ज्ञानवापी

By Vinay Jha

जाँच नहीं होने देंगे,क्योंकि शान्तिदूतों के संस्कृत−प्रेम का भाण्डा फूट जायगा?भवन तो मन्दिर का है ही,नाम भी संस्कृत में है — “ज्ञानवापी” ।

कभी संविधान और न्यायालय की दुहाई देंगे,तो कभी क़ुरान का । किन्तु क़ुरान ने संस्कृत में मस्जिद का नाम रखने का आदेश दिया था? औवेसी ने कुछ दिन पहले कहा कि गोमाँस खाना उनके मज़हब में है । अरब रेगिस्तान में लोग गाय रखते थे?

क़ुरान को इतना ही मानते हो तो उसमें स्पष्ट आदेश है कि काफिरों के देश में मत रहो । प्रस्तुत है क़ुरान का उक्त आदेश जिसके अनुसार सारे मुसलमानों को भारत,फ्रांस,जर्मनी,अमरीका,चीन जैसे देशों से स्वतः निकलकर ईस्लामी देशों में चले जाना चाहिए । अरबी में क़ुरान की आयतें और मुल्ले द्वारा अंग्रेजी अनुवाद निम्न वेबसाइट पर है जिसका गूगल ट्रान्सलेट द्वारा अनुवाद प्रस्तुत है । गूगल ट्रान्सलेट द्वारा हिन्दी अनुवाद सन्तोषजनक तो नहीं होता किन्तु भावार्थ का पता चल जायगा । क़ुरान की इन आयतो का भाव यही है कि जिन देशों में गैर−मुस्लिमों का बोलबाला हो वहाँ से मुसलमानों को इस्लामी देशों में प्रवास करना चाहिए वरना नरक जाना पड़ेगा,केवल वे लोग अल्लाह द्वारा क्षमा किये जा सकते हैं जो प्रवास करने की क्षमता नहीं रखते । अर्थात् ज्ञानवापी पर झगड़ने वाले मुस्लिमों को पाकिस्तान,बांग्लादेश आदि चले जाना चाहिए । उलटे बांग्लादेश से मुस्लिमों को भारत भेजा जाता है!क़ुरान को नहीं मानेंगे तो मुसलमान कैसे हुए?अतः क़ुरान के अनुसार भारत में रहने वाले जो मुसलमान चलने में समर्थ रहने पर भी भारत नहीं छोड़ना चाहते वे क़ुरान का अपमान करते हैं और जहन्नुम जाने वाले हैं । आज के युग में जो लोग चलने में समर्थ नहीं हैं उनको ऊँट की बजाय हवाई जहाज से भेजने की व्यवस्था हो सकती है ।

https://www.islamicstudies.info/tafheem.php?sura=4&verse=97&to=100
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गूगल ट्रान्सलेट द्वारा हिन्दी अनुवाद =

“(4:97) अपने आप पर अत्याचार करने वालों की आत्मा लेते हुए, 129 फ़रिश्तों ने पूछा: 'आप किन परिस्थितियों में थे?' उन्होंने उत्तर दिया: 'हम देश में बहुत कमजोर और असहाय थे।' फ़रिश्तों ने कहा: 'क्या अल्लाह की ज़मीन इतनी चौड़ी नहीं थी कि तुम उसमें बस जाओ? 130 ऐसे लोगों के लिए उनकी शरण नरक है - वास्तव में एक बुरी जगह;
129. यहां संदर्भ उन लोगों के लिए है जो वास्तविक अक्षमता के बावजूद अविश्वासियों के साथ पीछे रहते हैं। वे इस्लामी और गैर-इस्लामी तत्वों के मिश्रण से बने जीवन से संतुष्ट हैं, भले ही उन्हें दार अल-इस्लाम में प्रवास करने का मौका मिला हो और इस तरह एक पूर्ण इस्लामी जीवन का आनंद लिया हो। यह गलत है जो उन्होंने अपने खिलाफ किया है। उनके जीवन में इस्लामी और गैर-इस्लामी तत्वों के मिश्रण से उन्हें जो संतुष्ट रखता था, वह कोई वास्तविक अक्षमता नहीं थी, बल्कि उनका आराम और आराम का प्यार, अपने रिश्तेदारों और रिश्तेदारों और उनकी संपत्तियों और सांसारिक हितों के प्रति उनका अत्यधिक लगाव था। इन चिंताओं ने उचित सीमा को पार कर लिया था और यहां तक ​​कि उनके धर्म के लिए उनकी चिंता पर भी प्राथमिकता ले ली थी (ऊपर 116) भी देखें।

