कैराना की हिन्दू-विरोधी व्यवस्था एवं समाधान
हिन्दुओं को न केवल भगवद्गीता का पाठ करना चाहिए, बल्कि उसे जीवन में उतारना भी जरूरी है आज के षड्यंत्र-पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था में. हिन्दुओं को ये देखना चाहिए की कहीं आप क्षद्म शांति पूर्ण व्यवस्था के ही पक्ष में अपना एवं अपनी पीढ़ियों का भविष्य बर्बाद तो नहीं कर रहे? देखें कहीं आपके अन्दर भी कहीं क्षद्म शान्ति-पूर्ण दानव ने कहीं प्रवेश तो नहीं कर लिया? चिंतन करें. आत्मज्ञान लें. समाधान के लिए इस लेख का सबसे अंतिम पारा देखिए . जय हिन्द .
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#कैराना_की_कहानी भाग 1
सोमालिया या ऐसे ही किसी अफ़्रीकी देश में भीषण गृहयुद्ध और अकाल भुखमरी को कवर करते National Geographic Channel के एक fotographer ने एक फोटो खींचा था । भूख से मरता एक बच्चा , अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है , और एक गिद्ध बड़े इत्मीनान से उसकी मौत का इंतज़ार कर रहा है । सुनते हैं कि बाद में वो फोटोग्राफर पागल हो गया था , इस आत्मग्लानि में , कि उसने उस मरते हुए बच्चे को बचाया क्यों नहीं ?
बहरहाल , कैराना के हाल , उस से कहीं ज़्यादा भयावह हैं , जितना कि आप सोच सकते हैं । अब मैं इसके आगे कैराना पे कोई टिप्पणी नहीं करूँगा । मैं सिर्फ वो लिखूंगा , जो आज मैंने अपनी आँख से देखा । टिप्पणी आप कीजिये ।
कैराना की आबादी कुल डेढ़ या पौने दो लाख है । क्या आप पौने दो लाख की आबादी के किसी शहर की कल्पना कर सकते हैं जिसमे कोई पेट्रोल पंप ही न हो ?
जी हाँ , कैराना में कोई पेट्रोल पंप नहीं है । पहले कभी हुआ करता था । अब नहीं है ।
लोग गाडी में तेल भरवाने शामली या 7 KM दूर जमना पार पानीपत जिले में जाते हैं ।
आज रात मैं कैराना में रुकना चाहता था । पूरे कैराना में कोई होटल , या rest house नहीं है ...... एक भी रेस्तरां या ढाबा नहीं जहां कोई हिन्दू खाना खा ले । जो है वो सब भैंसे का मांस परोसते हैं ।
ऐसा नहीं हौ कि नहीं थे । पहले थे हिन्दू ढाबे । सब बंद हो गए ।
कुछ गिने चुने परिवार आज भी रहते हैं यहां ।
लोकल लौंडों ने निशान लगा रखे हैं । ये मेरा । जब लाला चला जायेगा तो इसमें मैं रहूंगा ।
गिद्ध इंतज़ार कर रहे हैं ।
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#कैराना_की_कहानी भाग 2
#कैराना_की_आँखोंदेखी
कैराना के हिन्दू , आपस में फुसफुसा के बात करते हैं ।
बात करते अगर कोई लौंडा उत्तेजित हो जाए तो उसके दोस्त उसे याद दिलाते है ...... volume थोड़ा low ........
कैराना के हिन्दू , बात करते हुए , गर्दन इधर उधर घुमा के देख लिया करते हैं ।
कैराना के हिन्दू , अक्सर बात करते करते चुप हो जाया करते हैं ।
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#कैराना_की_कहानी भाग 3
कैराना जाने का कार्यक्रम मूलतः 19 जून रविवार का था । बहुत से मित्र जाना चाहते थे । देश भर से लोग आना चाहते थे । जस जस 19 नज़दीक आने लगी , माहौल गरमाने लगा । 19 जून के आसपास तो ये आलम था कि कैराना में एक से एक high profile सरकारी , गैर सरकारी , राजनैतिक , गैर राजनैतिक , न्यूज़ चैनल , अखबार , पत्रिका के रिपोर्टर पहुँच रहे थे । उधर संगीत सोम का जमावड़ा ।
प्रशासन ने धारा 144 लगा दी थी । ऐसे में कोई बड़ा ग्रुप वहाँ ले के जाना मूर्खता होती ।
इसके अलावा कैराना में हमारे कुछ local सूत्र थे जो अनावश्यक expose हो रहे थे ।
उनकी जान खतरे में डालना मूर्खता होती ।
सो ये तय हुआ कि social media के लोग अकेले , अलग अलग , वो भी बिना किसी सार्वजनिक पूर्व सूचना के जाएंगे । बहुत से मित्र तो ऐसे थे जिन्हें मैंने मना किया ।
नहीं , नहीं जाना है वहाँ । वहां जा के कोई मजमा थोड़े न लगाना है ?
मैंने 22 को दोपहर 2 बजे , यहां जंजैहली से बस पकड़ी जिसने मुझे सुबह 3 बजे पानीपत उतार दिया । पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार पहले मैं उन परिवारों से मिला जो कैराना से पलायन कर पानीपत में रह रहे हैं ।
बातचीत करने से पहले सबकी एक ही शर्त थी , फोटो नहीं और नाम नहीं । और कोई audio video recording नहीं । कोई selfie नहीं ।
सबने अपनी रामकहानी सुनाई ।
उसके बाद मैं कैराना पहुंचा ।
जहन्नुम सी मनहूसियत ।
लपक के भूख लगी थी । पूरे शहर में कुछ खाने लायक नहीं । ( आखिर कोई आदमी केले खा के कितने दिन जीवित रह लेगा ☺)
वहाँ 5 हिन्दू नवयुवक मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे ।
मैं जैसे ही कैराना उतरा , मुझे तुरंत लोगों ने तड़ लिया कि बाहरी आदमी है । कोढ़ में खाज कर दी ...... फोन से कुछ फोटो लेने लगा ।
एक शरीफ सा लौंडा मेरे पास आया ....... uncle जी कौन से अखबार से आये ?
