जातिगत आरक्षण का संवैधानिक आधार कितना संवैधानिक है ?


जातिगत आरक्षण का संवैधानिक आधार कितना संवैधानिक है एवं उसके क्या उपाय किये जाने चाहिए? :-- उपायों के लिए इस लेख के समाधान वाले हिस्से में पढ़ें.
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जो करोड़पति क्रीमी लेयर में छूट गए हैं उनका भारत पर राज है, अधिकाँश बड़े पूँजीपति उसी में हैं, उनके लिए ही ये सारा नाटक है |
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भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत अनुच्छेद-15 और 16 को आरक्षण का आधार माना गया है, किन्तु इन दोनों अनुच्छेदों में स्पष्ट कहा गया है कि अनुसूचित जातियों ("castes") एवं अनुसूचित जनजातियों ("ट्राइब्स") तथा "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (classes) के विकास के लिए विशेष प्रावधान ("special provisions")" सरकार करेगी |
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अनुच्छेद-16 में तो "सामाजिक और शैक्षणिक रूप" का भी उल्लेख नहीं है, केवल इतना कहा गया है कि जिन "पिछड़े वर्गों" को राज्य की सेवाओं (सरकारी नौकरियों) में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिली उनकी बहाली हेतु आरक्षण का प्रावधान किया जा सकता है |
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अनुच्छेद-16 में यह भी कहा गया है कि प्रोन्नति में सरकार उन "अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों" के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है जिन्हें समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है ; इस में "पिछड़े वर्गों" का उल्लेख नहीं है |
इन दोनों अनुच्छेदों में आरक्षण सम्बन्धी अधिकाँश बातें संशोधनों द्वारा बाद में जोड़ी गयी हैं, डॉ अम्बेडकर के सभापतित्व में जिस संविधान का निर्माण हुआ था उसमे नहीं थीं |
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स्पष्ट है कि "जाति" शब्द का उल्लेख केवल अनुसूचित जातियों के लिए किया गया है | मण्डल कमीशन ने "वर्ग" को "जाति" मानकर आरक्षण का जो सुझाव दिया वह पूरी तरह संविधान के विरुद्ध है | "वर्ग" का अर्थ पूरी दुनिया में आर्थिक आधार पर, अर्थात अमीर-गरीब में, ही किया जाता है, जाति या नस्ल या अन्य किसी आधार पर नहीं | संविधान में भी यही भावना है, वरना एक ही वाक्य में "पिछड़े" के साथ "वर्ग" और "अनुसूचित" के साथ "जाति" का उल्लेख क्यों रहता ? ऐसा एक ही स्थल पर नहीं है, अतः इसे संविधान-निर्माताओं की भूल भी नहीं माना जा सकता | स्पष्ट है कि केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में ही सबको आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, जबकि "पिछड़े वर्गों" में आरक्षण की दो शर्तें हैं : "सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग" एवं "शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग" |
मण्डल आयोग ने "सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग" को "जाति" माना, किन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि चूँकि संविधान में "पिछड़ी जातियाँ" नहीं बल्कि "पिछड़े वर्ग" की चर्चा है, अतः "मलाईदार परत" (क्रीमी लेयर) को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता |
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न्यायालय की बात सरकार काट नहीं सकती थी, किन्तु "मलाईदार परत" की जो व्याख्या सरकार ने की वह संविधान की भावना की धज्जियाँ उड़ा रहा है और जो वास्तव में वंचित तबके हैं उनको लाभ नहीं मिल पा रहा है , क्योंकि सरकार की मान्यता है कि वेतन और कृषि-आय को छोड़कर जिनकी आय प्रतिवर्ष छ लाख रुपये से कम है केवल वे "पिछड़े वर्ग" के हैं, बशर्ते वे "सामाजिक रूप से पिछड़ी जाति" के भी हों ! इस हिसाब से जो करोड़पति हैं केवल वही लोग पिछड़े वर्ग के नहीं हैं ! जिस देश में प्रति व्यक्ति आय अभी भी 7774 रुपया प्रतिमाह ही है उस देश में आर्थिक "पिछड़ेपन" की ऐसी परिभाषा का परिणाम यही है कि जो वास्तव में गरीब हैं उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि पिछड़ी जाति के जिस व्यक्ति को सरकारी नौकरी मिल गयी, उसे अपने बच्चों को पढ़ाने का बेहतर अवसर मिल जाता है, अतः पुश्त-दर-पुश्त उसके वंश को आरक्षण का लाभ मिलता रहता है, जबकि उसी जाति के गरीब को अपने बच्चों को पढ़ाने तक का अवसर नहीं मिल पाता |
