हाइपरसोनिक बाइडेन — भाग २
हाइपरसोनिक बाइडेन — भाग २ by Vinay Jha
अमरीकी मीडिया में झूठा प्रचार किया जा रहा है कि मार्च में अमरीका ने हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण कर लिया है किन्तु रूस से तनाव न बढ़े इस कारण उसे गुप्त रखा । मार्च में तनाव का डर था जो अब नहीं रहा?भारतीय मीडिया CIA से घूस खाकर उस असफल हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल को हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल कह रही है और यह भी कह रही है कि अभी तक यह केवल रूस और चीन के पास थी,अब अमरीका के पास भी है ।
पहले मुझे लगा कि झेलेन्स्की का साहस बढ़ाने के लिए बाइडेन प्रशासन ने इस झूठ का प्रचार कराया होगा । किन्तु तथ्यों की जाँच करने पर चौंकाने वाली सूचना मिली । विकिपेडिया के लेख https://en.wikipedia.org/wiki/AGM-183_ARRW में इस AGM-183_ARRW हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल की सूचना है जिसे विकसित करने के लिए लॉकहीड−मार्टिन कम्पनी को अगस्त २०१८ ई⋅ में अमरीकी वायुसेना ने ४८ करोड़ डालर का ठेका दिया । जून २०१९ ई⋅ में इसका “कैप्टिव कैरी फ्लाइट टेस्ट” हुआ,अर्थात् बी−५२ बम्बर विमान में बिना छोड़े लादकर ले जाने का परीक्षण । मिसाइल छोड़ा नहीं गया । उस परीक्षण का फोटो भी उपरोक्त लेख में है ।
फरवरी २०२० ई⋅ में ट्रम्प प्रशासन ने इस ठेके में २३% वृद्धि की घोषणा की और तभी अमरीकी वायुसेना ने इस मिसाइल को वायुसेना में सम्मिलित करने का निर्णय किया । जो मिसाइल बनी ही नहीं थी उसे सेना में सम्मिलित करने का निर्णय कराना आवश्यक था वरना ठेके की राशि में वृद्धि कैसे करायी जाती?ट्रम्प को झाँसा देकर उनसे मई २०२० ई⋅ में बयान दिलाया गया कि अमरीका ने “सुपर−डुपर” मिसाइल बना लिया है जो पिछले सर्वोत्तम मिसाइल से १७ गुणा तीव्रगति का है!वायुसेना में सम्मिलित करने का निर्णय कराने के लिए लॉकहीड−मार्टिन कम्पनी ने कितना घूस दिया यह स्पष्ट नहीं किया गया । लॉकहीड−मार्टिन कम्पनी का दावा है कि AGM-183_ARRW मिसाइल की गति माख़−२० की है । ध्वनि की गति १२२५ किमी प्रति घण्टे को माख़−१ कहते हैं,उससे अधिक माख़−५ तक की गति को सुपरसोनिक कहते हैं जिसमें ब्रह्मोस−१ आता है । माख़−५ से अधिक गति को हाइपरसोनिक कहते हैं ।
उपरोक्त लेख के ही Testing खण्ड में उल्लेख है कि अप्रैल २०२१ ई⋅ में उक्त बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल का आठवाँ परीक्षण भी असफल रहा । नौंवाँ टेस्ट सफल रहा जिसमें केवल avionics, sensors तथा communications की ही जाँच हुई,अर्थात् लक्ष्य तक मिसाइल छोड़ने का परीक्षण किया ही नहीं गया । उसमें भी मिसाइल की किसी भी प्रणाली की जाँच नहीं की गयी,केवल बी−५२ बम्बर विमान की avionics, sensors तथा communications प्रणाली को जाँचा गया । बी−५२ बम्बर ने लक्ष्य को १९०० किमी दूर से पहचान लिया!मिसाइल की कोई जाँच नहीं हुई । जुलाई २०२१ ई⋅ में मिसाइल की दसवीं जाँच हुई जिसमें मिसाइल को छोड़ा गया और उसका रॉकेट स्टार्ट ही नहीं हुआ!पत्थर की तरह मिसाइल गिर गया । १५ दिस⋅ २०२१ ई⋅ को इस मिसाइल का अन्तिम ग्यारहवाँ परीक्षण हुआ और पुनः रॉकेट स्टार्ट ही नहीं हुआ!
