राजनैतिक वैचारिक अपंगता से देश में अराजकता कैसे फैलती है?

यहाँ की अधिकाँश जनता वैचारिक अपंगता की शिकार है !!
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मौजूदा केन्द्रीय सरकार का दो साल का उपलब्धि में अब तक का कार्य- सबसे अधिक ऍफ़ डी आई एवं कुछ लोगों के लम्बे समय से कानूनी रूप से अटके पड़े फाइल्स के त्वरित फैसले, चंद सड़कों के नाम बदलने एवं ऐसे ही कुछ छोटे मुद्दों के अलावा कुछ नहीं है. बीजेपी-कांग्रेस-आप पार्टी-नीतीश सरकार-ममताबनर्जी-एवं अन्य राजनैतिक दलों के नेता इस तरह के बयान देते हैं जैसे की देश का नेतृत्व करने का काम कोई फेसबुक प्रोफाइल चलाने जैसा है, कि कुछ भी गैरजिम्मेदाराना ब्यान दे दिया. खैर..इस पोस्ट में ये नहीं बताया जाने वाला कि वर्तमान सरकार का दो साल पहले की सरकारों की तुलना में कैसी है.
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लगभग सभी पढ़े लिखे एवं उनके साथी कम पढ़े लिखे गुलाम लोग ग्लोबलिज़ेशन का मुद्दा उठाते हैं, कहते हैं की इससे विदेशी कंपनियां भारत आयेंगी, तो यही बात ग्लोबलिज़ेशन के पक्षपाती लोग भारतीय कंपनियों के मामले में भी क्यों नहीं हमारी कंपनियों के पक्ष में क्यों नहीं ग्लोबलिज़ेशन का मुद्दा उठा सकते? नहीं?
वैचारिक रूप से अपांग जनता एवं भगत गण इन बिके हुए समाचार माध्यमों द्वारा खुश किये जा रहे हैं कि मोदी जी के कहने से विदेशी कम्पनियां भारत व्यापार करने आ रही है. ये वैचारिक अंधे लोग नहीं सोचते की ये कम्पनियां यहाँ लूटने आती हैं ना कि दान देने के लिए?
ये वैचारिक अंधे लोग सोचते ये कम्पनियां भारत से कमाएंगी और ईसाई भी बनाएंगी. नहीं सोचते की हम भी कहीं व्यापार करने जाएंगे तो कमाने ही जाएंगे..नहीं सोचते कि सभी विदेशी कम्पनियां लाभ के सेक्टर में ही क्यों हैं?
लोग नहीं सोचते कि हमारे स्थानीय उधोग नष्ट क्यों हो रहे हैं?
ये भी नहीं सोचते कि इनको लाभ के रूप में जो डॉलर देंगे वो कहाँ से आएगा? वैचारिक अंधे लोग नहीं सोचते कि अहमदाबाद मुंबई वाला रेल रुट जो सबसे अधिक लाभ वाला रुट है वो क्यों बेच दिया?
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FDI का काला सच (पूंजी, टेक्नोलॉजी, रोजगार)- १-रोजगार:-मोदी के डाबर मैनो क्या आपके राष्ट्र राष्ट्रवाद की परिभाषा बदल गई या FDI की?
१९४८ में भारत की आवादी ३६ करोड़ थी और आज १३२ करोड़ यानि तीन गुना लेकिन १९४८ में बेरोजगार ४ करोड़ थे और अब ४८ करोड़ यानि बारह गुना, जबकि बिदेसी कम्पनिया भारत में १९४८ में मात्र १५० से भी कम थी और अब ५००० से ज्यादा यानि ३३ गुना अर्थातु इसका सीधा मतलब है FDI और बिदेसी कम्पनियो के आने से बेरोजगारी बढ़ी है!
१९४७ से आजतक भारत में FDI ८.३० लाख करोड़ से भी कम आया है और भारत पर कर्ज १२.६० लाख करोड़ का है जब की इससे तीन गुना ज्यादा यानि १०० लाख करोड़ से भी उपर कालेधन के रूप में बिदेस जा चूका है, अर्थातु भारत को FDI और लोन की जरुरत न पहले थी और न अब है, तो फिर मोदी को FDI, बिदेसी निवेस या लोन क्यों चाहिए?
