देश को तोड़ने वालों से प्रेरित होने वाले, क्या अपने लोगों से विश्वासघात कर रहे हैं?
जाकिर नाईक एवं असदुद्दीन ओवैसी एवं एवं आई एस आई एस व उनके जैसों के भाषणों से तथा उन भाषणों में बताए हुए कुरआन के आयतों एवं छुपे क्षद्म काल्पनिक विज्ञान के बीच के सम्बन्ध जिनका हवाला उन देशद्रोहियों द्वारा दिया जाता है, से प्रेरित होकर जो विद्यार्थी एवं अन्य भारतीय नागरिक मानव-विरोधी रास्तों पर चल पड़ते हैं, वे वास्तव में अपनी पढाई लिखाई माता-पिता की तथा उनके सारे मेहनत की अर्थी निकालकर अपने एवं अपने ही देश के उन लोगों द्वारा किये सारे मेहनत का अंतिम संस्कार करते हैं, जिन्होंने(गरीब-अमीर, कपडा बनाने वाले से लेकर कैंटीन में खाना पहुंचाने वाले से लेकर घरों सड़कों में झाडू मारने वालों तक) उन विद्यार्थियों एवं देशद्रोही लोगों को किसी ना किसी प्रकार से सहयोग करके यहाँ तक पहुँचाया, क्यूंकि कोई भी जन्मने वाला बच्चा बिना किसी सहायता के यहाँ तक नहीं पहुँच सकता, वर्तमान अवस्था पर पहुँचने के लिए सभी जन्मने वाले को समाज के अन्य वर्ग के लोगों की सहायता कहीं ना कहीं मिलती हैं चाहे प्रत्यक्ष में मिले या अप्रत्यक्ष में मिले.
देशद्रोही लोगों से प्रेरित होने वाले युवा इस देश के लिए कितने खतरनाक हैं, ये बताने का विषय नहीं है, क्यूंकि ये सर्ववीदित है. स्थिति कितनी गंभीर हैं,
इस बात का प्रमाण आप इस लिंक http://goo.gl/mTGQ3X में दिए हुए लेख से जान सकते हैं जो एक सहपाठी द्वारा उसके अपने ही महिला सहपाठी का अनुभव बताता है. इससे यह पता चलता है कि खतरा कितना गम्भीर है.
इस बात का प्रमाण आप इस लेख के दुसरे भाग में दिए हुए लेख से जान सकते हैं जो एक सहपाठी द्वारा उसके अपने ही महिला सहपाठी का अनुभव बताता है.
इन लोगों को ऐसे भड़काऊ एवं देश को तोड़ने वाले लोगों से प्रेरित होकर कुछ भी करने से पहले एक बार कुरआन जरूर पढ़ लेना चाहिए.इससे यह पता चलता है कि खतरा कितना गम्भीर है.
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इन लोगों को ऐसे भड़काऊ एवं देश को तोड़ने वाले लोगों से प्रेरित होकर कुछ भी करने से पहले कम से कम एक बार कुरान जरूर पढ़ लेना चाहिए. इसके बाद भगवद्गीता जरूर पढना चाहिए जो एक धर्मनिरपेक्ष ग्रन्थ है.
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देश को तोड़ने वालों से प्रेरित होने वाले शायद नहीं जानते कि हमारे देश को तोड़ने के लिए विदेशों से फंडिंग होती है, जिसे आप इन्टरनेट पे सर्फिंग(सर्च करके देख सकते है, और इस वाल पे पिछली लेख भी पढ़ सकते हैं, जिसमे लिंक बताया हुआ है [https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2059979944226415&set=a.1435143480043401.1073741829.100006432898079&type=3&theater ].
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इस फंडिंग का सबसे बड़ा कारण ये है की हमारी अर्थव्यवस्था विदेशी कंपनियों के ऊपर निर्भर होने के साथ साथ इसका एक बड़ा ही जिम्मेदार कारक है की हमारे देश की सेना के हथियार स्वनिर्मित ना होकर ३५ से ७०% तक विदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित होते हैं, जिसमे हार्डवेयर ट्रोजन जैसे अन्य गुप्त रास्ते होते हैं, जिससे हमारे देश का डाटा उन मशीन को बनाने वाले देशो को गुप्त माध्यमों द्वारा हस्तांतरित होता रहता है).
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हमारे देश में स्वनिर्मित हथियार बनाने में उतनी उच्च-गुणवत्ता हासिल नहीं होने का कारण हमें यह बताया जाता है, की हमारे देश के पास उतनी संपत्ति नहीं है, लेकिन अगर बात भ्रष्ट लोगों-अधिकारियों-मंत्रियों से गबन किये गए धन को वसूलने की बात आती है तो यहाँ का भ्रष्ट न्यायिक सिस्टम, इस बात को थोड़े ही दिनों में न्यूज़ चलाकर इन मामलों को ही बंद करवा देती है, रही बात न्याय की तो वो तो इस देश में मृत्यु-उपरान्त भी चलता है, इसमें क्या बड़ी बात है?
