यूक्रेन सङ्कट — ११

यूक्रेन सङ्कट — ११

यूक्रेन सङ्कट वस्तुतः नैटो द्वारा रूस एवं विश्व पर पूर्ण आधिपत्य जमाने के दीर्घकालीन षडयन्त्र का अङ्ग है ।

सोवियत सङ्घ का विघटन भी इसी षडयन्त्र का अङ्ग था —
सोवियत कम्युनिष्ट पार्टी के प्रमुख गोर्बाचोव ने वैश्विक प्रसिद्धि के लोभ में सोवियत सङ्घ को तोड़ा और उस बहती गङ्गा में हाथ धोने में मास्को कम्युनिष्ट पार्टी के प्रमुख येल्तसिन तो गोर्बाचोव से भी आगे निकल गये । सोवियत कम्युनिष्ट पार्टी में वैचारिक रूप से अपरिपक्व एवं चमचों से घिरे रहने वाले नेताओं की तूती बोलती थी । तभी तो ब्रेझनेव जैसे मूर्ख को सोवियत कम्युनिष्ट पार्टी का प्रमुख बनने का अवसर मिला और उनके राज में गोर्बाचोव तथा येल्तसिन जैसे मक्कार लोगों को आगे बढ़ने का अवसर मिला — जो उस समय “कट्टर कम्युनिष्ट” बनकर दूसरे कम्युनिष्टों को पछाड़ने में सबसे आगे रहने का प्रयास करते थे और इस प्रयास में मार्क्सवाद पढ़ने और उसे लागू करने की बजाय सुप्रीम सोवियत के सुप्रीम नेताओं की बूट−पॉलिश करने में व्यस्त रहते थे;क्योंकि लेनिन की मृत्यु के पश्चात कम्युनिष्ट पार्टी में कैरियर चमकाने का यही एकमात्र उपाय रह गया था ।

इस “चमचावादी मार्क्सवाद” को स्तालिन ने स्थापित किया था;जो देश के नेता का चमचा नहीं है वह देशद्रोही है!आरम्भ में स्तालिन ऐसे नहीं थे,दोनवास के महान साहित्यकार मिखाइल शोलोखोव ने स्तालिन की नीतियों की आलोचना की तो स्तालिन ने उनको बुलाकर उनके विचार विस्तार से पूछे और उनकी बहुत सी बातों को लागू भी किया । किन्तु हिटलर के कारण जब सोवियत सङ्घ का अस्तित्व ही खतरे में आ गया तो स्तालिन ने मार्शल लॉ जैसी आपातकालीन व्यवस्था बना दी — जैसी कि अभी झेलेन्सकी ने सभी विरोधी दलों पर स्थायी प्रतिबन्ध लगाकर यूक्रेन को “लोकतान्त्रिक” बना डाला है!ऐसा ही आपातकाल इन्दिरा गाँधी ने भी थोपा था ।

सोवियत सङ्घ का दुर्भाग्य यह था कि विश्वयुद्ध समाप्त होने के पश्चात शीतयुद्ध आरम्भ हो गया जिस कारण आपातकालीन व्यवस्था हटाने का साहस स्तालिन नहीं कर सके । ब्रेझनेव के काल में “तनाव शैथिल्य” जोड़ पकड़ने लगा था क्योंकि नैटो को विश्वास हो गया था कि सोवियत सङ्घ को मिटाना सम्भव नहीं है । परन्तु  “तनाव शैथिल्य” के युग में भी ब्रेझनेव ने सच्चे लोकतन्त्र को स्थापित करने का प्रयास नहीं किया,क्योंकि ब्रेझनेव की खोपड़ी में भेजा था ही नहीं । ब्रेझनेव तानाशाह नहीं थे,पोलित ब्यूरो का सामूहिक नेतृत्व था जिसमें सबके सब ब्रेझनेव की तरह ही मूर्ख थे ।

