कक्षा आठवीं तक विद्यार्थियों को फेल न करने के क़ानून का मूल उद्देश्य



दक्षिण कोरिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने 70 के दशक में प्रवेश किया था और वहां पर 8 वीं क्लास तक फेल न करने के क़ानून लागू किये गए। 
इससे उनका गणित और विज्ञान का आधार टूट गया और बड़े पैमाने पर गरीबी फैली। आज यह देश तकनिक के क्षेत्र में पूरी तरह से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर निर्भर है और जहां साउथ कोरिया में 70 के दशक में 5% ईसाइयत थी, आज कुल आबादी के 60% लोग ईसाई धर्म में धर्मांतरित हो चुके है। 
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ाठकों को समझ में नहीं आ रहा होगा की आठवी कक्षा में बच्चों को फेल न करने से भला गरीबी कैसे बढ़ेगी और लोग धर्मान्तरित कैसे होंगे? इसका उत्तर पूरा पोस्ट पढने से मिल जाएगा.
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भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने 1991 में प्रवेश किया और साथ ही सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा अनुदान दिए। यदि 2002 में आठवीं तक फ़ैल न करने का क़ानून लागू कर दिया जाता तो शहरी मध्य वर्ग विकल्प के अभाव में आंदोलन कर सकता था। अत: पहले निजी स्कूलों के लिए नीतियों को आसान बनाया गया। अब परचून का व्यापारी भी दो कमरों के घर में सरकारी अनुदान से स्कूल खोल सकता था, और बीएड की डिग्री लेना 10 वी क्लास पास करने से भी आसान बना दिया दिया गया।
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और जब निजी स्कूल कुकुरमुत्तों की तरह उग आये तो 2008 में 8 वीं तक फ़ैल न करने के कानून को पास किया गया। गाँवों और कस्बों के सरकारी स्कूल की हालत काफी खराब हो गयीं, या यों कहें की सरकारी नुमाइंदों द्वारा खराब कर दी गयी और शहरी मध्य वर्ग ने सरकारी स्कूलों को सुधारने के कानूनों को सुधारने की जगह निजी स्कूलों में शरण ली।
अब सरकारी स्कूल धर्मशालाओं से भी बुरी हालत में है और अभिभावक निजी स्कूल संचालकों के शिकंजे में पूरी तरह से फंस चुके है।
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समस्या - बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को तो अलग कर दीजिये। आज शिक्षा सुधार में सबसे बड़ी बाधा निजी स्कूलों के संचालक है। वे जानते है कि यदि सरकारी स्कूलों का स्तर सुधर गया तो उनके ग्राहकों की संख्या घट जायेगी। अत: ये शिक्षा माफिया शिक्षा अधिकारी को घूस देता है ताकि शिक्षा अधिकारी सरकारी स्कूलों को बदहाल बनाये रखें। और जहां तक जन प्रतिनिधियों और मंत्रियों की बात है, वे शिक्षा अधिकारी, स्कूल माफिया और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तीनो से घूस खाते है और उन सभी कानूनों का विरोध करते है जिससे सरकारी स्कूलों का स्तर बेहतर हो और निजी स्कूलों की लूट पर लगाम लगे।
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बहुराष्ट्रीय कम्पनियां जिस भी देश में जाती है वहां गणित और विज्ञान का आधारभूत ढांचा तोड़ने के प्रयास करती है। साथ ही मंत्रियो को घूस देकर ऐसे कानून लागू करवाती है जिससे सरकारी स्कूलों की स्थिति बदतर हो जाए।
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8 क्लास तक फ़ैल न करने की नीति से छात्र गणित-विज्ञान स्वत: ही नहीं पढता और एक बड़ा तबका इस तकनिकी शिक्षा से वंचित हो जाता है, और अमुक देश तकनीक के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर निर्भर बना रहता है। सरकारी स्कूलों के बदतर होने से अभिभावकों को निजी स्कूलों की और रूख करना पड़ता है, जिससे गरीबी बढ़ती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मिशनरीज से गठजोड़ होने के कारण मिशनरीज को इनसे सीएसआर के माध्यम से अनुदान प्राप्त होते है और वे पिछड़े हुए इलाको में स्कूल और अस्पतालो की माध्यम से धर्मांतरण करते है। इस तरह किसी विकासशील देश के सरकारी स्कूलों का आधार तोडना बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और मिशनरीज का साझा एजेंडा है।
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समाधान ? ऊपर बताये गए क़ानून को बनाने और लागू करने के लिए सांसद और केन्द्रीय मंत्री जिम्मेदार हैं. अतः मेरी समझ से इस तरह के क़ानून लाने वाले मंत्री को हटाये जाने वाले क़ानून को जनता के हाथ में दिए जाने का डिमांड जनता द्वारा अपने सांसदों से करना चाहिए जिससे वो इस क़ानून के ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दे सकें.