पर्याप्त धन दे दो और कोर्ट-कचहरी में मामले का डेट बढाते जाओ, तब तक बढ़ाओ जब तक की पीड़ित-पक्ष या अपराधी-पक्ष या दोनों की ही मृत्यु ना आ जाये.
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उसी तरह से आप परमाणु परिक्षण की क्षमता में भी भारत की तुलना अन्य देशों से कर सकते है, इसकी अध्ययन सामग्री आपको इन्टरनेट पर काफी मात्रा में मिल जायेगी. अगर आप उन अध्ययन संसाधनों को ध्यान से पढेंगे तो पायेंगे की भारत एवं पाकिस्तान की परमाणु क्षमता में कोई ख़ास अंतर नहीं है, कभी आपने यह ध्यान देने की कोशिश की कि द्वितीय परमाणु परिक्षण के बाद भारत पुनः और आगे की श्रृंखला का परमाणु-परिक्षण क्यों नहीं कर सका?
आपमें से कई लोग यह कहेंगे की भारत ने कभी दुसरे देशों पर आक्रमण नहीं किया , हम शान्ति-प्रिय देश हैं, हम पर भी कभी कोई आक्रमण नहीं करेगा, लेकिन शायद ऐसे लोगों को यह नहीं पता की भारत पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध को जीत न सका, वो हार गया था, अगर आप इस विषय पर अधिक जानना चाहते हैं तो कृपया यह लिंक सुनें-https://www.youtube.com/watch…
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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संधियों एवं मौद्रिक नीति का निर्धारण केवल उन्हीं देशों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है एवं किया जाता है, जो देश सामरिक एवं तकनिकी रूप से सबसे ज्यादा मजबूत हो. इस दुनिया में कमजोर देशों का एवं कमजोर जीवों का कोई नहीं होता और ना ही उनसे कोई मित्रता भी करना चाहता है.
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इस दुर्व्यवस्था को हटाकर जनहित में एक नयी व्यवस्था कायम करने के लिए इस देश में पारदर्शी शिकायत प्रणाली का आना अत्यावश्यक है, जिसका ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- ( पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186 )
जिसमे पीड़ित नागरिक अपनी समस्या या अपने मोहल्ले इत्यादि की समस्या को मात्र एक एफिडेविट को स्कैन करके जिले के कलेक्टर ऑफिस से माननीय प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रख सकेगा, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लॉग इन के देख सकेंगे. इस व्यवस्था में अन्य नागरिक भी अपनी राय/समर्थन/विरोध/सुझाव/सम्बंधित कानूनों में परिवर्तन रख सकेगा, इस व्यवस्था का एक डेमो देखने के लिए आप इस वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं- smstoneta.com
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जाकिर नाईक एवं ओवैसी जैसे लोगों तथा कुव्यवस्था फैलाने वालों से बचने के लिए इस देश में व्यवस्था परिवर्तन अत्यावश्यक है.
जनहित में व्यवस्था परिवर्तन को सरकार smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है, जहाँ कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं. यह डिमांड सांविधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
पब्लिक एस.एम.एस सर्वर का क्या स्वरूप हो सकता है ? https://goo.gl/41HTRF
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वैसे ही भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्टhttps://www.facebook.com/pawan.jury/posts/809740312477540
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आप को ज्ञात होगा कि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह संविधानिक अधिकार तथा कर्तव्य है कि, वह देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक आदेश अपने सांसद को भेजे। आप दिए गए ड्राफ्ट्स के लिंक्स में जाकर उनका अध्ययन करें, अगर सहमत हों तो अपने नेता/ मंत्री/ विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति को अपना सांविधानिक आदेश जरूर भेजें.
इस आदेश को अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें
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आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/809740312477540 क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून भारत में लाये जाने के लिए माननीय प्रधानमन्त्री को प्रेरित करने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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इसी तरह आप पारदर्शी शिकायत प्रणाली के ड्राफ्ट का क़ानून भारत में लाने के लिए कार्य कर सकते हैं, अन्य सम्बंधित कानूनों के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. लिंक की कॉपी इसलिए की गयी है क्यूंकि कई बार इन्टरनेट अधिक चर्चित वन देशद्रोही बातों को इन्टरनेट से हटा देताहै.
इस लेख का मतलब ये है की किस तरह से जाकिर नाइक विद्यार्थियों को गुमराह कर रहा है, और विद्यार्थी भी अपने पढ़े हुए विद्या की अर्थी निकलाने को तत्पर हैं.
नीचे दिए गए लेख जिसमे एक विद्यार्थी का अनुभव है की कैसे उसके एक महिला सहपाठी को जाकिर नाईक के भाषणों एवं लेखों द्वारा प्रेर्तित किया गया. इसमें जाकिर नाईक क़ुरान की कुछ आयतों का फ़र्जी तर्जुमा कर यह सिद्ध करने की चेष्टा करता है कि चूंकि क़ुरान में लिखा है कि जन्नत और ज़मीन पहले एक थे फिर अल्लाह ने उन्हें अलग कर दिया इसलिए यह सिद्ध होता है कि ‘बिग बैंग’ सिद्धांत पहले से ही इस्लाम की आसमानी किताब में लिखा हुआ है.
