आध्यात्म चेतन जगत का विज्ञान
आध्यात्म चेतन जगत का विज्ञान ही तो है.
हमारे ऋषि-मुनि महान वैज्ञानिक थे. वे गुफाओं में विभिन्न अनुसंधान करते थे, बस अशिक्षित समाज को समझा दिया जाता था कि वे तपस्या/साधना कर रहे हैं.
और जब तक वे वैज्ञानिक थे, हमारा देश सोने की चिड़िया बना रहा.
लेकिन बाद में विज्ञान रहित धर्म नें, या यूं कहिये कि विज्ञान विरोधी कर्मकांडी धर्म नें ही सोने की चिड़िया को मट्टी की चिड़िया बना कर हमें सदियों के लिए गुलामी की जंजीरों में धकेल दिया.
आज भी हम मानसिक रूप से गुलाम ही तो हैं.
दुनियाँ में सबसे ज्यादा दुरुपयोग धर्म द्वारा ही हुआ है, सबसे ज्यादा युद्ध धर्म के नाम पर ही हुए हैं, सबसे ज्यादा ठगी भी धर्म के नाम पर ही हो रही है
इसीलिये मैं बारम्बार कहता हूँ कि धर्म छोड़ आध्यात्म को अपनाईये.
जो स्थान जड़ जगत में विज्ञान का है, वही चेतन जगत में आध्यात्म का क्योंकि आध्यात्म स्वयं विज्ञान का ही विराट रूप है, सत्य के बिलकुल समीप है, शाश्वत है.
वैसे भी ज्ञान-विज्ञान-आध्यात्म.....ये सब बनाया तो ईश्वर नें ही है, बस विज्ञान तो उसकी बनाई प्रकृति को डिकोड करके उसे उसे इंसानियत की बेहतरी के उपयोग में लाता है.
इस तरह तो वैज्ञानिक भी ऋषि-मुनि की कैटेगरी में ही तो आ जाते हैं !!
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लेकिन हमारे देश में असली प्रोब्लम क्या है कि इससे उन लोगों का धंधा खराब होता है, जो धर्म को धंधे के रूप में, राजनीति के पायदान के रूप में यूज करते हैं. वे स्वयं भी अशिक्षित होते हैं, इसलिए संस्कृत के चार श्लोक रटकर स्वयं को महान दर्शाते हैं और ज्ञानियों को, वैज्ञानिकों को नीचा दिखाते रहते हैं.
वैसे भी वैज्ञानिक भी तो ईश्वर का ही काम कर रहे होते हैं क्योंकि ईश्वर स्वयं चाहता है कि उसके स्वयं के ही भेजे हुए अंश इस धरती पर उसके द्वारा रचे गए खेल को खेलने के लिए प्रकृति को डिकोड करे और इस धरती को बेहतर बनाने में योगदान दें.
अब आपको ये सोचना है कि आप उन धर्म के धंधेबाजों के जाल में ही फंसे रहे और अपना भविष्य तबाह करते रहे.....या फिर ??
इसलिए घंटी हिलानी बंद कीजिये और अपनी सोच/समझ को वैज्ञानिक स्तर पर लाइए.
By Kamal Jhawar
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.