रघुराम राजन, कांग्रेस और भाजपा
कई लोगों के अनुसार रघुराम राजन ब्याज दरें इसलिए नहीं घटा रहे थे क्यूंकि वो कांग्रेस के एजेंट थे और अगर वो ऐसा कर देते तो भाजपा सरकार को इसका श्रेय मिल जाता।
तो सोचा, जरा ऐसे लोगों की गलतफहमी दूर करने का प्रयास किया जाये। जब RBI रेपो रेट कम करता है, तो उसके क्या परिणाम होते हैं, आइये जरा सरल भाषा में समझते हैं:
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१) रेपो रेट घटने का सीधा परिणाम यह अपेक्षित होता है की, लोन सस्ता हो जाये, लोन सस्ता हो जायेगा तो इकॉनमी में लिक्विडिटी (यानि रुपये का प्रवाह) बढ़ेगा, पर उसके सामने यदि गुड्स एंड सर्विसेज के उत्पादन में उतनी ही बढ़ोत्तरी नहीं हुयी हो तो...?
याद रहे ये बातें 2014 के अंत और 2015 के शुरूआती क्वार्टरस की हैं और उस समय हमारा इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन IIP और सर्विस इंडेक्स दोनों नीचे-२ जा रहे थे, यानि गुड्स एंड सर्विसेज दोनों का उत्पादन अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ रहा था। ऐसे में यदि मनी सप्लाई बढ़ जाता तो एक परिस्थित का निर्माण होता जिसे कहते हैं - 'Too much money chasing too few goods' और उसका सबसे पहला और खतरनाक असर होता महगाई दर का बढ़ना।
सरकारों की हमेशा ये मंशा होती है की खूब सारा लोन बांटा जाये जिससे बिज़नेस एक्सपेंशन हो सके, नयी नौकरियां खड़ी हो और जीडीपी ग्रोथ अच्छी हो पर क्या उसके लिए आप डंडा मर के बैंक लोन सस्ता करवाओगे...?
(पिछली सरकार में अंधाधुंध जलिया कंपनियों को बांटे गए लोन ने कितना जीडीपी बढ़ाया था सबको पता है, और उसी मूर्खता का नतीजा है आज हमारा बैंकिंग सेक्टर NPA की इतनी गंभीर समस्या से जूझ रहा है।)
याद रहे RBI का प्रमुखतम उद्देश्य ग्रोथ बूस्ट करना नहीं महगाई दर कम रखना है (और ग्रोथ सुनिश्चित करना तथा उसके लिए फण्ड जुटना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है)।
ऐसे में यदि RBI ने बिना किसी दबाव में आये दरों को नियंत्रित रखा तो वह एक सराहनीय कदम था, जिसकी दुनिया भर में तारीफ की गयी (याद रहे तारीफ करने वाले सभी दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री - कांग्रेस के एजेंट या आपिये नहीं थे)
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२) रेपो रेट दूसरा महत्वपूर्ण प्रभाव ये होता है की जब आपको मिलने वाला लोन सस्ता होगा तो जाहिर सी बात है बैंक आपको, आपके पैसे पे जो ब्याज देता है वह भी कम होगा (FD /RD या बचत खाते की ब्याज दरें कम हो जाएँगी)।
अब जब बैंक में कम ब्याज मिलेगा तो स्वाभाविक है, वहां से पैसे निकाल कर लोग गोल्ड या रियल स्टेट में इन्वेस्ट करना शुरू कर देंगे।
गोल्ड ख़रीदा तो इम्पोर्ट बढ़ेगा और करंट अकाउंट डेफिसिट (जिससे फिर से महगाई दर ऊपर भागेगी) और रियल स्टेट में गए तो ब्लैक मनी..?
इतना ही नहीं, बैंकों से बड़े पैमाने पे यदि पैसा निकला गया तो उनके पास लोन में बांटने को पूंजी ही नहीं रह जाएगी (और अब जबकि 150 बीपीएस की कटौती हो चुकी है दरों में, तो ऐसा हो भी रहा है, हालिया इकनोमिक सर्वे के अनुसार बैंकों का 'डिपाजिट और क्रेडिट ग्रोथ' दोनों खतरनाक तरीके से नीचे जा रहे हैं)। ऐसे में रेपो रेट में की गयी और कटौती सबसे ज्यादा उन छोटे निवेशकों और सीनियर सिटीजन्स को नुकसान पहुंचती जो अपनी सेविंग्स सिर्फ बैंकों में ही रखते है, और बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ब्याज पर ही निर्भर होते हैं।
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इसलिए हमें इन दो चीजों के बीच कही न कहीं एक लाइन खींचनी ही होती है, और वो ही RBI गवर्नर का विशेषाधिकार होता है।
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3) आज कच्चे तेल के दामों में गिरावट के बावजूद सरकार महंगाई को क़ाबू नहीं कर पा रही है. आज महंगाई बढ़ रही है. दाल, टमाटर, आलू के दाम बहुत बढ़ गए. थोक मूल्य सूचकांक कम होता रहा लेकिन उपभोक्ता को कोई राहत नहीं मिली. अर्थव्यवस्था की इस हालत के लिए केवल भारतीय रिज़र्व बैंक ही ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि भारत सरकार भी ज़िम्मेदार है.