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आज से करीब पाँच साल पहले मेरे एक दोस्त की एक मुसलमान गर्लफ्रेंड थी. हैदराबाद की रहने वाली थी और दक्षिण में ही किसी कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी. उस समय उसकी उम्र 24-25 साल रही होगी. दोस्त का दोस्त होने के नाते वह मुझे भी मेसेज भेजा करती थी.
ज्यादा कुछ नहीं बस हाय हैलो हंसी मजाक टाइप. स्वभावतः वह बहुत अच्छी लड़की थी. कालांतर में मेरे दोस्त की शादी हो गयी फिर उस लड़की से कभी बात नहीं हुई. मेरे विचार से उसके बारे में इतना परिचय पर्याप्त है.
वह लड़की यह जानती थी कि मैं भौतिकी का विद्यार्थी हूँ और ब्रह्माण्ड से लेकर परमाणु तक सब पढ़ता हूँ. एक दिन उसने मेरा ईमेल माँगा और मुझे जाकिर नाईक के IRF से छपी कुछ पीडीएफ फ़ाइल भेजी. पाँच साल पहले मैं जाकिर नाईक नामक किसी भी आदमी को नहीं जानता था. लिहाजा वह ईमेल एक सरसरी निगाह से देखा और भूल गया.
कुछ दिन पहले जब इसका नाम मीडिया में उछला तो मुझे कुछ याद आया. मैंने अपने पुराने ईमेल चेक किये तो तीन पर्चों सहित जाकिर नाईक का लिखा 67 पेज का एक पीडीएफ डॉक्यूमेंट मिला जिसमें उसने क़ुरान की आयतों का हवाला देकर यह बताया है कि आधुनिक विज्ञान में जितनी भी खोज हुई है वह सब पहले से ही क़ुरान में लिखा हुआ है.
जाकिर नाईक ने बड़ी चालाकी से क़ुरान की आयतों को ‘Cosmology’ से जोड़ा है. इस विषय पर चर्चा करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि ‘ब्रह्माण्ड विज्ञान’ या cosmology क्या है. कॉस्मोलॉजी मूलतः भौतिकशास्त्र (Physics) की एक शाखा है.
इसकी परिभाषा है: “Cosmology is the study of universe as a whole.” अर्थात् समूचे ब्रह्माण्ड को निहारिकाओं, मन्दाकिनियों, ग्रहों, ब्लैक होल, तारामंडलों इत्यादि में विभाजित न कर के बल्कि एक पिंड के रूप में उसके गुण व्यवहार का समग्रता में अध्ययन करना कॉस्मोलॉजी है.
आधुनिक कॉस्मोलॉजी का आरंभ आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत से हुआ. कॉस्मोलॉजी में हम ब्रह्माण्ड को एक दिक् काल रूपी द्रव्य पिंड के रूप में मान कर उसमें व्याप्त पदार्थ, ताप, घनत्व, रेडिएशन तरंगों की ऊर्जा, विस्तार की गति इन सभी मानकों के परस्पर व्यवहार का अध्ययन करते हैं. इसी के आधार पर ‘बिग बैंग’ सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया था.
जाकिर नाईक क़ुरान की कुछ आयतों का फ़र्जी तर्जुमा कर यह सिद्ध करने की चेष्टा करता है कि चूंकि क़ुरान में लिखा है कि जन्नत और ज़मीन पहले एक थे फिर अल्लाह ने उन्हें अलग कर दिया इसलिए यह सिद्ध होता है कि ‘बिग बैंग’ सिद्धांत पहले से ही इस्लाम की आसमानी किताब में लिखा हुआ है.
इतना ही नहीं एक जगह यह भी लिखा कि अल्लाह ने आकाश में धुंआ बनाया फिर उसे एक जगह इकट्ठा होने का आदेश दिया इससे यह सिद्ध होता है कि मन्दाकिनी (galaxy) बनने से पहले सब पदार्थ धूल और धुएँ का गुबार था.
इसी तरह तमाम तथ्य जैसे धरती ध्रुवों पर चपटी गोल है, तारों के बीच का पदार्थ interstellar matter, सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगाता है इत्यादि पहले से ही क़ुरान में लिखे हैं यह जाकिर नाईक ने अपने इस पीडीएफ पर्चे में सिद्ध करने की कोशिश की है.
केवल कॉस्मोलॉजी ही नहीं बल्कि Botany, भूगर्भ विज्ञान, Marine Geology, Hydrology जैसे कई जटिल विषयों के अध्ययन से ज्ञात तथ्यों को भी क़ुरान की ही देन बताया है. कहीं कहीं तो उसने कई प्रसिद्ध विषय विशेषज्ञों को मनमाना ढंग से उद्धृत भी किया है. स्टीफेन हॉकिंग, एडविन हबल जैसे विद्वानों का रेफरेंस दिया है.
एक दूसरे पर्चे में तो बाकायदा सैद्धांतिक भौतिकी के प्रकांड विद्वान तथा नोबेल से सम्मानित प्रोफेसर स्टीवन वाइनबर्ग की प्रसिद्ध पुस्तक First Three Minutes का हवाला भी दिया गया है.
