भारत के वर्तमान शिक्षाव्याव्स्था में टॉपर्स को अपने ही द्वारा पढ़े हुए परीक्षा में लिखे प्रश्नों के उत्तर नहीं पता होना, क्या इसके लिए शिक्षा-व्यवस्था का माफियाकरण जिम्मेदार नहीं है?




'प्रोडिगल साइंस' का आविष्कार रूबी ने नहीं, हमारी मौजूदा शिक्षा व्यवस्था ने किया है| शिक्षा का व्यवसायीकरण बंद नहीं हुआ तो कुछ समय बाद हमारे बच्चे भी 'प्रोडिगल साइंस' की तरह नया-नया साइंस ढूँढने को मजबूर हो जायेंगे| जब हम छोटे थे, हमें भी होमवर्क दिया जाता था| कुछ समझने में कठिनाई हो तो घर के बड़े-बुजुर्ग समझा दिया करते थे| होमवर्क में वही दिया जाता था, जो स्कूल में पढ़ाया गया हो या जिसके विषय में आकार-प्रकार में समझाया गया हो| पर अब बात अलहदा है| बच्चों को ऐसा होमवर्क (प्रोजेक्ट वर्क) दिया जाता है, जो दरअसल उनके माँ-बाप पूरा करते हैं या बाज़ार से खरीद लाते हैं|
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डीपीएस ने इस बार अन्य प्रोजेक्ट के साथ, कक्षा चार के विद्यार्थियों को टेरारियम बनाकर लाने को कहा| जब अभिभावक ग्लास जार लाने नर्सरी गए, तो पता चला ग्रेटर नॉएडा के अन्य 4-5 स्कूलों ने भी इसबार यही प्रोजेक्ट दिया है और सिर्फ उस नर्सरी ने अभी तक लगभग साढ़े चार सौ जार/टेरारियम बेचा है| यह केवल एक संयोग मात्र तो हो नहीं सकता है| बच्चे के माता-पिता ग्लास जार और मिट्टी लेकर आए, घर के एक्वेरियम से कुछ pebbles निकाले, अलग-अलग गमलों से 2-3 तरह के सकुलेंट पौधे निकालकर बेटी को दिया और कहा कि वह इन्टरनेट पर सर्च करे और खुद बना ले| उसने बना लिया|
पर न तो एक्वेरियम सभी के घर पर होता है और न ही सभी को बागवानी का शौक होता है| कुछ माता-पिता ऐसे थे जिन्होंने टेरारियम का नाम ही पहली बार सुना था| समय की कमी थी और स्कूल भी अगले ही दिन खुलने वाला था, सो उन्होंने बना-बनाया हुआ टेरारियम ही खरीद लिया|
वो बच्चे आज उसे स्कूल लेकर जायेंगे और जब दो-चार दिन बाद उनसे टेरारियम के विषय में सवाल पूछा गया और उन्होंने अपनी कल्पना से कोई उटपटांग जवाब दे दिया, तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी???
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पिछले साल किसी बच्ची का आर्ट प्रोजेक्ट, जिसमें उसे अलग-अलग प्रान्तों की गुड़िया बनाना था, उसकी माँ ने किया था और इस साल भी बच्ची को सामने बिठाकर उसकी माँ ने ही किया है| स्कूल में सिलाई-कढ़ाई नहीं सिखायेंगे और बच्चों को ऐसा प्रोजेक्ट देंगे, तो इसका मतलब तो यही हुआ न कि वह प्रोजेक्ट बच्चे के परिवार वालों के लिए है|
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सामान्यतः प्राइवेट विद्यालयों के ऐसे प्रोजेक्ट्स का नाम डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के नाम पर होता है, मेरे प्रश्न करने पर की इतने छोटे छोटे बच्चों को इन प्रोजेक्ट्स को देने का क्या मतलब, जिसे उसके अभिभावक को पूरा करना पड़े, इससे बच्चे की समझ कितनी विकसित होगी?