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अतः आरक्षण की वर्त्तमान नीति का परिणाम यही है कि पिछड़ी जातियों में नए मलाईदार परत का निर्माण कराया जा रहा है, जबकि संविधान और न्यायालय की आज्ञा तो मलाईदार परत छाँटने की है | इन्टरनेट और अन्यान्य मीडिया पर भी पिछड़ी जातियों के मलाईदार परत के लोग ही अपनी बात रख पाते हैं, मीडिया और इन्टरनेट तक गरीबों की पँहुच ही नहीं है |
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इस प्रकार संविधान ने "पिछड़े वर्ग, अर्थात गरीबों के लिए जो छूट दी उसका लाभ कुछ "जातियाँ" ले रहीं है और मलाईदार परत में केवल उन लोगों को रखा गया है जो इतने धनाढ्य हैं कि उनको नौकरी की आवश्यकता ही नहीं है |
मैं जानता हूँ जिन्होंने कभी मनुस्मृति पढी ही नहीं अब वे लोग मनुवादी सामन्ती जातिवादी मूलनिवासी-विरोधी आदि-आदि तगमा मुझे देंगे, और एक पल के लिए भी यह नहीं सोचेंगे कि असली जातिवादी कौन हैं | मनुस्मृति में "वर्ण" को "जाति" पढेंगे, तो संविधान में "वर्ग" को "जाति" पढेंगे, और वोटबैंक की राजनीति द्वारा देश के साधनों को लूटेंगे |
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इस सन्दर्भ में इतना बता दूँ कि दो मास पहले 2015 की UPSC सिविल सर्विसेज परिक्षा का इंटरव्यू समाप्त हुआ है, उसमें 1078 अभ्यार्थी उत्तीर्ण घोषित किये गए हैं | अधिकाँश छात्रों के आस्पद (surname) से जाति का पता चल जाता है | उत्तीर्ण अभ्यार्थियों में ब्राह्मण, राजपूत आदि सवर्ण जातियों का हिस्सा लगभग 7% से 8 % के आसपास है | जनसँख्या में भी सवर्ण का हिस्सा लगभग 21% है ऐसा मीडिया में मैंने कभी देखा था | सही आंकड़े तो किसी के पास नहीं है क्योंकि जातिगत जनगणना 1931 के बाद से नहीं हुई है |
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पिछड़ी जातियों के जिस क्रीमी लेयर को छाँटने की बात संविधान और न्यायालय ने की, उसको IAS जैसी ऊँची नौकरियों में लगभग 75% हिस्सा मिल रहा है (जबकि समस्त पिछड़ी जातियों के लिए केवल 27% ही आरक्षण है)| हाल के UPSC सिविल सर्विसेज का परिणाम देखें (http://www.upsc.gov.in/…/fina…/csm/2015/FN_CSM_2015_Engl.pdf) --
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सवर्णों का हिस्सा 8% से कम है, मुस्लिम ढाई प्रतिशत हैं, SC + ST मिलकर भी 20% नहीं ले पाते और उनके आरक्षित पद किसी भी वर्ष भर नहीं पाते, शेष सारे पद पिछड़ी जातियों का क्रीमी लेयर ले रहा है | सामान्य केटेगरी का भी लगभग15% ही सारी सवर्ण जातियाँ ले पाती हैं जो आबादी में उनके हिस्से से भी कम है, जिसका अर्थ यह है कि ब्राह्मण जैसे सवर्णों की मेधा समाज की औसत मेधा से कम है | यह विश्वास करने योग्य नहीं है | इसका एक ही कारण है -- चयन करने वाली समितियों में पिछड़ी जातियों के क्रीमी लेयर वालों का बहुमत हो चुका है जो चयन में धांधली करते हैं और सवर्णों के विरुद्ध पक्षपात करते हैं | मुस्लिमों का हिस्स कम इस कारण है चूँकि उनके संपन्न और पढ़े-लिखे तबके का अधिकाँश हिस्सा पाकिस्तान भाग गया |
जो करोड़पति क्रीमी लेयर में छूट गए हैं उनका भारत पर राज है, अधिकाँश बड़े पूँजीपति उसी में हैं, उनके लिए सारा नाटक है |
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आरक्षण की वर्त्तमान नीति का परिणाम यही हो रहा है कि पिछड़ी जातियों में जो वास्तव में पिछड़े हैं वे तो पिछड़े ही रह गए, बिना पढ़े-लिखे आरक्षण का लाभ लेकर एक नए उच्च वर्ग का निर्माण हो रहा है जिसे मनुवाद के नाम पर सनातन धर्म से घृणा करना सिखाया जाता है, और जिन लोगों ने हज़ारों वर्षों से भारत की संस्कृति के निर्माण और रक्षा में अपना सर्वस्व लगा दिया उन ब्राह्मणों और क्षत्रियों को संविधान के मौलिक अधिकार वाले दो अनुच्छेदों की झूठी व्याख्या का हवाला देकर उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है |
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संविधान ने "पिछड़ी जातियों" को पहले ही "अनुसूचित जाति" घोषित कर दिया, अतः "पिछड़े वर्गों" को भी "पिछड़ी जाति" कहना संविधान का अपमान है | "सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़े वर्ग" का सीधा अर्थ यह है कि जो सामाजिक (अर्थात जातिगत) तथा शैक्षणिक तौर पर गरीब समुदाय हैं उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए | वर्ग तीन प्रकार के होते हैं -- उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग, तथा निम्न वर्ग | इन तीनों वर्गों में पिछड़ा वर्ग किसे माना जाय यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है, बशर्ते नीयत साफ़ हो | यदि सरकार यही मानती है कि वेतन तथा कृषि आय के अलावा छ लाख रुपया वार्षिक आय ही "पिछड़े वर्ग" का मानक है तो BPL का मानक भी वही होना चाहिए |