जाकिर नाईक के तमाम प्रयासों के बावजूद उसके द्वारा प्रचारित झूठ का भंडाफोड़ करना कोई कठिन कार्य नहीं है. मैं कॉस्मोलॉजी जानता हूँ इसलिए यह कह सकता हूँ कि इस विषय में जितनी भी खोजें हुई हैं वह या तो गणितीय प्रमेयों द्वारा सिद्ध हैं या प्रायोगिक रूप प्रत्यक्ष मापी गयी हैं.
दरअसल कॉस्मोलॉजी गणितीय भौतिकी से निकला विषय है जहाँ ब्रह्माण्ड के व्यवहार को दर्शाने के लिए उसके भौतिक मानकों को एक गणितीय सूत्र में पिरोया जाता है फिर हर स्थिति में उसे हल किया जाता है.
यदि वह समीकरण हर स्थिति में समाधान देता है तभी वैज्ञानिक जगत में उसे स्वीकृति मिलती है और पेपर छपने लायक बनता है. इसे mathematical model of universe कहा जाता है. ऐसे अनगिनत मॉडल बनाये गए हैं जिनमें Big Bang मॉडल को Standard Model of Universe कहा जाता है.
आर्नो पेन्ज़िअस और रॉबर्ट विल्सन ने cosmic microwave background रेडिएशन को अपने उपकरण पर प्रत्यक्ष सुना था. एडविन हबल ने दूर जाती मन्दाकिनियों से निकलते प्रकाश का विश्लेषण किया था. एलन गुथ ने जब कहा कि ब्रह्माण्ड विस्तारित हो रहा है तो यह बात उनके स्वप्न में नहीं आई थी.
उनकी inflationary universe theory या हाकिंग के singularity theorems बाकायदा क्लिष्ट गणित द्वारा सिद्ध किये गए हैं, अल्लाह ने हैरी पॉटर की छड़ी घुमाई और ब्रह्माण्ड फैलने लगा ऐसा तो नहीं हुआ था.
आइंस्टीन के सिद्धांत के प्रतिपादन से अब तक सौ वर्षों में हज़ारों वैज्ञानिकों की तपस्या और करोड़ों डॉलर फूंक चुके हैं तब आज बिग बैंग सिद्धांत सर्वमान्य है. इसमें भारतीय वैज्ञानिकों का भी बड़ा योगदान रहा है. ब्रह्माण्ड के अध्ययन के लिए बड़ी बड़ी दूरबीनें धरती पर स्थापित की गयीं और अंतरिक्ष में भी प्रक्षेपित की गयी हैं. भारत का Astrosat इसी कार्य के लिए छोड़ा गया है.
विज्ञान निरन्तर शोध का विषय है. बहुत से विद्वान बिग बैंग थ्योरी से सहमत नहीं भी हैं. किंतु उनका विरोध का तरीका वैज्ञानिक आधार लिए होता है. जाकिर नाईक के जाल में फंसने वालों को क़ुरान का बेवजह ऊंट पटांग तर्जुमा और व्याख्या करने की बजाय ग्यारहवीं सदी के अरबी विद्वान सईद अल अन्दलूसी की किताब-तबाकत-अल-उमाम पढ़नी चाहिये जिसमें लिखा है कि विज्ञान को अपनाने वाली आठ सभ्यताओं में से भारत पहली सभ्यता थी जहाँ ज्ञान विज्ञान को जानने वाले तथा बहुत से दुर्लभ आविष्कार हुए.
यदि मन न भरे तो भारत का वैज्ञानिक इतिहास जानने के लिए बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक प्रो० देबेन्द्र मोहन बोस द्वारा सम्पादित A Concise History of Science in India पढ़नी चाहिये. इस पुस्तक में कैलकुलस में बताई गयी तात्कालिक गति (intantaneous velocity) का सटीक सूत्र तक मिल जायेगा जो प्राचीन भारतीय मनीषियों ने खोजे थे.
इसके अलावा प्रसिद्ध इतिहासकार आर सी मजूमदार जैसे विद्वानों द्वारा लिखित प्रमाण भी इसी पुस्तक में मिल जाएंगे. यह पुस्तक आसमान से नहीं गिरी थी बल्कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी से प्रकाशित की गयी थी.
यद्यपि जाकिर नाईक खुद क़ुरान का तर्जुमा भी नहीं कर सकता फिर भी मैं नहीं मानता कि वह एक जोकर या मूर्ख व्यक्ति है. जाकिर एक बहुत ही चालाक और मज़हब के प्रति ईमान रखने वाला व्यक्ति है. उसने अब्दुल्ला युसूफ अली द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित क़ुरान से आयतें उठा कर विज्ञान की उन शाखाओं से जोड़ा है जो बहुत कम लोग जानते समझते हैं.
