“बेगमी सभ्यता” — भाग २


“बेगमी  सभ्यता” — भाग २ by Vinay Jha

बिन ब्याही बेगम जहाँआरा

जहाँआरा पर विश्व की अनेक भाषाओं में अनेक उपन्यास,फिल्म आदि बने,किन्तु किसी ने सच बताने का साहस नहीं किया । सब मुग़लों को महान सिद्ध करने के चक्कर में काल्पनिक कथायें गढ़ते रहें,जिनका तथ्यों और ऐतिहासिक दस्तावेजों से कोई सम्बन्ध नहीं था ।

पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक ‘The Taj Mahal Is A Temple Palace’ में पृष्ठ १३१ पर मुमताज की १४ सन्तानों की सूची है,उसमें दूसरी सन्तान जहाँआरा के बारे में Keene's Handbook को उद्धृत करते हुए ओक साहब लिखते हैं — 

“Jahanara, 1613 (में जन्म) - a daughter with whom later Shahjahan is reported to have developed illicit sexual relations.”

जहाँआरा से शाहजहाँ के यौन सम्बन्ध की चर्चा पुरुषोत्तम नागेश ओक ने की । साक्ष्य मुगलकालीन फ्रांसीसी लेखक फ्राँस्वा बेर्नियर हैं जो १२ वर्षों तक औरंगजेब के आरम्भिक शासनकाल में दिल्ली और आगरा में रहे थे । बेर्नियर अपने यात्रा−वृतान्त के पृ⋅११ पर लिखते हैं —

“Begum-Saheb, the elder daughter of Chah-Jehan, was very handsome, of lively parts, and passionately beloved by her father. Rumour has it that his attachment reached a point which it is difficult to believe, the justification of which he rested on the decision of the Mullahs, or doctors of their law. According to them, it would have been unjust to deny the King the privilege of gathering fruit from the tree he had himself planted.”

एक महाशय ने पुरुषोत्तम नागेश ओक के नाम ये यह बात मेरे लेख के नीचे उद्धृत की थी जो उद्धृत करने का गलत तरीका है । यह बात फ्राँस्वा बेर्नियर ने लिखी जिनको ओक साहब ने भी पढ़ा । पहले तो इसपर ध्यान देना चाहिए कि शाहजहाँ “बादशाह” था और उसकी पुत्री जहाँआरा “बेगम साहिबा” थी जिसको “बादशाह−बेगम” का पद प्राप्त था । फ्राँस्वा बेर्नियर लिखते हैं कि इस्लामी कानून के विशेषज्ञ मुल्लाओं ने तर्क दिया था कि अपने द्वारा रोपे वृक्ष का फल खाने से किसी को रोकना अन्याय है,अतः शाहजहाँ अपनी बेटी के पीछे दीवाना था तो उचित ही था!आम लोगों में इस बात का प्रचार था ऐसा फ्राँस्वा बेर्नियर लिखते हैं!

मुगलकालीन डच लेखक Valentyn ने अपनी पुस्तक ‘Beschryving . . . van de Levens der Groote Mogol’ में लिखा — “Begum Saheb, die om haare schoonheit van haaren Vader zeer, ja te veel, bemind wierd.' जिसका अर्थ है — “बेगम साहिबा के सौन्दर्य के कारण बाप (Vader =फादर) उसे बहुत चाहता था ।” 

तीसरा स्रोत है Father Francois Catrou जो लिखते हैं (HISTORY OF THE MOGUL DYNASTY) — “To a great share of beauty Begom-Saeb united a mind endued with much artifice. The attachment she always had for her father, and the profusion of the avaricious Cha-Jaham (sic) towards his daughter, caused a suspicion, that crime might be blended with their mutual affection. This was a popular rumour, which never had any other foundation than in the malice of the courtiers.' 

इनके अनुसार कामुक शाहजहाँ और उसकी सुन्दर बेटी बेगम साहिब एक दूसरे को इतना चाहते थे कि लोगों की आम राय थी कि दोनों में आपराधिक सम्बन्ध था किन्तु इस अफवाह का आधार केवल दरबारियों की दुष्टता थी ।

जबतक शाहजहाँ सत्ता में रहा किसी दरबारी ने विरोध में कभी कुछ नहीं कहा । अतः बादशाह पर कीचड़ उछालने वाले दरबारी ऐसी अफवाह फैलाते थे यह मानना गलत है । शाहजहाँ और जहाँआरा का परस्पर व्यवहार ही ऐसा था!केवल जहाँआरा को ही नहीं,बल्कि अपनी किसी भी बेटी को शाहजहाँ ने शादी नहीं करने दिया!

ऐसा बाप तो केवल ईडन में मिलेगा जहाँ अपनी हड्डी से बनी हव्वा को अपने बाग का सेब समझकर आदम ने चख लिया!