रघुराम राजन के बारे में जो भी टिप्पणी की गई है वो महज़ टिप्पणी नहीं, एक तरह से आक्रमण है. और इसके पीछे भी राजनीति है.
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4) भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रघुराम राजन ने जितने भी क़दम उठाए हैं, यदि नहीं उठाते तो महंगाई इससे भी ज़्यादा होती.
इसके अलावा उन्होंने जो भी कोशिशें की, उसमें वे थोड़े-बहुत सफल भी रहे.
उन्होंने एनपीए यानी नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट को ख़त्म करने की बात की. एनपीए मतलब ऐसे ऋण जिन्हें लोग बैंक से लेते तो हैं लेकिन वापस नहीं करते.
ऐसे ऋण बड़े बड़े पूंजीपति, बड़े बड़े कॉरपोरेट घराने के मालिक और बड़ी बड़ी कंपनियां लेती हैं, जैसे कि विजय माल्या की कंपनी.
रघुराम राजन ने सारे बैंको को कहा कि वे अपनी बैलेंस शीट, अपना खाता साफ़ करें. ये बात बड़े बड़े पूंजीपति और बड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों के मालिकों को पसंद नहीं आई, जिन पर उंगली उठाई गई.
उन्होंने क्रोनी पूंजीवाद के ख़िलाफ़ कोशिश की. क्रोनी पूंजीवाद क्या है, ये सचमुच पूंजीवाद नहीं है, ये आर्थिक उदारीकरण नहीं है, ये खुले बाजार की नीति नहीं है, बल्कि ये तो सिर्फ़ भाई भतीजावाद है, ये यारों के लिए है, याराना पूंजीवाद है.
रघुराम राजन ने याराना पूंजीवाद के ख़िलाफ़ जो लड़ाई लड़ी वो बहुत लोगों को पसंद नहीं आई. इनमें बड़े-बड़े बैंकों के अधिकारी, कॉरपोरेट घराने के मालिक शामिल थे और इनके साथ कुछ राजनेता भी हैं, जिसे हम रानजीति और कारोबार की साठगांठ कहते हैं.
अब अगर कोई कॉर्पोरेट घरानों के ऊपर हाथ डालने का प्रयत्न करेगा तो सरकार के लिए उनके इलेक्शन में खर्चे के लिए, मीडिया को कवर करने में, न्याय-तंत्र को खरीदने में कौन धन देगा इन भ्रष्ट नेताओं को?
भ्रष्ट नेताओं को कितनी समझ है आर्थिक नीतियों की? वे तो सत्ता के लालच में कुछ भी करते हैं.
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अब जरा सोचियेगा (और उन अन-अर्थशास्त्रियों को सोचवाइएगा) की कम से कम ब्याज दरों को ले कर राजन ने जो किया वह सही था या गलत?
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आज अगर अर्थव्य्स्था रोबस्ट दिख रही है तो उसके पीछे RBI द्वारा उठाये गए ऐसे ही छोटे-२ बहुत सारे कदम हैं, जिनको तार्किक रूप से एक्सप्लेन किया जा सकता है - और उसके सार्थक परिणामों को भी।
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पर यहाँ उस सबकी परवाह किसे है?
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हम तो बस नारा लगाने और आँख, कान, मष्तिष्क सब बंद करके राय बन लेने वाले लोगों की भीड़ हैं!
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एक बार फिर ये साबित हो गया कि हमारा देश और संस्थाएं, वास्तविक प्रतिभाओं का अनादर करने में कितने महारथी है।
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स्वामी एक के बाद एक चिट्ठी लिख रहे हैं कि रघुराम राजन विदेशी एजेंट हैं या अमरीकी षडयंत्र का हिस्सा हैं. इसीलिए जो फैसला रघुराम राजन ने किया, उससे मैं हैरान नहीं हूं.
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सुब्रमण्यम स्वामी के अनुसार उन्होंने जानबूझ कर भारतीय अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुँचाया है., तो स्वामी को ये भी बताना चाहिए की भारतीय अर्थवय्वस्था को मजबूत स्थिति में लाने के लिए क्या कदम आर बी आई गवर्नर उठा सकता है?
स्वामी बता सकता था की सरकार की नीतियाँ घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देनी वाली नहीं है, स्वामी मारीशस -सिंगापुर रूट से आने वाली विदेशी कंपनियों को दिए जाने वाले अवांछित लाभ का विरोध भी कर सकता था, लेकिन कभी विरोध नहीं किया इसने.
दूसरों के कार्यों पे केवल आरोप लगाने से स्वामी की भारतीय मानसिकता सिद्ध नहीं हो सकती.
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स्वामी ने राजन को तुरंत हटाए जाने की मांग करते हुए कहा कि उनके पास ग्रीन कार्ड है, जिसे रिन्यू कराने के लिए वो अमरीका भी गए थे. यहाँ पे स्वामी ने या क्यों नहीं कहा कि ग्रीन कार्ड अमरीका में बेरोकटोक रहने और काम करने के लिए विदेश से आए लोगों को दिया जाता है? स्वामी को ये भी बताना चाहिए था की ग्रीन कार्ड किसी के अमरीका का नागरिक होने का प्रमाण नहीं है.
