले की गाँ* पे गोली मारो ........
ठेके पे काम कराओ सारे सरकारी काम ........ और एक supervisor रखो हाथ में hunter दे के ।
सिर्फ Army और Paramilitary को दो कम से कम 100 % raise । और सियाचिन जैसी postings और militancy infected areas में लाख पचास हज़ार और दो महीना । सियाचिन में ड्यूटी करने वाले जवान को तो 3 लाख रु महीना भी कम है ।
बाकी सबको GPL मार के बाहर करो । नए आदमी ठेके पे रखो ।
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हमें राईट-टू-रिकॉल सांसद विधायक एवं अन्य पदों पर राईट-टू-रिकॉल का क़ानून को जनता के हाथ में दिया जाना चाहिए, जिससे वे भ्रष्ट मंत्रियों सांसदों विधायकों इत्यादि को उनके पद से निष्कासित कर उन्हें बदल सकें-.
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आपको अपना सांवैधानिक मांग ऐसे रखना चाहिए-
"माननीय सांसद/विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको राइट-टू-रिकॉल विधायक के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/813343768783861 ,
राईट टू रिकॉल सांसद के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/860633484054889 , क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून बनाए जाने का आदेश देता /देती हूँ.
वोटर-संख्या- xyz१२३४५६७,
धन्यवाद "
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राईट-टू-रिकॉल समूह द्वारा प्रस्तावित सुधारात्मक कानूनों की जानकारी के लिए देखिये- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों पर जोक बनाना और व्यंग करना हमारा लोकतांत्रिक हक़ है , और मोदी जी पर व्यंग करना प्रधामंत्री की गरिमा के ख़िलाफ़ है , यहां तक कि देश के साथ गद्दारी भी है ।
जय हिन्द
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.