दारा शिकोह के प्रति जहाँआरा के झुकाव का भी टुकड़खोर इतिहासकारों द्वारा झूठे दार्शनिक कारण बताये जाते हैं । औरंगजेब के डॉक्टर फ्राँस्वा बेर्नियर पृ⋅ १२ पर लिखते हैं कि दारा शिकोह ने जहाँआरा को वचन दिया था कि वह बादशाह बनेगा तो जहाँआरा को शादी करने की अनुमति देगा ।

पृ⋅ १२ पर बर्नियर लिखते हैं कि जहाँआरा एक युवक को रात में अपने शयनकक्ष में बुलाती थी । शाहजहाँ को जासूसों ने बता दिया । अचानक शाहजहाँ जहाँआरा के शयनकक्ष में बिना सूचना के पँहुच गया । युवक स्नानागार में पानी गर्म करने की बड़ी कड़ाही में छुप गया । शाहजहाँ ने नौकरों को कड़ाही गर्म करने का आदेश दिया — युवक उबलकर मर गया ।

अगले पृष्ठ पर बर्नियर लिखते हैं कि जहाँआरा का चक्कर नजर खान से चला तो नजर खान को पान में विष मिलाकर शाहजहाँ ने खिला कर मार डाला । शाहजहाँ के बाग का सेब दूसरा कोई कैसे चख सकता था!इसी क्रम में बर्नियर लिखते हैं कि रोशनआरा बड़ी बहन की तरह सुन्दर नहीं थी जिस कारण शाहजहाँ उसकी अनदेखी करते थे । यही कारण था कि रोशनआरा औरंगजेब को उकसाती रहती थी और बाप के महल में औरंगजेब की जासूस बनकर रहती थी ।

किन्तु रोशनआरा की लफंगई सारी सीमाओं को पार कर गयी जिस कारण बादशाह बनने के कुछ वर्ष पश्चात औरंगजेब ने उसे महल से निकाल दिया और जहाँआरा को “बादशाह बेगम” बना दिया ।

ऐसी कथाओं का अन्त नहीं है ।

Catrou आजकल के कुतर्कवादी इतिहासकारों की तरह तथ्यों को अपने पूर्वाग्रहों द्वारा नकारने का आदी था । उदाहरणार्थ,इसी पुस्तक में उसने लिखा कि दिल्ली के कोतवाल को उसके अपने हकीम ने ज्योतिषियों के सिखाने पर गुप्त रूप से विष पिलाकर मार डाला । इतनी गुप्त बात फ्रांस में बैठकर ईसाई पादरी Catrou ने देख ली?सब जानते हैं कि ईसाई चर्च ज्योतिष को नष्ट करने में दो सहस्र वर्षों से प्रयासरत है और बड़ी संख्या में ज्योतिषियों को काला जादू का आरोप लगाकर जीवित जला चुका है । जितने समकालीन यूरोपियन शाहजहाँ के काल में मुगल साम्राज्य में आये थे,सबने शाहजहाँ और जहाँआरा के परस्पर सम्बन्ध पर एक जैसी बात लिखी ।

अब आते हैं ज्योतिष पर । ईसाईयों के लिए ज्योतिष काला जादू है किन्तु वैदिक धर्म में यह वेद अर्थात् सत्य की आँख है,सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण देता है । जहाँआरा का जन्मदिन समकालीन दस्तावेजों में मिलता है,किन्तु समय नहीं मिलता । ऐसे लोगों की कुण्डली १२ बजे दोपहर से बनाने पर न्यूनतम त्रुटि मिलेगी,और तब महादशा आदि के आधार पर जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं से तुलना द्वारा सही समय को ढूँढे । जहाँआरा के लिए इतना श्रम नहीं करना पड़ेगा,१२ बजे दोपहर के काल पर ही सभी महत्वपूर्ण घटनाओं से विंशोत्तरी का मेल बैठ जाता है । जन्मदिन है २३ मार्च १६१४ ई⋅,जन्मस्थान है अजमेर । लग्नकुण्डली बलवान नहीं है किन्तु नवांश कुण्डली अत्यधिक प्रबल है । पाँच ग्रह उच्च,मूलत्रिकोण अथवा स्वगृह में हैं और उनमें से एक तो पञ्च−महापुरुष योग के साथ राजयोग भी बना रहा है — केन्द्रेश त्रिकोणेश वाले राजयोग सहित मूलत्रिकोणस्थ बृहस्पति राजसत्ता के दशम भाव में हैं जो पिता का भाव भी है । किन्तु बृहस्पति राक्षस नवांश में हैं और लग्न सहित दस में से छ ग्रह राक्षस नवांश में हैं । राक्षस नवांश का अर्थ है अधर्म,विशेषतया काम−सम्बन्ध में । केवल चन्द्र और मङ्गल देव−नवांश में हैं । चन्द्र स्वगृही होकर पञ्चम में है जो अच्छा है,किन्तु उच्च के मङ्गल के शत्रु हैं । अतः चन्द्र महादशा में पिता के साथ कैद में रहना पड़ा । कैद में रहने के कारण देव−नवांश वाले चन्द्रमा ने पाप नहीं करने दिया और काव्य,दर्शन आदि पर ध्यान केन्द्रित कराया । मङ्गल उच्च के होकर आयभाव में थे,धनेश और भाग्येश होकर प्रचण्ड धनयोग बनाकर । अतः नवांश की मङ्गल महादशा आने पर शत्रु औरंगजेब भी मित्र बन गया,बादशाह−बेगम का पद मिला,राजनैतिक विषयों पर निर्णय लेने की छूट मिली,शाही मुहर का प्रयोग करके शाही फरमान निकालने का अधिकार मिला,और सूरत जैसे समृद्ध नगर सहित अनेक जागीरें मिलीं एवं अनेक बड़े जहाज खरीदकर विदेश व्यापार करने का अवसर मिला । परन्तु कामेश बुध ४+७ के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ थे,लग्नवर्ग में भी कामेश ऐसे ही अशुभ थे । अतः विवाह नहीं हुआ । इतना ही नहीं,कामेश बुध प्रबल बृहस्पति के साथ अतिशत्रु होकर थे और दोनों राक्षस नवांश में थे,अतः काम के विषय पर राक्षसी संस्कार का प्रचण्ड प्रभाव था । बृहस्पति के साथ भाग्येश मूलत्रिकोणस्थ केतु की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा में पहली बार बादशाह−बेगम बनी — केतु और बृहस्पति दोनों राक्षस नवांश में पितृभावस्थ हैं । केतु का बृहस्पति से सम सम्बन्ध है और चन्द्रमा बृहस्पति के पश्चात केतु के सबसे निकट सम्बन्धी हैं ।