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डॉ० राजन कि निंदा करने वालों को अर्थव्यवस्था कि कितनी समझ है, भगवान जाने.....पर अर्थशास्त्र में गम्भीर रूचि रखने वाले के रूप में मेरी जितनी समझ है, उसके अनुसार आज, अगर वैश्विक मंदी के इस दौर में भी हमारी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ दिख रही है तो उसमे सम्भवतः सबसे ज्यादा योगदान इस व्यक्ति का है।
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अभी तो चीजें शुरू ही मात्र हुयी थीं और करने को बहुत कुछ बाकि था....
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अब अगर ऐसे समय में जब बैंकिंग सेक्टर (विशेषकर सरकारी) गम्भीर संकट से जूझ रहा है और बैलेंस शीट इतने बड़े-२ घाटे दिखा रही है (थैंक्स टू पिछली सरकार का पॉलिसी पैरालिसिस और उससे उपजी NPA की समस्या, भ्रष्टाचार, जुडिशल और एनवायर्नमेंटल एक्टिविज्म, बसेल नॉर्म्स की शर्ते इत्यादि) तथा हमारी अर्थव्यवस्था मोदीराज में दिन-ब-दिन और नेटवर्क्ड होती जा रही है - तो ऐसे में रेगुलेटर के रूप में RBI का प्रसार और प्रभाव अर्थव्यवस्था, और उससे जुड़ें सभी नीतिगत क्षेत्रों में और गम्भीर होता ही जा रहा है; और जो की स्वाभाविक भी है।
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अब जरा सोचिये, ऐसे में यदि सच में डॉ० राजन चले गए और कही गलती से भी उनके स्थान पर कोई चाटुकार आ गया, तो परिणाम कितने घातक होंगे...?
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राजनीती, विचारधारा का फर्क और अर्थव्यवस्था - ये सब नितांत अलग-२ चीजें हैं, और हमारा 68 वर्षों का इतिहास गवाह है की उनको आपस में जोड़ने के प्रयासों ने हमेशा देश का ही नुकसान किया है।
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डॉ० राजन ने पिछले ३ वर्षों में जो किया है उसके लिए हमे उनका आभारी होना चाहिए, और हम मुहीम चलाकर उन्हें अपमानित करने में लगे हैं, वाह रे भारत देश महान..
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सुब्रह्मनियम स्वामी का नया नाटक - रघुराम राजन के साथ नूरा कुश्ती। जानिये, कि कैसे स्वामी नाटक कर के रघुराम राजन के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सहयोग कर रहे है।
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सुब्रह्मनियम स्वामी ने 1997-1998 के दौरान वाजपेयी सरकार को गिराने के कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया किन्तु इसमें उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली !!! और स्वामी वाजपेयी के इसीलिए खिलाफ हो गए थे क्योंकि वाजपेयी ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए पोकरण-२ किया था और बीमा, मिडिया समेत कई क्षेत्रो में एफडीआई को अनुमति देने से इंकार कर दिया था।
अमेरिका को वाजपेयी की यह नीति बिलकुल भी पसंद नहीं आयी और इसीलिए अमेरिका के शुभचिंतक सुब्रह्मनियम स्वामी ने वाजपेयी सरकार को अमेरिका के हक़ में गिराने की कसम खायी !!! असल में स्वामी ने जब से होश सम्भाला तब से ही वे बतौर अमेरिकी कार्यकर्ता काम कर रहे है !!!
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बाद में कुछ 5 कार्यकर्ताओ ने सोनिया गांधी के इस दावे के खिलाफ कि, उनके पास केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की कॉलिज डिग्री है, कोर्ट में मुकदमा दायर किया था।
तब सुब्रह्मनियम स्वामी इन कार्यकर्ताओ के मुद्दे को हाइजेक करने के लिए फिर से सामने आये और सोनिया गांधी के डिग्री के बारे में पेश किये गए झूठे शपथपत्र के मुकदमे में 'मुख्य वादी' बन गए। अदालत में यह साबित भी हो गया कि सोनिया गांधी ने अपनी डिग्री के बारे में झूठ बोला था। और जब सोनिया गांधी सुप्रीम कोर्ट में दोषी पायी गयी तो स्वामी ने अंत में जज से क्या कहा ?
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सुब्रह्मनियम स्वामी ने दृढ़ और सपाट लहजे में कहा कि, 'माय लार्ड, मैं अपना मुकदमा वापिस लेता हूँ' !!
तो इस प्रकार जब मुख्य वादी मुकदमा वापिस ले लेता है तो मामले ही खत्म हो जाता है !! दूसरे शब्दों में, एन मौके पर सुब्रह्मनियम स्वामी एकदम से सोनिया गांधी के तारणहार बन कर उभरे !!!
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2G स्पेक्ट्रम घोटाले में स्वामी फिर से निकलकर आये और उन्होंने इस मामले के मुख्य वादियों का मुकदमा हाइजेक कर लिया। नतीजा ? यह मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना लेकिन इसकी हवा निकालने के लिए एन मौके पर सुब्रह्मनियम स्वामी दूर संचार मंत्री ए. राजा का सार्वजनिक नार्को टेस्ट करने का विरोध करने लगे जिससे मामला सुट्ट् हो गया परिणामस्वरूप सोनिया समेत सारे आरोपी इस मामले से बरी हो जाएंगे !!! सोनिया को इस मामले से लाभ यह हुआ कि टेलीकॉम मिनिस्ट्री डीएमके से खिंचकर कांग्रेस के पास आ गयी !!!
