यूक्रेन सङ्कट — २
यूक्रेन सङ्कट — २
भारतीय मीडिया जिस प्रकार अमरीकी गुप्तचर संस्था CIA की प्रचार सामग्री को परोसकर भारतीयों को जानबूझकर मूर्ख बना रही है उसे देखते हुए इस विषय पर कुछ भी लिखने का मन नहीं हो रहा था । किन्तु भाग−२ की घोषणा कर रखी थी,अतः कुछ तो लिखना ही था ।
२०१४ ई⋅ में भाजपा की सरकार लोकतान्त्रिक तरीके से बनी । उसके पश्चात यदि CIA के प्रशिक्षित नकाबपोश कमाण्डो एवं विशाल धनराशि की सहायता से भाजपा−विरोधियों का अवैध कब्जा सारे सरकारी भवनों पर करा दिया जाय और नरेन्द्र मोदी को जान बचाकर किसी सुरक्षित देश में भागना पड़े,एवं उसके पश्चात आठ वर्षों तक भाजपा को प्रतिबन्धित करके उसे वोट देने वालों को चुन−चुनकर ठिकाना लगाया जाय,उनके छोटे बच्चों को भी यह कहकर मार डाला जाय कि हिन्दुत्ववादियों की नस्ल ही घटिया होती है जिसे जड़ से उखाड़ना अनिवार्य है — तो कैसा लगेगा?उससे भी अधिक मजा तब आयगा जब ऐसे कुकर्म करने वालों को नैटो द्वारा भोले−भाले लोकतन्त्रवादी कहा जाय!
पिछले आठ वर्षों से यूक्रेन में यही हो रहा है । उसे नैटो का सदस्य बनाकर रूस की राजधानी एवं अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों पर अमरीकी आणविक मिसाइल तैनात करने के लिये यूक्रेन की नस्लवादी अवैध सरकार क्यों परेशान है?झेलेन्स्की अवैध तरीके से भी यदि राष्ट्रपति बन गये हैं तो शान्तिपूर्वक अपने देश के विकास पर ध्यान न देकर रूस को नष्ट करने के लिये CIA और नैटो को क्यों बुलाना चाहते हैं?क्योंकि उनकी पार्टी को अवैध तरीके से CIA ने ही सत्ता सौंपी है ।
पुतिन का अपराध यही है कि आठ वर्षों की देरी कर दी । २०१४ ई⋅ में जब निर्वाचित सरकार को गलत तरीके से CIA ने हटवाया था तभी पुतिन को कार्यवाई करनी चाहिये थी । किन्तु सोवियत संघ का विघटन ही रूस ने किया था — यह सोचकर कि युद्ध से दूर रहने और यूक्रेन जैसे नाजायज एवं नालायक देशों का भार उठाने से बेहतर है कि रूस अकेला रहे ।
यूक्रेन की सीमा ही गलत है । उसका पश्चिमी भाग यूक्रेनी भाषियों की बहुमत वाला है और पूर्वी भाग एवं क्रीमिया रूसियों की बहुलता वाला है । सोवियत संघ के गणराज्यों का गठन ही भाषा के आधार पर हुआ था । यूक्रेन को रूस−विरोधी देशों से दूर रहने के लिये घूस में रूसी क्षेत्र दिये गये थे ।
आज जिस दोनवास क्षेत्र को लेकर नैटो रूस पर कुपित है उसी दोन की द्रोणी पर मिखाइल शोलोखोव ने महान उपन्यास “धीरे बहे दोन रे” १९२६−४० के दौरान लिखा था — जिसपर १९६५ ई⋅ में नोबल पुरस्कार दिया गया था । किशोरावस्था में मेरी समझ में नहीं आता था कि यूरोप की अनेक महान नदियों के नाम “दन−” से क्यों आरम्भ होते हैं,जैसे कि दैन्यूब,(द−)नीस्तर,(द−)नीपर,दोन आदि । बाद में भाषाविज्ञान एवं इतिहास पर अनुसन्धान करने पर पता चला कि आर्य समुदायों पर सेमेटिक असुरों का आधिपत्य होने पर अनार्य लिपि में आर्य भाषाओं को लिखने के कारण अनेक त्रुटियाँ हुईं,जैसे कि नदी वा नद को विपरीत लिपि में दन । असुर भाषाविद मेरी बात नहीं मानेंगे,उनको तो सेमेटिक उमर भी होमर लगता है ।
पश्चिमी स्रोतों को उद्धृत करते हुए पश्चिमी लेखकों ने ही विकिपेडिया के निम्न आलेख लिखे हैं जिनमें वर्णन है कि किस प्रकार अमरीकी पैसे से अलोकतान्त्रिक तरीके से दो बार यूक्रेन में सरकार बनवाई गयी और उस नात्सी सरकार ने रूसी भाषा बोलने वालों पर यूक्रेनी भाषा बलपूर्वक थोपा तो विद्रोह भड़का ।
https://en.wikipedia.org/wiki/Ukraine#Orange_Revolution
