“बेगमी सभ्यता”

“बेगमी  सभ्यता” By Vinay Jha
ताजमहल पर बहस करने से पहले इतिहास की पुस्तकों में यह पढ़ाया जाना चाहिए कि मुमताज महल से शाहजहाँ को इतना इश्क था कि उसके मरने पर उससे उत्पन्न अपनी बेटी जहाँआरा को ही मुमताज महल का “बादशाह बेगम” पद देकर अपनी प्रमुख बेगम बना लिया!यद्यपि शाहजहाँ की आठ बेगमों में से तीन जीवित थीं । किन्तु शाहजहाँ को १७ वर्ष की बेटी जहाँआरा ही “बादशाह बेगम”  बनने योग्य लगी !

जहाँआरा दारा शिकोह की समर्थक थी और बाप को कैद किये जाने पर बाप के साथ रही । किन्तु बाप के मरने पर औरंगजेब से दोस्ती करके अपनी छोटी बहन रोशनआरा को हटाकर औरंगजेब की “बादशाह बेगम” बन गयी । जहाँआरा से पहले रोशनआरा “बादशाह बेगम” थी ।  उसके पश्चात औरंगजेब ने अपनी बेटी जीनत को अपनी “बादशाह बेगम” बनाया । बाद में मुगल बादशाह फर्रूखसियर ने भी अपनी ही बेटी को अपनी “बादशाह बेगम” बनाया!

इतिहासनकारों का कहना है कि बादशाह की सभी बेगमों में अव्वल को “बादशाह बेगम” बनाया जाता था । किन्तु जब शाहजहाँ ने अपनी बेटी तथा औरंगजेब ने अपनी दो बहनों और बेटी को बारी−बारी से अपनी “बादशाह बेगम” बनाया तो इस शब्द का नया अर्थ गढ़ा गया  “शहजादियों की साम्राज्ञी”!जबकि वास्तविक अर्थ है “बादशाह की प्रमुख बेगम” अर्थात् पटरानी । “बेगमों की बादशाहिनी” भी चलेगी!किन्तु “बेगम की बेटी ही बादशाह बाप की बेगम” कैसे बन सकती है?
  
शाहजहाँ जब बादशाह था तो अपनी “बादशाह बेगम” मुमताज के मरने पर बेटी जहाँआरा को “बादशाह बेगम” बनाकर शाहजहाँ ने नयी परिपाटी आरम्भ की जिसका पालन उसके “महान” पुत्र औरंगजेब ने भी किया ।

आजकल मुल्ले टीवी पर कह रहे हैं कि मुगलों ने भारत को “सभ्यता” सिखायी । सच कहते हैं,मुगलों ने भारत के मुल्लों को “बेगमी  सभ्यता” सिखायी । दूसरों की बेगमों को भी हलाला बनाने वाली ।

उच्चारण “बादशाह” था किन्तु फारसी लिपि में “पादशाह” लिखते थे । पादशाह−बेगमों की सूची=
https://en.wikipedia.org/wiki/Padshah_Begum

प्राचीन मिस्र के कई असुर राजा भी ऐसा ही करते थे । सगी बहन को कई बादशाह अपनी बेगम बनाते थे । हिन्दू संस्कृति में पितृपक्ष में सात और मातृपक्ष में छ पीढ़ियों से अल्प अन्तर पर विवाह हो तो चाण्डाल माना जाता है जिसका अर्थ है शूद्र से भी निम्न,अर्थात् समाज से बहिष्कृत । मुल्ले कहेंगे कि ऐसी बेगमों से बादशाह का शारीरिक सम्बन्ध नहीं रहता था । किन्तु बादशाह के जनानखाने की प्रमुख बादशाह−बेगम ही होती थी । जनानखाने में सीसीटीवी कैमरा तो था नहीं,तो मुल्लों को कैसे पता चला कि बादशाह पाक−साफ थे?पाक−साफ थे तो अपनी सगी बहन वा बेटी को अपनी बेगम क्यों बनाते थे?

शाहजहाँ के प्रमुख समकालीन इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने न तो “मुमताज महल” का कहीं उल्लेख किया और न ही “ताजमहल” का । दारा शुकोह,शाह शुजा,औरंगजेब तथा मुराद की अम्मी का नाम “बादशाहनामा” ग्रन्थ में आलिया बेगम है । Sir Henry Miers Elliot  द्वारा आधिकारिक अंग्रेजी अनुवाद का स्क्रीनशॉट संलग्न है ।  “ताजमहल” शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख एक यूरोपियन यात्री फ्राँस्वा बर्नियर ने किया और अंग्रेजों ने उछाला । “ताज बेगम” तो शाहजहाँ की राजपूत अम्मी का नाम था जो नूरजहाँ से पहले जहाँगीर की “बादशाह−बेगम” थी ।

मुगलों की कब्रें खोदकर जबतक उन सबका DNA टेस्ट नहीं होता तबतक कहना कठिन है कौन अपनी बहन वा बेटी का क्या था!