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दूसरे शब्दों में, सुब्रह्मनियम स्वामी मलका ए नौटंकी है। ये आदमी खुद को भ्र्ष्टाचार और भारत विरोधी तत्वों के मुकाबले में खुद को खड़ा करता है और इस तरह का भरम खड़ा करता है जिससे यह लगे कि वाकई में यह आदमी देश हित के लिए लड़ रहा है। लेकिन वास्तव में सुब्रह्मणियम स्वामी ये नाटक इसीलिए रचते है ताकी अमेरिकी हितों और बड़े बघियारो की रक्षा की जा सके।
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और अब सुब्रह्मनियम स्वामी का नया नाटक देखिये --- वे जनता को इस भ्रम में डालने की कोशिश कर रहे है कि वे रघुराम राजन के खिलाफ है !!!
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और आप जानते है तब सुब्रह्मनियम स्वामी ने क्या किया ? इस आदमी ने रघुराम गजनी को नौकरी से निकालने के लिए नागरिकों से सांसदों को एसएमएस भेजने की अपील करने से साफ़ इंकार कर दिया !!
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फिर सुब्रह्मनियम स्वामी ने गजनी को नौकरी से निकालने के लिए क्या किया ? क्या उन्होंने राज्य सभा में 'राईट टू रिकॉल रिजर्व बैंक गवर्नर' का क़ानून ड्राफ्ट रखा ताकि भारत के मतदाता रघुराम गजनी को बहुमत का प्रयोग करके नौकरी से निकाल सके ? नहीं। सुब्रह्मनियम स्वामी ने राज्य सभा में राईट टू रिकॉल रिजर्व बैंक गवर्नर' का क़ानून ड्राफ्ट रखने से साफ़ इंकार कर दिया !!!
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रघुराम गजनी को पद से हटाने के लिए स्वामी ने जो कुछ किया है वह यह है कि -- उन्होंने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है !!
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तो क्या ये उचित होगा, यदि रघुराम गज़नी को नौकरी से निकाल दिया जाए लेकिन 'सरकार की मंदिर लूटो योजना' जारी रहे ? असल में सुब्रह्मणियम स्वामी की योजना गजनी को नौकरी से निकालने की है, लेकिन उनका कहना है कि मंदिरों का सोना लूटने की स्किम जारी रहनी चाहिए !!
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कुल मिलाकर रघुराम गजनी से नूरा कुश्ती स्वामी द्वारा किया जा रहा एक और नया नाटक है। नाटक के सिवाय कुछ नहीं।
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ये सब तो ठीक है, पर स्वामी भ्र्ष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए जाने जाते है, तो अब चूंकि वे राज्य सभा में सांसद है तो यह पुछा जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट आदि में व्याप्त भ्र्ष्टाचार और भाई भतीजा वाद को रोकने के लिए उन्होंने कितने क़ानून सदन में प्रस्तुत किये है ?
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मंत्रियो, सांसदो, विधायको, पुलिस अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों आदि में व्याप्त भ्र्ष्टाचार को रोकने के लिए उन्होंने कितने क़ानून प्रस्तावित किये है ?
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सुब्रह्मनियम स्वामी हमेशा से ही कहते आये है कि 'आयकर को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए' , अच्छी बात है, पर क्या सुब्रह्मनियम स्वामी ने राज्य सभा में आयकर को निरस्त करने के लिए कोई कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तुत किया है ? नहीं, बिलकुल नहीं !!!!
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दूसरे शब्दों में सुब्रह्मनियम स्वामी एक भकर है, जिनकी आस्था बकवाद में है क्रियान्वयन में नहीं। इसीलिए सुब्रह्मनियम स्वामी द्वारा दिए गए सभी एलान सिर्फ माहौल बनाकर कार्यकर्ताओ को अपने साथ चिपकाते है और फिर शून्य में खो जाते है। वे उनके क्रियान्वयन की कभी परवाह नहीं करते, और न ही उनकी ऐसी नीयत होती है। इस तरह से डायलॉग देने का उनका हुनर काफी अच्छा है -- पेशेवर अभिनेताओं से भी अच्छा।
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सार रूप में कार्यकर्ताओ से आग्रह है कि यदि वे देश की व्यवस्था में सकारात्मक सुधार लाना चाहते है तो राइट टू रिकॉल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित एमआरसीएम, वेल्थ टैक्स, राईट टू रिकॉल, टीसीपी, ज्यूरी सिस्टम आदि क़ानूनो का प्रचार करे और सुब्र्ह्मणियम स्वामी जैसे पेशेवर नटो के पीछे अपना समय बर्बाद न करे। औेर यदि फिर भी आपको डॉयलॉग बाजी में रस मिलता हो तो बॉलीवुड की और रूख करे, वहाँ आपको और भी ज्यादा सनसनीखेज डायलॉग सुनने को मिलेंगे।
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उन कानूनों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखिये-https://www.facebook.com/ righttorecallC/posts/ 1045257802233875:0
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गीता को केवल पढ़ें ही न उसको जीवन में उतारे ,,देखें कहीं आपके अन्दर तो दानव ने तो नहीं प्रवेश कर लिया l चिंतन करें l आत्मज्ञान लेवे l सब कुछ पैसा नहीं है ऐसा सोचे l अपने धन को आप कहीं गलत कार्यों में तो नहीं लगा रहे l
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जयहिन्द
तो सोचा, जरा ऐसे लोगों की गलतफहमी दूर करने का प्रयास किया जाये। जब RBI रेपो रेट कम करता है, तो उसके क्या परिणाम होते हैं, आइये जरा सरल भाषा में समझते हैं:
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१) रेपो रेट घटने का सीधा परिणाम यह अपेक्षित होता है की, लोन सस्ता हो जाये, लोन सस्ता हो जायेगा तो इकॉनमी में लिक्विडिटी (यानि रुपये का प्रवाह) बढ़ेगा, पर उसके सामने यदि गुड्स एंड सर्विसेज के उत्पादन में उतनी ही बढ़ोत्तरी नहीं हुयी हो तो...?