१९७८ ईस्वी में ब्रेझनेव ने बयान दिया था कि सोवियत सङ्घ में अभी “विकसित समाजवाद” है और वर्तमान नवयुवक पीढ़ी बड़ी होकर सोवियत सङ्घ में साम्यवाद स्थापित करेगी । भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की सर्वोच्च मण्डली के एक नेता को मैंने वह बयान दिखाकर कहा कि “मार्क्स ने कहा था कि किसी एक देश में साम्यवाद आ ही नहीं सकता क्योंकि जबतक विश्व का विभाजन विभिन्न देशों में रहेगा तबतक सेनायें,सरकारें,न्याय व्यवस्थायें,आदि एक दूसरे से लड़ती रहेंगी;परन्तु ब्रेझनेव जैसा मूर्ख सोवियत सङ्घ का नेता बन गया है तो अब सोवियत सङ्घ को नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता”!

भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में भी आखिरी पैगम्बर मार्क्स की “पार्टी लाइन” से भिन्न बात सुनना कुफ्र था,अतः मेरी बात को प्रतिगामी भटकाव माना गया । मैंने तो आखिरी पैगम्बर मार्क्स को ही उधृत किया था,किन्तु आखिरी पैगम्बर मार्क्स का विचार क्या था यह तय करने का अधिकार केवल पार्टी नेतृत्व को ही होता है!

किसी भी पार्टी में “पार्टी नेतृत्व” ऐसा डायनासॉर होता है जो एक्सटिंक्ट होने तक भी अपने एक्सटिंक्शन को दिखाने पर भी देख नहीं सकता ।

आखिरी पैगम्बर मार्क्स ने ही कहा था कि साम्यवाद स्थापित होने तक “श्रमिक वर्ग की तानाशाही” रहनी चाहिए ताकि पूँजीवादी विचारों को दबाया जा सके । अतः संसार की सभी कम्युनिष्ट पार्टियों ने वही किया जो आखिरी पैगम्बर मार्क्स ने कहा । मार्क्स ने यह नहीं सोचा था कि “कल्याणकारी पूँजीवाद” के युग में कम्युनिष्टों को अपनी नीति बदलनी पड़ेगी वरना “तानाशाही” के आरोप में एक्सटिंक्ट हो जायेंगे ।

मार्क्स ने यह नहीं चाहा था कि उनके विचारों को “वाद” बनाकर आसमानी किताब जैसा अपरिवर्तनीय बनाया जाय । परन्तु कोई वाद जब बहुत बड़े देश की बहुत बड़ी भीड़ का वाद बन जाता है तो उस देश के सभी स्वतन्त्र विचारकों को देशद्रोही माना जाता है — यही भीड़ की मानसिकता होती है । और चिन्तन पर प्रतिबन्ध लगाकर वह वाद स्वयं अपना नाश करता है ।

मार्क्स ने वह शिकागो देखा था जिसमें वेतन बढ़ाने की माँग पर श्रमिकों का जुलूस निकला तो उसपर जालियाँवाला जैसी गोलीबारी हुई किन्तु जुलूस रुका नहीं — मरने वालों के रक्त से सने कुर्तों को झण्डा की तरह फहराकर जुलूस बढ़ता रहा । वहीं से “लाल झण्डा” पैदा हुआ । परन्तु मार्क्स ने आज का शिकागो नहीं देखा जिसमें कार पर बैठकर श्रमिक अपने उस कारखाने में पँहुचता है जिसका शेयरहोल्डर भी वह स्वयं है । दुनिया बदली किन्तु वाद नहीं बदला!

मार्क्स का सबसे प्रसिद्ध वाक्य यह है कि संसार के सभी दार्शनिकों ने अपने−अपने तरीकों से दुनिया की व्याख्या की है,जबकि आवश्यकता है दुनिया को बदलने की । दुनिया बदली किन्तु मार्क्सवाद नहीं बदला!आज कम्यूनिष्ट चीन में श्रमिक आन्दोलन नहीं कर सकता,पूँजीवादों देशों में आन्दोलन की छूट है!मार्क्सवादियों की करतूतें देखकर मार्क्स की आत्मा रो रही होगी ।