अद्धभुत देश है भारत जहाँ देश को लुटवाने वाले मोदी सोनिया केजरी महान एवं मेरे जैसा अगर कोई समझाना चाहे तो-----उन लोगों के सामने ये मुद्दा रखने से मुझे ये कहते हैं, तुम बिहारी हो, इससे जादा तुममे सोचने की शक्ति नहीं, वाह भाई!! हम बिहारी लोगों को तो भारत से आजाद हो जाना चाहिए, नहीं? भारत ने ही बिहार के ऊपर कब्ज़ा कर रखा है नहीं? इसीलिए शायद हम बिहारी भ्रष्टाचार के मात्र कुछ मुद्दों को लेकर सभी बिहारी कुछ सोचने के लायक नहीं बचे? जंगल राज बिहार में कहते हैंलेकिन दिल्ली हरियाणा में घनघोर जंगल राज है, तब यही बोलने वाले कहाँ मर जाते हैं?https://www.youtube.com/watch?v=CB0LQpybQYs&feature=youtu.be
खैर...
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विदेशी कंपनियों के पक्षधर एम् एन सी के पक्षधर भारतीय कंपनियों के बारे में कभी सोचने का समय देते हैं?
वे कभी इस सच की खोज भी करते हैं की विदेशी कपनियों की तरह हमारी कंपनिया हमारी सरकार रोजगार क्यों नहीं दे पा रही?
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समय किसके पास है? ये सब उबाऊ मुद्दों के लिए? ये मुद्दे सरकार सोचेगी, हम क्यों सोचें? हमारा काम है, हम अपने ओफीस में जिम्मेदारी को सही से अदा करें और भगवान हमको इसी काम का जिम्मेदार ठहराएगा?
सही है न ! !
वैसे वैचारिक दृष्टी से भारतीय राजनीतिज्ञ और जनता भी राष्ट्रवाद से मुँह मोड़ चुकी है. यहा की जनता मतलबी लालची और स्वार्थी है.
दिल्ली की आप पार्टी के समर्थन में मुफ्तखोर जनता इसका ताजा उदाहरण है इन्होने देशद्रोही आतंकवादी खालिस्तान समर्थकों से सम्बन्ध रखने वाले को अपना CM बनाया है.
यहाँ की जनता वैचारिक अपंगता का शिकार है !!
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जहाँ स्विट्ज़रलैंड के लोग मुफ्त धन लेने से अपने सरकार को मना करते हैं, लेकिन यहाँ की जनता सब कुछ मुफ्त पाने के चक्कर में अपने आप को भिखारी साबित करना चाहती है. ऐसी अनैतिक तो है भारतीय नागरिकों का भारत में समाज.
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हमारी सरकार चाहे कोई भी पार्टी के बने, वे सब यहाँ की प्राकृतिक संपदाओं का दोहन कर विदेशों को पूंजीपति देश बनाने में सहायता करते हैं. अवैध खनन में भाजपा की मिलीभगत से गुजरात की तिजोरी को 1 लाख करोड़ का हुया नुकसान-http://gujjupost.com/illegal-mining-gujarat-1-lakh/
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सब मिलकर कई खनिजों के ओर अर्थात अयस्क के निर्यात कानूनी व गैकानूनी सभी तरीकों से इस कार्य में सहायता करते हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी के सर्कार से सम्बंधित अधिकारी क्यों न हो, नेता क्यों न हो. पाठक-गण अवैध उत्खनन के बारे में और भी अधिक जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त कर सकते हैं.
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जबकि होना ये चाहिए की यहाँ से कोई भी कच्चा माल को विदेशो को न बेचकर उन कच्चे मालों से उत्पादित किये सामान, मशीन, एवं उपकरण को हम विदेशों में निर्यात करें.