तब बिगड़कर अमरीकी काँग्रेस ने ९ मार्च २०२२ ई⋅ को उक्त ठेके की राशि को आधा करने का निर्णय किया और यह निर्णय भी लिया कि उक्त राशि में जो बची हुई है उसे उक्त मिसाइल पर अनुसन्धान पर खर्च किया जाय । ये सारे तथ्य उपरोक्त लेख में हैं जिसमें सारी बातों के स्रोतों के भी सन्दर्भ हैं । लेख में स्पष्ट लिखा है कि काँग्रेस के उक्त निर्णय के कारण उक्त मिसाइल को वायुसेना में लेने की योजना ही अब सन्देह के घेरे में आ गयी है ।
पाकिस्तान जैसे पिद्दी देश भी ऐसा मिसाइल नहीं बनाता जो ग्यारह परीक्षणों में एक बार भी मिसाइल का रॉकेट ही स्टार्ट न हो!९ मार्च २०२२ ई⋅ को अमरीकी काँग्रेस ने इस मिसाइल के कार्यक्रम को ही सन्देहास्पद बताया । अमरीकी काँग्रेस के बहस पर यह लेख पढ़ें=
https://breakingdefense.com/2022/03/air-force-cant-buy-its-first-hypersonic-arrw-as-planned-following-budget-cut/
अमरीकी सरकार स्वयं झूठ बकेगी कि मार्च २०२२ ई⋅ में मिसाइल का गुप्त परीक्षण हो गया तो राष्ट्रपति पर निक्सन जैसा मुकदमा चलेगा । अतः लॉकहीड−मार्टिन कम्पनी ने मीडिया में झूठा समाचार प्रचारित कराया ।
ठेके में २३% वृद्धि के पश्चात उक्त मिसाइल कार्यक्रम का पूरा कण्ट्रैक्ट ५९⋅०४ करोड़ डॉलर का था । उसमें से ४२⋅९४ करोड़ डॉलर इस महान कार्य पर फूँके जा चुके थे कि ग्यारह बार मिसाइल स्टार्ट न हो सके । केवल १६⋅१ करोड़ डॉलर बचे थे । काँग्रेस ने बिगड़कर तय किया कि इस निरर्थक परियोजना की बची हुई राशि में से आधी काट ली जाय और अनुसन्धान हेतु आधी अर्थात् ८ करोड़ डॉलर दी जाय ।
४२⋅९४ करोड़ डॉलर में मिसाइल स्टार्ट नहीं हो सकी,तो ८ करोड़ डॉलर में स्टार्ट होकर लक्ष्य तक पँहुच गयी और वहाँ बम भी फोड़ दिया — किसी गुप्त स्थल पर ताकि पुतिन अप्रसन्न न हो जाय?
इतनी बड़ी मक्कारी बाइडेन ही कर सकते हैं । कुण्डली में ७०% राक्षसी संस्कार हैं । ४२⋅९४ करोड़ डॉलर में मिसाइल स्टार्ट क्यों नहीं हो सकी?क्योंकि लॉकहीड−मार्टिन कम्पनी को इतना घूस देना पड़ा कि वास्तविक अनुसन्धान हेतु धन घट गया । अमरीका में नेताओं को कम्पनियों द्वारा जो घूस मिलता है वह “लॉबिइंग फीस” कहलाती है तथा वैध है । बाइडेन साहब की “फीस” तो हाइपरसोनिक है!