तब तक मुझे लेने लड़का आ गया था । हम एक दूकान में बैठ के बातें करने लगे । बहुत सी बातें हुई । ढेर सारी बातें । वो घर वो मोहल्ले और वो दुकानें देखी जो आज बंद पड़ी हैं । बहुत कुछ था जानने समझने को । मेरा मन था कि आज की रात रुक जाऊं कैराना में ही । सारी रात का बस का सफ़र और दिन भर की भाग दौड़ से थक भी गया था । पर मेरे लोकल मित्रों ने मुझे कहा , नहीं ....... आप निकल जाइए ।
पर पूरे घटनाक्रम में मुझे अपने से ज़्यादा उन लड़कों की फ़िक्र थी जो अनावश्यक expose हो रहे थे ।
शाम को कैराना से बस नहीं मिलती । सिर्फ डग्गा मार जीपें चलती हैं जो 60 - 70 तक ........जी हाँ 60 - 70 तक आदमी लाद लेती हैं , जीप की छत पे ही 20 बैठे थे । और 20 - 25 लटके हुए थे ।
यूँ मैं चाहता तो एक पोस्ट लिख देता तो वहीं अगल बगल में ही 4 - 6 मित्र थे । शामली में । पर फिर वही गोपनीयता का प्रश्न था , इसलिए लौट आया ।
बहुत से अन्य मित्र भी जाना चाहते हैं कैराना ।
सिर्फ एक सलाह है ।
अपने लोकल contacts को expose मत होने दीजिये ।
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#कैराना_की_कहानी भाग 4
हम लोग एक छोटी सी दूकान में , सिर से सिर सटाये , खुसफुसा के बातें कर रहे थे ।
वो कुल 5 लड़के थे । सब किस्से सुना रहे थे । उनको सब एक एक तारीख याद थी , जैसे किसी history के professor को होती हैं । कब क्या हुआ । कब किसकी ह्त्या हुई । कब किसको फोन आया ।
एक लड़का , उम्र यही कोई 24 - 25 साल ।
मैंने उस से पूछा ........ आपने क्यों नहीं किया पलायन अब तक ।
आपको कभी कोई फोन नहीं आया ?
जी अब तक तो नहीं आया ।
कल को यदि आ गया तो ?
अचानक उसके चेहरे का रंग उड़ गया । हाव भाव बदल गए ।
काश ...... उस समय आपने उसकी आँखें देखी होती ......
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#कैराना_की_कहानी भाग 3
कैराना जाने का कार्यक्रम मूलतः 19 जून रविवार का था । बहुत से मित्र जाना चाहते थे । देश भर से लोग आना चाहते थे । जस जस 19 नज़दीक आने लगी , माहौल गरमाने लगा । 19 जून के आसपास तो ये आलम था कि कैराना में एक से एक high profile सरकारी , गैर सरकारी , राजनैतिक , गैर राजनैतिक , न्यूज़ चैनल , अखबार , पत्रिका के रिपोर्टर पहुँच रहे थे । उधर संगीत सोम का जमावड़ा ।
प्रशासन ने धारा 144 लगा दी थी । ऐसे में कोई बड़ा ग्रुप वहाँ ले के जाना मूर्खता होती ।
इसके अलावा कैराना में हमारे कुछ local सूत्र थे जो अनावश्यक expose हो रहे थे ।
उनकी जान खतरे में डालना मूर्खता होती ।
सो ये तय हुआ कि social media के लोग अकेले , अलग अलग , वो भी बिना किसी सार्वजनिक पूर्व सूचना के जाएंगे । बहुत से मित्र तो ऐसे थे जिन्हें मैंने मना किया ।
नहीं , नहीं जाना है वहाँ । वहां जा के कोई मजमा थोड़े न लगाना है ?
मैंने 22 को दोपहर 2 बजे , यहां जंजैहली से बस पकड़ी जिसने मुझे सुबह 3 बजे पानीपत उतार दिया । पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार पहले मैं उन परिवारों से मिला जो कैराना से पलायन कर पानीपत में रह रहे हैं ।
बातचीत करने से पहले सबकी एक ही शर्त थी , फोटो नहीं और नाम नहीं । और कोई audio video recording नहीं । कोई selfie नहीं ।
सबने अपनी रामकहानी सुनाई ।
उसके बाद मैं कैराना पहुंचा ।
जहन्नुम सी मनहूसियत ।
लपक के भूख लगी थी । पूरे शहर में कुछ खाने लायक नहीं । ( आखिर कोई आदमी केले खा के कितने दिन जीवित रह लेगा ☺)
वहाँ 5 हिन्दू नवयुवक मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे ।
मैं जैसे ही कैराना उतरा , मुझे तुरंत लोगों ने तड़ लिया कि बाहरी आदमी है । कोढ़ में खाज कर दी ...... फोन से कुछ फोटो लेने लगा ।
एक शरीफ सा लौंडा मेरे पास आया ....... uncle जी कौन से अखबार से आये ?
तब तक मुझे लेने लड़का आ गया था । हम एक दूकान में बैठ के बातें करने लगे । बहुत सी बातें हुई । ढेर सारी बातें । वो घर वो मोहल्ले और वो दुकानें देखी जो आज बंद पड़ी हैं । बहुत कुछ था जानने समझने को । मेरा मन था कि आज की रात रुक जाऊं कैराना में ही । सारी रात का बस का सफ़र और दिन भर की भाग दौड़ से थक भी गया था । पर मेरे लोकल मित्रों ने मुझे कहा , नहीं ....... आप निकल जाइए ।
पर पूरे घटनाक्रम में मुझे अपने से ज़्यादा उन लड़कों की फ़िक्र थी जो अनावश्यक expose हो रहे थे ।
शाम को कैराना से बस नहीं मिलती । सिर्फ डग्गा मार जीपें चलती हैं जो 60 - 70 तक ........जी हाँ 60 - 70 तक आदमी लाद लेती हैं , जीप की छत पे ही 20 बैठे थे । और 20 - 25 लटके हुए थे ।
यूँ मैं चाहता तो एक पोस्ट लिख देता तो वहीं अगल बगल में ही 4 - 6 मित्र थे । शामली में । पर फिर वही गोपनीयता का प्रश्न था , इसलिए लौट आया ।
बहुत से अन्य मित्र भी जाना चाहते हैं कैराना ।
सिर्फ एक सलाह है ।
अपने लोकल contacts को expose मत होने दीजिये ।
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#कैराना_की_कहानी भाग 4
हम लोग एक छोटी सी दूकान में , सिर से सिर सटाये , खुसफुसा के बातें कर रहे थे ।
वो कुल 5 लड़के थे । सब किस्से सुना रहे थे । उनको सब एक एक तारीख याद थी , जैसे किसी history के professor को होती हैं । कब क्या हुआ । कब किसकी ह्त्या हुई । कब किसको फोन आया ।
एक लड़का , उम्र यही कोई 24 - 25 साल ।
मैंने उस से पूछा ........ आपने क्यों नहीं किया पलायन अब तक ।
आपको कभी कोई फोन नहीं आया ?
