अहमदाबाद-मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन शुरू हुआ तो शताब्दी ट्रेन पे क्या असर होगा?
जब अहमदाबाद-मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन शुरू होगी तो इसी रूट पर चलने वाली शताब्दी ट्रेन को और भी धीमा एवं सस्ता कर दिया जाएगा । फलस्वरूप उच्च मध्य वर्ग को मजबूरी में शताब्दी की जगह बुलेट ट्रेन में सफ़र करने के 2800 रू चुकाने पड़ेंगे !!!
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शताब्दी इस रूट पर 8 घंटे लेती है और आसानी से इस अवधि को घटाकर 5 घंटे किया जा सकता है, किन्तु बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव में रेल मंत्री ऐसा नही करेंगे । क्योंकि 1000 रू के किराए में यदि शताब्दी 5 घंटे लेने लगेगी तो 3000 रू लेकर 3 घंटे में मंजिल तक पहुंचाने वाली बुलेट ट्रेन पिट जायेगी । इसलिए शताब्दी यह दूरी आगे भी 8 घंटे में ही तय करती रहेगी ।
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हालत तब और भी खराब हो जायेगी जब शताब्दी का किराया 1000 से घटाकर 800 कर दिया जाता है । ऐसी स्थिति में मध्य वर्ग जो कि कई बार शताब्दी के सफ़र को टाल देता है शताब्दी में सफ़र करने के लिए प्रोत्साहित होगा, जिससे शताब्दी और भी खचाखच हो जायेगी । अत: उच्च मध्य वर्ग के व्यवसायियों को, जो कि बहुधा अंतिम समय में सफर करने का इरादा बनाते है, के लिए बुलेट ट्रेन के लिए 3000 रूपये चुकाने के अलावा अन्य कोई उपाय नही बचेगा ।
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यह व्यापार बढाने का सामान्य सिद्धांत है -- माल की गुणवत्ता गिराकर उसे सस्ता कर दो, ताकि अन्य वर्ग को क्वालिटी और उपलब्धता के ऊँचे दाम चुकाने पड़े ।
उदाहरण के लिए यदि कोई आइसक्रीम ब्रांड जो कि 250 ग्राम, 500 ग्राम तथा 1 किलो की पेकिंग में आइसक्रीम बेचता है, यदि 250 ग्राम की पेकिंग बंद कर देता है, तो ग्राहकों को 500 ग्राम का पेकिट खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा । इसी तरह मिल्क पाउडर 50 ग्राम, 100 ग्राम से लेकर 500 ग्राम के पेक तक उपलब्ध है, किन्तु सुपर मार्किट सिर्फ 500 ग्राम की पेकिंग ही रखते है ।
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शुक्र है कि आइसक्रीम और मिल्क पाउडर के दर्जनों ब्रांड बाजार में मौजूद है, किन्तु बुलेट ट्रेन और शताब्दी आइसक्रीम नही है । अत: यदि शताब्दी हाउसफुल है, तो आपके पास बुलेट ट्रेन के सिवा सफ़र का अन्य कोई विकल्प नही बचता ।
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इसके अलावा बुलेट ट्रेन में पूरा पैसा विदेशी कम्पनियों द्वारा लगाया जा रहा है । भारत सरकार का इसमें एक कौड़ी का भी निवेश नहीं है । अत: इससे होने वाले सारे मुनाफे के बदले में हमें डॉलर चुकाने होंगे । जितना ही बुलेट ट्रेन कमाएगी हम उतना ही गंवाते जायेंगे ।
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समाधान यह है की हमें इस रूट पर और भी ज्यादा और अच्छे ट्रेक बिछाने चाहिए, कुछ स्टेशनों को घटाया या जोड़ा जाना चाहिए ताकि हम शताब्दी के यात्रा घंटो को 8 से घटा कर 5 कर सके । इसके अलावा राईट टू रिकाल रेल मंत्री के ड्राफ्ट को गेजेट में प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि भारत का रेल मंत्री भारत के लिए काम करे न कि विदेशियों के लिए । दुःख का विषय है कि मोदी साहेब के अंधभक्त सिर्फ इसीलिए इन उपायों का विरोध कर रहे है क्योंकि मोदी साहेब इन उपायों का विरोध कर रहे है ।
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सभी नागरिको से अपील है कि अपने सांसद को SMS द्वारा यह ऑर्डर भेजे :