अब्दुल हमीद लाहौरी का “बादशाहनामा” शाहजहाँ के काल का सर्वाधिक विश्वसनीय ग्रन्थ माना जाता है । शाहजहाँ के १४ प्रान्तों से राजस्व−आय का इसमें निम्न ब्यौरा है (ईकाई है “करोड़ दाम”)=

दिल्ली   ६५⋅६१
आगरा   ८२⋅२५
पंजाब   ८२⋅५०
काबुल   २५  कश्मीर सहित
दक्खिन  २८⋅३५ अहमदनगर
खानदेश  ८७⋅३२ बरार सहित
मालवा  २८
गुजरात  ५०⋅६४
बिहार   ३१⋅२७ जौनपुर सहित
अवध   २३⋅२२ लखनऊ
अजमेर  ४२⋅०५
अल्लाहाबाद ३०⋅७०
सिन्ध   ८⋅४० मुल्तान सहित
बंगाल  ५० 

मुल्तान सहित सिन्ध का राजस्व उक्त ग्रन्थ में केवल ०⋅४० करोड़ दाम बताया गया,किन्तु उसी ग्रन्थ में पूरे मुगल साम्राज्य का जो राजस्व कहा गया उसमें ७⋅९९ करोड़ दाम अधिक दिखता है । अतः मध्ययुगीन लिपिक की गलती से ८⋅४० करोड़ को ०⋅४० करोड़ लिख दिया गया था । बंगाल को सबसे विशाल सूबा लाहौरी महोदय ने कहा,किन्तु उससे अधिक राजस्व कई छोटे सूबों का था । अतः स्पष्ट है कि बंगाल और बिहार से पूरा राजस्व मुगल वसूल नहीं पाते थे । मुगलों के निकम्मेपन के कारण ही अब तक बाँकी है नामों निशाँ हमारा । मुगल क्रूर तो थे,किन्तु निकम्मे थे । तुर्क−मुगल निकम्मे नहीं होते तो बाँकी नहीं रहता नामों निशाँ हमारा!

ये बातें इतिहासकारों की दृष्टि में नहीं आतीं । सच्चाई यह है कि लगभग सभी सूबों पर मुगलों की पकड़ ढीली थी,जिधर आक्रमण करते थे उधर वसूली कर पाते थे ।

मुगलकालीन एक रूपये में ४० “दाम” होते थे । शाहजहाँ का पूरा राजस्व ६३० करोड़ दाम अथवा २५⋅२ करोड़ रूपया था जो २०२० ईस्वी के मूल्य पर ५५१ अरब रूपयों अथवा ७⋅९ अरब डालर के तुल्य था । यूरोपियन विशेषज्ञों के अनुसार शाहजहाँ के साम्राज्य की जनसंख्या लगभग दस करोड़ की थी । कृषि उत्पाद पर एक तिहाई कर था । यदि मान लें कि आधा राजस्व कृषि से आता था तो कुल कृषि उत्पाद २०२० ईस्वी के मूल्य पर ११८ डालर प्रतिव्यक्ति वार्षिक था,जबकि आज के भारत का उससे २⋅३ गुणा अधिक प्रतिव्यक्ति है । प्रति व्यक्ति उत्पादन उस काल की तुलना में आज अधिक नहीं है,केवल कुछ नगदी फसलों में वृद्धि हुई है । अतः निष्कर्ष यही निकलता है कि शाहजहाँ अपने साम्राज्य के राजस्व का आधा ही वास्तव में वसूल पाता था ।  बंगाल और बिहार से जितना मिलना चाहिये उसका चौथाई भी नहीं मिलता था । औरंगजेब की आय और भी घट गयी क्योंकि मराठों,जाटों,सिखों का विद्रोह बढ़ने लगा जिन्होंने मुगलों की सर्वाधिक आय वाले स्रोंतों को ठिकाने लगाया । आय में ह्रास और युद्धों के कारण खर्च में वृद्धि के कारण औरंगजेब ने कृषिकर बढ़ाकर ५०% कर दिया जिस कारण किसान खेती छोड़ने लगे और “हड़−ताल” शब्द हिन्दुस्तानी भाषाओं में जुड़ा । मुगल साम्राज्य के पतन का वास्तविक कारण यही था जो इतिहासकार नहीं पढ़ाते — ऐय्याशी में डूबे मुगलों की “बेगमी  सभ्यता” का जितना बड़ा साम्राज्य दिखाया जाता है उसके आधे से ही वे कर वसूल पाते थे । क्रूरता के बावजूद प्रशासन निकम्मा और भ्रष्ट था । बादशाह ही “बेगमी  सभ्यता” में डूबे तो नौकरशाह भ्रष्ट क्यों न हों?डिस्कवरी अॅव इण्डिया वालों को “बेगमी  सभ्यता” में डूबे बादशाह ही महान दिखते हैं!उनकी लूट−खसोट,नरसंहार और ऐय्याशी के नीचे जो अटूट अनश्वर सनातन धारा बह रही है वह इतिहासकारों को नहीं दिखता ।

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