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यदुवंशी क्षत्रिय "पिछड़ी जाति" किस आधार पर बन गए ? किसी जाति को अगड़ा या पिछड़ा किस आधार पर माना जाय ? आर्थिक अर्थात वर्गीय पिछड़ेपन की सीमारेखा को गरीबी रेखा से बीस गुना अधिक किस आधार पर तय किया गया ? इन बातों का निर्णय कौन करे ? किन आधारों पर करें ? जो जाति अधिक रेल की पटरियां उखाड़ सके और देश का चक्का जाम कर सके केवल उसी को आरक्षण का लाभ दिया जाय ? जिस जाति में एक भी बड़ा पूँजीपति नहीं है वह ऊँची जाति कैसे ?
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समाधान-
इस देश में आरक्षण जाती आधारित नहीं, बल्कि आय आधारित होना चाहिए,
इस देश में कई सालों से जाती आधारित जनगणना नहीं हुई है, इसके लिए नागरिकों को ही अपने सांसदों को नैतिक दबाव बनाना चाहिए कीजाती आधारित जनगणना किया जाए.
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हमे इस देशी में व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है, जिसको सरकार smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है, जहाँ कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा उठाये गए समस्याओं एवं उनके द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं.
यहाँ की जनता द्वारा उठाये गए सभी डिमांड सांविधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
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जाती आधारित आरक्षण व्यवस्था को धीरे धीरे कम करते हुए किस तरह से समाप्त किया जा सकता है, उसका ड्राफ्ट आप इस लिंक में पढ़ सकते हैं, एवं इस ड्राफ्ट को तत्काल प्रभाव से क़ानून बनाए जाने का नैतिक दबाव अपने प्रधामंत्रियों, सांसदों, विधायकों पर बना सकते हैं, की वे प्रधानमंत्री को इसके लिए प्रेरित करें.
For removing caste based reservationhttp://www.tinyurl.com/AarakshanGhatao
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जाति आधारित आरक्षण हटाने का ड्राफ्ट-http://www.tinyurl.com/AarakshanGhatao
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आप अपना आदेश नेताओं को इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में
जाति आधारित आरक्षण हटाने का ड्राफ्ट-http://www.tinyurl.com/AarakshanGhatao
क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून भारत में लाये जाने के लिए माननीय प्रधानमन्त्री पर नैतिक दबाव बनाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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क्या आप जानते हैं कि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह संविधानिक अधिकार तथा कर्तव्य है कि, वह देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक आदेश अपने सांसद को भेजे। आप दिए गए ड्राफ्ट्स के लिनक्स में जाकर उनका अध्ययन करें, अगर सहमत हों तो अपने नेता/ मंत्री/ विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति को अपना सांविधानिक आदेश जरूर भेजें.
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नीचे उन आदेशो की सूची दी गयी है, जो आदेश मैंने SMS द्वारा अपने सांसद को भेजे है। आदेशो का विवरण जानने के लिए लिंक को क्लिक करे। ये सभी ड्राफ्ट्स राईट-टू-रिकॉल समूह द्वारा प्रस्तावित हैं:-
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यदि आप भी इन कानूनो का समर्थन करते है, तो अपने सांसद को SMS भेज कर इन्हे गैजेट में प्रकाशित करने का आदेश दे, तथा अपने सांविधानिक कर्तव्य को पूरा करे।
इसके अतिरिक्त भी कुछ क़ानून सुधार ऐसे हैं जो भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में लाये जाने से हमारा देश चीन को मात दे सकता है, इन कानूनों का डिमांड आप अपने नेताओं से अवश्य कीजिये.- जैसे कि क्या कर सकते हो यहाँ देखें-
https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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जय हिन्द.

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