वर्तमान समय में "भारतीय प्रशासनिक राजनैतिक कार्य्व्याव्था में "सत्यमेव जयते" की प्रासंगिकता

भारत में क्या वाकई में जिस वाक्य "सत्यमेव जयते" को कई राजनैतिक, विधायिका, कार्य एवं न्याय-पालिका में कई स्थानों पर लिखा होता है, उस वाक्य का पालन क्या सच में यहाँ की प्रशासनिक न्यायिक इत्यादि व्यवस्था में होता है? 
क्या सही मायनों में इस देश में सत्य की जीत होती है यहाँ की कार्यपालिका में, न्यायपालिका में, मीडिया में, विधायिका में?
.
आप में से अधिकतर पाठकों का उत्तर होगा - "नहीं, सत्यमेव जयते का पालन काफी दुर्लभतम मामलों में ही होता है, अधिकतम मामलों में तो शक्तिशाली ही जीतता है, झूठ की जीत होती है, सत्य की कभी नहीं. लेकिन घबराने की बात नहीं है, अगर जनता अपनी शक्ति पहचान जाये तो सत्य की जीत अवश्य होगी. इसके लिए कुछ अधिक करने की जरूरत नहीं है, बस आपको मात्र एक सन्देश भेजना है. कैसे? जानने के लिए इस लेख को कृपया पूरा पढ़ें.
.
भारतीय न्याय-व्यवस्था प्रशासनिक व्यवस्था में इस शब्द "सत्यमेव जयते" का काफी महत्व है, लेकिन इस वाक्य से यह पता नहीं चलता की यहाँ की न्यायव्यवस्था , प्रशासनिक व्यवस्था में किसका सत्य जीतेगा, जो शक्तिशाली है उसका सत्य जीतेगा या जो वास्तव में सत्य है लेकिन कमजोर है उस सत्य की जीत होगी?
यह तो जनता को कहा गया है कि "सत्यमेव जयते" , लेकिन अगर भ्रष्ट व्यवस्था के रक्षकों के नजरिये से देखा जाए तो जनता को यह झूठ वाक्य इसीलिए पढाया जाता है कि अगर सत्य जीतता है तो जीत कर दिखाओ जरा?
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि सत्य की जीत बहुत कम ही होती है कोर्ट में, अक्सर प्रभावशाली और धन की जीत होती है कोर्ट में.
न्यायपालिका लोकतंत्र के आधार स्तंभों में से सबसे आधारभूत एवं प्रमुख स्तम्भ है. इस स्तम्भ को देश में संविधान एवं न्याय का रखवाला भी कहा जाता है. यदि देश में लोकतंत्र में आस्था, न्यायपालिका में लोगों का विश्वाश बनाए रखना है तो अदालतों एव सरकारों को जनता को त्वरित, भ्र्स्ताचार्मुक्त व सस्ता न्याय उपलब्ध कराने के लिए कार्य करना ही होगा और यह सरकार का कर्तव्य है, अन्यथा यह कहावत सच होती ही रहेगी की पीढियां बीत जातीं है, लोग मर जाते हैं, लेकिन मुकदमा कभी नहीं मरता. यह जीवित ही रहता है और इसकी उम्र भारत में न्यापालिका एवं भ्रष्ट जजों तथा भ्रष्ट वकीलों द्वारा निर्धारित की जाती है.
.
अगर भारतीय न्यायव्यवस्था की कार्यप्रणाली को परखा जाए तो यही सच मिलता है की भारतीय न्यायालयों से बहुत कम लोगों को न्याय मिलता है.
यदि आतंकवाद जैसे गंभीर मामले कि न्याय होने में दस से पंद्रह साल का समय लगता है तो, सिविल मामलों की बात कौन करे?
न्याय प्रक्रिया में होने वाली देरी ही न्याय-प्रक्रिया को खर्चीला बना देती है, जिसका नतीजा ये होता है की समाज के कमजोर वर्ग के लोग कोर्ट कचहरी न्यायलय अदालत इत्यादि नाम से ही घबरा जाते हैं, रसूख वाले लोग तो इतना ही कहकर बच निकलते है की मुझे संविधान और न्याय-प्रणाली पर पूरा भरोसा है, जबकि उनकी हकीकत यह होती है, की जजों, वकीलों एवं अन्य गवाहों को खरीद लिया जाता है, कुछ लोग बिना न्यायलय गए ही मुकदमा जीत जाते हैं.
.
जज भी संविधान का वर्णन उसी प्रकार से सामान्य जनों के मध्य करती है, जैसा रिजल्ट वो जानते के दिमाग में देखना चाहती है
खैर...
.
इसके बावजूद अदालतों में लंबित पड़े मामलों का अम्बार है, यदि ऐसे में देश के सर्वोच्च न्यायलय का मुख्य न्यायाधीश लंबित पड़े मामलों की बात करते हुए भावुक हो जाए, हालत की गंभीरता का अंदाजा लगाना कोई मुश्किल कार्य नहीं है.
.
कुछ दिन पहले राज्यों के मुख्य मंत्रियों एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मलेन में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमन्त्री से अदालतों में न्यायाधीशों के रिक्त पड़े पदों को भरने और उन्हें दुगुना करने की अपील की.