जी अब तक तो नहीं आया ।
कल को यदि आ गया तो ?
अचानक उसके चेहरे का रंग उड़ गया । हाव भाव बदल गए ।
काश ...... उस समय आपने उसकी आँखें देखी होती ......
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कैसे बिगड़ी #कैराना_की_कहानी भाग 5
80 के दशक की शुरुआत में कैराना ऐसा नहीं था । हालांकि मिनी पाकिस्तान उसे तब भी कहते थे पर हिन्दू मुस्लिम जनसंख्या बराबर थी । कोई विशेष समस्या नहीं थी ।
84 में इंदिरा गांधी की ह्त्या के बाद जब राजीव गांधी गद्दी पे बैठे तो 1984 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पे चौधरी अख्तर हसन नामक एक मुस्लिम गूजर को टिकट दिया । वो जीत गया । बस तभी से कैराना के बुरे दिन शुरू हो गए ।
कैराना में बेशक मुस्लिम जनसंख्या हमेशा ज़्यादा रही पर वाणिज्य व्यापार हमेशा हिंदुओं के हॉथ में ही रहा ।
इस से पहले 1989 में कैराना के एक प्रमुख कपड़ा व्यवसायी , जिनकी बाजार में 4 बड़ी दुकानें थीं , उनकी दूकान पे दिन दहाड़े डकैती पड़ी थी और cash लूट लिया गया था । उस डकैती में शमशाद डकैत का गिरोह शामिल था । MP अख्तर हसन ने इन डकैतों को प्रश्रय देना शुरू किया । 1985 में कैराना के दो प्रमुख नागरिकों लाला वेद प्रकाश और लाला जगदीश प्रसाद का अपहरण कर लिया गया । दोनों की ह्त्या कर दी गयी और लाश तक न मिली ।
लाला वेद प्रकाश कोई बहुत मालदार आदमी न थे पर नगर की प्रमुख हस्ती थे । उनकी ह्त्या सिर्फ दबदबा बनाने के लिए की गयी । हिन्दू समाज को हतोत्साहित करने के लिए । केंद्र और राज्य , दोनों में congress की सत्ता थी । राजीव गांधी का प्रचंड बहुमत था ।
अख्तर हसन का परिवार कैराना की राजनीति में छा गया । उसका बेटा मुनव्वर हसन और अब उसका पोता यानि मुनव्वर हसन का बेटा नाहिद हसन कैराना का MLA है ।
मुनव्वर हसन का कुछ साल पहले एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था । अब सत्ता नाहिद हसन के हाथ में है ।
1984 में जब अख्तर हसन MP बना और शमशाद डकैत का आतंक फैलने लगा तो कैराना में पलायन की शुरुआत हुई । जिस परिवार की 4 कपड़ा दुकानों में डाका पड़ा था उन्होंने एक दिन दूकान का सारा माल truck में लादा और 25 km दूर पानीपत shift हो गए । वो परिवार आज भी पानीपत में ही रहता है ।
जिन लाला जगदीश प्रसाद का अपहरण 85 में हुआ था उनके बेटे आज भी कैराना की teachers colony में रहते हैं । हालांकि उनके दोनों बेटे यानि लाला जगदीश प्रसाद के पोते बाहर शिफ्ट कर चुके हैं ।
अख्तर हसन MP के वरद हस्त में डाकुओं ने शहर के सबसे बड़े और प्रमुख हस्तियों को निशाना बनाना शुरू किया ।
मित्तल परिवार के नगर में 6 सिनेमा हॉल थे । एक अन्य हिन्दू परिवार का पेट्रोल पंप था । ऐसे ही कम से कम 25 बड़े व्यापारिक घरानों को निशाने पे लिया गया ।
गुंडों द्वारा पेट्रोल पंप पे तेल भरवा लेना और पैसे न देना , ढाबे में खाना खा के पैसे न देना , रोज़ रोज़ की गुंडा गर्दी मार पीट ........ सबसे पहले सिनेमा हॉल और पेट्रोल pump बंद हुए । उसके बाद ढाबे और मिठाई की दुकानें ।
इस नगर में कभी कोई अच्छा स्कूल न हुआ । आज भी नहीं है । एक भी नहीं । संपन्न हिंदुओं ने अपने बच्चे पढ़ने के लिए पानीपत , करनाल और देहरादून भेजने शुरू किये । ये 80 के दशक की बात है । बच्चे पढ़ने गए तो उनकी मां भी साथ गयी । लाला जी कैराना रह गए । यहां से शुरुआत हुई । धीरे धीरे रोज़ रोज़ की गुंडागर्दी से तंग आ के लोगों ने 12 km दूर शामली और 25 km दूर पानीपत शिफ्ट होना शुरू किया ।
आज भी कैराना में सैकड़ों परिवार ऐसे हैं जो business तो कैराना में करते हैं पर उनके परिवार अगल बगल के बड़े शहरों करनाल , पानीपत ,शामली , मुज़फ्फर नगर मेरठ में रहते हैं । सैकड़ों ऐसे भी हैं जो रहते तो कैराना में हैं पर उन्होंने धीरे धीरे अपना business बाहर कही जमा लिया है या जमा रहे हैं ।
अखिलेश यादव एक दिन कह रहे थे कि लोग अच्छे business prospects के लिए बाहर जा रहे हैं । ऐसा नहीं है । ज़्यादातर लोग ऐसे हैं जो अपना जमा जमाया लाखों करोड़ों का business कैराना में छोड़ के , बंद करके , बेच के , ताला लगा के अन्य शहरों में गए और वहाँ जा के दिन रात संघर्ष कर रहे हैं । यहां से शुरुआत हुई , 80 के दशक में , कैराना से पलायन की
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कैसे बिगड़ी #कैराना_की_कहानी भाग 5
80 के दशक की शुरुआत में कैराना ऐसा नहीं था । हालांकि मिनी पाकिस्तान उसे तब भी कहते थे पर हिन्दू मुस्लिम जनसंख्या बराबर थी । कोई विशेष समस्या नहीं थी ।
84 में इंदिरा गांधी की ह्त्या के बाद जब राजीव गांधी गद्दी पे बैठे तो 1984 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पे चौधरी अख्तर हसन नामक एक मुस्लिम गूजर को टिकट दिया । वो जीत गया । बस तभी से कैराना के बुरे दिन शुरू हो गए ।