याद रहे ये बातें 2014 के अंत और 2015 के शुरूआती क्वार्टरस की हैं और उस समय हमारा इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन IIP और सर्विस इंडेक्स दोनों नीचे-२ जा रहे थे, यानि गुड्स एंड सर्विसेज दोनों का उत्पादन अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ रहा था। ऐसे में यदि मनी सप्लाई बढ़ जाता तो एक परिस्थित का निर्माण होता जिसे कहते हैं - 'Too much money chasing too few goods' और उसका सबसे पहला और खतरनाक असर होता महगाई दर का बढ़ना।
सरकारों की हमेशा ये मंशा होती है की खूब सारा लोन बांटा जाये जिससे बिज़नेस एक्सपेंशन हो सके, नयी नौकरियां खड़ी हो और जीडीपी ग्रोथ अच्छी हो पर क्या उसके लिए आप डंडा मर के बैंक लोन सस्ता करवाओगे...?
(पिछली सरकार में अंधाधुंध जलिया कंपनियों को बांटे गए लोन ने कितना जीडीपी बढ़ाया था सबको पता है, और उसी मूर्खता का नतीजा है आज हमारा बैंकिंग सेक्टर NPA की इतनी गंभीर समस्या से जूझ रहा है।)
याद रहे RBI का प्रमुखतम उद्देश्य ग्रोथ बूस्ट करना नहीं महगाई दर कम रखना है (और ग्रोथ सुनिश्चित करना तथा उसके लिए फण्ड जुटना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है)।
ऐसे में यदि RBI ने बिना किसी दबाव में आये दरों को नियंत्रित रखा तो वह एक सराहनीय कदम था, जिसकी दुनिया भर में तारीफ की गयी (याद रहे तारीफ करने वाले सभी दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री - कांग्रेस के एजेंट या आपिये नहीं थे)
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२) रेपो रेट दूसरा महत्वपूर्ण प्रभाव ये होता है की जब आपको मिलने वाला लोन सस्ता होगा तो जाहिर सी बात है बैंक आपको, आपके पैसे पे जो ब्याज देता है वह भी कम होगा (FD /RD या बचत खाते की ब्याज दरें कम हो जाएँगी)।
अब जब बैंक में कम ब्याज मिलेगा तो स्वाभाविक है, वहां से पैसे निकाल कर लोग गोल्ड या रियल स्टेट में इन्वेस्ट करना शुरू कर देंगे।
गोल्ड ख़रीदा तो इम्पोर्ट बढ़ेगा और करंट अकाउंट डेफिसिट (जिससे फिर से महगाई दर ऊपर भागेगी) और रियल स्टेट में गए तो ब्लैक मनी..?
इतना ही नहीं, बैंकों से बड़े पैमाने पे यदि पैसा निकला गया तो उनके पास लोन में बांटने को पूंजी ही नहीं रह जाएगी (और अब जबकि 150 बीपीएस की कटौती हो चुकी है दरों में, तो ऐसा हो भी रहा है, हालिया इकनोमिक सर्वे के अनुसार बैंकों का 'डिपाजिट और क्रेडिट ग्रोथ' दोनों खतरनाक तरीके से नीचे जा रहे हैं)। ऐसे में रेपो रेट में की गयी और कटौती सबसे ज्यादा उन छोटे निवेशकों और सीनियर सिटीजन्स को नुकसान पहुंचती जो अपनी सेविंग्स सिर्फ बैंकों में ही रखते है, और बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ब्याज पर ही निर्भर होते हैं।
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इसलिए हमें इन दो चीजों के बीच कही न कहीं एक लाइन खींचनी ही होती है, और वो ही RBI गवर्नर का विशेषाधिकार होता है।
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3) आज कच्चे तेल के दामों में गिरावट के बावजूद सरकार महंगाई को क़ाबू नहीं कर पा रही है. आज महंगाई बढ़ रही है. दाल, टमाटर, आलू के दाम बहुत बढ़ गए. थोक मूल्य सूचकांक कम होता रहा लेकिन उपभोक्ता को कोई राहत नहीं मिली. अर्थव्यवस्था की इस हालत के लिए केवल भारतीय रिज़र्व बैंक ही ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि भारत सरकार भी ज़िम्मेदार है.
रघुराम राजन के बारे में जो भी टिप्पणी की गई है वो महज़ टिप्पणी नहीं, एक तरह से आक्रमण है. और इसके पीछे भी राजनीति है.
