FDI क्या है ? यह देश की अर्थव्यवस्था को कैसे नुक्सान करता है? आप इसके लिए क्या कर सकते हैं?
FDI क्या है ? यह देश की अर्थव्यवस्था को कैसे नुक्सान करता है? आप इसके लिए क्या कर सकते हैं?-
.
विदेशी कम्पनियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति देना FDI है, जैसे कि ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापार की अनुमति दी गयी थी, ईस्ट इंडिया कंपनी एक FDI थी ।
.
आर्थिक दृष्टिकोण से FDI के क्या फायदे होते है ?
FDI आने से क्षद्म तौर पर हमेशा विकास होता है, रोज़गार के अवसर पैदा होते है, नयी नयी तकनीक आती है, सब कुछ चमकदार हो जाता है आदि आदि ।
.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आने से क्या विकास हुआ ?
ईस्ट इण्डिया कंपनी ने हमें रेल दी(जबकि खर्चे भारतीय राजा ने ही किया था), तार दिया, टेलीफोन दिया, सड़के और पुल बना कर दिए, और भी बहुत कुछ दिया ।
.
किन्तु पाठ्यपुस्तको में तो कहा गया है कि, ईस्ट इण्डिया कंपनी ने हमें गुलाम बना लिया था, और उन्हें भगाने में हमे सालो संघर्ष करना पड़ा ।
बकवास, यदि ऐसा होता तो हम आज फिर से अमेरिकी कम्पनियों को विकास के लिए क्यों बुला रहे है, बताइये ?
कुछ अक्ल के अन्धो ने अंग्रेजो को खदेड़ दिया था, लेकिन 1992 से हमने उन्हें फिर से देश में आकर विकास करने को राजी कर लिया है, और अब तो हम मेक इन इण्डिया नाम का मिशन लेकर चल रहे है, अत: विकास की सुनामी आने वाली है, आप अपने हाथ पाँव संभाल कर रहिएगा, वरना देश के साथ आप भी बह जाओगे ।
.
FDI के राजनेतिक फायदे क्या है ?
अव्वल तो यह कि FDI ढ़ेर सारा पैसा लेकर आती है, अत: राजनेताओ, नौकरशाहो, बिचौलियों आदि का जमकर विकास होता है, दुसरे यह कि नेताओं को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान और वाहवाही मिलती है, जैसे कि जवाहर गाज़ी, मोहन गांधी, मोदी आदि को मिली । इस से नेताओं का सत्ता में बने रहना भी आसान हो जाता है ।
.
मतलब FDI से पांचो अंगुलियाँ घी में रहती है ।
बिलकुल, और देश का सिर उबलते तेल की कडाही में चला जाता है ।
.
जब भी FDI को अनुमति दी जाती है, मिडिया इन्हें 'साहसिक' फैसले की संज्ञा देता है, नेता जी को इसमें किस प्रकार के साहस का प्रदर्शन करना होता है ?
असल में FDI की फ़ाइलो से किंग कोबरा लिपटे हुए रहते है, और ये फ़ाइले मेथिल आइसो सायनाइड गैस से भरे हुए चेंबर में रखी रहती है । प्रधानमन्त्री को स्वयं उस चेंबर में जाकर किंग कोबरा के चंगुल से फ़ाइले छुड़ा कर हस्ताक्षर करने का जोखिम उठाना होता है, इसलिए ये फैसले साहसिक होते है । हालांकि 1992 से अब तक सभी प्रधानमन्त्री ये जोखिम उठाते आये है । सबसे पहले 1992 में मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री रहते इस विष कक्ष का दरवाजा खोलने का साहस किया था, तब से सबसे ज्यादा जोखिम मनमोहन सिंह ही उठाते आये है । उनके 10 साला प्रधानमन्त्री कार्यकाल के दौरान इस कक्ष में उनका रोज का आना जाना था ।
.
मोदी साहेब का FDI को लेकर क्या रवैया है ?
मोदी साहेब पिछले 7 महीनो से उसी कक्ष में जमे बैठे है, कभी कभार ही शुद्ध वायु सेवन के लिए कक्ष से बाहर तशरीफ़ लाते है ।
.