कैराना में बेशक मुस्लिम जनसंख्या हमेशा ज़्यादा रही पर वाणिज्य व्यापार हमेशा हिंदुओं के हॉथ में ही रहा ।
इस से पहले 1989 में कैराना के एक प्रमुख कपड़ा व्यवसायी , जिनकी बाजार में 4 बड़ी दुकानें थीं , उनकी दूकान पे दिन दहाड़े डकैती पड़ी थी और cash लूट लिया गया था । उस डकैती में शमशाद डकैत का गिरोह शामिल था । MP अख्तर हसन ने इन डकैतों को प्रश्रय देना शुरू किया । 1985 में कैराना के दो प्रमुख नागरिकों लाला वेद प्रकाश और लाला जगदीश प्रसाद का अपहरण कर लिया गया । दोनों की ह्त्या कर दी गयी और लाश तक न मिली ।
लाला वेद प्रकाश कोई बहुत मालदार आदमी न थे पर नगर की प्रमुख हस्ती थे । उनकी ह्त्या सिर्फ दबदबा बनाने के लिए की गयी । हिन्दू समाज को हतोत्साहित करने के लिए । केंद्र और राज्य , दोनों में congress की सत्ता थी । राजीव गांधी का प्रचंड बहुमत था ।
अख्तर हसन का परिवार कैराना की राजनीति में छा गया । उसका बेटा मुनव्वर हसन और अब उसका पोता यानि मुनव्वर हसन का बेटा नाहिद हसन कैराना का MLA है ।
मुनव्वर हसन का कुछ साल पहले एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था । अब सत्ता नाहिद हसन के हाथ में है ।
1984 में जब अख्तर हसन MP बना और शमशाद डकैत का आतंक फैलने लगा तो कैराना में पलायन की शुरुआत हुई । जिस परिवार की 4 कपड़ा दुकानों में डाका पड़ा था उन्होंने एक दिन दूकान का सारा माल truck में लादा और 25 km दूर पानीपत shift हो गए । वो परिवार आज भी पानीपत में ही रहता है ।
जिन लाला जगदीश प्रसाद का अपहरण 85 में हुआ था उनके बेटे आज भी कैराना की teachers colony में रहते हैं । हालांकि उनके दोनों बेटे यानि लाला जगदीश प्रसाद के पोते बाहर शिफ्ट कर चुके हैं ।
अख्तर हसन MP के वरद हस्त में डाकुओं ने शहर के सबसे बड़े और प्रमुख हस्तियों को निशाना बनाना शुरू किया ।
मित्तल परिवार के नगर में 6 सिनेमा हॉल थे । एक अन्य हिन्दू परिवार का पेट्रोल पंप था । ऐसे ही कम से कम 25 बड़े व्यापारिक घरानों को निशाने पे लिया गया ।
गुंडों द्वारा पेट्रोल पंप पे तेल भरवा लेना और पैसे न देना , ढाबे में खाना खा के पैसे न देना , रोज़ रोज़ की गुंडा गर्दी मार पीट ........ सबसे पहले सिनेमा हॉल और पेट्रोल pump बंद हुए । उसके बाद ढाबे और मिठाई की दुकानें ।
इस नगर में कभी कोई अच्छा स्कूल न हुआ । आज भी नहीं है । एक भी नहीं । संपन्न हिंदुओं ने अपने बच्चे पढ़ने के लिए पानीपत , करनाल और देहरादून भेजने शुरू किये । ये 80 के दशक की बात है । बच्चे पढ़ने गए तो उनकी मां भी साथ गयी । लाला जी कैराना रह गए । यहां से शुरुआत हुई । धीरे धीरे रोज़ रोज़ की गुंडागर्दी से तंग आ के लोगों ने 12 km दूर शामली और 25 km दूर पानीपत शिफ्ट होना शुरू किया ।
आज भी कैराना में सैकड़ों परिवार ऐसे हैं जो business तो कैराना में करते हैं पर उनके परिवार अगल बगल के बड़े शहरों करनाल , पानीपत ,शामली , मुज़फ्फर नगर मेरठ में रहते हैं । सैकड़ों ऐसे भी हैं जो रहते तो कैराना में हैं पर उन्होंने धीरे धीरे अपना business बाहर कही जमा लिया है या जमा रहे हैं ।
अखिलेश यादव एक दिन कह रहे थे कि लोग अच्छे business prospects के लिए बाहर जा रहे हैं । ऐसा नहीं है । ज़्यादातर लोग ऐसे हैं जो अपना जमा जमाया लाखों करोड़ों का business कैराना में छोड़ के , बंद करके , बेच के , ताला लगा के अन्य शहरों में गए और वहाँ जा के दिन रात संघर्ष कर रहे हैं । यहां से शुरुआत हुई , 80 के दशक में , कैराना से पलायन की
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#कैराना_की_कहानी भाग 6
4 दिसंबर 2013 ....... बाइक से दो लड़के एक व्यक्ति की दुकान पे आये ।
जेब से pistol निकाली और उसकी मेज पे रख दी ।
उस से कैराना के प्रमुख लोहा व्यापारी राजेंद्र कुमार का नंबर माँगा ।
उसके बाद उन्होंने इसी तरह नगर के प्रमुख व्यवसायी अंकुर मित्तल ( सिनेमा मालिक ),
विजय मित्तल और सोनू मण्डावरिया का भी नंबर ले लिया ।
5 दिसंबर को सुबह 8 बजे , इन चारों के पास फोन आया ।
मुकीम बोल रहा हूँ ..... 10 लाख रु ।
5 दिसंबर 2013 को ही इन चारों ने पुलिस में complaint लिखा दी ।
6 दिसंबर को कैराना में STF और SOG आ गयी थी ।
स्थानीय नेता चौधरी हुक्म सिंह जी 6 dec को लोहा व्यापारी राजेन्द्र जी की दूकान पे आये । दोपहर की बात है । राजेन्द्र जी के एक कर्मचारी ने बताया कि दूकान के सामने दो संदिग्ध लड़के चाय पीते टहल रहे हैं । ये लोग सक्रीय हुए पर तब तक वो दोनों निकल गए ।
अगली सुबह मुकीम का फोन फिर आया ।
उसने राजेन्द्र जी को फोन पे धमकाया । बोला ये जो पुलिस वाले और ये जो AK 47 वाले सुरक्षा गार्ड हैं न , कुछ न कर पाएंगे ।
राजेन्द्र स्वभाव से दबंग थे । उन्होंने जवाब दिया कि मेरे पास भी असलहा है । मौक़ा आने दो , देखेंगे , कौन किसको मारता है ..........