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राईट टू रिकॉल मंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/853974814720756
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राईट टू रिकॉल सांसद के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/860633484054889
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राईट टू रिकॉल प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/837611029690468
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राइट-टू-रिकॉल विधायक के लिए प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/813343768783861
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पब्लिक में नार्कोटेस्ट - बलात्कार , हत्या , भ्रष्टाचार , गौ हत्या आदि के लिए नारको टेस्ट का कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/812341812217390
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राईट टू रिकॉल मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/811071415677763
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ज्यूरी सिस्टम के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809746209143617
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पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186
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समस्या के निवारण के लिए यहाँ के नागरिकों को अपने नेताओं/मंत्रियों/संसदीय क्षेत्र के नेता लोगों और संसद में बैठे नेता लोगों को अपना आदेश इस तरह से भेजना चाहिए की --
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको, ये आदेश देता/ती हूँ की भारत की शिक्षा व्यवस्था से आठवी क्लास में विद्यार्थियों को फेल ना किये जाने वाले क़ानून को हटाकर पूर्ववत विद्यार्थियों को इस कक्षा में पास फेल होने वाले सिस्टम को यथावत रखा जाए, इसके साथ साथ राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के लिए प्रस्तावित ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/533843000127232 को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दिया जाए, नहीं तो यहाँ के नागरिक आपको वोट नहीं देंगे. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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ये आदेश sms/ट्विटर/पोस्टकार्ड/ईमेल एवं अन्य उपलब्ध साधनों से आप भेज सकते हैं.
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उच्च माध्यमिक तक की शिक्षा को सुचारु बनाए रखने के लिये जिला शिक्षा अधिकारी जिम्मेदार है। अत: शिक्षा अधिकारी और शिक्षा मंत्री को खुश करने या काबू में करने के दो विकल्प है :
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1. सभी जिले के अभिभावक एक समूह बनाये और नियमित रूप से हर महीने जिला शिक्षा अधिकारी, विधायक, मंत्री आदि को हफ्ता पहुंचाए। यदि अभिभावकों द्वारा दी गयी घूस की राशि निजी स्कूल माफिया और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा दी जा रही घूस और चन्दो से अधिक होगी तो शिक्षा अधिकारी, मंत्री आदि स्वत: ही अभिभावकों के हित के लिए काम करने लगेंगे।
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2. अभिभावक अपने विधायक से यह मांग करे कि जिला शिक्षा अधिकारी को नौकरी से निकालने का अधिकार अभिभावकों को दिया जाए। यदि जिले के अभिभावकों को शिक्षा अधिकारी को नौकरी से निकालने की प्रक्रिया मिल जाती है तो अभिभावक शिक्षा अधिकारी को नियंत्रित कर सकेंगे। यदि तब शिक्षा अधिकारी सरकारी स्कूलों में सुधार लाकर उन्हें निजी स्कूलों से बेहतर बना देता है और निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाता है तो ठीक है, वरना अभिभावक शिक्षा अधिकारी को नौकरी से निकाल देंगे।
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कैसे किसी जिले के अभिभावक शिक्षा अधिकारी को चुनेंगे और किस तरह से हटा सकेंगे, इसकी प्रक्रिया का कानूनी ड्राफ्ट निचे दिए गए लिंक पर दिया गया है। यदि आप इस कानूनी ड्राफ्ट का समर्थन करते है तो अपने विधायक को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे कि इस क़ानून को गैजेट में प्रकाशित किया जाए।
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राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के लिए प्रस्तावित ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/533843000127232
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टिपण्णी : सोनिया-मोदी और केजरीवाल राईट टू रिकॉल क़ानून प्रकिया का विरोध कर रहे है। उनका मानना है कि अभिभावकों के पास किसी भी सूरत में जिला शिक्षा अधिकारी को नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं होना चाहिए। सोनिया-मोदी-केजरीवाल के अंध भगत और आरएसएस के सभी स्वयं सेवक भी इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे है। वे कह रहे है कि मौजूदा व्यवस्था ही जारी रहनी चाहिए। और यदि अभिभावकों को ज्यादा तकलीफ हो तो वे झुण्ड बनाकर कलेक्ट्री में जाकर जिला शिक्षा अधिकारी के खिलाफ ज्ञापन दे सकते है या प्रदर्शन कर सकते है। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी को नौकरी से निकालने का अधिकार सिर्फ उनके नेताओ के पास ही रहेगा।
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इसी प्रकार अन्य क़ानून जिनका ड्राफ्ट ऊपर बताया गया है, उन्हें लाने के लिए जनता को अपने नेताओं से डिमांड करना चाहिए.
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देश का भविष्य वहां की जनता होती है, अगर जनता ही अपने और देश के भविष्य को भगवान् पर छोड़ दे तो कोई प्रॉब्लम का समाधान कभी नहीं मिलने वाला.
अगर आपको इस देश का समस्या का समाधान में रूचि है, अगर आप करना चाहते हैं तो नेता व पार्टी-भक्ति को छोड़कर क़ानून-सुधार की भक्ति करनी चाहिए.
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अन्य सम्बंधित मार्गदर्शन के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1022208611205461:0
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जय हिन्द

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