उसकी संस्था IRF द्वारा प्रकाशित जो पर्चे मेरे हाथ लगे उनमें कुछ इस तरह से लिखा गया है कि विज्ञान पढ़ने वाले बुद्धिमान युवा छात्र उसकी तरफ आकर्षित हों. यह जाकिर नाईक द्वारा इकट्ठा किये गए youtube पर दिखने वाले उस मजमे से अलग है जहाँ कभी कभी उसका मखौल भी उड़ाया जाता है. जाकिर मूर्ख को मूर्ख की तरह तथा बुद्धिमान को बुद्धिमान की तरह अपनी बात समझाना चाहता है.
वह युवा मुसलमान लड़के लड़कियों को विज्ञान की चमक दिखा कर इस्लामी चरमपंथ की तरफ मोड़ता है. वरना एक 24-25 साल की लड़की जो मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी उसने मेरे जैसे एक ग़ैर को IRF के पर्चे न भेजे होते. इससे यह पता चलता है कि खतरा कितना गम्भीर है.
देशद्रोही लोगों से प्रेरित होने वाले युवा इस देश के लिए कितने खतरनाक हैं, ये बताने का विषय नहीं है, क्यूंकि ये सर्ववीदित है. स्थिति कितनी गंभीर हैं,
इस बात का प्रमाण आप इस लिंक http://goo.gl/mTGQ3X में दिए हुए लेख से जान सकते हैं जो एक सहपाठी द्वारा उसके अपने ही महिला सहपाठी का अनुभव बताता है. इससे यह पता चलता है कि खतरा कितना गम्भीर है.
इस बात का प्रमाण आप इस लेख के दुसरे भाग में दिए हुए लेख से जान सकते हैं जो एक सहपाठी द्वारा उसके अपने ही महिला सहपाठी का अनुभव बताता है.
इन लोगों को ऐसे भड़काऊ एवं देश को तोड़ने वाले लोगों से प्रेरित होकर कुछ भी करने से पहले एक बार कुरआन जरूर पढ़ लेना चाहिए.इससे यह पता चलता है कि खतरा कितना गम्भीर है.
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इन लोगों को ऐसे भड़काऊ एवं देश को तोड़ने वाले लोगों से प्रेरित होकर कुछ भी करने से पहले कम से कम एक बार कुरान जरूर पढ़ लेना चाहिए. इसके बाद भगवद्गीता जरूर पढना चाहिए जो एक धर्मनिरपेक्ष ग्रन्थ है.
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देश को तोड़ने वालों से प्रेरित होने वाले शायद नहीं जानते कि हमारे देश को तोड़ने के लिए विदेशों से फंडिंग होती है, जिसे आप इन्टरनेट पे सर्फिंग(सर्च करके देख सकते है, और इस वाल पे पिछली लेख भी पढ़ सकते हैं, जिसमे लिंक बताया हुआ है [https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2059979944226415&set=a.1435143480043401.1073741829.100006432898079&type=3&theater ].
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इस फंडिंग का सबसे बड़ा कारण ये है की हमारी अर्थव्यवस्था विदेशी कंपनियों के ऊपर निर्भर होने के साथ साथ इसका एक बड़ा ही जिम्मेदार कारक है की हमारे देश की सेना के हथियार स्वनिर्मित ना होकर ३५ से ७०% तक विदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित होते हैं, जिसमे हार्डवेयर ट्रोजन जैसे अन्य गुप्त रास्ते होते हैं, जिससे हमारे देश का डाटा उन मशीन को बनाने वाले देशो को गुप्त माध्यमों द्वारा हस्तांतरित होता रहता है).
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हमारे देश में स्वनिर्मित हथियार बनाने में उतनी उच्च-गुणवत्ता हासिल नहीं होने का कारण हमें यह बताया जाता है, की हमारे देश के पास उतनी संपत्ति नहीं है, लेकिन अगर बात भ्रष्ट लोगों-अधिकारियों-मंत्रियों से गबन किये गए धन को वसूलने की बात आती है तो यहाँ का भ्रष्ट न्यायिक सिस्टम, इस बात को थोड़े ही दिनों में न्यूज़ चलाकर इन मामलों को ही बंद करवा देती है, रही बात न्याय की तो वो तो इस देश में मृत्यु-उपरान्त भी चलता है, इसमें क्या बड़ी बात है?
पर्याप्त धन दे दो और कोर्ट-कचहरी में मामले का डेट बढाते जाओ, तब तक बढ़ाओ जब तक की पीड़ित-पक्ष या अपराधी-पक्ष या दोनों की ही मृत्यु ना आ जाये.
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उसी तरह से आप परमाणु परिक्षण की क्षमता में भी भारत की तुलना अन्य देशों से कर सकते है, इसकी अध्ययन सामग्री आपको इन्टरनेट पर काफी मात्रा में मिल जायेगी. अगर आप उन अध्ययन संसाधनों को ध्यान से पढेंगे तो पायेंगे की भारत एवं पाकिस्तान की परमाणु क्षमता में कोई ख़ास अंतर नहीं है, कभी आपने यह ध्यान देने की कोशिश की कि द्वितीय परमाणु परिक्षण के बाद भारत पुनः और आगे की श्रृंखला का परमाणु-परिक्षण क्यों नहीं कर सका?