नगर के सारे व्यापारी इस गुंडा गर्दी के खिलाफ जिला प्रशासन के पास गए , बात लखनऊ तक भी पहुंची ।
राजेन्द्र स्वभाव से दबंग थे । उन्होंने बाकी 3 व्यापारियों को भी पैसे न देने के लिए उकसाया । सबको पुलिस सुरक्षा मिल गयी । सबने अपने फोन बंद कर दिए ।
6 - 7 महीने सब शांत रहा ।
अगस्त के महीने में फिर फोन आया । राजेन्द्र ने पैसे देने से मना कर दिया ।
16 अगस्त 2014 ....... स्थानीय परचून व्यापारी विनोद कुमार को कैराना बाजार में दिन दहाड़े गोली मार दी गयी ।
इसके ठीक 8 दिन बाद , 24 अगस्त 2014 को लोहा व्यापारी राजेंद्र कुमार और उनके साथी शिव कुमार को भी दिन दहाड़े गोली मार दी गयी । पूरे कैराना में मुकीम के सामने खड़ा होने वाला सिर्फ एक ही आदमी था , वो अब नहीं रहा । इस से कैराना के लोगों का मनोबल पूरी तरह टूट गया ।
राजेन्द्र जी की हत्या के बाद तो जैसे रंगदारी और वसूली की बाढ़ सी आ गयी । कोई भी उठ के फोन कर देता था । अब मुकीम के गुर्गे और छुटभैये गुंडे भी रंगदारी के फोन करने लगे । लोगों को दूकान के शटर में फंसी चिट्ठियां मिलने लगी ।
और फिर मानो पलायन की बाढ़ आ गयी ।
लोग रातों रात अपनी दूकान मकान को ताला लगा के भागने लगे ।
नीरज सिनेमा के मालिक मनीष मित्तल कोटा चले गए ।
अम्बा सिनेमा के मालिक अंकुर मित्तल जी देहरादून चले गए ।
अनुज मित्तल भी देहरादून गए ।
एक स्थानीय व्यपारी विक्की कंसल के बेटे का अपहरण हो गया । फिरौती दे के बच्चे को छुड़ा लिया गया । जल्दी ही कंसल परिवार कैराना छोड़ देहरादून चला गया ।
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#कैराना_की_कहानी भाग 6
4 दिसंबर 2013 ....... बाइक से दो लड़के एक व्यक्ति की दुकान पे आये ।
जेब से pistol निकाली और उसकी मेज पे रख दी ।
उस से कैराना के प्रमुख लोहा व्यापारी राजेंद्र कुमार का नंबर माँगा ।
उसके बाद उन्होंने इसी तरह नगर के प्रमुख व्यवसायी अंकुर मित्तल ( सिनेमा मालिक ),
विजय मित्तल और सोनू मण्डावरिया का भी नंबर ले लिया ।
5 दिसंबर को सुबह 8 बजे , इन चारों के पास फोन आया ।
मुकीम बोल रहा हूँ ..... 10 लाख रु ।
5 दिसंबर 2013 को ही इन चारों ने पुलिस में complaint लिखा दी ।
6 दिसंबर को कैराना में STF और SOG आ गयी थी ।
स्थानीय नेता चौधरी हुक्म सिंह जी 6 dec को लोहा व्यापारी राजेन्द्र जी की दूकान पे आये । दोपहर की बात है । राजेन्द्र जी के एक कर्मचारी ने बताया कि दूकान के सामने दो संदिग्ध लड़के चाय पीते टहल रहे हैं । ये लोग सक्रीय हुए पर तब तक वो दोनों निकल गए ।
अगली सुबह मुकीम का फोन फिर आया ।
उसने राजेन्द्र जी को फोन पे धमकाया । बोला ये जो पुलिस वाले और ये जो AK 47 वाले सुरक्षा गार्ड हैं न , कुछ न कर पाएंगे ।
राजेन्द्र स्वभाव से दबंग थे । उन्होंने जवाब दिया कि मेरे पास भी असलहा है । मौक़ा आने दो , देखेंगे , कौन किसको मारता है ..........