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4) भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रघुराम राजन ने जितने भी क़दम उठाए हैं, यदि नहीं उठाते तो महंगाई इससे भी ज़्यादा होती.
इसके अलावा उन्होंने जो भी कोशिशें की, उसमें वे थोड़े-बहुत सफल भी रहे.
उन्होंने एनपीए यानी नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट को ख़त्म करने की बात की. एनपीए मतलब ऐसे ऋण जिन्हें लोग बैंक से लेते तो हैं लेकिन वापस नहीं करते.
ऐसे ऋण बड़े बड़े पूंजीपति, बड़े बड़े कॉरपोरेट घराने के मालिक और बड़ी बड़ी कंपनियां लेती हैं, जैसे कि विजय माल्या की कंपनी.
रघुराम राजन ने सारे बैंको को कहा कि वे अपनी बैलेंस शीट, अपना खाता साफ़ करें. ये बात बड़े बड़े पूंजीपति और बड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों के मालिकों को पसंद नहीं आई, जिन पर उंगली उठाई गई.
उन्होंने क्रोनी पूंजीवाद के ख़िलाफ़ कोशिश की. क्रोनी पूंजीवाद क्या है, ये सचमुच पूंजीवाद नहीं है, ये आर्थिक उदारीकरण नहीं है, ये खुले बाजार की नीति नहीं है, बल्कि ये तो सिर्फ़ भाई भतीजावाद है, ये यारों के लिए है, याराना पूंजीवाद है.
रघुराम राजन ने याराना पूंजीवाद के ख़िलाफ़ जो लड़ाई लड़ी वो बहुत लोगों को पसंद नहीं आई. इनमें बड़े-बड़े बैंकों के अधिकारी, कॉरपोरेट घराने के मालिक शामिल थे और इनके साथ कुछ राजनेता भी हैं, जिसे हम रानजीति और कारोबार की साठगांठ कहते हैं.
अब अगर कोई कॉर्पोरेट घरानों के ऊपर हाथ डालने का प्रयत्न करेगा तो सरकार के लिए उनके इलेक्शन में खर्चे के लिए, मीडिया को कवर करने में, न्याय-तंत्र को खरीदने में कौन धन देगा इन भ्रष्ट नेताओं को?
भ्रष्ट नेताओं को कितनी समझ है आर्थिक नीतियों की? वे तो सत्ता के लालच में कुछ भी करते हैं.
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अब जरा सोचियेगा (और उन अन-अर्थशास्त्रियों को सोचवाइएगा) की कम से कम ब्याज दरों को ले कर राजन ने जो किया वह सही था या गलत?
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आज अगर अर्थव्य्स्था रोबस्ट दिख रही है तो उसके पीछे RBI द्वारा उठाये गए ऐसे ही छोटे-२ बहुत सारे कदम हैं, जिनको तार्किक रूप से एक्सप्लेन किया जा सकता है - और उसके सार्थक परिणामों को भी।
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पर यहाँ उस सबकी परवाह किसे है?
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हम तो बस नारा लगाने और आँख, कान, मष्तिष्क सब बंद करके राय बन लेने वाले लोगों की भीड़ हैं!
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एक बार फिर ये साबित हो गया कि हमारा देश और संस्थाएं, वास्तविक प्रतिभाओं का अनादर करने में कितने महारथी है।
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स्वामी एक के बाद एक चिट्ठी लिख रहे हैं कि रघुराम राजन विदेशी एजेंट हैं या अमरीकी षडयंत्र का हिस्सा हैं. इसीलिए जो फैसला रघुराम राजन ने किया, उससे मैं हैरान नहीं हूं.
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सुब्रमण्यम स्वामी के अनुसार उन्होंने जानबूझ कर भारतीय अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुँचाया है., तो स्वामी को ये भी बताना चाहिए की भारतीय अर्थवय्वस्था को मजबूत स्थिति में लाने के लिए क्या कदम आर बी आई गवर्नर उठा सकता है?
स्वामी बता सकता था की सरकार की नीतियाँ घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देनी वाली नहीं है, स्वामी मारीशस -सिंगापुर रूट से आने वाली विदेशी कंपनियों को दिए जाने वाले अवांछित लाभ का विरोध भी कर सकता था, लेकिन कभी विरोध नहीं किया इसने.
दूसरों के कार्यों पे केवल आरोप लगाने से स्वामी की भारतीय मानसिकता सिद्ध नहीं हो सकती.
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स्वामी ने राजन को तुरंत हटाए जाने की मांग करते हुए कहा कि उनके पास ग्रीन कार्ड है, जिसे रिन्यू कराने के लिए वो अमरीका भी गए थे. यहाँ पे स्वामी ने या क्यों नहीं कहा कि ग्रीन कार्ड अमरीका में बेरोकटोक रहने और काम करने के लिए विदेश से आए लोगों को दिया जाता है? स्वामी को ये भी बताना चाहिए था की ग्रीन कार्ड किसी के अमरीका का नागरिक होने का प्रमाण नहीं है.
