क्या वाल्मीकि तथा वेदव्यास शूद्र थे ?

शास्त्र का अध्ययनशून्यता ऐसे ही लोगों को कहा जाता है 
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क्या वाल्मीकि तथा वेदव्यास शूद्र थे ?
श्रीमद्रामायणके रचयिता भगवान् वाल्मीकि और महाभारतके रचयिता भगवान् वेदव्यासजीके विषममें जितनी भ्रान्तियाँ हैं ,उतनी अन्य किसी क्रान्तदर्शी महर्षिके विषयमें नहीं ।
मैकालेकी अनौरस संतान वामपंथियोंने भगवान् वाल्मीकि और व्यासजीको किरात-भील-मल्लाह आदि बना दिया है ,जबकि यह शास्त्र विरुद्ध है ,असत्य है ।

आदिकवि भगवान् वाल्मीकि आदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकिरामायणमें स्वयंका परिचय देते हैं , वे किसी किरात-दस्यु कुलोत्पन्न नहीं थे ,अपितु ब्रह्मर्षि भृगुके वंशमें उत्पन्न ब्राह्मण थे । रामायणमें भार्गव वाल्मीकिने २४००० श्लोकोंमें श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी ऐसा वर्णन है –

“संनिबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विंशत्सहस्र कम् ! उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना !! ( वाल्मीकिरामायण ७/९४/२५)
महाभारतमें भी आदिकवि वाल्मीकि को भार्गव (भृगुकुलोद्भव) कहा है , और यही भार्गव रामायणके रचनाकार हैं –
“श्लोकश्चापं पुरा गीतो भार्गवेण महात्मना !
आख्याते रामचरिते नृपति प्रति भारत !!” (महाभारत १२/५७/४०)
शिवपुराणमें यद्यपि उनको जन्मान्तरका चौर्य वृत्ति करने वाला बताया है तथापि वे भार्गव कुलोत्पन्न थे । भार्गव वंशमें लोहजङ्घ नामक ब्राह्मण थे ,उन्हीका दूसरा नाम ऋक्ष था । ब्राह्मण होकर भी चौर्य आदि कर्म करते थे और श्रीनारदजीकी सद् प्रेरणासे पुनः तपके द्वारा महर्षि हो गये ।
“भार्गवान्वयसम्भवः !!
लोहजङ्घो द्विजो ह्यासीद् ऋक्षनामोन्तरो हि स: !
ब्राह्मीं वृत्तिं परित्यज्य चोर कर्म समाचरेत् ! नारदेनोपदिष्टस्तु तपोनिष्ठां समाश्रितः !!

इत्यादि वचनोंसे भृंगु वंश में उत्पन्न लोहजगङ्घ ब्राह्मण जिसे ऋक्ष भी कहते थे , ब्राह्मण वृत्ति त्यागकर चोरी करने लगा था , फिर नारदजीकी प्रेरणासे तप करके पुनः ब्रह्मर्षि हो गये । उन्हें किरात-भील कुलोत्पन्न कहना अपराध है । २४ वे त्रेतायुगमें भगवान् श्रीराम हुए तब रामायणकी रचनाकर आदिकवि के रूपमें प्रसिद्ध हुए । विष्णुपुराणमें इन्हीं भृगुकुलोद्भव ऋभु वाल्मीकिको २४ वे द्वापरयुगमें वेदोंका विस्तार करने वाले २४वे व्याजजी कहा है –
“ऋक्षोऽभूद्भार्गववस्तस्माद्वाल्मीकिर्योऽभिधीयते (विष्णु०३/३/१८) । यही भार्गव ऋभु २४ वे व्यासजी पुनः ब्रह्माजीके पुत्र प्राचेतस वाल्मीकि हुए । श्रीमद्वाल्मीकिरामायणमें वाल्मीकि भगवान् श्रीरामचन्द्रको अपना परिचय देते हैं –
“प्रचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन ! (वाल्मीकिरामायण ७/९६/१८)
स्वयं को प्रचेताका दशवाँ पुत्र वाल्मीकि कहा है । ब्रह्मवैवर्तपुराणमें कहा है –
” कति कल्पान्तरेऽतीते स्रष्टु: सृष्टिविधौ पुनः !
य: पुत्रश्चेतसो धातु: बभूव मुनिपुङ्गव: !!
तेन प्रचेता इति च नाम चक्रे पितामह: !
– अर्थात् कल्पान्तरोंके बीतने पर सृष्टाके नवीन सृष्टि विधानमें ब्रह्माके चेतस से जो पुत्र उत्पन्न हुआ , उसे ही ब्रह्माके प्रकृष्ट चित्तसे आविर्भूत होनेके कारण प्रचेता कहा गया है ।