130. वे लोग जो स्वेच्छा से एक गैर-इस्लामी आदेश के तहत रहने के लिए सहमत हो गए थे, उन्हें भगवान द्वारा जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उनसे पूछा जाएगा: यदि एक निश्चित क्षेत्र भगवान के खिलाफ विद्रोहियों के प्रभुत्व में था, तो उसका पालन करना असंभव हो गया था कानून, तुम वहाँ क्यों रहना जारी रखा? तुम उस देश में क्यों नहीं गए जहाँ परमेश्वर के कानून का पालन करना संभव था?
(4:98) उन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को छोड़कर जो वास्तव में इतने कमजोर थे कि बचने के साधन तलाशने में सक्षम नहीं थे और यह नहीं जानते थे कि कहाँ जाना है। 
(4:99) शायद अल्लाह इन्हें क्षमा कर दे, क्योंकि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, क्षमाशील है।
(4:100) वह जो अल्लाह के मार्ग में प्रवास करता है, उसे पृथ्वी में शरण और भरपूर संसाधनों के लिए पर्याप्त जगह मिल जाएगी। और जो अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की राह में प्रवासी बनकर निकलता है और जिसे मौत आ जाती है, उसका इनाम अल्लाह पर फर्ज हो जाता है। निस्सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।131
131. यह स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए कि यह केवल एक व्यक्ति के लिए अनुमति है जो ईश्वर द्वारा दिए गए सच्चे धर्म में विश्वास करता है कि वह निम्नलिखित में से किसी एक शर्त पर गैर-इस्लामी व्यवस्था के प्रभुत्व में रहता है। पहला, कि आस्तिक गैर-इस्लामी व्यवस्था के आधिपत्य को समाप्त करने के लिए संघर्ष करता है और इसे जीवन की इस्लामी प्रणाली द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है, जैसा कि भविष्यवक्ताओं और उनके शुरुआती अनुयायियों ने किया था। दूसरा, कि उसके पास अपनी मातृभूमि से बाहर निकलने के लिए साधनों की कमी है और इस प्रकार वह वहीं रहता है, लेकिन ऐसा अत्यंत अनिच्छा और अप्रसन्नता के साथ करता है।

यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद नहीं है, तो एक आस्तिक जो उस देश में रहना जारी रखता है जहां एक गैर-इस्लामी आदेश प्रचलित है, निरंतर पाप का कार्य करता है। यह कहना कि किसी के पास जाने के लिए कोई इस्लामिक राज्य नहीं है, पानी नहीं रखता। क्योंकि यदि कोई इस्लामिक राज्य नहीं है, तो क्या कोई पहाड़ या जंगल नहीं हैं जहाँ से कोई व्यक्ति पत्ते खाकर और बकरियों और भेड़ों का दूध पीकर अपना जीवन यापन कर सकता है, और इस तरह अविश्वास की स्थिति में रहने से बच सकता है।

कुछ लोगों ने उस परंपरा को गलत समझा है जो कहती है: 'मक्का की विजय के बाद कोई हिजड़ा नहीं है' (बुखारी, 'सैयद', 10; 'जिहाद', 1, 27, 194; तिर्मिधि, 'सियार', 33; नासा'ई) , 'बयाह', 15, आदि। - एड।) यह परंपरा विशेष रूप से उस समय के अरब के लोगों से संबंधित है और इसमें स्थायी निषेधाज्ञा नहीं है। उस समय जब अरब का बड़ा हिस्सा अविश्वास के क्षेत्र (दार अल-कुफ्र) या युद्ध के क्षेत्र (दार अल-हरब) का गठन करता था, और इस्लामी कानून केवल मदीना और उसके बाहरी इलाके में लागू किए जा रहे थे, मुसलमानों को सशक्त रूप से निर्देशित किया गया था जुड़ना और साथ रहना। लेकिन जब मक्का की विजय के बाद अविश्वास ने अपनी ताकत और उत्साह खो दिया, और लगभग पूरा प्रायद्वीप इस्लाम के प्रभुत्व में आ गया, तो पैगंबर (शांति उस पर हो) ने घोषणा की कि प्रवास की अब आवश्यकता नहीं है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया भर के मुसलमानों के लिए आने वाले समय के लिए प्रवास करने का कर्तव्य समाप्त कर दिया गया था, चाहे वे किसी भी परिस्थिति में रहते हों।”
********* ज्ञानवापी तीर्थ काशी ********
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           "पशूनां पतिं पाप नाशम परेशं 
             गजेंद्रस्य कृतिं वसानं वरेण्यं "