मनमोहन और मोदी साहेब की FDI निती में मूलभूत अंतर क्या है ?
मनमोहन FDI की टिकड़ीयां डरते डरते फोड़ते थे, जबकि मोदी साहेब FDI छाप सूतली बम के धमाके भी एलानियाँ करते है ।
बहरहाल मोदी साहेब को क्रेडिट दिया जाना चाहिए कि उन्होंने FDI को जनता के लिए मनोरंजक कलेवर में पेश कर दिया है ।
.
FDI का मेक इन इण्डिया से क्या सरोकार है ?
कोई सरोकार नही, दोनों एक ही है । FDI पर स्वदेशी संगठन सदा से कोहराम मचाये रहते है, इसलिए इसे नया नाम दे दिया गया है । इस से यह खुशफहमी बनी रहती है कि, मोदी साहेब कोई नयी 'चीज' लाये है ।
.
मेक इन इंडिया का शुभंकर शेर बनाए जाने का प्रयोजन है ?
मोदी साहेब इस सच्चाई को छुपा नहीं रहे है कि, पूरा भारत धीरे धीरे इस शेर की खुराक हो जाएगा ।
.
FDI के आर्थिक नुकसान क्या है ?
FDI के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कम्पनीयां घरेलू बाजार पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर के एकाधिकार (मोनोपोली) स्थापित कर लेती है, जिससे स्वदेशी इकाइयां या तो बंद होती है या बिक जाती है ।
.
FDI से प्रतिस्पर्धा बढती है, और उपभोक्ता को फायदा होता है ?
इस से ज्यादा चालाक तर्क दूसरा नही हो सकता । आप बिल्लियों और बघियारो के बीच किस तरह की प्रतिस्पर्धा की उम्मीद करते है । शुरूआती स्तर पर उपभोक्ता को आंशिक लाभ होता है, किन्तु एकाधिकार स्थापित होने के बाद अमुक कंपनी को मनमानी राशि वसूलने की आजादी मिल जाती है ।
.
FDI से रोज़गार का सृजन होता है ?
बकवास है । MNCs उत्पादन के लिए अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करती है, जिससे मानव श्रम में कमी आ जाती है, तथा सिर्फ लेखा कार्यो के लिए क्लर्क क्लास की आवश्यकता होती है ।
इसे एक छोटे उदाहरण से समझते है :
कोक-पेप्सी के आने से गोल्ड स्पॉट, लिम्का, थम्स अप, केम्पा कोला जैसी दसियों इकाइयां बंद या टेक ओवर हो गयी । आज शीतल पेय के पूरे बाज़ार पर दो कम्पनियों का कब्ज़ा है, जहाँ 50 कम्पनियां काम कर रही थी, आज सिर्फ दो कम्पनियां मुनाफा कमा रही है ।
हालांकि इस प्रकार की चटनी चूरण कम्पनियों से देश को कोई गंभीर नुक्सान नहीं होता !! है न!! किन्तु तकनीक तथा प्राकृतिक संसाधन आधारित क्षेत्रो जैसे ऊर्जा, खनन, रेल, दूरसंचार, बेंकिंग और हथियार निर्माण के क्षेत्र में FDI आत्मघाती थेलियों के सिवा कुछ नही है, जो पूरे देश को पचा लेती है ।
.
सब तो कह रहे है कि, FDI से देश में पैसा आता है, जिससे देश अमीर होता है?