https://en.wikipedia.org/wiki/Ukraine#Euromaidan_and_the_Revolution_of_Dignity
जबतक रूसी भाषियों की समर्थक पार्टी को चुनाव में भाग लेने की छूट थी तब यानुकोविच राष्ट्रपति कैसे बने और किन जिलों में उनको बहुमत मिला इसके मानचित्र विकिपेडिया में हैं —
https://en.wikipedia.org/wiki/Viktor_Yanukovych
२००१ ई⋅ की जनगणना में यूक्रेनी भाषा जिन क्षेत्रों में अल्पमत में थी उन क्षेत्रों को निम्न मानचित्र में देखें,इन्हीं क्षेत्रों को लेकर वर्तमान विवाद है=
https://en.wikipedia.org/wiki/Ukrainian_language#/media/File:Ukraine_census_2001_Ukrainian.svg
रूसियों का बलपूर्वक यूक्रेनीकरण किस गति से किया गया इसपर कुछ आँकड़े इस लेख में हैं =
https://en.wikipedia.org/wiki/Ukrainization#Educational_systemz
उक्त आलेख के आरम्भ में ही सारिणी है जो दर्शा रहा है कि सेकण्डरी स्कूलों में शिक्षण का माध्यम १९९१ ई⋅ में ५४% छात्रों के लिये रूसी था जो २००४ ई⋅ में घटकर २३⋅९% पर आ गया!उसके पश्चात रूस−विरोधी सरकारें आयीं तो रूसी भाषा पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया गया । क्रीमिया में जब रूसी भाषा पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो उसपर रूस की सेना ने आधिपत्य जमा लिया क्योंकि वहाँ दस प्रतिशत से कम लोग यूक्रेनी बोलते थे ।
सबसें चौंकाने वाले आँकड़े जनसंख्या के हैं । सोवियत संघ में जबतक यूक्रेन था तबतक उसकी जनसंख्या तेजी से बढ़ती रही और स्वतन्त्र देश बनते ही अचानक तेजी से घटने लगी=
https://en.wikipedia.org/wiki/Demographics_of_Ukraine#After_WWII
१९९३ ई⋅ में ५२२ लाख के उच्चतम बिन्दु पर पँहुचने के पश्चात यूक्रेन की जनसंख्या लगातार घटते हुए अब ४१२ लाख से भी नीचे आ गयी है । इसका कारण है उत्पीड़न से बचने के लिये रूसी बोलने वालों का यूक्रेन से पलायन । ये रूसी वहाँ के स्थानीय थे,रूस से वहाँ गये नहीं थे । इन रूसियों का मानवाधिकार भारतीय मीडिया को नहीं दिखता किन्तु पुतिन को अपने देश के लोगों की भावना का आदर करना है,वरना सत्ता से च्युत हो जायेंगे । दोनवास में आठ वर्षों से रूसी भाषियों का सुनियोजित नरसंहार चल रहा है । बीस सहस्र विदेशी नव−नात्सियों की सेना और लाखों यूक्रेनी नव−नात्सियों की अवैध सेनायें घूम−घूमकर रूसियों को मार रही है ।
उपरोक्त समस्त तथ्य अमरीका और ब्रिटेन के लेखकों ने ही विकिपेडिया पर डाले हैं । भारतीय पत्तलकारों को CIA से पैसा मिलता है?रूस भारत का मित्र है,यूक्रेन पाकिस्तान का प्रमुख सैन्य सहायक है,फिर भी हमारी मीडिया रूस को खलनायक क्यों बता रही है?रूस यदि यूक्रेन को गुलाम बनाना चाहता तो उसे सोवियत संघ से निकालता ही क्यों?रूस की गलती यही हुई कि यूक्रेन को स्वतन्त्रता देते समय उसके रूसी क्षेत्रों को यूक्रेन में ही रहने दिया ।
चीन ने एक सही बात कही है — रूस के प्रति नैटो की नीति पिछली शताब्दियों की याद दिलाते हैं जब अफ्रीका के संसाधनों को यूरोप के उपनिवेशवादी देश लूटते थे । रूस की घेराबन्दी करके नैटो क्या पाना चाहता है?रूस के प्राकृतिक संसाधन । विवाद यूक्रेन को लेकर नहीं है,रूस की स्वतन्त्रता को लेकर है । सोवियत संघ के विघटन के समय नैटो ने वचन दिया था कि नैटो का विस्तार नहीं किया जायगा,किन्तु नैटो ने धोखा देकर पूर्वी यूरोप के १४ देशों को सदस्यता दी और वहाँ अमरीकी आणविक मिसाइल रूस के विरुद्ध तैनात किया । जब यूक्रेन की बारी आयी तो रूस बौखला गया क्योंकि यूक्रेन रूस के हृदय में घुसा हुआ है ।