ज्ञानवापी तीर्थक्षेत्र महिमा

काशी के तीर्थ स्थलों में ज्ञानवापी भी अपना विशेष महत्व रखती है अनेक अनेक यात्राएं यहां से प्रारंभ की जाती हैं और पंचकोशी यात्रा का भी संकल्प यहीं से होता है।पुराने समय में यहां विशाल वापी थी बनारस के चौक से ज्ञानवापी तक सीधा रास्ता था ।अब तोह उस तालाब (वापी) के स्थान पर मुक्ति मंडप में एक कुँवा मात्र रह गया है । काशी खण्ड के वर्णन के अनुसार तत्कालीन विश्वनाथ मन्दिर के दक्षिण भाग में ज्ञान वापी थी ।

      ईशानकोण के दिगपाल "ईशान" जो कि शिव जी का ही रुद्र है वह बहुत समय पहले (सतयुग) काशी में पहुचे , जब पूरे विश्व मे कुछ भी व्यवस्थित नही था हर चीज की कमी थी उसी समय काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को जल से स्नान कराने के लिए (अपने त्रिशूल से) बहुत विशाल वापी खोद दिया और उसी के जल से हाजरो छेद वाले कलश से हाजरो बार ज्योतिर्लिंग को स्नान कराया । प्रसन्न हो कर शिव जी तत्काल उसी ज्योतिर्लिंग से प्रकट हुवे ओर अपने ही रूप ईशान को अनेको वरदान दिए जिसमे कहा कि

    " त्रिलोक्यां यानि तीर्थानि भूर्भुवःस्वःस्थितान्यापि ।
      तेभ्योःखिलेभ्यस्तीर्थेभ्यः शिव तिर्थमिदं परम् ।।"
                                           
त्रिभुवन में जितने भी तीर्थ है उन समस्त तीर्थो में यह शिव तीर्थ श्रेष्ठ हो।

    " शिवज्ञानमिति ब्रूयुः शिवशब्दार्थचिन्तकाः ।
     तच्च ज्ञानं द्रविभूतमिह मे महिमोदयात ।। "
                                        
शिव शब्द के अर्थ चिंतक लोग शिव का अर्थ ज्ञान ही कहते हैं इस तीर्थ में वही ज्ञान मेरी महिमा के बल से द्रव्य रूप हो गया है । इसीलिए यह ज्ञानोद नाम से त्रयलोक्य भर में प्रसिद्ध होगा और इसके दर्शन से समस्त पाप छूट जाएंगे । शिव जी के वरदानानुसार 
इस ज्ञानोदक तीर्थ के स्पर्श करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है और आचमन से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है ।
फल्गु तीर्थ में तर्पण का जो फल है वह यहां ज्ञान वापी में तर्पण करने से प्राप्त होता है । (पर अब यहां श्राद्ध और तर्पण की सुविधा नही मिलती)

पुष्कर तीर्थ से करोड़ गुना फल यही ज्ञान वापी पर मिल जाता है ऐसा ही शिव जी का वरदान है ।

कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण में पिंडदान करने का जो फल मिलता है वही फल यहां किसी भी दिन पिंडदान करने से मिल जाता है।

जिन लोगों का यहाँ पिंडदान किया जाएगा वह प्रलयकाल तक शिवलोक में निवास करेंगे ।

जो कोई एकादशी का उपवास करके यहां के जल का तीन चुल्लू पान करेगा तोह उसके हृदय में तीन लिंग उत्पन्न होजाएंगे ऐसा शिव जी का ज्ञानवापी के लिए वरदान है ।

यहां पर दान , यज्ञ , हवन , भंडारण, तर्पण अनेक प्रकार के पुण्य कर्म करने से करने वाला व्यक्ति कृतकृत्य हो जाएगा ।

यही ज्ञान की वापी ही शुभज्ञानतीर्थ , शिवतीर्थ और तारक तीर्थ और मोक्ष तीर्थ है इनके स्मरण मात्र से पाप कट जाता है और वापी के जल के दर्शन से सभी ऊपरीदोष और बाधा शांत होजाते है ।

जो व्यक्ति ज्ञानवापी के जल से किसी भी शिव लिंग को नहलाता है तोह उसे समस्त तीर्थो के जल से स्नान कराने का फल अनायास ही मिल जाता है ।

इस स्थान पर स्वयं विश्वनाथ द्रव्यमूर्ति धारण कर लोगो की जड़ता का नाश और ज्ञानोपदेश करता रहूंगा , ऐसा शिव जी का वरदान है । यह सभी बातें काशी खण्ड से ली हुई है यह सत्य और शत प्रतिशत प्रमाणित भी है ।

यही पर शिव जी ने एक समय अपने परम भक्त एक राजा और रानी को ज्ञान का उपदेश दे कर मोक्ष दिया था । काशी विश्वनाथ को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. यहां काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी अगल-बगल हैं.

  आप सभी धर्मप्रेमी जनो पर महादेव की सदैव कृपा यही प्रार्थना सह अस्तु .. श्री मात्रेय नमः

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