आप पेड मिडिया द्वारा पिलाई जा रही अफीम के नशे में बौरा गए लगते है । वास्तविक स्थिति इसके ठीक उलट होती है ।
मिसाल के लिए मान लीजिये कि, एक कम्पनी 'R' 100 करोड़ डॉलर की पूँजी लेकर आती है । यह रुपया वह कम्पनी भारत सरकार को जमा करके, 100×60 = 6000 करोड़ रूपये की भारतीय मुद्रा प्राप्त करती है, तथा अगले दस वर्ष में 6000 करोड़ से 30,000 करोड़ का मुनाफा कमाती है । ऐसी स्थिति में भारत सरकार को अमुक कंपनी को 10 वर्ष बाद 30,000÷60 = 500 करोड़ डॉलर चुकाने होते है ।
यदि ऐसी 100 कम्पनियां भारत में कार्य करती है तो भारत को 500×100 = 50,000 करोड़ डॉलर चुकाने होंगे ।
अब समस्या यह है कि हमारे पास नोट छापने की मशीने तो थोक में पड़ी है, पर डॉलर छापने का कोई यंत्र नही, क्योंकि डॉलर छापने की मशीने तो अमेरिका के पास है ।
चूंकि हम कमाए गए मुनाफे के बदले डॉलर देने का 'साहसिक' वादा कर चुके है, अत: हमें ये डॉलर चुकाना ही है । डॉलर हासिल करने के निम्नलिखित उपाय है :
1. निर्यात से डॉलर आता है, परन्तु हम निर्यात से ज्यादा आयात कर लेते है, इसलिए व्यापार विनिमय से भी हम पर डॉलर का क़र्ज़ चढ़ जाता है ।
2. विदेशी क़र्ज़ : हम विश्व बेंक के परमानेंट लोनिये है, और ब्याज की किश्ते चुकाने के लिए भी और क़र्ज़ ले रहे है ।
3. फिर से FDI के नाम किसी कम्पनी 'T' से डॉलर की पूँजी लेकर 'R' के क़र्ज़ को चुकाया जाए । लगभग सभी क्षेत्र खोल चुके है । विकल्प कम बचे है ।
4. सोना गिरवी रखा जाए : मनमोहन ने जो गिरवी रखा था वो भी अभी पूरा नही छुडवा पाए है, सोना वेसे भी हमारे पास ज्यादा बचा नहीं है । हालत यह है कि मोदी साहेब को मंदिरों पर भी हाथ डालना पड़ रहा है ।
5. हम अपनी राष्ट्रिय संपत्तियां, खनिज और प्राकृतिक संसाधन लेनदार कम्पनियों के हवाले कर के भरपाई करे ।
6. कर्जा खा जाएँ और अमुक कम्पनी के देश से युद्ध लड़े । ( अमुक देश अमेरिका है )
.
FDI के राजनेतिक नुक्सान क्या है ?
इतिहासकार टॉयंडी का मशहूर कथन है कि, यदि किसी देश में आर्थिक गुलामी आती है, तो राजनेतिक गुलामी आती ही है । जिस प्रकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने शुरूआती 200 वर्ष तक व्यापार किया, और बाद में हमें गुलाम बनाया ।
.
पहले की बात अलग थी, अब हमारे देश में लोकतंत्र है, मतदान का अधिकार है, अत: राजनेतिक गुलामी कैसे आ सकती है ?
बुद्धिमानों, सिर्फ चुनने का अधिकार होना लोकतंत्र नही है, अपने भ्रष्ट प्रतिनिधियों हटाने का अधिकार ही लोकतंत्र की रचना करता है ।
.
भारत में राईट टू रिकाल क़ानून न होने की वजह से अधूरा लोकतंत्र है, इसलिए नेता जनादेश की मनमानी व्याख्या करते है । इस क़ानून के बिना सभी नेता-मंत्री-भ्रष्ट अधिकारी जनता को भेडिये की भाँती संहार कर जाते हैं.
इसे यूँ समझिये कि, चुनाव के 6 महीने पहले नेता जनता को सिर आँखों पर बिठाते है क्योंकि जनता के पास उन्हें चुनने की शक्ति होती है, किन्तु एक बार चुन लिए जाने के बाद चूंकि जनता उन्हें हटा नही सकती अत: साढ़े चार वर्ष तक जनता की छाती पर मूंग दलते रहते है ।
इन साढ़े चार वर्षो के दौरान सभी नेता बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और पेड मिडिया के हितो के लिए काम करते है, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पक्ष में नीतियाँ बनाने से उन्हें भारी घूस मिलती है, और पेड मिडिया जनता में उनकी सकारात्मक छवी बनाए रखता है ।
.