पानी बहना बन्द करे तो सड़ने लगता है । उसी सड़ी हुई नाली से ब्रेझनेव,गोर्बाचोव और येल्तसिन जैसे कीड़े निकलते हैं । ब्रेझनेव तो केवल मूर्ख था,गोर्बाचोव और येल्तसिन तो मूर्ख के साथ−साथ कमीने भी थे — झेलेन्स्की की तरह ।

झेलेन्स्की बहुत बड़ा कमीना है जिसे CIA ने नेता बनाया । आज भी उसके सारे बयानों को यूक्रेन की जनता को सुनने का अवसर मिले तो क्यिव की सड़क पर उसकी धुलाई उसकी ही पार्टी के लोग कर देंगे । कुछ ही दिन पहले झेलेन्स्की ने इजरायल की संसद को वीडियो कान्फ्रेन्स में कहा कि झेलेन्स्की की जड़ें यूक्रेन में नहीं बल्कि इजरायल में है क्योंकि वह यहूदी है!यूक्रेन में उसकी पार्टी रूसियों की भाषा और संस्कृति पर प्रतिबन्ध लगाकर “यूक्रेनीकरण” कर रही है जिस कारण क्रीमिया और दोनवास में रूसियों से विवाद बढ़ा और युद्ध की स्थिति बनी । किन्तु इजरायल से यह यूक्रेनवादी कहता है कि उसकी जड़ें इजरायल में है!यूक्रेन में जनता को केवल वही दिखाया और सुनाया जाता है जो CIA स्वीकृत करे । अतः वहाँ लोगों को पता नहीं चला कि झेलेन्स्की ने इजरायल की संसद को क्या कहा ।

दूसरे ही दिन झेलेन्स्की इजरायल को गरियाने लगा कि वीडियो कान्फ्रेन्स में इतनी अच्छी नौटंकी दिखाने पर भी इजरायल ने सैन्य सहायता करने का वचन नहीं दिया!

इजरायल अमरीका का चहेता है किन्तु रूस के विरुद्ध कभी भी खुलकर नहीं लड़ सकता क्योंकि वहाँ की बहुत बड़ी जनसंख्या उन यहूदियों की सन्तानें हैं जिनको हिटलर के यातना−शिविरों से रूसियों ने मुक्त कराया था । उन यातना−शिविरों के कुछ भुक्तभोगी अभी भी जीवित हैं । सारे यहूदी झेलेन्स्की की तरह नहीं होते । इजरायल ने दूसरे दिन कह दिया कि यूक्रेन में जो यहूदी पीड़ित हैं उनमें से एक लाख यहूदियों को इजरायल में सदा के लिए बसने की अनुमति दी जा सकती है । सबसे अधिक “पीड़ित” तो झेलेन्स्की स्वयं है,बंकर से निकलकर इजरायल क्यों नहीं चला जाता?किन्तु वहाँ पुनः टीवी में जोकर बनना पड़ेगा,राष्ट्रपति कौन बनने देगा?

इजरायल को पता है कि मार्क्स स्वयं यहूदी था । इजरायल को पता है कि सोवियत क्रान्ति के पश्चात १९१७ से १९१९ तक All-Russian Central Executive Committee के चेयरमैन प्रमुख याकोव स्वेर्दलोव यहूदी थे,और १९९८−९९ में भी रूस के प्रधानमन्त्री प्रिमाकोव एक यहूदी थे ।

इजरायल को पता है कि झेलेन्स्की के परिवार के तीन लोगों की हिटलर के सैनिकों ने हत्या कर दी तथा झेलेन्स्की के दादा रूसी सेना में भर्ती होकर हिटलर से लड़े ।

इजरायल को पता है कि झेलेन्स्की की मातृभाषा रूसी है जिसे यूक्रेन में वह प्रतिबन्धित कर रहा है!