नगर के सारे व्यापारी इस गुंडा गर्दी के खिलाफ जिला प्रशासन के पास गए , बात लखनऊ तक भी पहुंची ।
राजेन्द्र स्वभाव से दबंग थे । उन्होंने बाकी 3 व्यापारियों को भी पैसे न देने के लिए उकसाया । सबको पुलिस सुरक्षा मिल गयी । सबने अपने फोन बंद कर दिए ।
6 - 7 महीने सब शांत रहा ।
अगस्त के महीने में फिर फोन आया । राजेन्द्र ने पैसे देने से मना कर दिया ।
16 अगस्त 2014 ....... स्थानीय परचून व्यापारी विनोद कुमार को कैराना बाजार में दिन दहाड़े गोली मार दी गयी ।
इसके ठीक 8 दिन बाद , 24 अगस्त 2014 को लोहा व्यापारी राजेंद्र कुमार और उनके साथी शिव कुमार को भी दिन दहाड़े गोली मार दी गयी । पूरे कैराना में मुकीम के सामने खड़ा होने वाला सिर्फ एक ही आदमी था , वो अब नहीं रहा । इस से कैराना के लोगों का मनोबल पूरी तरह टूट गया ।
राजेन्द्र जी की हत्या के बाद तो जैसे रंगदारी और वसूली की बाढ़ सी आ गयी । कोई भी उठ के फोन कर देता था । अब मुकीम के गुर्गे और छुटभैये गुंडे भी रंगदारी के फोन करने लगे । लोगों को दूकान के शटर में फंसी चिट्ठियां मिलने लगी ।
और फिर मानो पलायन की बाढ़ आ गयी ।
लोग रातों रात अपनी दूकान मकान को ताला लगा के भागने लगे ।
नीरज सिनेमा के मालिक मनीष मित्तल कोटा चले गए ।
अम्बा सिनेमा के मालिक अंकुर मित्तल जी देहरादून चले गए ।
अनुज मित्तल भी देहरादून गए ।
एक स्थानीय व्यपारी विक्की कंसल के बेटे का अपहरण हो गया । फिरौती दे के बच्चे को छुड़ा लिया गया । जल्दी ही कंसल परिवार कैराना छोड़ देहरादून चला गया ।
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#कैराना_की_कहानी भाग 7
हम दोनों मियाँ बीवी अक्सर बहुत लंबे लंबे biking rides पे निकल जाते हैं ।
1000 - 1500 km तो आम बात है । जालंधर से जंजैहली भी बाइक से ही आये थे । मैंने देखा है कि सिर्फ 3 दिन bike चला के हाथ इतने Tan हो जाते हैं कि पूरे शरीर में वो काले हाथ अलग ही चमकते हैं ।
आज कल teenager लडकियां स्कूल कॉलेज जाते , स्कूटी या cycle की सवारी करते , लंबे लंबे दस्ताने पहन लेती हैं , वो जो पूरी बाँह को कवर कर लें , और मुह पे कपड़ा बाँध लेती हैं , ऐसे कि सिर्फ आँखें दिखें ........ ये beauty conscious लडकियां , इन्हें डर है कि गोरा रंग काला न पड़ जाए । अपनी मर्ज़ी से करती हैं ऐसा , लडकियां । कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं है । कहीं से कोई आदेश नहीं है । कोई doctrine नहीं जिसे फॉलो करना मजबूरी है । वाकई अपनी free will से करती हैं लडकियां ऐसा । वहीं कुछ लडकियां औरतें , ठीक इसी तरह ऊपर से नीचे तक , polyester के बुर्कों में ढकी लिपटी , आती जाती दिख जाती हैं । वो biking teenagers का पर्दा और एक ये पर्दा ........ क्या एक से ही हैं दोनों परदे ?
पहले में free will है ........
क्या दुसरे परदे में भी वाकई free will है औरतों की ? या जोर जबरदस्ती से कराया जा रहा है ये पर्दा ?
दोनों cases में पर्दा है । पर दोनों का nature अलग है ।
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कैराना की कहानी में बहुत से मित्रों ने जिज्ञासा की है ....... अब तक की कहानी में तो मामला law and order का लगता है । अखिलेश सरकार भी यही कह रही है । सेक्युलर बिरादरी भी यही कह रही है । सेक्युलर media भी यही कह रहा है ।
परंतु अगर आप इसे law n order की समस्या मान के खारिज कर देते हैं तो आप जान बूझ के कबूतर बन रहे हैं , वो जो बिल्ली को देख के आँखें बंद कर लेता है ।
समस्या का विश्लेषण गहराई से होना चाहिए । समस्या की जड़ तक जाना चाहिए । बुखार अपने आप में कोई बीमारी नहीं होती बल्कि किसी अन्य गंभीर बीमारी का symptom मात्र होता है । नीमहकीम सिर्फ crocin दे के घर भेज देते हैं । physician पैथोलॉजी की शरण में जाता है और खोजता है कि बुखार की जड़ क्या है । कोई भी बीमारी हो , कितनी भी गंभीर , प्रकट तो दर्द , बुखार , जी मिचलाना और चक्कर आना , कमजोरी के रूप में ही बाहर आती है ?
कैराना की समस्या सतही तौर पे law n order की समस्या दिखती है । पर गहराई में झांकिए ....... तो इसके मूल में दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाने वाली मूल प्रवित्ति निकल के आती है । ऐसा नहीं कि law n order की समस्या सिर्फ कैराना में ही है । और बहुत से जगहों पे है । पर racial profiling और ethnic cleansing हर जगह नाही । बिहार में लालू राज में L&O की समस्या भयावह थी । तब भी बिहार से पलायन हुआ । पर उस पलायन और इस पलायन में अंतर है ।
इस पलायन के मूल में कारण धार्मिक हैं ।
इसे law and order की समस्या मान खारिज करना आत्मघाती होगा .......
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#कैराना_की_कहानी भाग 8
कई मित्रों ने कमेंट किया है कि पानीपत में रह रहे परिवार , जब की कैराना से भाग के पानीपत आ ही गए तो अब काहे का डर । अब क्यों मुह छिपा रहे हैं । अब अपना नाम या फोटो छापने से क्यों डर रहे हैं ?
UP का नमाजवादी CM अकललेस जादो कहता है कि लोग better opportunities के लिए बाहर गए । कैराना में चला चलाया पुश्तैनी business और शानदार घर हवेली छोड़ के आदमी करनाल पानीपत लुधियाना और देहरादून कोटा सूरत जा के दो कमरे का घर किराए पे ले के रह रहा है , वो better prospects के लिए shift हुआ ??????
ऐसे भी परिवार हैं जो कैराना में 10,000 रु रोज़ कमाते थे । आज पानीपत में 1000 - 500 के लिए संघर्ष कर रहे हैं ।
पानीपत में एक परिवार मिला । उनके बुज़ुर्ग बताने लगे कि कैराना में उनकी पुश्तैनी दूकान थी बजाजी की ...... मने कपडे की .... suiting shirting साडी साया blouse petticoat ....... सुबह जब दूकान खोलते थे तो 8- 10 ग्राहक बाहर चबूतरे पे इंतज़ार करते मिलते थे ....... और शाम को जब बढ़ाते थे तो भी 8 - 10 ग्राहक दूकान में बैठे होते थे । फिर एक दिन अचानक , truck में पूरी दूकान का माल लादा और पानीपत चले आये । ये बात है आज से कोई 30 साल पुरानी । तब जब कि शमशाद डाकू ने लाला वेद प्रकाश और जगदीश प्रसाद का अपहरण ह्त्या की थी । वो परिवार आज भी पानीपत में संघर्ष कर रहा है ।
better prospects my foot .........