.
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ देश की अदालतों में लगभग तीन करोड़ मामले लंबित पड़े हैं, निचली अदालतों में यह संख्या करीब दो करोड़ है. इनमे से दस फ़ीसदी मामले दस साल या उससे अधिक समय से लंबित हैं.
इकतालीस प्रतिशत मामले दो वर्ष पुराने हैं जबकि तीस प्रतिशत मामले पांच वर्ष पुराने हैं.
हालिया रिपोर्ट के अनुसार यदि हालात ऐसे ही रहे तो अगले तीस वर्षों में देश में लंबित मामलों की संख्या करीब पंद्रह करोड़ हो जाएगी. लंबित मुकदमों को देखते हुए जजों की संख्या कोई नयी नहीं है.
.
वर्ष १९८७ में ही लॉ-कमीशन ने जजों की संख्या पांच गुना करने की सिफारिश की थी. तब से लेकर अबतक किसी सरकार ने अबतक मुकदमों की और जजों के मध्य अंतर को कम करने की कोशिश नहीं की.
.
यह तो तस्वीर का एक ही पहलू है, दूसरा पहलू यह है की न्यायपालिका भी न्यायिक प्रक्रिया को त्वरित और सर्व-सुलभ बनाए जाने को लेकर अपनी तरफ से कोई बदलाव या पहल करती नजर नहीं आ रही.
उदाहरण के लिए सिविल मामलों की सुनवाई अधिकतर अगली तारीख के लिए स्थगित कर दी जाती है, हर साल यह चलता रहता है. यदि न्यायपालिका केवल इस कमी को दूर करले तो अदालतों का बोझ काफी हद तक कम हो सकता है.
साभार- https://www.youtube.com/watch…
.
भारतीय न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार का समाधान यह है की भारत में कोर्ट सिस्टम के साथ साथ भारत में ज्यूरी सिस्टम ( ड्राफ्ट-www.facebook.com/pawan.jury/posts/809746209143617 ) पब्लिक में नार्को टेस्ट( ड्राफ्ट - www.facebook.com/pawan.jury/posts/812341812217390 ) के साथ साथ जजों को उनके पद से निष्कासित करने वाले क़ानून - ड्राफ्ट( राइट-टू-रिकॉल जिला प्रधान जज के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/826540930797478 ) को गजेट में लाने का दबाव भी जनता अपने सांसदों/ मंत्रियों के ऊपर बना सकती है.
.
(नार्को टेस्ट के विषय में ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1024049434354712 )
इस जनांदोलन के लिए अपना मात्र एक संविधानिक आदेश अपने सांसदों/विधायकों/PM/प्रेसिडेंट को sms/पोस्टकार्ड/ईमेल द्वारा एवं अन्य उपलब्ध संचार माध्यमों से भेज सकती है. जैसा की निम्न पारा में बताया हुआ है.
.
राईट टू रिकॉल मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/811071415677763 एवं राईट टू रिकॉल प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/837611029690468
.
आप इस ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दिए जाने की मांग इस प्रकार कर सकते हैं-
"माननीय सांसद/विधायक/मंत्रि/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति महोदय, मैं अपने सांविधानिक कर्तव्य के तहत आपको www.Tinyurl.com/RTRMinister के ड्राफ्ट को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता हूँ/ देती हूँ.
धन्यवाद. वोटर संख्या- xyz "
<..................
.
सत्यमेव जयते !
भारत की पुलिस का यही ध्येय वाक्य है, शायद ?
लेकिन, इसका यह मतलब यह नहीं है कि पुलिस सत्य की तलाश करेगी ।
और ये भी मतलब नहीं है कि पुलिस सत्य ही अपनी जाँच रिपोर्ट में कहेगी।
पुलिस मतलब कानून और ब्यवस्था का रखवाली करने वाली संस्था है, जिसमें पब्लिक प्रॉसिक्यूटर भी शामिल है।
सत्यमेव जयते तो जनता को कहा गया है कि अगर सत्य जीतता है तो जीत कर दिखाओ, हम (पुलिस वाले) तो झूठ क्या कुछ भी रिपोर्ट करेंगे।
पुलिस को पब्लिक सर्वेंट माना गया है, अतः वे गुड़ फेथ में ही रिपोर्ट लिख सकते हैं, बैड फेथ में नहीं।
पर, कानून की किसी किताब में नहीं लिखा हुआ है कि यह गुड़ और बैड फेथ क्या है।