इजरायल को पता नहीं है कि झेलेन्स्की की जड़ें इजरायल में नहीं बल्कि पंजाब−कश्मीर के “झेलम” प्रदेश में है । उसका वंश धर्मान्तरित यहूदी है ।

२०१५ ई⋅ में रूस से एक दम्पति ज्योतिष सीखने काशी आया । किसी ने मेरे पास भेज दिया । विवाह करके भी दोनों ब्रह्मचर्य का पालन बहुत पहले से कर रहे थे । पति की रुचि ज्योतिष में नहीं थी,स्विट्जरलैण्ड के किसी गुरु से योग अथवा योगा सीख रहा था । योग पर भी कभी मुझसे बतियाने का प्रयास नहीं किया । वह तो केवल अपनी पत्नी का अङ्गरक्षक बनकर आया था,पत्नी के कारण उसने मास्को में अपनी नौकरी छोड़ दी ताकि भारत आकर उसकी पत्नी ज्योतिष सीख सके । पत्नी का नाम था “वलेरिया झेलमस्काया” (उस समय मेरी कुण्डली में पुत्री का योग चल रहा था;पुत्री=शिष्या)। स्वराघात के अभाव के कारण “म” का हलन्त हो गया था । वह “नवसिविर्स्क” की थी । “नवसिविर्स्क” आधुनिक उच्चारण है (लिखते हैं नोवोसिविर्स्क,रूसी में बोलते हैं “नवसिविर्स्क”),प्राचीन उच्चारण होना चाहिए  “नव−शिविरस्य” । यह नगर अब “शिविर” प्रदेश का सबसे बड़ा नगर है । “शिविर” प्रदेश को मैकॉले की भाषा में साइबेरिया कहते हैं किन्तु वर्तमान रूसी उच्चारण है “सिविर” । वर्तमान रूस का सम्पूर्ण एशियाई भूभाग “सिविर” है ।

आधुनिक युग में अनेक स्थायी नगर और गाँव बन गये,वरना “सिविर” प्रदेश के लोग अनादि काल से अस्थायी शिविरों में रहते थे जिसके दो कारण थे । पहला और मुख्य कारण था अतिशय बर्फबारी के कारण अधिकांश भूभाग में समूचा आवास बर्फ में दब जाता था । दूसरा कारण था हूण मंगोल तुर्क आदि की लूटपाट से बचने के लिए भागते रहना । जारशाही रूस ने स्थायित्व दिया तो स्थायी नगर और गाँव बसने लगे । विश्व की सबसे लम्बी “ट्रान्स साइबेरियन रेलवे” बनने लगी तो उसके केन्द्रीय जंक्शन के तौर पर १८९३ ई⋅ में नव−सिविरस्क नगर की स्थापना हुई ।

जब मैं भाषाविज्ञान सीख रहा था तो पता चला कि जर्मनी और इंग्लैण्ड के नस्लवादी भाषावैज्ञानिका की “थ्योरी” है कि पूर्व की भारोपीय भाषाओं में “स” था और पश्चिम में “क”,जैसे कि संस्कृत में शतम् और लैटिन में केण्टुम् । लैटिन चर्च की भाषा थी,अतः संस्कृत को अधिक प्राचीन मानने के बावजूद उनलोगों ने केण्टुम् को ही प्राचीन माना और अनेक शब्दों में इस तरह के वर्तनीभेदों को “सतम्−केण्टुम् डिवाइड” की संज्ञा दी । मुझे आश्चर्य हुआ कि इस थ्योरी के अनुसार संस्कृत “रामस्य” पूर्व की भाषा में है जिससे हिन्दी में बना “राम का” जबकि इन मूर्खों की थ्योरी के अनुसार हिन्दी में “रामस्य” से “राम सा” बनना चाहिए!और पश्चिम की भाषा अंग्रेजी में बन गया Ram's  जबकि Ram'k बनना चाहिए!