यक्ष प्रश्न : अब जब कि कैराना से भाग ही आये तो काहे का डर ? अब क्यों मुह छिपा रहे हैं ?
उत्तर : कैराना से जब हिंदुओं का पलायन शुरू हुआ तो लोगों ने बाहर निकल के अन्य शहरों में अपने business set करने शुरू किये । जब खाने कमाने लायक थोड़ा बहुत जुगाड़ हो गया तो shift कर गए । अब property का क्या करें ।
कैराना में किसी हिन्दू की प्रॉपर्टी नहीं बिकती ....... बिक भी नहीं सकती ......
क्यों भला ??????
हिन्दू भाग रहा है । मार्किट में हल्ला है । बेचारे की एक समस्या है । मुसलमान को बेच नहीं सकता और हिन्दू खरीदार है ही नहीं ....... अपनी प्रॉपर्टी आखिर बेचे तो किसको ?
कैराना की teachers colony में सब हिन्दू रहते हैं ..........15 से ज़्यादा मकान बिकाऊ हैं ....... बाकी कॉलोनी में लोग रहते हैं ....... जिसको मकान बेचना है वो किसको बेचे ....... हिन्दू colony में मुसलमान को बेच दे यदि , तो बाकी लोगों को समस्या , और हिन्दू खरीदार है नहीं ....... नतीजा , मकान पड़ा है ...... बिक नहीं रहा , ऐसे ही दूकान ....... परिवार अब पानीपत करनाल और देहरादून में है , पर प्रॉपर्टी अब भी है कैराना में ....... परिवार का कोई आदमी जाता है हर महीने , देख ताक आता है ..... झाडू बुहारी दिया बाती कर आता है । इसलिए expose नहीं होना चाहता मीडिया में ....... मुकीम gang के खिलाफ मुह नहीं खोलता मीडिया के सामने ........
इस बीच आज की खबर ये है कि कैराना के शिव चरण मास्टर जी के बेटे श्री संजय गुप्ता जी , जो कि अंकुर मित्तल जी के business partner भी थे , उनकी ThumsUp की एजेंसी थी ........ उन्होंने आज 25 जून 2016 को कैराना छोड़ दिया ।
सुन रहे हैं न अखिलेश यादव जी .........
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खैर...
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हम आते है समाधान के मामले पर, राईट-टू-रिकॉल समूह ने कई सारे सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव दिया है, जिसे अध्ययन करने के बाद इस देश में अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें, यह आदेश पूर्णतया सांविधानिक है क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है.
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आप लोग क्या करें
"राईट टू रिकॉल PM" "Right to recall CM,MP,MLA,डीपीपी,जज इत्यादि etc कानूनों को लागू करवाओ
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अत: सभी कार्यकर्ताओ से आग्रह है कि वे बीजेपी/कांग्रेस/आम पार्टी से किनारा कर लें और सिर्फ राईट टू रिकॉल पार्टी द्वारा प्रस्तावित कानूनों को लागू करवाने के लिए प्रयास करें।
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उन कानूनों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखिये-
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https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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.गीता को केवल पढ़ें ही न उसको जीवन में उतारे ,,देखें कहीं आपके अन्दर तो दानव ने तो नहीं प्रवेश कर लिया l चिंतन करें l आत्मज्ञान लेवे l
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जय हिन्द
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@ प्रजा अधीन राजा
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#कैराना_की_कहानी भाग 7
हम दोनों मियाँ बीवी अक्सर बहुत लंबे लंबे biking rides पे निकल जाते हैं ।
1000 - 1500 km तो आम बात है । जालंधर से जंजैहली भी बाइक से ही आये थे । मैंने देखा है कि सिर्फ 3 दिन bike चला के हाथ इतने Tan हो जाते हैं कि पूरे शरीर में वो काले हाथ अलग ही चमकते हैं ।
आज कल teenager लडकियां स्कूल कॉलेज जाते , स्कूटी या cycle की सवारी करते , लंबे लंबे दस्ताने पहन लेती हैं , वो जो पूरी बाँह को कवर कर लें , और मुह पे कपड़ा बाँध लेती हैं , ऐसे कि सिर्फ आँखें दिखें ........ ये beauty conscious लडकियां , इन्हें डर है कि गोरा रंग काला न पड़ जाए । अपनी मर्ज़ी से करती हैं ऐसा , लडकियां । कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं है । कहीं से कोई आदेश नहीं है । कोई doctrine नहीं जिसे फॉलो करना मजबूरी है । वाकई अपनी free will से करती हैं लडकियां ऐसा । वहीं कुछ लडकियां औरतें , ठीक इसी तरह ऊपर से नीचे तक , polyester के बुर्कों में ढकी लिपटी , आती जाती दिख जाती हैं । वो biking teenagers का पर्दा और एक ये पर्दा ........ क्या एक से ही हैं दोनों परदे ?
पहले में free will है ........
क्या दुसरे परदे में भी वाकई free will है औरतों की ? या जोर जबरदस्ती से कराया जा रहा है ये पर्दा ?
दोनों cases में पर्दा है । पर दोनों का nature अलग है ।
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कैराना की कहानी में बहुत से मित्रों ने जिज्ञासा की है ....... अब तक की कहानी में तो मामला law and order का लगता है । अखिलेश सरकार भी यही कह रही है । सेक्युलर बिरादरी भी यही कह रही है । सेक्युलर media भी यही कह रहा है ।
परंतु अगर आप इसे law n order की समस्या मान के खारिज कर देते हैं तो आप जान बूझ के कबूतर बन रहे हैं , वो जो बिल्ली को देख के आँखें बंद कर लेता है ।
समस्या का विश्लेषण गहराई से होना चाहिए । समस्या की जड़ तक जाना चाहिए । बुखार अपने आप में कोई बीमारी नहीं होती बल्कि किसी अन्य गंभीर बीमारी का symptom मात्र होता है । नीमहकीम सिर्फ crocin दे के घर भेज देते हैं । physician पैथोलॉजी की शरण में जाता है और खोजता है कि बुखार की जड़ क्या है । कोई भी बीमारी हो , कितनी भी गंभीर , प्रकट तो दर्द , बुखार , जी मिचलाना और चक्कर आना , कमजोरी के रूप में ही बाहर आती है ?