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Hon MP, I order you to '#NoRailwayFDI', voter ID : ######
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शताब्दी इस रूट पर 8 घंटे लेती है और आसानी से इस अवधि को घटाकर 5 घंटे किया जा सकता है, किन्तु बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव में रेल मंत्री ऐसा नही करेंगे । क्योंकि 1000 रू के किराए में यदि शताब्दी 5 घंटे लेने लगेगी तो 3000 रू लेकर 3 घंटे में मंजिल तक पहुंचाने वाली बुलेट ट्रेन पिट जायेगी । इसलिए शताब्दी यह दूरी आगे भी 8 घंटे में ही तय करती रहेगी ।
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हालत तब और भी खराब हो जायेगी जब शताब्दी का किराया 1000 से घटाकर 800 कर दिया जाता है । ऐसी स्थिति में मध्य वर्ग जो कि कई बार शताब्दी के सफ़र को टाल देता है शताब्दी में सफ़र करने के लिए प्रोत्साहित होगा, जिससे शताब्दी और भी खचाखच हो जायेगी । अत: उच्च मध्य वर्ग के व्यवसायियों को, जो कि बहुधा अंतिम समय में सफर करने का इरादा बनाते है, के लिए बुलेट ट्रेन के लिए 3000 रूपये चुकाने के अलावा अन्य कोई उपाय नही बचेगा ।
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यह व्यापार बढाने का सामान्य सिद्धांत है -- माल की गुणवत्ता गिराकर उसे सस्ता कर दो, ताकि अन्य वर्ग को क्वालिटी और उपलब्धता के ऊँचे दाम चुकाने पड़े ।
उदाहरण के लिए यदि कोई आइसक्रीम ब्रांड जो कि 250 ग्राम, 500 ग्राम तथा 1 किलो की पेकिंग में आइसक्रीम बेचता है, यदि 250 ग्राम की पेकिंग बंद कर देता है, तो ग्राहकों को 500 ग्राम का पेकिट खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा । इसी तरह मिल्क पाउडर 50 ग्राम, 100 ग्राम से लेकर 500 ग्राम के पेक तक उपलब्ध है, किन्तु सुपर मार्किट सिर्फ 500 ग्राम की पेकिंग ही रखते है ।
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शुक्र है कि आइसक्रीम और मिल्क पाउडर के दर्जनों ब्रांड बाजार में मौजूद है, किन्तु बुलेट ट्रेन और शताब्दी आइसक्रीम नही है । अत: यदि शताब्दी हाउसफुल है, तो आपके पास बुलेट ट्रेन के सिवा सफ़र का अन्य कोई विकल्प नही बचता ।
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इसके अलावा बुलेट ट्रेन में पूरा पैसा विदेशी कम्पनियों द्वारा लगाया जा रहा है । भारत सरकार का इसमें एक कौड़ी का भी निवेश नहीं है । अत: इससे होने वाले सारे मुनाफे के बदले में हमें डॉलर चुकाने होंगे । जितना ही बुलेट ट्रेन कमाएगी हम उतना ही गंवाते जायेंगे ।
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समाधान यह है की हमें इस रूट पर और भी ज्यादा और अच्छे ट्रेक बिछाने चाहिए, कुछ स्टेशनों को घटाया या जोड़ा जाना चाहिए ताकि हम शताब्दी के यात्रा घंटो को 8 से घटा कर 5 कर सके । इसके अलावा राईट टू रिकाल रेल मंत्री के ड्राफ्ट को गेजेट में प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि भारत का रेल मंत्री भारत के लिए काम करे न कि विदेशियों के लिए । दुःख का विषय है कि मोदी साहेब के अंधभक्त सिर्फ इसीलिए इन उपायों का विरोध कर रहे है क्योंकि मोदी साहेब इन उपायों का विरोध कर रहे है ।
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सभी नागरिको से अपील है कि अपने सांसद को SMS द्वारा यह ऑर्डर भेजे :
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Hon MP, I order you to '#NoRailwayFDI', voter ID : ######
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.