आपमें से कई लोग यह कहेंगे की भारत ने कभी दुसरे देशों पर आक्रमण नहीं किया , हम शान्ति-प्रिय देश हैं, हम पर भी कभी कोई आक्रमण नहीं करेगा, लेकिन शायद ऐसे लोगों को यह नहीं पता की भारत पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध को जीत न सका, वो हार गया था, अगर आप इस विषय पर अधिक जानना चाहते हैं तो कृपया यह लिंक सुनें-https://www.youtube.com/watch…
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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संधियों एवं मौद्रिक नीति का निर्धारण केवल उन्हीं देशों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है एवं किया जाता है, जो देश सामरिक एवं तकनिकी रूप से सबसे ज्यादा मजबूत हो. इस दुनिया में कमजोर देशों का एवं कमजोर जीवों का कोई नहीं होता और ना ही उनसे कोई मित्रता भी करना चाहता है.
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इस दुर्व्यवस्था को हटाकर जनहित में एक नयी व्यवस्था कायम करने के लिए इस देश में पारदर्शी शिकायत प्रणाली का आना अत्यावश्यक है, जिसका ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- ( पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186 )
जिसमे पीड़ित नागरिक अपनी समस्या या अपने मोहल्ले इत्यादि की समस्या को मात्र एक एफिडेविट को स्कैन करके जिले के कलेक्टर ऑफिस से माननीय प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रख सकेगा, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लॉग इन के देख सकेंगे. इस व्यवस्था में अन्य नागरिक भी अपनी राय/समर्थन/विरोध/सुझाव/सम्बंधित कानूनों में परिवर्तन रख सकेगा, इस व्यवस्था का एक डेमो देखने के लिए आप इस वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं- smstoneta.com
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जाकिर नाईक एवं ओवैसी जैसे लोगों तथा कुव्यवस्था फैलाने वालों से बचने के लिए इस देश में व्यवस्था परिवर्तन अत्यावश्यक है.
जनहित में व्यवस्था परिवर्तन को सरकार smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है, जहाँ कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं. यह डिमांड सांविधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
पब्लिक एस.एम.एस सर्वर का क्या स्वरूप हो सकता है ? https://goo.gl/41HTRF
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वैसे ही भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्टhttps://www.facebook.com/pawan.jury/posts/809740312477540
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आप को ज्ञात होगा कि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह संविधानिक अधिकार तथा कर्तव्य है कि, वह देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक आदेश अपने सांसद को भेजे। आप दिए गए ड्राफ्ट्स के लिंक्स में जाकर उनका अध्ययन करें, अगर सहमत हों तो अपने नेता/ मंत्री/ विधायक/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति को अपना सांविधानिक आदेश जरूर भेजें.
इस आदेश को अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें
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आप अपना आदेश इस प्रकार भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में स्वदेशी हथियारों के उत्पादन के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/809740312477540 क़ानून को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून भारत में लाये जाने के लिए माननीय प्रधानमन्त्री को प्रेरित करने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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इसी तरह आप पारदर्शी शिकायत प्रणाली के ड्राफ्ट का क़ानून भारत में लाने के लिए कार्य कर सकते हैं, अन्य सम्बंधित कानूनों के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. लिंक की कॉपी इसलिए की गयी है क्यूंकि कई बार इन्टरनेट अधिक चर्चित वन देशद्रोही बातों को इन्टरनेट से हटा देताहै.
इस लेख का मतलब ये है की किस तरह से जाकिर नाइक विद्यार्थियों को गुमराह कर रहा है, और विद्यार्थी भी अपने पढ़े हुए विद्या की अर्थी निकलाने को तत्पर हैं.
नीचे दिए गए लेख जिसमे एक विद्यार्थी का अनुभव है की कैसे उसके एक महिला सहपाठी को जाकिर नाईक के भाषणों एवं लेखों द्वारा प्रेर्तित किया गया. इसमें जाकिर नाईक क़ुरान की कुछ आयतों का फ़र्जी तर्जुमा कर यह सिद्ध करने की चेष्टा करता है कि चूंकि क़ुरान में लिखा है कि जन्नत और ज़मीन पहले एक थे फिर अल्लाह ने उन्हें अलग कर दिया इसलिए यह सिद्ध होता है कि ‘बिग बैंग’ सिद्धांत पहले से ही इस्लाम की आसमानी किताब में लिखा हुआ है.
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आज से करीब पाँच साल पहले मेरे एक दोस्त की एक मुसलमान गर्लफ्रेंड थी. हैदराबाद की रहने वाली थी और दक्षिण में ही किसी कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी. उस समय उसकी उम्र 24-25 साल रही होगी. दोस्त का दोस्त होने के नाते वह मुझे भी मेसेज भेजा करती थी.
ज्यादा कुछ नहीं बस हाय हैलो हंसी मजाक टाइप. स्वभावतः वह बहुत अच्छी लड़की थी. कालांतर में मेरे दोस्त की शादी हो गयी फिर उस लड़की से कभी बात नहीं हुई. मेरे विचार से उसके बारे में इतना परिचय पर्याप्त है.