FDI के अन्य सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक दुष्प्रभाव क्या है ?
MNCs जहां भी जाती है, अमुक देश की तकनीक और इंजीनियरिंग को तबाह करने के लिए अकादमिक स्तर पर गणित और विज्ञान का आधार तोड़ देती है, जैसे MNCs ने घूस देकर आठवीं तक फ़ैल न करने का क़ानून बनवाया, IIT जैसे संस्थानों को कमजोर किया आदि ।
MNCs/मिशनरीज़ स्थानिक धर्म को तोड़ने के लिए, PK, OMG जैसी फिल्मो को फंडिंग देती है, ऐसे नेताओं को आगे बढ़ाती है, जो स्थानिक धर्म का मज़ाक उड़ाए, मंदिरों/मठो/आश्रमों/साधुओ/संतो आदि को दुष्प्रचार से कमजोर करती है, ताकि मिशनरीज़ बड़े पैमाने पर धर्मान्तर कर सके ।
सामरिक दृष्टी से MNCs का मुख्य लक्ष्य अमुक देश की सेना को कमजोर बनाए रखना और हथियारों की फेक्ट्रियो को बंद करवाना होता है ।
.
FDI को यदि हम रोक देते है, तो विकास कैसे करेंगे ?
खुद से, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन और रूस ने किया । FDI से हमें कोई समस्या नहीं है, पर हमें कानूनों में कुछ सुधार करने होंगे, ताकि हम FDI के दुष्प्रभाव से देश को बचा सके ।
1. MNCs को दी जा रही कर राहते और मोरिशस रूट को समाप्त करना होगा, डॉलर के पुनर्भरण का समझौता रद्द करना होगा, PSU का विनिवेश रोकना होगा, खनन, ऊर्जा, रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों में FDI की अनुमति रद्द करनी होगी ।
2. हमारी स्थानिक इकाइयों को सरंक्षण देने के लिए जूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स, WOIC तथा सभी मुख्य राजनेतिक और प्रशासनिक पदों को प्रजा अधीन करना होगा ।
अमुक बदलावों के लिए हमने क़ानून ड्राफ्ट प्रस्तावित किये है, जिन्हें आप निम्न लिंक से मुफ्त डाउनलोड कर सकते है ।
rahulmehta. com/301.htm
आप इन कानूनों का अध्ययन करें, तथा इनका समर्थन करते है, तो अमुक कानूनों को गेजेट में छापने का आदेश अपने सांसद को SMS द्वारा भेजे ।
.
समाधान ?
.
राईट टू रिकॉल पार्टी का प्रस्ताव है कि -- हमें अब और विदेशी कर्ज नहीं लेना चाहिए, डॉलर पुनर्भरण ( repatrtation commitment) का वादा करना बंद कर देना चाहिए और सोने, चांदी व सभी प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। साथ ही विदेशी ट्रस्टों को शामिल करते हुए भारत के सभी भूखंडों पर सम्पत्ति कर आरोपित करना चाहिए।
.
इन उपायों से डॉलर का भाव उछलकर 200 रुपये तक पहुंच जाएगा, लेकिन हम भविष्य में चुकाने वाले कर्जो और वादों से छुटकारा पा जाएंगे।
.
आप लोग क्या करें
"राईट टू रिकॉल PM"
"Right to recall CM,MP,MLA,डीपीपी,जज इत्यादि etc कानूनों को लागू करवाओ
.
अत: सभी कार्यकर्ताओ से आग्रह है कि वे बीजेपी/कांग्रेस/आम पार्टी से किनारा कर लें और सिर्फ राईट टू रिकॉल पार्टी द्वारा प्रस्तावित कानूनों को लागू करवाने के लिए प्रयास करें।
.
_____________
उन कानूनों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखिये-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
_______________
==
गीता को केवल पढ़ें ही न उसको जीवन में उतारे ,,देखें कहीं आपके अन्दर तो दानव ने तो नहीं प्रवेश कर लिया l चिंतन करें l आत्मज्ञान लेवे l सब कुछ पैसा नहीं है ऐसा सोचे l अपने धन को आप कहीं गलत कार्यों में तो नहीं लगा रहे l
.