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डॉ० राजन कि निंदा करने वालों को अर्थव्यवस्था कि कितनी समझ है, भगवान जाने.....पर अर्थशास्त्र में गम्भीर रूचि रखने वाले के रूप में मेरी जितनी समझ है, उसके अनुसार आज, अगर वैश्विक मंदी के इस दौर में भी हमारी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ दिख रही है तो उसमे सम्भवतः सबसे ज्यादा योगदान इस व्यक्ति का है।
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अभी तो चीजें शुरू ही मात्र हुयी थीं और करने को बहुत कुछ बाकि था....
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अब अगर ऐसे समय में जब बैंकिंग सेक्टर (विशेषकर सरकारी) गम्भीर संकट से जूझ रहा है और बैलेंस शीट इतने बड़े-२ घाटे दिखा रही है (थैंक्स टू पिछली सरकार का पॉलिसी पैरालिसिस और उससे उपजी NPA की समस्या, भ्रष्टाचार, जुडिशल और एनवायर्नमेंटल एक्टिविज्म, बसेल नॉर्म्स की शर्ते इत्यादि) तथा हमारी अर्थव्यवस्था मोदीराज में दिन-ब-दिन और नेटवर्क्ड होती जा रही है - तो ऐसे में रेगुलेटर के रूप में RBI का प्रसार और प्रभाव अर्थव्यवस्था, और उससे जुड़ें सभी नीतिगत क्षेत्रों में और गम्भीर होता ही जा रहा है; और जो की स्वाभाविक भी है।
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अब जरा सोचिये, ऐसे में यदि सच में डॉ० राजन चले गए और कही गलती से भी उनके स्थान पर कोई चाटुकार आ गया, तो परिणाम कितने घातक होंगे...?
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राजनीती, विचारधारा का फर्क और अर्थव्यवस्था - ये सब नितांत अलग-२ चीजें हैं, और हमारा 68 वर्षों का इतिहास गवाह है की उनको आपस में जोड़ने के प्रयासों ने हमेशा देश का ही नुकसान किया है।
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डॉ० राजन ने पिछले ३ वर्षों में जो किया है उसके लिए हमे उनका आभारी होना चाहिए, और हम मुहीम चलाकर उन्हें अपमानित करने में लगे हैं, वाह रे भारत देश महान..
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सुब्रह्मनियम स्वामी का नया नाटक - रघुराम राजन के साथ नूरा कुश्ती। जानिये, कि कैसे स्वामी नाटक कर के रघुराम राजन के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सहयोग कर रहे है।
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सुब्रह्मनियम स्वामी ने 1997-1998 के दौरान वाजपेयी सरकार को गिराने के कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया किन्तु इसमें उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली !!! और स्वामी वाजपेयी के इसीलिए खिलाफ हो गए थे क्योंकि वाजपेयी ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए पोकरण-२ किया था और बीमा, मिडिया समेत कई क्षेत्रो में एफडीआई को अनुमति देने से इंकार कर दिया था।
अमेरिका को वाजपेयी की यह नीति बिलकुल भी पसंद नहीं आयी और इसीलिए अमेरिका के शुभचिंतक सुब्रह्मनियम स्वामी ने वाजपेयी सरकार को अमेरिका के हक़ में गिराने की कसम खायी !!! असल में स्वामी ने जब से होश सम्भाला तब से ही वे बतौर अमेरिकी कार्यकर्ता काम कर रहे है !!!
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बाद में कुछ 5 कार्यकर्ताओ ने सोनिया गांधी के इस दावे के खिलाफ कि, उनके पास केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की कॉलिज डिग्री है, कोर्ट में मुकदमा दायर किया था।
तब सुब्रह्मनियम स्वामी इन कार्यकर्ताओ के मुद्दे को हाइजेक करने के लिए फिर से सामने आये और सोनिया गांधी के डिग्री के बारे में पेश किये गए झूठे शपथपत्र के मुकदमे में 'मुख्य वादी' बन गए। अदालत में यह साबित भी हो गया कि सोनिया गांधी ने अपनी डिग्री के बारे में झूठ बोला था। और जब सोनिया गांधी सुप्रीम कोर्ट में दोषी पायी गयी तो स्वामी ने अंत में जज से क्या कहा ?
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सुब्रह्मनियम स्वामी ने दृढ़ और सपाट लहजे में कहा कि, 'माय लार्ड, मैं अपना मुकदमा वापिस लेता हूँ' !!
तो इस प्रकार जब मुख्य वादी मुकदमा वापिस ले लेता है तो मामले ही खत्म हो जाता है !! दूसरे शब्दों में, एन मौके पर सुब्रह्मनियम स्वामी एकदम से सोनिया गांधी के तारणहार बन कर उभरे !!!
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2G स्पेक्ट्रम घोटाले में स्वामी फिर से निकलकर आये और उन्होंने इस मामले के मुख्य वादियों का मुकदमा हाइजेक कर लिया। नतीजा ? यह मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना लेकिन इसकी हवा निकालने के लिए एन मौके पर सुब्रह्मनियम स्वामी दूर संचार मंत्री ए. राजा का सार्वजनिक नार्को टेस्ट करने का विरोध करने लगे जिससे मामला सुट्ट् हो गया परिणामस्वरूप सोनिया समेत सारे आरोपी इस मामले से बरी हो जाएंगे !!! सोनिया को इस मामले से लाभ यह हुआ कि टेलीकॉम मिनिस्ट्री डीएमके से खिंचकर कांग्रेस के पास आ गयी !!!