वह लड़की यह जानती थी कि मैं भौतिकी का विद्यार्थी हूँ और ब्रह्माण्ड से लेकर परमाणु तक सब पढ़ता हूँ. एक दिन उसने मेरा ईमेल माँगा और मुझे जाकिर नाईक के IRF से छपी कुछ पीडीएफ फ़ाइल भेजी. पाँच साल पहले मैं जाकिर नाईक नामक किसी भी आदमी को नहीं जानता था. लिहाजा वह ईमेल एक सरसरी निगाह से देखा और भूल गया.
कुछ दिन पहले जब इसका नाम मीडिया में उछला तो मुझे कुछ याद आया. मैंने अपने पुराने ईमेल चेक किये तो तीन पर्चों सहित जाकिर नाईक का लिखा 67 पेज का एक पीडीएफ डॉक्यूमेंट मिला जिसमें उसने क़ुरान की आयतों का हवाला देकर यह बताया है कि आधुनिक विज्ञान में जितनी भी खोज हुई है वह सब पहले से ही क़ुरान में लिखा हुआ है.
जाकिर नाईक ने बड़ी चालाकी से क़ुरान की आयतों को ‘Cosmology’ से जोड़ा है. इस विषय पर चर्चा करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि ‘ब्रह्माण्ड विज्ञान’ या cosmology क्या है. कॉस्मोलॉजी मूलतः भौतिकशास्त्र (Physics) की एक शाखा है.
इसकी परिभाषा है: “Cosmology is the study of universe as a whole.” अर्थात् समूचे ब्रह्माण्ड को निहारिकाओं, मन्दाकिनियों, ग्रहों, ब्लैक होल, तारामंडलों इत्यादि में विभाजित न कर के बल्कि एक पिंड के रूप में उसके गुण व्यवहार का समग्रता में अध्ययन करना कॉस्मोलॉजी है.
आधुनिक कॉस्मोलॉजी का आरंभ आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत से हुआ. कॉस्मोलॉजी में हम ब्रह्माण्ड को एक दिक् काल रूपी द्रव्य पिंड के रूप में मान कर उसमें व्याप्त पदार्थ, ताप, घनत्व, रेडिएशन तरंगों की ऊर्जा, विस्तार की गति इन सभी मानकों के परस्पर व्यवहार का अध्ययन करते हैं. इसी के आधार पर ‘बिग बैंग’ सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया था.
जाकिर नाईक क़ुरान की कुछ आयतों का फ़र्जी तर्जुमा कर यह सिद्ध करने की चेष्टा करता है कि चूंकि क़ुरान में लिखा है कि जन्नत और ज़मीन पहले एक थे फिर अल्लाह ने उन्हें अलग कर दिया इसलिए यह सिद्ध होता है कि ‘बिग बैंग’ सिद्धांत पहले से ही इस्लाम की आसमानी किताब में लिखा हुआ है.
इतना ही नहीं एक जगह यह भी लिखा कि अल्लाह ने आकाश में धुंआ बनाया फिर उसे एक जगह इकट्ठा होने का आदेश दिया इससे यह सिद्ध होता है कि मन्दाकिनी (galaxy) बनने से पहले सब पदार्थ धूल और धुएँ का गुबार था.
इसी तरह तमाम तथ्य जैसे धरती ध्रुवों पर चपटी गोल है, तारों के बीच का पदार्थ interstellar matter, सूर्य आकाश गंगा का चक्कर लगाता है इत्यादि पहले से ही क़ुरान में लिखे हैं यह जाकिर नाईक ने अपने इस पीडीएफ पर्चे में सिद्ध करने की कोशिश की है.
केवल कॉस्मोलॉजी ही नहीं बल्कि Botany, भूगर्भ विज्ञान, Marine Geology, Hydrology जैसे कई जटिल विषयों के अध्ययन से ज्ञात तथ्यों को भी क़ुरान की ही देन बताया है. कहीं कहीं तो उसने कई प्रसिद्ध विषय विशेषज्ञों को मनमाना ढंग से उद्धृत भी किया है. स्टीफेन हॉकिंग, एडविन हबल जैसे विद्वानों का रेफरेंस दिया है.
एक दूसरे पर्चे में तो बाकायदा सैद्धांतिक भौतिकी के प्रकांड विद्वान तथा नोबेल से सम्मानित प्रोफेसर स्टीवन वाइनबर्ग की प्रसिद्ध पुस्तक First Three Minutes का हवाला भी दिया गया है.
जाकिर नाईक के तमाम प्रयासों के बावजूद उसके द्वारा प्रचारित झूठ का भंडाफोड़ करना कोई कठिन कार्य नहीं है. मैं कॉस्मोलॉजी जानता हूँ इसलिए यह कह सकता हूँ कि इस विषय में जितनी भी खोजें हुई हैं वह या तो गणितीय प्रमेयों द्वारा सिद्ध हैं या प्रायोगिक रूप प्रत्यक्ष मापी गयी हैं.
दरअसल कॉस्मोलॉजी गणितीय भौतिकी से निकला विषय है जहाँ ब्रह्माण्ड के व्यवहार को दर्शाने के लिए उसके भौतिक मानकों को एक गणितीय सूत्र में पिरोया जाता है फिर हर स्थिति में उसे हल किया जाता है.