जय हिन्द
.
___________________
.
विदेशी कम्पनियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति देना FDI है, जैसे कि ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापार की अनुमति दी गयी थी, ईस्ट इंडिया कंपनी एक FDI थी ।
.
आर्थिक दृष्टिकोण से FDI के क्या फायदे होते है ?
FDI आने से क्षद्म तौर पर हमेशा विकास होता है, रोज़गार के अवसर पैदा होते है, नयी नयी तकनीक आती है, सब कुछ चमकदार हो जाता है आदि आदि ।
.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आने से क्या विकास हुआ ?
ईस्ट इण्डिया कंपनी ने हमें रेल दी(जबकि खर्चे भारतीय राजा ने ही किया था), तार दिया, टेलीफोन दिया, सड़के और पुल बना कर दिए, और भी बहुत कुछ दिया ।
.
किन्तु पाठ्यपुस्तको में तो कहा गया है कि, ईस्ट इण्डिया कंपनी ने हमें गुलाम बना लिया था, और उन्हें भगाने में हमे सालो संघर्ष करना पड़ा ।
बकवास, यदि ऐसा होता तो हम आज फिर से अमेरिकी कम्पनियों को विकास के लिए क्यों बुला रहे है, बताइये ?
कुछ अक्ल के अन्धो ने अंग्रेजो को खदेड़ दिया था, लेकिन 1992 से हमने उन्हें फिर से देश में आकर विकास करने को राजी कर लिया है, और अब तो हम मेक इन इण्डिया नाम का मिशन लेकर चल रहे है, अत: विकास की सुनामी आने वाली है, आप अपने हाथ पाँव संभाल कर रहिएगा, वरना देश के साथ आप भी बह जाओगे ।
.
FDI के राजनेतिक फायदे क्या है ?
अव्वल तो यह कि FDI ढ़ेर सारा पैसा लेकर आती है, अत: राजनेताओ, नौकरशाहो, बिचौलियों आदि का जमकर विकास होता है, दुसरे यह कि नेताओं को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान और वाहवाही मिलती है, जैसे कि जवाहर गाज़ी, मोहन गांधी, मोदी आदि को मिली । इस से नेताओं का सत्ता में बने रहना भी आसान हो जाता है ।
.
मतलब FDI से पांचो अंगुलियाँ घी में रहती है ।
बिलकुल, और देश का सिर उबलते तेल की कडाही में चला जाता है ।
.
जब भी FDI को अनुमति दी जाती है, मिडिया इन्हें 'साहसिक' फैसले की संज्ञा देता है, नेता जी को इसमें किस प्रकार के साहस का प्रदर्शन करना होता है ?
असल में FDI की फ़ाइलो से किंग कोबरा लिपटे हुए रहते है, और ये फ़ाइले मेथिल आइसो सायनाइड गैस से भरे हुए चेंबर में रखी रहती है । प्रधानमन्त्री को स्वयं उस चेंबर में जाकर किंग कोबरा के चंगुल से फ़ाइले छुड़ा कर हस्ताक्षर करने का जोखिम उठाना होता है, इसलिए ये फैसले साहसिक होते है । हालांकि 1992 से अब तक सभी प्रधानमन्त्री ये जोखिम उठाते आये है । सबसे पहले 1992 में मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री रहते इस विष कक्ष का दरवाजा खोलने का साहस किया था, तब से सबसे ज्यादा जोखिम मनमोहन सिंह ही उठाते आये है । उनके 10 साला प्रधानमन्त्री कार्यकाल के दौरान इस कक्ष में उनका रोज का आना जाना था ।
.
मोदी साहेब का FDI को लेकर क्या रवैया है ?
मोदी साहेब पिछले 7 महीनो से उसी कक्ष में जमे बैठे है, कभी कभार ही शुद्ध वायु सेवन के लिए कक्ष से बाहर तशरीफ़ लाते है ।
.
मनमोहन और मोदी साहेब की FDI निती में मूलभूत अंतर क्या है ?