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इस मामले के आने पर सरकारें ये कमजोरी गिनायेंगी कि हमारे यहाँ पे उन मशीनों का उपकरणों का जानकार कोई है नहीं, जिससे हम कच्चे मालों को उन मशीनों उपकरणों सामानों में परिवर्तित कर उन्हें विदेशी मानकों के अनुरूप बना सकें, जबकि यह आधा सच है की हमारे यहाँ एडवांसेज तकनिकी वाले मशीन के जानकार गिनती के हैं, लेकिन उन्हें सुविधा नहीं प्राप्त है, कि वे उस मशीन को बनाने के लिए उपयुक्त सुविधा प्राप्त कर सके.
आधी सच्चाई इसके कुछ उलट है. हमें मशीनों उपकरणों सामानों का निर्यात करने के लिए उच्च मानकों को अपनाने की बजाए एडवांस्ड तकनीक से बनने वाले उपकरणों कोछोड़कर अन्य सामान भारत बना सकता है, लेकिन यहाँ की कोई भी सरकार हमें सुविधा देना नहीं चाहती. हाल में ही मोदी सरकार ने एक क़ानून लाया की सिंगापुर एवं मारीशस रूट से आने वाली कंपनियों को टैक्स छूट जो पहले से चली आ रही है वो बंद करेंगे, लेकिन उस क़ानून में भी ऐसे कई लूपहोल हैं, जिनसे इस क़ानून से भारत को कोई फायदा नहीं गोने वाला, ये क़ानून मोदी सरकार केवल हमारे जैसे कार्यकर्ताओं को धोखा देने के लिए लायी है जो मारिशास एवं सिंगापुर रूट से आने वाली कंपनियों को वैसी सुविधाओं को बंद करने के ऊपर कार्य कर रहे हैं जो सुविधाएं हमारी कंपनियों को नहीं प्राप्त हैं..
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एक अन्य उदाहरण है कपास या खाद्यान्नों से उत्पन्न खाद्य पेय पदार्थों का आयात होता है हमारे यहाँ, जबकि स्वयं भारतीय व्यापारी कपास से हाथ से बने वस्त्रों एवं यहाँ के कारीगरों द्वारा तैयार खाद्य व पेय पदार्थों का एक्सपोर्ट किया जा सकता है. वैसे ही कपास से बनने वाला खादी का कपडा हैंडलूम वीवर्स द्वारा बनाया कपडा का डिमांड विदेशों में काफी है, अगर आप इसकी सच्चाई देखना चाहते हैं तो आप चेन्नई चले जाएं वहां कांजीवरम सिल्क जो कारीगर हाथ एवं भारतीय मशीन से बुनते हैं, खरीदने के लिए दुनिया भर के विदेशी घुमक्कड़ लोग मिल जायेंगे, वैसे ही भारत में अन्य जगहों पर हैंडलूम की साड़ियों के विदेशी खरीददार आपको काफी संख्या में मिलेंगे. केवल इस व्यवसाय से पंद्रह करोड़ भारतीय लोगों को रोजगारी मिल सकेगी.
अर्थात सिर्फ कपास का निर्यात करने से हम अपने ही देश की बेरोजगारी बधा रहे हैं, और अगर कपास से हैण्ड-वीवर्स द्वारा बनाए कपड़ों का निर्यात करते हैं तो हम अपने ही देश की सम्रीद्धि बढ़ा रहे होते हैं और बाहर से रोजगार का आयत कर रहे होते हैं.
तो क्या इन कपड़ों को भारत सरकार भारी मात्रा में उत्पादन करवाकर उसका निर्यात नहीं कर सकती?
लेकिन नहीं, जनता के भी ऊपर विदेशी वस्तुओं का उपयोग उनको अपने सामाजिक स्टेटस को बढाने वाला लगता है. साथ में किसी भी सरकार ने यहाँ के उद्योगों को वैसी टैक्स छूट की आसानी से जमीन हासिल करने की सुविधा नही दी है जो सिंगापुर मारीशस रूट से आने वाले व्यापार को प्राप्त है. http://www.livemint.com/…/Some-FAQs-on-the-Mauritius-tax-tr…
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हमारे देश में किसानों के आत्महत्या का आंकड़ा सरकारें हमेशा से गलत पेश करती हैं. धरती माता के स्वास्थ्य के लिए साइल हेल्थ कार्ड जारी किया है. यह हेल्थ कार्ड किसानों के दिया जा रहा है जिससे मिटटी के स्वास्थ्य का पता चले, ताकि पता चले की कौन से मिटटी को कौन से उर्वरक की जरूरत है? यानी सरकार चाहती है की हमारे यहाँ खेती रसायनिक उर्वरकों से ही हो, आर्गेनिक उर्वरक से नहीं, जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आर्गेनिक उर्वरक से उपजे खाद्यान्नों एवं उनसे बने सामानों की मांग है, इसीलिए हमारे द्वारा निर्यात किये जाने वाले फल-सब्जी विदेशों द्वारा वापिस किये जाते हैं !!