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दूसरे शब्दों में, सुब्रह्मनियम स्वामी मलका ए नौटंकी है। ये आदमी खुद को भ्र्ष्टाचार और भारत विरोधी तत्वों के मुकाबले में खुद को खड़ा करता है और इस तरह का भरम खड़ा करता है जिससे यह लगे कि वाकई में यह आदमी देश हित के लिए लड़ रहा है। लेकिन वास्तव में सुब्रह्मणियम स्वामी ये नाटक इसीलिए रचते है ताकी अमेरिकी हितों और बड़े बघियारो की रक्षा की जा सके।
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और अब सुब्रह्मनियम स्वामी का नया नाटक देखिये --- वे जनता को इस भ्रम में डालने की कोशिश कर रहे है कि वे रघुराम राजन के खिलाफ है !!!
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और आप जानते है तब सुब्रह्मनियम स्वामी ने क्या किया ? इस आदमी ने रघुराम गजनी को नौकरी से निकालने के लिए नागरिकों से सांसदों को एसएमएस भेजने की अपील करने से साफ़ इंकार कर दिया !!
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फिर सुब्रह्मनियम स्वामी ने गजनी को नौकरी से निकालने के लिए क्या किया ? क्या उन्होंने राज्य सभा में 'राईट टू रिकॉल रिजर्व बैंक गवर्नर' का क़ानून ड्राफ्ट रखा ताकि भारत के मतदाता रघुराम गजनी को बहुमत का प्रयोग करके नौकरी से निकाल सके ? नहीं। सुब्रह्मनियम स्वामी ने राज्य सभा में राईट टू रिकॉल रिजर्व बैंक गवर्नर' का क़ानून ड्राफ्ट रखने से साफ़ इंकार कर दिया !!!
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रघुराम गजनी को पद से हटाने के लिए स्वामी ने जो कुछ किया है वह यह है कि -- उन्होंने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है !!
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तो क्या ये उचित होगा, यदि रघुराम गज़नी को नौकरी से निकाल दिया जाए लेकिन 'सरकार की मंदिर लूटो योजना' जारी रहे ? असल में सुब्रह्मणियम स्वामी की योजना गजनी को नौकरी से निकालने की है, लेकिन उनका कहना है कि मंदिरों का सोना लूटने की स्किम जारी रहनी चाहिए !!
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कुल मिलाकर रघुराम गजनी से नूरा कुश्ती स्वामी द्वारा किया जा रहा एक और नया नाटक है। नाटक के सिवाय कुछ नहीं।
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ये सब तो ठीक है, पर स्वामी भ्र्ष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए जाने जाते है, तो अब चूंकि वे राज्य सभा में सांसद है तो यह पुछा जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट आदि में व्याप्त भ्र्ष्टाचार और भाई भतीजा वाद को रोकने के लिए उन्होंने कितने क़ानून सदन में प्रस्तुत किये है ?
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मंत्रियो, सांसदो, विधायको, पुलिस अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों आदि में व्याप्त भ्र्ष्टाचार को रोकने के लिए उन्होंने कितने क़ानून प्रस्तावित किये है ?
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सुब्रह्मनियम स्वामी हमेशा से ही कहते आये है कि 'आयकर को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए' , अच्छी बात है, पर क्या सुब्रह्मनियम स्वामी ने राज्य सभा में आयकर को निरस्त करने के लिए कोई कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तुत किया है ? नहीं, बिलकुल नहीं !!!!
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दूसरे शब्दों में सुब्रह्मनियम स्वामी एक भकर है, जिनकी आस्था बकवाद में है क्रियान्वयन में नहीं। इसीलिए सुब्रह्मनियम स्वामी द्वारा दिए गए सभी एलान सिर्फ माहौल बनाकर कार्यकर्ताओ को अपने साथ चिपकाते है और फिर शून्य में खो जाते है। वे उनके क्रियान्वयन की कभी परवाह नहीं करते, और न ही उनकी ऐसी नीयत होती है। इस तरह से डायलॉग देने का उनका हुनर काफी अच्छा है -- पेशेवर अभिनेताओं से भी अच्छा।
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सार रूप में कार्यकर्ताओ से आग्रह है कि यदि वे देश की व्यवस्था में सकारात्मक सुधार लाना चाहते है तो राइट टू रिकॉल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित एमआरसीएम, वेल्थ टैक्स, राईट टू रिकॉल, टीसीपी, ज्यूरी सिस्टम आदि क़ानूनो का प्रचार करे और सुब्र्ह्मणियम स्वामी जैसे पेशेवर नटो के पीछे अपना समय बर्बाद न करे। औेर यदि फिर भी आपको डॉयलॉग बाजी में रस मिलता हो तो बॉलीवुड की और रूख करे, वहाँ आपको और भी ज्यादा सनसनीखेज डायलॉग सुनने को मिलेंगे।
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उन कानूनों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखिये-https://www.facebook.com/
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गीता को केवल पढ़ें ही न उसको जीवन में उतारे ,,देखें कहीं आपके अन्दर तो दानव ने तो नहीं प्रवेश कर लिया l चिंतन करें l आत्मज्ञान लेवे l सब कुछ पैसा नहीं है ऐसा सोचे l अपने धन को आप कहीं गलत कार्यों में तो नहीं लगा रहे l
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जयहिन्द
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.