ज्योतिष के अनुसार जो निष्कर्ष निकलते हैं वे समकालीन साक्ष्यों की पुष्टि करते हैं कि इस “बादशाह बेगम” ने ही मुगलों की “बेगमी−सभ्यता” को चार चाँद लगाये । पहला चाँद था शाहजहाँ,दूसरा चाँद था एक गुमनाम युवक जिसे शाहजहाँ ने खौलते पानी में उबाल दिया,तीसरा चॉद था नजर खान जिसे शाहजहाँ ने विष देकर मारा,और चौथा चाँद था औरंगजेब जिसने दोनों सगी बहनों को बारी−बारी से शाहजहाँ की तरह अपनी “बेगम−साहिब” बनाया और शाहजहाँ की तरह ही उनको शादी नहीं करने दिया । पता नहीं और कितने छुपे चाँद थे!कुछ लोग तो बूँदी के राव छत्रसाल को भी गिनते हैं ।

इंग्लैण्ड की रानी एलिजाबेथ प्रथम भी चाँदों की धनी थी ।

झूठा प्रचार किया जाता है कि अकबर के समय से ही मुगल शहजादियों की शादी पर पाबन्दी थी । 

औरंगजेब ने अपनी बेटी जुब्दत−उन−निसा की शादी दाराशिकोह के बेटे से करायी,किन्तु दूसरी बेटी को अपनी “बादशाह बेगम” बनाया और तीसरी को बीस वर्षों तक जेल में रखा ।

अकबर ने स्वयं दो मुगल शहजादियों से शादी की — रुकैया और सलमा जो उसकी बहनें थीं (कजिन) । अकबर की सभी बेटियों की शादी हुई,केवल एक के सिवा जो जहाँगीर के साथ आजीवन रही । जहाँगीर ने अपनी तीन बहनों (कजिन) से शादी की । जहाँगीर की दो बेटियाँ थीं जिनमें से एक की शादी उसकी सौतेली माँ नूरजहाँ ने वैमनस्य के कारण नहीं होने दी और दूसरी की शादी जहाँगीर के भतीजे से हुई । उस भतीजे के बाप दानियाल की माँ कौन थी इसपर सारे समकालीन लेखक मौन हैं किन्तु उसका बाप अकबर था यह सब लिखते थे । कई लोगों का कहना है कि दानियाल की माँ अनारकली थी जिससे अकबर ने दानियाल को पैदा किया और जब अनारकली से सलीम का चक्कर चला तो अकबर ने अनारकली को जीवित दीवार में चुनवा दिया । अकबर को महान सिद्ध करने वालों ने इस बात की जाँच नहीं होने दी,कई मुल्ले तो कहते हैं कि अनारकली एक काल्पनिक चरित्र है और लाहौर में अनारकली का मकबरा इस कारण कहा जाने लगा क्योंकि बाद में वहाँ अनार के पेड़ उग गये,वह मकबरा किसी और का है!तब तो ताजमहल परिसर में घास उग आई है तो उसे ताजमहल के बदले घासमहल क्यों नहीं कहते?जामा मस्जिद के आगे गधा बैठ जाये तो जामा मस्जिद का नाम बदल देंगे?

ताजमहल का मुकदमा खारिज होना ही था । जिनको न तो कानून का ज्ञान है और न सही तरीके से तथ्यों को जुटाकर न्यायालय में प्रस्तुत कर सकते हैं वे अच्छे विषयों का भी कचूमर निकाल देते हैं । तथ्यों को जुटाना आपका कार्य है,न्यायालय का नहीं । यह मुकदमा पहले भी खारिज हो चुका था,अतः इस बार पूरी तैयारी करके जाते!

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