रूसी बीच में है तो उसमें बन गया “स्क” । अतः नव−सिविरस्क । इसी प्रकार झेलमस्काया का विच्छेद होगा “झेलमस्य” जिससे झेलमस्क बना,“स्क” की स्त्रीलिङ्ग है “स्काया” । अतः झेलमस्काया का अर्थ हुआ “झेलम वाली” । आज भी पंजाब में ऐसे आस्पदों की बहुलता है । लौंग वाला,लोंगोवाला । चावल वाला,चावला,चावड़ा । केजरी वाल । टीलेवाला टिबड़े वाल ।

पश्चिम की भारोपीय भाषाओं में संस्कृत से अन्तर अधिक हुआ । दीर्घकाल तक पोलैण्ड ऑस्ट्रिया तुर्क तातार आदि का दास रहने के कारण उस प्रदेश में रूसी भाषा ही विकृत होकर “उक्राइनी” भाषा बन गयी । “झ” का “ज़” हुआ । “म्” का “न” हुआ । “झे” के एकार के प्रभाववश “ल” का “ले” हो गया । इस प्रकार ज़ेलेन्+स्किय बना जिसको अंग्रेजी में ज़ेलेन्स्की कहते हैं । “झेलम” भी बहुत पुराना शब्द नहीं है,उस भारतीय प्रदेश में गजनवियों और गोरियों द्वारा लूटपाट आरम्भ हुई तो बहुत से लोग जान बचाकर शिविर (Siberia) जैसे प्रदेशों में भाग गये । अब तो बचे−खुचे कश्मीरी पण्डितों को भी झेलमदेश से भगा दिया गया है!

मेरा दुर्भाग्य है कि भाषाविज्ञान सीखने में मैंने दशकों लगाये किन्तु जो कुछ भी सीखा वह मेरे साथ ही चला जायगा । झेलमस्की यदि सुन ले कि उसके सरनेम की ऐसी व्युत्पत्ति मैंने बतायी तो अपने अजोव बटालियन के आतङ्की को मुझे मारने भेज देगा । बिचारे को क्रोध आ रहा है कि विश्वयुद्ध क्यों नहीं छिड़ रहा है!अपने को क़यामत लाने वाला समझ रहा है!

पोलैण्ड में बाइडेन ने अमरीकी सैनिकों से कहा — “You’re going to see when you’re there” (जब आप यूक्रेन जायेंगे तो आप वहाँ देखेंगे) । नैटो द्वारा नियन्त्रित मीडिया इस वक्तव्य का उक्राइन में प्रचार कर रही है ताकि वहाँ के लोग इस आस में रूसियों से लड़ते रहें कि अब तो नैटो की सेना आ रही है । बाइडेन के उक्त बयान के तत्क्षण पश्चात ह्वाइट हाउस ने स्पष्टीकरण दिया कि अमरीका सेना नहीं भेजेगा,किन्तु उस स्पष्टीकरण का प्रसारण उक्राइन में नहीं हुआ ।

नैटो बहुत गन्दा खेल कर रही है । नैटो में सेक्रेटरी−जनरल ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने जीवन में कभी पिस्तौल भी नहीं छुई,किन्तु विश्व के सबसे बड़े सैन्य संगठन के मुखिया हैं!ये महाशय नार्वे के प्रधानमन्त्री थे । जबसे स्तोलतेनबर्ग नैटो के सेक्रेटरी−जनरल बने हैं तभी से उक्राइन में रूसियों का नरसंहार आरम्भ हुआ । स्तोलतेनबर्ग नैटो को “सशक्त” बनाने की नौटंकी कर रहे हैं । किन्तु इनको पता है कि नैटो अब एक सैन्य संगठन नहीं रहा । अमरीका को ईराक वा लीबिया का तेल लूटने का मन करता है तो नैटो अथवा UNO जैसे कागजी संगठनों को नहीं पूछता । अमरीका को जब नहीं लड़ना है केवल तभी  नैटो अथवा UNO की नौटंकी कराता है ।

जिस दिन अमरीका तय कर लेगा कि सीधा आक्रमण करके रूस को जीतना और लूटना सम्भव है उस दिन नैटो को खबर भी नहीं करेगा क्योंकि लूट में तीस देशों को हिस्सा देना पड़ेगा!इस प्रयास में अमरीका गुप्त रूप से सक्रिय है । उसका पूरा ध्यान रूस के सैन्य सुपर−कम्प्यूटर को हैक करने में लगा है ताकि रूस के समस्त बैलिस्टिक मिसाइलों,सैन्य उपग्रहों,अणुबमों आदि पर नियन्त्रण कर ले । जिस दिन ऐसा हो जायगा उस दिन ब्रिटेन के सिवा और किसी को अमरीका खबर नहीं लगने देगा । ब्रिटेन तो अमरीका की “पूज्य माताजी” है ।