कैराना की समस्या सतही तौर पे law n order की समस्या दिखती है । पर गहराई में झांकिए ....... तो इसके मूल में दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाने वाली मूल प्रवित्ति निकल के आती है । ऐसा नहीं कि law n order की समस्या सिर्फ कैराना में ही है । और बहुत से जगहों पे है । पर racial profiling और ethnic cleansing हर जगह नाही । बिहार में लालू राज में L&O की समस्या भयावह थी । तब भी बिहार से पलायन हुआ । पर उस पलायन और इस पलायन में अंतर है ।
इस पलायन के मूल में कारण धार्मिक हैं ।
इसे law and order की समस्या मान खारिज करना आत्मघाती होगा .......
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#कैराना_की_कहानी भाग 8
कई मित्रों ने कमेंट किया है कि पानीपत में रह रहे परिवार , जब की कैराना से भाग के पानीपत आ ही गए तो अब काहे का डर । अब क्यों मुह छिपा रहे हैं । अब अपना नाम या फोटो छापने से क्यों डर रहे हैं ?
UP का नमाजवादी CM अकललेस जादो कहता है कि लोग better opportunities के लिए बाहर गए । कैराना में चला चलाया पुश्तैनी business और शानदार घर हवेली छोड़ के आदमी करनाल पानीपत लुधियाना और देहरादून कोटा सूरत जा के दो कमरे का घर किराए पे ले के रह रहा है , वो better prospects के लिए shift हुआ ??????
ऐसे भी परिवार हैं जो कैराना में 10,000 रु रोज़ कमाते थे । आज पानीपत में 1000 - 500 के लिए संघर्ष कर रहे हैं ।
पानीपत में एक परिवार मिला । उनके बुज़ुर्ग बताने लगे कि कैराना में उनकी पुश्तैनी दूकान थी बजाजी की ...... मने कपडे की .... suiting shirting साडी साया blouse petticoat ....... सुबह जब दूकान खोलते थे तो 8- 10 ग्राहक बाहर चबूतरे पे इंतज़ार करते मिलते थे ....... और शाम को जब बढ़ाते थे तो भी 8 - 10 ग्राहक दूकान में बैठे होते थे । फिर एक दिन अचानक , truck में पूरी दूकान का माल लादा और पानीपत चले आये । ये बात है आज से कोई 30 साल पुरानी । तब जब कि शमशाद डाकू ने लाला वेद प्रकाश और जगदीश प्रसाद का अपहरण ह्त्या की थी । वो परिवार आज भी पानीपत में संघर्ष कर रहा है ।
better prospects my foot .........
यक्ष प्रश्न : अब जब कि कैराना से भाग ही आये तो काहे का डर ? अब क्यों मुह छिपा रहे हैं ?
उत्तर : कैराना से जब हिंदुओं का पलायन शुरू हुआ तो लोगों ने बाहर निकल के अन्य शहरों में अपने business set करने शुरू किये । जब खाने कमाने लायक थोड़ा बहुत जुगाड़ हो गया तो shift कर गए । अब property का क्या करें ।
कैराना में किसी हिन्दू की प्रॉपर्टी नहीं बिकती ....... बिक भी नहीं सकती ......
क्यों भला ??????
हिन्दू भाग रहा है । मार्किट में हल्ला है । बेचारे की एक समस्या है । मुसलमान को बेच नहीं सकता और हिन्दू खरीदार है ही नहीं ....... अपनी प्रॉपर्टी आखिर बेचे तो किसको ?
कैराना की teachers colony में सब हिन्दू रहते हैं ..........15 से ज़्यादा मकान बिकाऊ हैं ....... बाकी कॉलोनी में लोग रहते हैं ....... जिसको मकान बेचना है वो किसको बेचे ....... हिन्दू colony में मुसलमान को बेच दे यदि , तो बाकी लोगों को समस्या , और हिन्दू खरीदार है नहीं ....... नतीजा , मकान पड़ा है ...... बिक नहीं रहा , ऐसे ही दूकान ....... परिवार अब पानीपत करनाल और देहरादून में है , पर प्रॉपर्टी अब भी है कैराना में ....... परिवार का कोई आदमी जाता है हर महीने , देख ताक आता है ..... झाडू बुहारी दिया बाती कर आता है । इसलिए expose नहीं होना चाहता मीडिया में ....... मुकीम gang के खिलाफ मुह नहीं खोलता मीडिया के सामने ........
इस बीच आज की खबर ये है कि कैराना के शिव चरण मास्टर जी के बेटे श्री संजय गुप्ता जी , जो कि अंकुर मित्तल जी के business partner भी थे , उनकी ThumsUp की एजेंसी थी ........ उन्होंने आज 25 जून 2016 को कैराना छोड़ दिया ।
सुन रहे हैं न अखिलेश यादव जी .........
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खैर...
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हम आते है समाधान के मामले पर, राईट-टू-रिकॉल समूह ने कई सारे सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव दिया है, जिसे अध्ययन करने के बाद इस देश में अपने नेताओं / मंत्रियों/ /विधायकों/ प्रधानमत्री / राष्ट्रपति को ईमेल/ ट्विटर/sms / पोस्टकार्ड इत्यादि संचार माध्यमों द्वारा आप आदेश भेजें, यह आदेश पूर्णतया सांविधानिक है क्योकि भारत एक संप्रभु व जनतंत्र देश है.
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आप लोग क्या करें
"राईट टू रिकॉल PM" "Right to recall CM,MP,MLA,डीपीपी,जज इत्यादि etc कानूनों को लागू करवाओ
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अत: सभी कार्यकर्ताओ से आग्रह है कि वे बीजेपी/कांग्रेस/आम पार्टी से किनारा कर लें और सिर्फ राईट टू रिकॉल पार्टी द्वारा प्रस्तावित कानूनों को लागू करवाने के लिए प्रयास करें।
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उन कानूनों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखिये-
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https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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.गीता को केवल पढ़ें ही न उसको जीवन में उतारे ,,देखें कहीं आपके अन्दर तो दानव ने तो नहीं प्रवेश कर लिया l चिंतन करें l आत्मज्ञान लेवे l
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जय हिन्द
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@ प्रजा अधीन राजा
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.