यूक्रेन में जिन रूस−विरोधी संगठनों को CIA रूस के विरुद्ध इस्तेमाल कर रहा है वे हिटलर के ही समय से नात्सी विचारधारा को मानते हैं और रूसी को घटिया नस्ल कहते हैं जिसे मिटाना पुण्यकार्य समझते हैं!इन यूक्रेनी नात्सियों ने विश्वयुद्ध में हिटलर की सहायता की थी और यहूदियों की हत्या की थी । आश्चर्य तो इस बात का है कि ऐसे हत्यारों को अमरीका के यहूदी सेठ भी समर्थन दे रहे हैं,क्योंकि उनको रूस के संसाधन लूटने हैं । दोनवास के जिन दो क्षेत्रों को रूस ने मान्यता दी है उनमें प्राइमरी स्कूल के बच्चों और महिलाओं पर झेलेन्स्की की नात्सी सेनाओं ने बम दागे — मैंने वे वीडियो RT टीवी पर देखे हैं ।
पुतिन ने यूक्रेन की वैध सेना से आग्रह किया है कि यूक्रेन का नियन्त्रण वहाँ की सेना सम्भाले और झेलेन्स्की की प्राइवेट नात्सी सेनाओं से हथियार छीने ।
भारत की मीडिया CIA की प्रचार−सामग्री क्यों परोसती है?CIA ने गोमाँसभक्षक दलाईलामा को भारत में बिठाकर चीन को भारत का शत्रु बना दिया,आज भी उनको अमरीका भेज दिया जाय तो चीन से विवाद समाप्त हो जायगा । रूस के विरुद्ध यूक्रेन का समर्थन करना न तो मानवीय है और न ही भारत के हित में । यूक्रेन के भी हित में यही है कि वहाँ सच्चे अर्थ में लोकतान्त्रिक सरकार का गठन हो । किन्तु नैटो का जबतक अस्तित्व रहेगा तबतक विश्व में शान्ति असम्भव है । सोवियत संघ के भंग होते ही नैटो को भंग कर देना उचित था । अमरीका के आमलोग भी युद्ध नहीं चाहते । युद्ध बहुत बुरी चीज है । किन्तु गिद्धों को यह बात कैसे समझायें?
शोलोखोव के दोनवास में आठ वर्षों के पश्चात धीरे−धीरे शान्ति लौट रही है । आजकल मैं ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी आदि की टीवी भी देखता हूँ । सबसे अधिक कमीनी BBC है । भारत में सबसे कम झूठ दूरदर्शन पर है;किन्तु CIA के झूठ का विरोध करने का साहस उसमें भी नहीं है!
पिछले १०५ वर्षों में अधिकांश काल तक रूस को पश्चिम द्वारा प्रतिबन्ध एवं नाकेबन्दी का सामना ही करना पड़ा है । प्रतिबन्ध एवं नाकेबन्दी से अधिक महत्व रूस स्वतन्त्रता को देता है । रूस स्वतन्त्र रहेगा तो भारत का सामरिक हित भी सुरक्षित रहेगा । रूस नष्ट हो जाय तो भारत की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जायगी ।
झेलेन्स्की एक ड्रग एडिक्ट मनोरोगी है । रूसी भाषा पर प्रतिबन्ध लगाने वाला व्यक्ति आज पुतिन से शान्तिवार्ता का बयान रूसी भाषा में दे रहा है!आक्रमण से पहले पुतिन ने कई बार वार्ता का सन्देश भेजा तो झेलेन्स्की ने दुत्कार दिया था । बिनु भय प्रीत न होई!
२००० ई⋅ के पश्चात कालचक्र ने पलटा खाया है । भयङ्कर उथल−पुथल होंगे । अभी तो आरम्भ ही है । रूस और अमरीका दोनों का पतन होगा । भारत को अपनी चिन्ता करनी चाहिये ।
झेलेन्स्की ने कहा है कि रूस को भारत रोक सकता है!
रूस को नैटो नहीं रोक सकता?
अब रूस से भारत को लड़ाना है?नैटो ताली बजायेगा?
तो झेलेन्स्की रूस के विरुद्ध नैटो का अड्डा क्यों बनाना चाहते थे?पाकिस्तान को सैन्य सामग्री देंगे तो पाकिस्तान से सहायता माँगे ।
भारतीय मीडिया कुछ भी बके,मोदी सरकार ने रूस के विरुद्ध सुरक्षा परिषद में मतदान नहीं किया । मोदी सरकार को पता है कि भारत का मित्र कौन है । नैटो से भारत को झगड़ना भी नहीं है । नैटो में दम है तो रूस से लड़ ले,भारत क्यों अपने हाथ जलाये?
By Vinay Jha
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.