“पूज्य माताजी” को अणुबम अमरीका ने ही दिया था,ब्रिटेन की औकात नहीं थी कि स्वयं अणुबम बना ले । दूसरों से अमरीका कहता है कि अणुबम का प्रसार नहीं होना चाहिए । अणुबम का “क्रिटिकल वेट” इन अणुशक्तियों ने टॉप सिक्रेट बना रखा है । कोई सिक्रेट नहीं है,मैंने १९७३ ई⋅ में ही अपने अध्यापक को गणना करके दिखा दिया था कि २०००० टन TNT शक्ति वाले अणुबम में यदि १००% शुद्ध U233 का प्रयोग किया जाय तो कुल ९५० ग्राम U233 की आवश्यकता पड़ेगी । अतः क्रिटिकल वेट उसके आधे से कुछ अधिक है । ५०० से ८०० ग्राम तक के दो गोलार्ध किसी बेलनाकार सीसे के खोल में दो छोरों पर रहें और पटाखा फोड़कर दोनों को जोड़ा जाय तो उसी को आणविक विस्फोट कहते हैं । अब ऐसी तकनीकों का अविष्कार हो गया है कि क्रिटिकल वेट से न्यून बम भी बन सकते हैं ।

मुझे अणुबम−विहीन संसार चाहिए । झेलेन्स्की आणविक युद्ध कराकर विश्व का संहार चाहता है । तब उसके बच्चे कहाँ रहेंगे?उसकी पत्नी भी मूर्ख है,उसे मना नहीं करती । २०१४ ई⋅ में CIA ने चुनी हुई सरकार को षडयन्त्र द्वारा हटवाकर जिस रूसविरोधी पोरोसेन्को (पुर+सेन+का) को नेता बनवाया था वह भी अब आणविक युद्ध से डरकर झेलेन्स्की को शान्ति करने के लिए कह रहा है,किन्तु झेलेन्स्की तो बाइडेन का चाकर है । असली राक्षस बाइडेन के आका हैं — “मिलिट्री−इण्डस्ट्रियल कम्प्लेक्स” ।
═════════════════
आज प्रातः स्वनिर्मित ई−बाइक पर मैं अनेक सड़कों पर घूमा । लैपटॉप की रिजेक्टेड बैटरी पर । अतः गति १० किमी प्रति घण्टे से अधिक नहीं हुई । ६० वोल्ट के क्षणिक झटके देकर मुर्दा बैटरी को जिन्दा किया था — सेल के भीतर सुई चुभोकर टूटी हुई अन्दरूनी वेल्डिंग को जोड़ा (झटका अधिक हो तो सेल के विस्फोट का खतरा रहता है) ।

By Vinay Jha

Comments

Popular posts from this blog

चक्रवर्ती योग :--

जोधाबाई के काल्पनिक होने का पारसी प्रमाण:

क्या द्रौपदी ने सच में दुर्योधन का अपमान किया था? क्या उसने उसे अन्धपुत्र इत्यादि कहा था? क्या है सच ?

पृथ्वीराज चौहान के बारे में जो पता है, वो सब कुछ सच का उल्टा है .

ब्राह्मण का पतन और उत्थान

वैदिक परम्परा में मांसभक्षण का वर्णन विदेशियों-विधर्मियों द्वारा जोड़ा गया है. इसका प्रमाण क्या है?

द्वापर युग में महिलाएं सेनापति तक का दायित्त्व सभाल सकती थीं. जिसकी कल्पना करना आज करोड़ों प्रश्न उत्पन्न करता है. .

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष का अर्थ

चिड़िया क्यूँ मरने दी जा रहीं हैं?

महारानी पद्मावती की ऐतिहासिकता के प्रमाण