मनमोहन FDI की टिकड़ीयां डरते डरते फोड़ते थे, जबकि मोदी साहेब FDI छाप सूतली बम के धमाके भी एलानियाँ करते है ।
बहरहाल मोदी साहेब को क्रेडिट दिया जाना चाहिए कि उन्होंने FDI को जनता के लिए मनोरंजक कलेवर में पेश कर दिया है ।
.
FDI का मेक इन इण्डिया से क्या सरोकार है ?
कोई सरोकार नही, दोनों एक ही है । FDI पर स्वदेशी संगठन सदा से कोहराम मचाये रहते है, इसलिए इसे नया नाम दे दिया गया है । इस से यह खुशफहमी बनी रहती है कि, मोदी साहेब कोई नयी 'चीज' लाये है ।
.
मेक इन इंडिया का शुभंकर शेर बनाए जाने का प्रयोजन है ?
मोदी साहेब इस सच्चाई को छुपा नहीं रहे है कि, पूरा भारत धीरे धीरे इस शेर की खुराक हो जाएगा ।
.
FDI के आर्थिक नुकसान क्या है ?
FDI के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कम्पनीयां घरेलू बाजार पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर के एकाधिकार (मोनोपोली) स्थापित कर लेती है, जिससे स्वदेशी इकाइयां या तो बंद होती है या बिक जाती है ।
.
FDI से प्रतिस्पर्धा बढती है, और उपभोक्ता को फायदा होता है ?
इस से ज्यादा चालाक तर्क दूसरा नही हो सकता । आप बिल्लियों और बघियारो के बीच किस तरह की प्रतिस्पर्धा की उम्मीद करते है । शुरूआती स्तर पर उपभोक्ता को आंशिक लाभ होता है, किन्तु एकाधिकार स्थापित होने के बाद अमुक कंपनी को मनमानी राशि वसूलने की आजादी मिल जाती है ।
.
FDI से रोज़गार का सृजन होता है ?
बकवास है । MNCs उत्पादन के लिए अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करती है, जिससे मानव श्रम में कमी आ जाती है, तथा सिर्फ लेखा कार्यो के लिए क्लर्क क्लास की आवश्यकता होती है ।
इसे एक छोटे उदाहरण से समझते है :
कोक-पेप्सी के आने से गोल्ड स्पॉट, लिम्का, थम्स अप, केम्पा कोला जैसी दसियों इकाइयां बंद या टेक ओवर हो गयी । आज शीतल पेय के पूरे बाज़ार पर दो कम्पनियों का कब्ज़ा है, जहाँ 50 कम्पनियां काम कर रही थी, आज सिर्फ दो कम्पनियां मुनाफा कमा रही है ।
हालांकि इस प्रकार की चटनी चूरण कम्पनियों से देश को कोई गंभीर नुक्सान नहीं होता !! है न!! किन्तु तकनीक तथा प्राकृतिक संसाधन आधारित क्षेत्रो जैसे ऊर्जा, खनन, रेल, दूरसंचार, बेंकिंग और हथियार निर्माण के क्षेत्र में FDI आत्मघाती थेलियों के सिवा कुछ नही है, जो पूरे देश को पचा लेती है ।
.
सब तो कह रहे है कि, FDI से देश में पैसा आता है, जिससे देश अमीर होता है?