क्या इससे किसानों की आमदनी बढ़ जायेगी? किसानों की भलाई के लिए किसी सरकार के पास कोई योजना नहीं है.
मौजूदा समय में सकल घरेलू उत्पाद का साठ प्रतिशत सर्विस सेक्टर से प्राप्त होता है, जबकि उन्नीस सौ पचास इसवी में सकल घरेलू उत्पाद का पचास प्रतिशत खेती से आता था, जबकि आज के समय में ये प्रतिशत मात्र सत्रह प्रतिशत रह गयी है. फिर हमें यह क्यों नहीं समझना चाहिए कि सभी सरकारों ने कृषि व्यवस्था को खतम करने की साजिशें रचीं हैं?
सरकारी व्यवस्था के समर्थक ये बोलकर हमारा विरोध कर सकते हैं कि किसान ही आलसी हो गए हैं. वे अन्न उपजाना ही नहीं चाहते हैं. ये भी तर्क देंगे की जिस तरह से जादा अन्न उपजने से जिस तरह दाम गिरते हैंउसमे तो सभी किसान मरते हैं.
लेकिनऐसा तर्क देने वाले लोग ये भूल जातेहैं की दुनियाभर में दुग्ध उत्पादन में हम सबसे आगे हैं. लेकिन क्या दूध सस्ता मिलता है? नहीं, सस्ता नहीं मिलता.
उस दूध का वैल्यू एडिशन होता है जिसमे दही, पनीर, इत्यादि बनता है.
इस वैल्यू एडिशन की सुविधा अगर सीधे सीधे किसानों को मिले तो कोई नुक्सान नहीं होगा. लेकिन सरकारें ऐसा नहीं चाहतीं हैं.
ये सरकार किसान का हित साधने के नाम पे विरोधाभास प्रदर्शित कर रही है
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वैसे ही ओट मक्का कॉर्नफ्लेक्स जैसा भारतीय खाद्य पदार्थ का व्यापार विदेशी कंपनियां हमारे देश में कर रही है जो भारतीय खाद्यान्न है, हमारे ही यहाँ उपजता है, लेकिन व्यापारिक लाभ विदेशी कंपनिया के जाती हैं. .जिनजिन गावों में मक्का बाजरा उपजता है, उन उन गावों घरों में ओट कॉर्नफ्लेक्स बनाने का मशीन लगा दिया जाये तो इसे ग्रिहुद्योग का रूप बड़े पैमाने पे दिया जा सकता है, छोटे स्तर पर कई लोग ये उद्योग चलाते हैं, लेकिन पढ़े लिखे अनपढ़ लोग वही सामान खरीदते हैं, जिसका पैकेट उन मूर्खों की नजर में सुन्दर लगता है, जो डिब्बाबंद हो, साधारण पन्नी वाला सामान खरीदने में अपमानित महसूस करते हैं. कहेंगे इतनी सैलरी पाते हैं, बचाकर कहाँ जायेंगे. अगर नहीं बचाना है तो किसानो को संगठित कर उनके उपजाए खाद्यान्नों का उचित मूल्य दिलवाने में लोगों का मदद करें, लेकिन नहीं? समाय नहीं है किसी धनाढ्य के पास.
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सरकार का गठन इसलिए होता है, की वह हमारे जनता कि , हमारे उद्योगों-कंपनियों की रक्षा करे, लेकिन आगर होता इसके उलट हो तो वैसी सरकार हमारे सुरक्षा के लिए नहीं, हमारी बर्बादी के लिए है. चाहे वो कांग्रेस हो कि बीजेपी हो.