इसीलिए ब्रह्माके चेतससे उत्पन्न दशपुत्रोंमें वाल्मीकि प्राचेतस प्रसिद्ध हुए ।
मनु स्मृतिमें वर्णन है ब्रह्माजीने प्रचेता आदि दश पुत्र उत्पन्न किये –
“अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ! पतीत् प्रजानामसृजं महर्षीनादितो दश !! मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ पुलसत्यं पुलहं क्रतुम् ! प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदमेव च !! (मनु०१/३४-३५) भगवान् वाल्मीकि जन्मान्तरमें भी ब्राह्मण (भार्गव) थे और आदिकवि वाल्मीकिके जन्ममें भी (प्राचेतस) ब्राह्मण थे !
शिवपुराणमें कहा है प्राचेतस वाल्मीकि ब्रह्माके पुत्रने श्रीमद्रामायणकी रचनाकी ।
” पुरा स्वायम्भुवो ह्यासीत् प्राचेतस महाद्युतिः ! ब्रह्मात्मजस्तु ब्रह्मर्षि तेन रामायणं कृतम् !! ”

महाभारतकार भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी भी भील-मल्लाह नहीं वासिष्ठकुलोद्भव थे । व्यासजीकी माता सत्यवती अमावसु पितृकी मानसी कन्या अच्छोदा थीं , जिनका पितृलोकसे पतन होकर मर्त्यलोकमें कुरुवंशी महाराज चैद्योपरिचरवसुकी कन्या मत्स्यगन्धा के रूपमें जन्मी थीं । व्यासजीके पिता महर्षि पराशर भगवान् वसिष्ठके पौत्र और शक्तिके पुत्र थे ।
भगवान् व्यासजीकी माता सत्यवती भीष्मजीसे कहती हैं –
“यस्तु राजा वसुर्नाम श्रुतास्ते भरतर्षभ !
तस्य शुक्रादहं मत्स्याद् धृताकुक्षौ पुरा किला !!
मातरं मे जलाद् धृत्वा दाश: परमधर्मवित् !
मां तु स्वगृहमानीय दुहितृत्वे ह्यकल्पयत् !!
(महाभारत आदि पर्व १०४-६)
– भरत श्रेष्ठ ! तुमने महाराज वसुका नाम सुना होगा । पूर्वकालमें मैं उन्हीं के वीर्यसे उत्पन्न हुई थी । मुझे एक मछलीने अपने पेट में धारण किया था(इसीलिये मत्स्यकी गन्ध उनके शरीर से आती थी जिससे उनका नाम मत्स्यगन्धा प्रसिद्ध था ) । एक परम् धर्मज्ञ मल्लाहने जलसे मेरी माताको पकड़ा ,उसके पेट से मुझे निकाला और अपने घर लाकर अपनी पुत्री बनाकर रखा !”

इस वृत्तान्त से माता सत्यवती कुरुवंशी महाराज उपरिचरिवसुकी औरस पुत्री सिद्ध होती हैं , जिन्हें दाशराज मल्लाहने पालके बड़ा किया था ।

इन्हीं मत्स्यगन्धासे महर्षि पराशरने कन्यावस्थामें व्यासजी को उत्पन्न किया था ।
“पराशर्यो महायोगी स बभूव महानृषि: !
कन्यापुत्रो मम पुरा द्वैपायन इति श्रुतः !!” (आदिपर्व०१०४/१४)
भगवान् व्यासजी की माता क्षत्रिय राजा वसुपुत्री थीं और पिता महर्षि पराशर वासिष्ठ ब्राह्मण थे , फिर व्यासजी को मल्लाह ,केवट ,निषाद कहना निरीह मूर्खता ही नहीं ,महान् अपराध भी है ।

                🙇#जयश्रीसीताराम 🙇

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