शिक्षक का उत्तर था, ऐसे प्रोजेक्ट बच्चों के सिलेबस में विद्यालय प्रबंधन द्वारा दिमाग-विकास के नाम पर जोड़ा गया है, जिससे बच्चों के समझने की क्षमता विकसित होगी.
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मैं ऐसी शिक्षा के पक्ष में नहीं हूँ| बच्ची जब आँखों में आँसू लिए माँ से कहती है "सभी की मम्मी बनाकर देगी, सिर्फ मैं ही नहीं ले जाऊँगी" तो सवाल शिक्षा से कहीं आगे बढ़कर उसके अभिभावक को चैलेंज देनेवाला होता है|
ऐसे में सुपर अभिभावक बनना आपकी मज़बूरी बन जाती है और आप न चाहते हुए भी शिक्षा के बाजारवाद का हिस्सा बन जाते हो
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इस समस्या के समाधान के लिए मंत्रियो,विधायकों,सांसदों के साथ साथ जिला शिक्षा अधिकारी के ऊपर राईट-टू-रिकॉल के क़ानून का लागू होना है, जिसे लागू होने देने का काम जनता को करना है, एवं ये अधिकार उसे अपने हाथ में लेना ही है, तभी इस देश में शिक्षा-व्यवस्था के साथ साथ सरकारी विद्यालयों एवं कॉलेज की स्थिति सुधरने वाली है, नहीं तो भावी पीढ़ी का भविष्य तो क्या वर्तमान तक अंधकारमय ही है, जिसको सही मायने में सोचने समझने की अक्ल भी आज के शिक्षा वयवस्था द्वारा नहीं मिल पा रही.
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राईट टू रिकाल जिला शिक्षा अधिकारी के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/810067079111530
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आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें- आप यह आदेश SMS, पोस्टकार्ड, ईमेल, ट्विटर एवं अन्य संचार माध्यमों से अपने नेताओं को भेज सकते हैं.
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको राईट टू रिकाल जिला शिक्षा अधिकारी के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/810067079111530
राईट टू रिकॉल मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/811071415677763
राइट-टू-रिकॉल विधायक के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/813343768783861
राईट टू रिकॉल सांसद के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/860633484054889
राईट टू रिकॉल मंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/853974814720756
क़ानून-ड्राफ्ट को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून के रूप में भारत में लाये जाने का आदेश देता /देती हूँ.
वोटर-संख्या- xyz
धन्यवाद "
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इसके साथ साथ हमें हमारे देश में व्यवस्था परिवर्तन की तरफ भी ध्यान देना चाहिए , जिसको सरकार smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है, जहाँ कोई भी नागरिक अपनी या किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे देख सकते हैं.
इस दिशा में पारदर्शी शिकायत प्रणाली का ड्राफ्ट को क़ानून के रूप में लाकर भारत में लाकर सही अर्थों में यहाँ लोकतंत्र के एक नए स्तम्भ की स्थापना हो सकती है, जिसमे नागरिक मात्र एक एफिडेविट के द्वारा अपनी शिकायत प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रख सकेंगे, जिसे देश के अन्य नागरिक देख सकें, एवं उसपर अपना समर्थन/विरोध/उपाय बता सकें, जिसमे कोई अपना सबूत भी रख सके, जिससे की न्याय-पालिका,विधायिका एवं अन्य स्तम्भ जनता के पक्ष में कार्य करने को मजबूर किये जा सकें.
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इसके लिए आपको पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186
की मांग अपने नेताओं से करनी चाहिए जैसा की ऊपर बताया गया है.
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भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह संविधानिक अधिकार तथा कर्तव्य है कि, वह देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक आदेश अपने सांसद को भेजे। आप दिए गए ड्राफ्ट्स के लिनक्स में जाकर उनका अध्ययन करें, अगर सहमत हों तो अपने नेता/ मंत्री/ विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति को अपना सांविधानिक आदेश जरूर भेजें.
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अन्य सम्बंधित कानूनों के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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जय हिन्द
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