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अगर आप कोई उद्योग लगाने जाएं, तो इसके लिए आपको जमीन या शेड या कोई किराया का घर इत्यादि तलाशना पड़ेगा, अगर कानूनन मालिकाना अधिकार वाला जमीन इत्यादि मिल गया तो उसका रेंट अधिक चुकाना पड़ेगा, या आप जादा रेंट चुकाना नहीं चाहते तो आपको अवैधानिक कब्जे वाली जमीन पर अपना उद्योग लगाना पड़ेगा. अगर आप अपना कोई उद्योग यहाँ लगाने जायें तो आपको पचास प्रतिशत से जादा का छोटा छोटा उद्योग अवैध जमीन पर लगा हुआ दिखेगा, बड़े उद्योगों की जमीन के बारे में मैंने पता नहीं किया है.
अब आप अपना धन न लगाकर कहीं से कर्ज लेंगे, अधिकतर लोग बैंक से कर्जे लेते हैं, उस कर्ज में से घूस का कुछ धन तो आपको शुरूआती लाइसेंस प्राप्त करने में ही देना पड़ जाएगा. अब आगे, अगर आपका उद्योग खाद्य पदार्थों से जुदा है, तो आपको फ़ूड लाइसेंस प्राप्त करना पड़ेगा, कंपनी द्वारा उत्पादित खाद्य पदार्थ का मानक आपके कहने पे भी वो जांचेगा नहीं, लेकिन उसका घूस आपको भरना पड़ेगा, इसी तरह अन्य लाइसेंस प्राप्त करने का प्रक्रिया भी होगा, जिसमे हर बार सम्बंधित अधिकारी को चढ़ावे चढाने पड़ेंगे. इन सब चीज़ों से बचने के लिए लोग बिना लाइसेंस के ही अवैध जमीन पर अपना कई काम करते हैं,
यहाँ तक की कई मोटर बनाने वाली कम्पनीज, लेथ मशीन, उसे सम्बंधित उपकरण, पंप, गियर्स, पुल्ली, लोहे वाली रस्सियाँ इत्यादि कम्पनीज अवैध जमीन पर चलते हैं. जबकि इन कंपनियों द्वारा बने उपकरणों की क्वालिटी किसी नामी कंपनी से बने उपकरणों की तुलना में किसी पैरामीटर पर कम नहीं होती.
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इसी तरह हमारे यहाँ खाने पीने के कच्चे माल की इतनी वेरायटीज यहाँ की जमीन उपजाति है, जिसकी दुनिया भर में डिमांड हो सकती है अगर उनकी खेती आर्गेनिक तरीकों से हो तो, लेकिन नहीं, सरकारों की नीति ही है रसायन युक्त उर्वरकों के बिना खेती नहीं होनी चाहिए, इसके लिए बीफ मांस निर्यात पर सब्सिडी है, चमड़े निर्यात पर सब्सिडी है.
आर्गेनिक खेती द्वारा उपजे हुए खाद्यान्नों से बने अन्य पदार्थों जैसे की सूजी मैदा गुड खांड इत्यादि का भी डिमांड है बाहर में . लेकिन भारत में चीनी खाने वाले काफी समृद्ध समझे जाते हैं भारतीय पढ़े लिखे मूर्खों की समाज में. गुड की डिमांड इजराइल में सबसे जादा है, लेकिन उनकी शर्त ये होती है की ऐसे गुड का उत्पादन आर्गेनिक गन्ने से आर्गेनिक तरीकों से हुआ हो. चीनी के उत्पादन से रोजगार कम होते हैं, चीनी मीलों को सब्सिडी देनी पड़ती है, जबकि गुड के उत्पादन में इसका उलटा होता है. गुड का स्वास्थ्य लाभ दूसरा मुद्दा है.
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कई मोदी भक्त कहते हैं, चार-पांच राज्यों में बीजेपी सरकार है, और वहां बीफ निर्यात या गाय कावध पूरी तरह से बंद है, अगर ऐसा ही है तो दूध के दाम आसमान क्यों छू रहे हैं?
