जिंदगी के हौंसलों के साथ मृत्यु के महासत्य को भी पढना चाहिए , क्यों?

हमारे पूरे लालन-पालन में हमें ज़िंदगी के हौसलों को सिखाया जाता है, पर हमें मृत्यु रूपी सच से दूर रखा जाता है। 
मुझे लगता है कि आदमी बहुत सी गलतियां सिर्फ इस वज़ह से करता है क्योंकि मृत्यु रूपी ‘महासत्य’ का पाठ उसे पढ़ाया नहीं जाता। 
ये आधुनिक शिक्षा का सबसे बड़ा कसूर है। 
***
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी की सज़ा हो चुकी थी। भुट्टो के विषय में मुझे आपको कुछ बताने की दरकार नहीं। आप जानते हैं कि पाकिस्तान का ये प्रशासक अपने ज़माने में ख़ौफ का एक पर्याय था। पर भुट्टो को पकड़ कर जेल में बंद किया जा चुका था और फांसी देने की तैयारी हो रही थी। 
4 अप्रैल 1979 को रावलपिंडी जेल में जब भुट्टो को फांसी दी जानी थी, ऐसा कहा जाता है कि तब भुट्टो चल कर फांसी के फंदे तक आने की स्थिति में नहीं थे। जिस जल्लाद ने उन्हें फांसी दी थी, उसके हवाले से ऐसी ख़बरें सामने आई थीं कि भुट्टो अपने सेल से चल कर फांसी के तख्ते तक आने में थरथर कांप रहे थे। उनकी हिम्मत टूट गई थी और मृत्यु के नाम से वो बहुत ख़ौफज़दा थे। 
भुट्टो को किसी तरह फांसी के तख्ते तक लाया गया और जब उन्हें फांसी दी जाने वाली थी, तो उसमें कुछ पल का विलंब हुआ। भुट्टों बहुत कांपती आवाज़ में जल्लाद के कानों में बुदबुदाए, “जल्दी करो।”
हैरानी इस बात से है कि कई लोगों की मौत का गुनाह अपने सिर लेने वाले भुट्टो को खुद मरने से इतना ख़ौफ क्यों था? 
मुझे लगता था कि 51 साल का आदमी तो बहुत बड़ा होता है, उसे मरने से क्यों डरना चाहिए? पर भुट्टो मृत्यु से डर रहे थे। 
कमाल था। 
.
न जाने कितने लोगों को पूरी मर्दानगी के साथ काल के गाल में फेंक देने वाला शासक यमराज के भय से थरथर कांप रहा था। 
.
यही होता है, जब हम मृत्यु को जीवन के साथ जोड़ कर उसका पाठ नहीं पढ़ते। 
.
यही होता है, जब हम मृत्यु को अंत मान कर एक अधूरी ज़िंदगी जीते हैं। 
.
यही होता है, जब हम धर्म ग्रंथों को अंधविश्वास और अवैज्ञानिक मान बैठते हैं। और यही होता है, जब हम भयवश मृत्यु के रहस्य को समझने की कोशिश नहीं करते हैं। 
.
यही होता है, जब हम प्रकृति के नियमों का उल्लघंन करते हैं। 
.
यही होता है, जह हम खुद को सर्व शक्तिमान समझने की भूल करते हैं।
.
***
.
लोग बहुत बार गलतियां करके बच जाते हैं, तो सोचने लगते हैं कि मृत्यु का देवता मन का कमज़ोर भाव है, और कुछ नहीं। यहीं चूक हो जाती है। 
.
भुट्टो ने जब कई लोगों को मारा होगा, तो उन्हें खुद के सबसे शक्तिशाली होने का गुमान रहा होगा। उन्हें मृत्यु तब पीड़ा नहीं लगी होगी। पर जब उसी मृत्यु ने उनकी ज़िंदगी में दस्तक दी, तो उनके कदम लड़खड़ाने लगे। उनकी मर्दानगी धोखा देने लगी। वो कांपने लगे। 
.
हमारे धर्म में ऐसी हज़ारों कहानियां है, जहां महात्माओं ने पूरी ज़िंदगी शांति और खुशी से जी और समय पर मृत्यु का वरण किया। 
.
कहने का मतलब ये है कि मृत्यु को भय रहित हो कर वरण करने की विद्या जो सीख जाता है, वही ज़िंदगी को असल में जी पाता है। 
और यह विद्या वही सीख सकता है, जो प्रकृति के सत्य को समझ पाता है। जो उसकी अवहेलना नहीं करता। जो दूसरों को मृत्यु का ख़ौफ नहीं बांटता। जो जानता है कि हम सब इस संसार में अपने कर्मों के ज़रिए अपने बहुत से जन्मों के पाप धोने के लिए आए हैं। जो ये समझता है कि इह लोक के परे भी कई लोक हैं। जो इतनी बातें समझता है, वो ढेरों गलतियां करने से खुद को रोकता है।
जो यह समझता है, वो अपनी शक्ति के गुरूर में की कोई भूल नहीं करता, जिससे मौत उसकी ज़िंदगी के कदमों में कंपन पैदा कर सके। 
.
***
याद कीजिए, जब बचपन में हम कोई गलती करते थे तब अपने बड़ों के आगे जाते हुए डरते थे, कांपते थे। बिल्कुल वैसे ही, जब हम गलतियां नहीं करते, तो हमें परम पिता के पास जाने में भी भय का बोध नहीं होता है। पर क्योंकि हम जानते हैं कि हमने गलतियां की हैं, इसलिए हम भयभीत होते हैं। 
.
खुद को भय रहित करने का सबसे आसान तरीका आपको बता रहा हूं कि गलतियों से दूर हो जाइए। 
.
मृत्यु महासत्य है। इस सत्य को जितनी जल्दी आत्मसात करेंगे, हम ज़िंदगी रूपी पानी में उतरने की अपनी सीमाओं को पहचान लेंगे। 
.
जिस दिन हमारे स्कूली पाठ्यक्रमों में ‘बा बा ब्लैकशीप’ कविता के साथ-साथ जीवन और मृत्यु का पाठ भी पढ़ाया जाने लगेगा, संसार बदल जाएगा। 
.
जिस दिन हमारे सामने हमारे कर्मों की वज़ह से मिलने वाले फल का लिटमस टेस्ट हमारे सामने रख दिया जाएगा, उस दिन आदमी गलतियां करने से परहेज़ करने लगेगा। और यह जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा है। 
.
ज़िंदगी कैसे जी, इसकी अहमियत रत्ती भर नहीं। 
.
अहमियत तो सिर्फ इस बात की होती है कि आख़िरी सफर पर आपके कदम लड़खड़ा रहे थे या आप शान से चल कर गए।

Comments

Popular posts from this blog

चक्रवर्ती योग :--

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

द्वापर युग में महिलाएं सेनापति तक का दायित्त्व सभाल सकती थीं. जिसकी कल्पना करना आज करोड़ों प्रश्न उत्पन्न करता है. .

पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

ब्राह्मण का पतन और उत्थान

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण

भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई

मोहनजोदड़ो की सभ्यता ? हड़प्पा की संस्कृति?