आप पेड मिडिया द्वारा पिलाई जा रही अफीम के नशे में बौरा गए लगते है । वास्तविक स्थिति इसके ठीक उलट होती है ।
मिसाल के लिए मान लीजिये कि, एक कम्पनी 'R' 100 करोड़ डॉलर की पूँजी लेकर आती है । यह रुपया वह कम्पनी भारत सरकार को जमा करके, 100×60 = 6000 करोड़ रूपये की भारतीय मुद्रा प्राप्त करती है, तथा अगले दस वर्ष में 6000 करोड़ से 30,000 करोड़ का मुनाफा कमाती है । ऐसी स्थिति में भारत सरकार को अमुक कंपनी को 10 वर्ष बाद 30,000÷60 = 500 करोड़ डॉलर चुकाने होते है ।
यदि ऐसी 100 कम्पनियां भारत में कार्य करती है तो भारत को 500×100 = 50,000 करोड़ डॉलर चुकाने होंगे ।
अब समस्या यह है कि हमारे पास नोट छापने की मशीने तो थोक में पड़ी है, पर डॉलर छापने का कोई यंत्र नही, क्योंकि डॉलर छापने की मशीने तो अमेरिका के पास है ।
चूंकि हम कमाए गए मुनाफे के बदले डॉलर देने का 'साहसिक' वादा कर चुके है, अत: हमें ये डॉलर चुकाना ही है । डॉलर हासिल करने के निम्नलिखित उपाय है :
1. निर्यात से डॉलर आता है, परन्तु हम निर्यात से ज्यादा आयात कर लेते है, इसलिए व्यापार विनिमय से भी हम पर डॉलर का क़र्ज़ चढ़ जाता है ।
2. विदेशी क़र्ज़ : हम विश्व बेंक के परमानेंट लोनिये है, और ब्याज की किश्ते चुकाने के लिए भी और क़र्ज़ ले रहे है ।
3. फिर से FDI के नाम किसी कम्पनी 'T' से डॉलर की पूँजी लेकर 'R' के क़र्ज़ को चुकाया जाए । लगभग सभी क्षेत्र खोल चुके है । विकल्प कम बचे है ।
4. सोना गिरवी रखा जाए : मनमोहन ने जो गिरवी रखा था वो भी अभी पूरा नही छुडवा पाए है, सोना वेसे भी हमारे पास ज्यादा बचा नहीं है । हालत यह है कि मोदी साहेब को मंदिरों पर भी हाथ डालना पड़ रहा है ।
5. हम अपनी राष्ट्रिय संपत्तियां, खनिज और प्राकृतिक संसाधन लेनदार कम्पनियों के हवाले कर के भरपाई करे ।
6. कर्जा खा जाएँ और अमुक कम्पनी के देश से युद्ध लड़े । ( अमुक देश अमेरिका है )
.
FDI के राजनेतिक नुक्सान क्या है ?
इतिहासकार टॉयंडी का मशहूर कथन है कि, यदि किसी देश में आर्थिक गुलामी आती है, तो राजनेतिक गुलामी आती ही है । जिस प्रकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने शुरूआती 200 वर्ष तक व्यापार किया, और बाद में हमें गुलाम बनाया ।
.
पहले की बात अलग थी, अब हमारे देश में लोकतंत्र है, मतदान का अधिकार है, अत: राजनेतिक गुलामी कैसे आ सकती है ?
बुद्धिमानों, सिर्फ चुनने का अधिकार होना लोकतंत्र नही है, अपने भ्रष्ट प्रतिनिधियों हटाने का अधिकार ही लोकतंत्र की रचना करता है ।
.
भारत में राईट टू रिकाल क़ानून न होने की वजह से अधूरा लोकतंत्र है, इसलिए नेता जनादेश की मनमानी व्याख्या करते है । इस क़ानून के बिना सभी नेता-मंत्री-भ्रष्ट अधिकारी जनता को भेडिये की भाँती संहार कर जाते हैं.
इसे यूँ समझिये कि, चुनाव के 6 महीने पहले नेता जनता को सिर आँखों पर बिठाते है क्योंकि जनता के पास उन्हें चुनने की शक्ति होती है, किन्तु एक बार चुन लिए जाने के बाद चूंकि जनता उन्हें हटा नही सकती अत: साढ़े चार वर्ष तक जनता की छाती पर मूंग दलते रहते है ।
इन साढ़े चार वर्षो के दौरान सभी नेता बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और पेड मिडिया के हितो के लिए काम करते है, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पक्ष में नीतियाँ बनाने से उन्हें भारी घूस मिलती है, और पेड मिडिया जनता में उनकी सकारात्मक छवी बनाए रखता है ।
.
FDI के अन्य सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक दुष्प्रभाव क्या है ?