मतलब कि पुलिस झूठी रिपोर्ट दाखिल कर सकती है और यह अपराध नहीं है।
पर, वहीँ दूसरी तरफ कोर्ट बाध्य है पुलिस की रिपोर्ट को प्रथम दृष्टया सत्य मानने के लिये (प्रथम क्या अंतिम तक सत्य ही मानती है ), तो वहीँ पर अभियुक्त के तरफ से दाखिल की गयी बातों को बचाव मानती है, सत्य या असत्य तो परखती ही नहीं है।
तो, ये तो होना ही है कि पक्षपात होगा, और जमकर होगा और मामला लम्बा भी चलेगा और एक तरह से चलता ही है।
बस जब उन पुलिसवालों का कोई बाप खड़ा हो जाता है तो उन पुलिसवालों को सत्यमेव जयते याद आ जाता है।
पर आम जनता न्यायालय का सम्मान करते हुए इन झूठे और अहंकारी पुलिस वालों का भी सम्मान करती है फिर भी झूठ के आगे नहीं झुकने के कारण सालों साल कोर्ट के धक्के खाती रहती है।
इसका एक उपाय यह है डिस्ट्रिक्ट पब्लिक प्रासीक्यूटर के ड्राफ्ट को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप बना दिया जाए जिसका ड्राफ्ट यहाँ दिया गया है-www.Tinyurl.com/RTRDPP
यह डिमांड उपर बताये हुए तरीकों से किया जाए..
.
अन्य उपयोगी सुधारों के सम्बन्ध में यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/photos/a.595403070552686.1073741827.595366263889700/1022208611205461/?type=3&theater
.
भारत की भाई-भतीजावाद कार्य-प्रणाली एवं सांठ-गाँठ से सनी हुई भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था को यहाँ के व्यवस्था परिवर्तन द्वारा ही बदलना पड़ेगा जैसे की एक विडियो में स्वर्गीय राजिव दिक्सित भाई ने बताया था.
.
हमे इस देश में चाहिए व्यवस्था परिवर्तन, जिसको सरकार smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाकर शुरू कर सकती है, जिससे भारतीय प्रजातंत्र पारदर्शी साबित हो सके, जिसमे भ्रष्ट अधिकारियों मंत्रियों को उनके पद से निष्कासित करने का अधिकार जनता के पास हो, जहाँ न्याय करने का अधिकार ज्यूरी सिस्टम के रूप में जनता के पास हो, जहाँ कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक द्वारा समर्थित मुद्दे और उपाय देख सकते हैं.
.
यह डिमांड सांवैधानिक है, क्यूंकि भारत एक प्रजातंत्र है. इसमें सभी नागरिकों को अपने देश की भलाई के लिए क़ानून लाने के लिए प्रस्ताव देने और अपने नेताओं को आदेश देने का अधिकार स्वतः ही प्राप्त है.
.
सभी नागरिकों को हमारे देश का प्रजातांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए smstoneta.com जैसी वेबसाइट लाने को अपने नेताओं को अपने मात्र एक आदेश SMS, ईमेल, पोस्टकार्ड एवं अन्य उपलब्ध संचार-माध्यमों से अपने सांसदों/विधायकों/मंत्रियों/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति को भेजें तो बिलकुल सांवैधानिक है. आप यह आदेश इस प्रकार भेज सकते हैं-
..................>
"माननीय सांसद/विधायक/मंत्रि/प्रधानमन्त्री/राष्ट्रपति महोदय, मैं अपने सांविधानिक कर्तव्य के तहत आपको smstoneta.com जैसी वेबसाइट ला कर भारतीय प्रजातांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था को जनहित में पारदर्शी बनाए जाने का आदेश देता हूँ/ देती हूँ.
धन्यवाद. वोटर संख्या- xyz "
<..................
जय हिन्द.

Comments

Popular posts from this blog

चक्रवर्ती योग :--

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

द्वापर युग में महिलाएं सेनापति तक का दायित्त्व सभाल सकती थीं. जिसकी कल्पना करना आज करोड़ों प्रश्न उत्पन्न करता है. .

पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

ब्राह्मण का पतन और उत्थान

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण

भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई

मोहनजोदड़ो की सभ्यता ? हड़प्पा की संस्कृति?