हाइपरसोनिक बाइडेन
हाइपरसोनिक बाइडेन By Vinay Jha
हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल केवल रूस के पास है,प्रथम सफल परीक्षण हुए ९ वर्ष हो गये । अभी तक दो किस्म के हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल जिरकॉन और किञ्झल रूस विकसित कर चुका है और भारत के साथ मिलकर तीसरा हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल विकसित कर चुका है किन्तु कोरोना के कारण उसका परीक्षण २०२० ई⋅ में स्थगित कर दिया गया था — कलाम साहब के नाम पर उसका नाम BrahMos-2(K) रखा गया जिसमें K का अर्थ है “कलाम” । अन्य किसी देश के पास अभी तक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल की तकनीक नहीं है । BrahMos-2(K) विकसित हो चुका है अथवा अभी भी कुछ कार्य बाँकी है इसका स्पष्टीकरण नहीं किया गया है,२०२० ई⋅ में उसका परीक्षण किया जाना था यह पहले कहा गया था ।
रूस का Kh-47M2 Kinzhal विश्व का एकमात्र हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसका प्रयोग वास्तविक युद्ध में हो चुका है,हाल में नात्सी अजोव बटालियन के विरुद्ध । इसकी गति माख−१२ है,अर्थात् ध्वनि की गति से १२ गुणी अधिक । ध्वनि की गति १२२५ किमी प्रति घण्टे की है । किञ्झल का परास (रेञ्ज) २००० किमी है जो अल्प गति वाले अन्य क्रूज मिसाइलों से भी बहुत अधिक है ।
बैलिस्टिक तथा बूस्ट−ग्लाइड प्रकार के मिसाइलों को मिसाइल रोधी प्रणालियाँ रोक सकती हैं क्योंकि वे अधिक ऊँचाई पर उड़ते हैं जिस कारण दूर से ही मिसाइल रोधी प्रणालियों द्वारा उनकी पहचान सम्भव है । परन्तु ब्रह्मोस वा किञ्झल जैसे क्रूज मिसाइल उबड़−खाबड़ धरातल पर ५० मीटर एवं समतल पर २ से ३ मीटर की ऊँचाई पर उड़ सकते हैं जिस कारण जब वे क्षितिज पर दिखते हैं तो दूसरे क्षितिज तक जाकर ओझल होने में इतना अल्प समय लगता है कि उनके विरुद्ध मिसाइल रोधी प्रणालियाँ कुछ नहीं कर पातीं ।
झेलेन्स्की का साहस बढ़ाने के लिए अमरीकी मीडिया में झूठा प्रचार किया गया है कि मार्च २०२२ ई⋅ में ही अमरीका ने हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण कर लिया किन्तु रूस से तनाव न बढ़े इस कारण गुप्त रखा!रूस से तनाव बढ़ाने का कोई बहाना अमरीका चूकता नहीं,तो इस विषय में रूस से मैत्री?रूस के पास ऐसे हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल हैं जो अमरीकी मिसाइल रोधी प्रणालियों की पकड़ में नहीं आ सकते और अमरीका के किसी भी थलसैनिक वा नौसैनिक ठिकाने को नष्ट कर सकते हैं,तो सुरक्षा के इतने महत्वपूर्ण विषय को अमरीका गुप्त क्यों रखेगा जो उसकी प्रतिष्ठा पर आँच ला रही है?अमरीका का सबसे बड़ा हाइड्रोजन बम १२ लाख टन TNT की विस्फोटक क्षमता के तुल्य है,रूस का सबसे बड़ा बम (“जार बम”) ५०० लाख टन TNT के तुल्य है । “जार बम” को “कण्टीनेण्टल क्रैकर” कहा जाता है (महाद्वीप को फोड़ डालने वाला पटाखा),हिरोशिमा पर गिरे अणुबम से यह ३३३३ गुणा अधिक शक्तिशाली है । रूस के अणुबमों की संख्या भी अधिक है । उन बमों को लक्ष्य तक पँहुचाने की मिसाइल तकनीक में भी रूस बहुत आगे है । फिर भी अमरीका को झूठमूठ सबसे बड़ी सामरिक शक्ति कहा जाता है क्योंकि आयुध कम्पनियों और दलालों के हितार्थ अमरीका अनाप−शनाप खर्च में बहुत आगे है,जबकि रूस केवल आवश्यक खर्च करता है — भारत की तरह ।
अमरीकी मीडिया का यह झूठ कल उसी मीडिया के दूसरे प्रचार से पकड़ा गया जब कहा गया कि ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की सहायता से अमरीका हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल विकसित करेगा!जब मार्च में ही सफल परीक्षण हो चुका है तो अप्रैल में विकसित करने के लिए पिद्दी देशों से अमरीका सहायता माँग रहा है!