यदि वह समीकरण हर स्थिति में समाधान देता है तभी वैज्ञानिक जगत में उसे स्वीकृति मिलती है और पेपर छपने लायक बनता है. इसे mathematical model of universe कहा जाता है. ऐसे अनगिनत मॉडल बनाये गए हैं जिनमें Big Bang मॉडल को Standard Model of Universe कहा जाता है.
आर्नो पेन्ज़िअस और रॉबर्ट विल्सन ने cosmic microwave background रेडिएशन को अपने उपकरण पर प्रत्यक्ष सुना था. एडविन हबल ने दूर जाती मन्दाकिनियों से निकलते प्रकाश का विश्लेषण किया था. एलन गुथ ने जब कहा कि ब्रह्माण्ड विस्तारित हो रहा है तो यह बात उनके स्वप्न में नहीं आई थी.
उनकी inflationary universe theory या हाकिंग के singularity theorems बाकायदा क्लिष्ट गणित द्वारा सिद्ध किये गए हैं, अल्लाह ने हैरी पॉटर की छड़ी घुमाई और ब्रह्माण्ड फैलने लगा ऐसा तो नहीं हुआ था.
आइंस्टीन के सिद्धांत के प्रतिपादन से अब तक सौ वर्षों में हज़ारों वैज्ञानिकों की तपस्या और करोड़ों डॉलर फूंक चुके हैं तब आज बिग बैंग सिद्धांत सर्वमान्य है. इसमें भारतीय वैज्ञानिकों का भी बड़ा योगदान रहा है. ब्रह्माण्ड के अध्ययन के लिए बड़ी बड़ी दूरबीनें धरती पर स्थापित की गयीं और अंतरिक्ष में भी प्रक्षेपित की गयी हैं. भारत का Astrosat इसी कार्य के लिए छोड़ा गया है.
विज्ञान निरन्तर शोध का विषय है. बहुत से विद्वान बिग बैंग थ्योरी से सहमत नहीं भी हैं. किंतु उनका विरोध का तरीका वैज्ञानिक आधार लिए होता है. जाकिर नाईक के जाल में फंसने वालों को क़ुरान का बेवजह ऊंट पटांग तर्जुमा और व्याख्या करने की बजाय ग्यारहवीं सदी के अरबी विद्वान सईद अल अन्दलूसी की किताब-तबाकत-अल-उमाम पढ़नी चाहिये जिसमें लिखा है कि विज्ञान को अपनाने वाली आठ सभ्यताओं में से भारत पहली सभ्यता थी जहाँ ज्ञान विज्ञान को जानने वाले तथा बहुत से दुर्लभ आविष्कार हुए.
यदि मन न भरे तो भारत का वैज्ञानिक इतिहास जानने के लिए बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक प्रो० देबेन्द्र मोहन बोस द्वारा सम्पादित A Concise History of Science in India पढ़नी चाहिये. इस पुस्तक में कैलकुलस में बताई गयी तात्कालिक गति (intantaneous velocity) का सटीक सूत्र तक मिल जायेगा जो प्राचीन भारतीय मनीषियों ने खोजे थे.
इसके अलावा प्रसिद्ध इतिहासकार आर सी मजूमदार जैसे विद्वानों द्वारा लिखित प्रमाण भी इसी पुस्तक में मिल जाएंगे. यह पुस्तक आसमान से नहीं गिरी थी बल्कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी से प्रकाशित की गयी थी.
यद्यपि जाकिर नाईक खुद क़ुरान का तर्जुमा भी नहीं कर सकता फिर भी मैं नहीं मानता कि वह एक जोकर या मूर्ख व्यक्ति है. जाकिर एक बहुत ही चालाक और मज़हब के प्रति ईमान रखने वाला व्यक्ति है. उसने अब्दुल्ला युसूफ अली द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित क़ुरान से आयतें उठा कर विज्ञान की उन शाखाओं से जोड़ा है जो बहुत कम लोग जानते समझते हैं.
उसकी संस्था IRF द्वारा प्रकाशित जो पर्चे मेरे हाथ लगे उनमें कुछ इस तरह से लिखा गया है कि विज्ञान पढ़ने वाले बुद्धिमान युवा छात्र उसकी तरफ आकर्षित हों. यह जाकिर नाईक द्वारा इकट्ठा किये गए youtube पर दिखने वाले उस मजमे से अलग है जहाँ कभी कभी उसका मखौल भी उड़ाया जाता है. जाकिर मूर्ख को मूर्ख की तरह तथा बुद्धिमान को बुद्धिमान की तरह अपनी बात समझाना चाहता है.
वह युवा मुसलमान लड़के लड़कियों को विज्ञान की चमक दिखा कर इस्लामी चरमपंथ की तरफ मोड़ता है. वरना एक 24-25 साल की लड़की जो मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी उसने मेरे जैसे एक ग़ैर को IRF के पर्चे न भेजे होते. इससे यह पता चलता है कि खतरा कितना गम्भीर है.
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.