MNCs जहां भी जाती है, अमुक देश की तकनीक और इंजीनियरिंग को तबाह करने के लिए अकादमिक स्तर पर गणित और विज्ञान का आधार तोड़ देती है, जैसे MNCs ने घूस देकर आठवीं तक फ़ैल न करने का क़ानून बनवाया, IIT जैसे संस्थानों को कमजोर किया आदि ।
MNCs/मिशनरीज़ स्थानिक धर्म को तोड़ने के लिए, PK, OMG जैसी फिल्मो को फंडिंग देती है, ऐसे नेताओं को आगे बढ़ाती है, जो स्थानिक धर्म का मज़ाक उड़ाए, मंदिरों/मठो/आश्रमों/साधुओ/संतो आदि को दुष्प्रचार से कमजोर करती है, ताकि मिशनरीज़ बड़े पैमाने पर धर्मान्तर कर सके ।
सामरिक दृष्टी से MNCs का मुख्य लक्ष्य अमुक देश की सेना को कमजोर बनाए रखना और हथियारों की फेक्ट्रियो को बंद करवाना होता है ।
.
FDI को यदि हम रोक देते है, तो विकास कैसे करेंगे ?
खुद से, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन और रूस ने किया । FDI से हमें कोई समस्या नहीं है, पर हमें कानूनों में कुछ सुधार करने होंगे, ताकि हम FDI के दुष्प्रभाव से देश को बचा सके ।
1. MNCs को दी जा रही कर राहते और मोरिशस रूट को समाप्त करना होगा, डॉलर के पुनर्भरण का समझौता रद्द करना होगा, PSU का विनिवेश रोकना होगा, खनन, ऊर्जा, रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों में FDI की अनुमति रद्द करनी होगी ।
2. हमारी स्थानिक इकाइयों को सरंक्षण देने के लिए जूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स, WOIC तथा सभी मुख्य राजनेतिक और प्रशासनिक पदों को प्रजा अधीन करना होगा ।
अमुक बदलावों के लिए हमने क़ानून ड्राफ्ट प्रस्तावित किये है, जिन्हें आप निम्न लिंक से मुफ्त डाउनलोड कर सकते है ।
rahulmehta. com/301.htm
आप इन कानूनों का अध्ययन करें, तथा इनका समर्थन करते है, तो अमुक कानूनों को गेजेट में छापने का आदेश अपने सांसद को SMS द्वारा भेजे ।
.
समाधान ?
.
राईट टू रिकॉल पार्टी का प्रस्ताव है कि -- हमें अब और विदेशी कर्ज नहीं लेना चाहिए, डॉलर पुनर्भरण ( repatrtation commitment) का वादा करना बंद कर देना चाहिए और सोने, चांदी व सभी प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। साथ ही विदेशी ट्रस्टों को शामिल करते हुए भारत के सभी भूखंडों पर सम्पत्ति कर आरोपित करना चाहिए।
.
इन उपायों से डॉलर का भाव उछलकर 200 रुपये तक पहुंच जाएगा, लेकिन हम भविष्य में चुकाने वाले कर्जो और वादों से छुटकारा पा जाएंगे।
.
आप लोग क्या करें
"राईट टू रिकॉल PM"
"Right to recall CM,MP,MLA,डीपीपी,जज इत्यादि etc कानूनों को लागू करवाओ
.
अत: सभी कार्यकर्ताओ से आग्रह है कि वे बीजेपी/कांग्रेस/आम पार्टी से किनारा कर लें और सिर्फ राईट टू रिकॉल पार्टी द्वारा प्रस्तावित कानूनों को लागू करवाने के लिए प्रयास करें।
.
_____________
उन कानूनों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखिये-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
_______________
==
गीता को केवल पढ़ें ही न उसको जीवन में उतारे ,,देखें कहीं आपके अन्दर तो दानव ने तो नहीं प्रवेश कर लिया l चिंतन करें l आत्मज्ञान लेवे l सब कुछ पैसा नहीं है ऐसा सोचे l अपने धन को आप कहीं गलत कार्यों में तो नहीं लगा रहे l
.
जय हिन्द
.
___________________
Comments
Post a Comment
कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.