तीव्र गति के क्रूज मिसाइल हेतु इञ्जन रूस के पास पहले से था किन्तु धरातल से अल्प ऊँचाई पर तीव्र गति वाले मिसाइल के लिए नियन्त्रण प्रणाली जिस नैनो तकनीक पर विकसित हो सकती थी उसे बनाने का श्रेय कलाम साहब के नेतृत्व वाली टीम को जाता है । यही कारण है उनके मरणोपरान्त ब्रह्मोस−२ के नाम में उनका नाम जोड़ा गया है । नैनो तकनीक में इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे इतने सूक्ष्म स्तर पर बनाये जाते हैं कि सिग्नल के प्रसारण में न्यून समय लगता है जिस कारण नियन्त्रण प्रणालियाँ बिजली की गति से कार्य करती है । हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विरुद्ध मिसाइल रोधी प्रणाली बनाने के लिए जितना द्रुत नैनो तकनीक चाहिए वह अभी संसार में किसी के पास नहीं है । अमरीकी मिसाइलों को रोकने वाली मिसाइल रोधी प्रणाली रूस के पास है और भारत को भी दे रहा है । अमरीका के पास S400 जैसी मिसाइल रोधी प्रणाली नहीं है । S400 भी बैलिस्टिक तथा बूस्ट−ग्लाइड मिसाइलों के लिए विश्व की सर्वोत्तम मिसाइल रोधी प्रणाली है किन्तु रूसी किञ्झल मिसाइल की काट रूस के पास भी नहीं है ।
बाइडेन की ऐसी ही हरकतों के कारण ट्रम्प कह रहे हैं कि बाइडेन का मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं है । बाइडेन समझ नहीं पा रहे हैं कि किञ्झल मिसाइल की काट मीडिया का झूठा प्रचार अथवा चमचों की बैठक में प्रस्ताव नहीं है । हथियार लॉबी को प्रसन्न करने के लिए बाइडेन विश्वयुद्ध की ओर विश्व को धकेलना चाहते हैं किन्तु भूल गये हैं कि यदि विश्वयुद्ध छिड़ गया तो रूस अथवा अन्य किसी देश को नष्ट करने से पहले ही अमरीका स्वयं भस्म हो जायगा । एक किञ्झल मिसाइल पर एक “जार बम” ही समूचे अमरीका को राख बना सकता है,आणविक पनडुब्बी से उसे संसार में कहीं भी छोड़ा जा सकता है ।
भारतीय मीडिया की प्रशंसा बीबीसी ने की है क्योंकि अमरीका के मनोनुकूल झूठा प्रचार करने में भारतीय मीडिया तो बीबीसी को भी पछाड़ चुकी है । भारतीय मीडिया कहती है कि रूस को मारिउपोल की भूमि का लोभ है ताकि क्रीमिया को रूस से जोड़ सके । गूगल−अर्थ पर देखें,क्रीमिया से रूस जाने का केर्च−पुल बहुत पहले से कार्यरत है ( https://wikimapia.org/#lang=en&lat=45.882361&lon=36.419678&z=8&m=w )। मारिउपोल पर रूसी आक्रमण का कारण मीडिया छुपा रही है । २०१४ ई⋅ में जिस निर्वाचित राष्ट्रपति को अवैध तरीके से गुण्डों ने भगाया था उनको सबसे अधिक वोट दोनेत्स्क प्रान्त से ही मिले थे जहाँ के वे गवर्नर रह चुके थे । उसी दोनेत्स्क प्रान्त पर आक्रमण करने के लिए दर्जनों देशों से भाड़े के आतङ्कवादियों को अमरीका की CIA ने लगाया जो आठ वर्षों से रूसी भाषा बोलने वालों का सामूहिक नरसंहार करके “उक्रेनीकरण” कर रहे हैं,उनको “अजोव बटालियन” के नाम पर उक्राइन की सेना में सम्मिलित कर लिया गया । “अजोव बटालियन” का मुख्यालय मारिउपोल में है जिसपर रूस का आधिपत्य हो चुका है । उक्राइन का अजोव बटालियन एवं अन्य नात्सी संगठनों द्वारा हिटलर की नात्सी विचारधारा और उसके चिह्नों का खुल्लमखुल्ला प्रयोग किया जा रहा है किन्तु मीडिया इन बातों को छुपाती है । चलने में असमर्थ नन्हें शिशुओं को जिन्दा गड्ढों में फेँक दिया जाता है ताकि बिना गोली खर्च किये सस्ते में “घटिया” रूसी नस्ल का सफाया हो सके । रूसी टीवी पर मैंने वे वीडियो देखे हैं । ऐसे वीडियो देखकर अमरीका और यूरोप के आमलोग भी हंगामा कर देंगे जिस कारण रूसी टीवी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है ।
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.