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हमारे प्रधानमंत्री विकास पुरुष नरेन्द्र मोदी जी किसानो की जमीन छिनकर 100 स्मार्ट सिटी बनाने की योजना बनाई है !!
लेकिन भारत की 7 लाख गाँव में कई तरह के जो कच्चा माल का उपादान हो रहा है उसका 'मूल्य वर्धित' करके अगर शहरों में बेचा जाये तो गाँव में ही करोड़ो रोजगार पैदा हो सकता है लेकिन गाँव को स्मार्ट बनाने की चिन्ता सरकार को है नही.
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यहाँ ६८० शहर हैं, जिसे स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सरकारें ध्यान दे रही है.
लेकिन अगर सभी छह लाख अडतीस हजार तीन सौ पैंसठ गांवों में गृह-उद्योग को वहां उपलब्ध खाद्यान्नों एवं अन्य उपलब्ध संसाधनों के बल पर स्वावलंबी बना दिया जाए तो रोजगार की कमी न रहेगी कभी हमारे देश में. उन गांवों में रोजगार उत्पन्न होगा तो आगे वह स्मार्ट गाँव भी बन जाएगा.
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हमारे गाँव जिन कानूनों के चलते परावलम्बी हुए हैं, उन कानूनों को निरस्त कर उनके जगह पर जनता के हाथ में सभी भ्रष्ट कधिकारियों, मंत्रियों, प्रधानमन्त्री, जजों, सरकारी वकीलों के ऊपर राईट-टू-रिकॉल ज्यूरी प्रणाली पारदर्शी शिकायत प्रणाली जैसे क़ानून लाने पड़ेंगे जिसमे भ्रष्टों को उनके पद से हटाने का अधिकार जनता को प्राप्त होगा. इन कानूनों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यह पेज देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/?fref=ts
www.rightorecall.info
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अब आते हैं की गांवों के विकास में बाधा बनने वाले वो कौन कौन से क़ानून हैं जिनको निरस्त करने की आवश्यकता है- अंग्रेजों के समय के अभी चौंतीस हजार सात सौ पंतीस क़ानून जैसे कि
१) भूमि अधिग्रहण क़ानून.
२) इन्डियन प्रशासनिक एक्ट
३) इंडियन पुलिस एक्ट.
4) CRPC
५) CPC
सभी को निरस्त कर भ्रष्ट अधिकारियों को पद से बदलने का अधिकार जनता के हाथ में दिया जाना चाहिए जिससे भ्रष्ट सरकार एक मिनट में धराशायी हो जाए.
.\संविधान लिखने का काम नेहरू के करीबी नौकरशाह बी एन राव ने किया था, जिसे नेहरू नें लन्दन से बुलाया था। अम्बेडकर केवल भाषा की खामियां दूर करते थे। बी एन राव द्वारा संविधान लिखने के बाद तीसरी बार हुयी समीक्षा में संविधान में कहीं 'भारत' शब्द न होने पर अम्बेडकर नें ही संविधान में 'भारत' शब्द सम्मलित किया था। संविधान के किसी भी प्रावधान के लिए अम्बेडकर को दोष देना मूर्खतापूर्ण और उनके साथ अन्याय होगा।
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आजजीते भी विकसित देश हैं,, वहां के नागरिक अपने देश की प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारने के लिए भारतीय नागरिकों की तुलना में काफी कार्य करते हैं- देखें-https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10209623610455483&set=a.1867713180971.110001.1485307343&type=3&theater
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भारते में जनतंत्र है, कोई राजतंत्र नहीं है, लेकिन जनता को अपना शक्ति का पता नहीं है, दुनिया भर में जनतांत्रिक संसद या संसदीय लोकतंत्र के बारे में राय है की जबतक इस संसदीय जनतंत्र पर जनता का दबाव नहीं होगा तब तक यह जनतंत्र भेड़-तंत्र अर्थात जनता भेड़ बनी रहेगी और नेता भेड़िया बनकर जनता का खून पिएगा.
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हमारे कानूनों को जनता की रक्षा के लिए लाये जाने के लिए आप क्या और कैसे कर सकते हैं, कृपया यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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जयहिन्द.

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