उक्त अमरीकी मिसाइल को “क्रूज” कहना बेईमानी है । कोई भी मिसाइल हाइपरसोनिक हो अथवा सब−सोनिक वा सुपर−सोनिक,उसे क्रूज मिसाइल तभी कह सकते हैं जब उसमें दो गुण हों — वह इतनी अल्प ऊँचाई पर उड़े कि कोई राडार उसे पकड़ न सके,और वह मिसाइल में स्थित कम्प्यूटर द्वारा सञ्चालित होकर लक्ष्य तक पँहुचे । उक्त अमरीकी मिसाइल को “क्रूज” नहीं कह सकते क्योंकि अमरीकी मीडिया में जिस गुप्त परीक्षण की बात कही गयी है उसमें भी कहा गया है कि बम्बर से उसे ६५००० फीट की ऊँचाई से छोड़ा गया जिसके उपरान्त वह बूस्ट−ग्लाइड हुआ,क्रूज नहीं ।
बूस्ट−ग्लाइड अन्य किसी विमान अथवा मिसाइल द्वारा ऊँचाई तथा तीव्रगति से बूस्ट करके छोड़ा जाता है जिसके पश्चात ग्लाइड करके मन्थर होते हुए नीचे आकर लक्ष्य तक पँहुचता है । भारत भी ऐसा हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल HGV-202F बना रहा है जिसे अग्नि−५ एवं अग्नि−६ ICBM (ICBM “बैलिस्टिक” कोटि का मिसाइल है) द्वारा बूस्ट करके छोड़ा जायगा । HGV-202F की गति माख़−२० से कुछ अधिक होगी । इसका डिजाइन सौरव चौधरी ने बनाया । चीन भी ऐसा ही DF-ZF हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल बना रहा है । अमरीका,भारत और चीन की हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल परियोजनायें अधूरी हैं,एक भी सफल परीक्षण कोई नहीं कर सका है ।
किन्तु रूस की सेना में हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल ( https://en.wikipedia.org/wiki/Avangard_(hypersonic_glide_vehicle) ) तथा हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल (जिरकॉन एवं किञ्झल) पहले से कार्यरत हैं । हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल भी लक्ष्य के पास आकर अल्प ऊँचाई पर उड़ते हैं,किन्तु उससे पहले बहुत अधिक ऊँचाई पर उड़ते हैं जिस कारण राडार की पकड़ में आ सकते हैं । हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल राडार की पकड़ में नहीं आ सकते ।
हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल तो भारत सहित बहुत से देशों के पास हैं,इनको मिसाइल−रोधी प्रणालियाँ नष्ट कर सकती हैं । हाल में भारत ने पाकिस्तान की चीन−प्रदत्त मिसाइल−रोधी प्रणाली की जाँच हेतु सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस−१ छोड़ा जिसे पाकिस्तान नहीं पकड़ सका । हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस−२ अभी विकसित ही हो रहा है ।
भारतीय मीडिया अमरीकी मीडिया से भी अधिक झूठ बकती है,अमरीकी मीडिया ने झूठ कहा कि मार्च में अमरीका ने हाइपरसोनिक बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल का गुप्त परीक्षण किया,भारतीय पत्तलकार उस बूस्ट−ग्लाइड मिसाइल को क्रूज मिसाइल बता रही है!अमरीका के रक्षामन्त्री ने भारत से कहा है कि भारत को रूस की बजाय अमरीका से हथियार खरीदने चाहिए । अमरीका में हथियार निजी कम्पनियाँ बनाती हैं जो बिकवाने के लिए नेताओं को “लॉबिइंग फीस” एवं पत्तलकारों को पत्तल परोसती हैं । अमरीका के रक्षामन्त्री को कितना मिला?
“बाइडेन” सरनेम का अर्थ रोचक है । डेनमार्क के लोग डेन कहलाते हैं जिनमें से कुछ अमरीका भी चले गये । कुछ डेन ऐसे होते हैं जिनकी माता को पता नहीं रहता कि बच्चे का पिता एक डेन है अथवा बाइ (दो) डेन । ऐसे कुछ लोग हर देश में हो सकते हैं । किन्तु ऐसा अन्य उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलेगा जो इस बात की डींग मारने के लिए ऐसा सरनेम ही रख ले!यदि मैंने गलत अर्थ लगाया तो कोई बेहतर अर्थ बता दे ।
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.