गाँधी−वध,या हत्या?

Vinay Jha

गाँधी−वध,या हत्या?
गोडसे ने क्यों कहा कि उन्होंने गाँधी की हत्या नहीं की,बल्कि वध किया?
संस्कृत व्याकरण में हत्या का धातु है “हन्” जिसके लुङ् एवं आशीर्लिङ् में “हन्” के स्थान पर धातु “वध्” हो जाता है । अर्थात् “हन्” और “वध्” एक ही धातु के पृथक रूप हैं किन्तु प्रयोग में अन्तर है ।
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लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् ( = किसी को आशीर्वाद देना हो) जैसे :- आप जीओ ; तुम सुखी रहो । इसमें “वध्” का प्रयोग होता है ।
(ख) विधिलिङ् ( = किसी को विधि बतानी हो ।) जैसे :- आपको पढ़ना चाहिए। ; मुझे जाना चाहिए । इसमें “हन्” का प्रयोग होता है ।
अर्थात् यदि हत्या शुभ और धार्मिक कर्तव्य है तो किसी को हत्या करने का आशीर्वाद देते समय “हन्” का नहीं बल्कि “वध्” का प्रयोग करना चाहिये । अतः “हन्” हिंसा और अधर्म है,किन्तु “वध्” अधर्म नहीं है ।
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संस्कृत व्याकरण में भूतकाल के तीन भेद हैं — लिट् लकार,लङ् लकार और लुङ् लकार ।
लिट् लकार ( = अनद्यतन परोक्ष भूतकाल; जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो । जैसे‘ राम ने रावण को मारा ।’) में “हन्” का प्रयोग होता है ।
लङ् लकार ( = अनद्यतन भूत काल;आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो । जैसे ‘आपने उस दिन भोजन पकाया था।) में भी “हन्” का प्रयोग होता है ।
लुङ् लकार ( = सामान्य भूत काल) जो कभी भी बीत चुका हो । इसमें “वध्” का प्रयोग होता है ।
सामान्य भूत काल के लुङ् लकार के पहले सात प्रकार थे किन्तु बोलचाल में जब संस्कृत का लोप हो गया तो लुङ् को सरलीकृत कर दिया गया । लुङ् लकार के प्राचीन प्रयोगों के क्या−क्या नियम थे यह अब पण्डित भी भूल चुके हैं । पाणिनी ने इन प्राचीन नियमों का उल्लेख किया । भूतकाल में लिट् और लङ् को निकाल दें तो लुङ् लकार का मुख्य अर्थ यह बचता है कि जो आपके साथ घटित हो या आपने किया हो और ताजा घटना हो । अब लुङ् लकार में आशीर्लिङ् को भी जोड़कर देखें तो “वध्” धातु का मुख्य अर्थ है — वैसी हत्या जो आपका वर्तमान वैदिक ⁄ धार्मिक कर्तव्य−कर्म हो,आज किया हो या करना हो । यह “वध्” का सरल सामान्यीकृत प्राचीन अर्थ है,लुङ् लकार के विशेष अर्थ पाणिनीय नियमों में देखें ।
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न्याय द्वारा किसी दोषी को मारने का भार जिसे दिया जाय उसे “वधिक” कहते हैं,अन्यायपूर्वक किसी को मारने वाला “हत्यारा” है ।
ऋग्वेद,यजुर्वेद के शतपथ−ब्राह्मण तथा अथर्ववेद में एक रोचक शब्द कई बार प्रयुक्त हुआ — “वधृ”,जिसका अर्थ है बधिया किया हुआ पुरुष । हिन्दी शब्द “बधिया” भी इसी वैदिक वधृ से बना किन्तु मैकॉलेपुत्रों ने बधिका का संस्कृत बन्ध्या बना दिया क्योंकि नस के बन्धन को ही वे बधिया समझते हैं,जबकि बधिया करने के अनेक तरीके थे । सूअरों या साँढ़ों की संख्या अत्यधिक बढ़ने पर वे भी संङ्कट में रहेंगे तथा अन्य जीव भी,अतः उनका बधिया किया जाय यह अधर्म नहीं है । यहाँ “वध्” के धार्मिक अर्थ का प्रयोग हुआ । चीन में शान्तिदूतो का जबरन बधिया किया जाता है,वे चिल्लाते भी नहीं,और मीडिया वाले भी नहीं दिखाते वरना उनका भी बधिया कर दिया जायगा ।
वेदों में “वध्” धातु के और भी ऐसे कई प्रयोग मिलते हैं जिनका लौकिक संस्कृत में लोप हो गया,उनपर बहस करेंगे तो विशालकाय पोथी बन जायगी । उदाहरणार्थ,वेदों और महाकाव्यों में वर्तमान काल हेतु भी “वध्” का प्रयोग होता था,जैसे कि “वधति” । वधेत् वधिष्यति⁄वधिष्यते वध्यते⁄वध्यति वधयति जैसे रूप भी वेदों और महाकाव्यों में मिलते हैं ।
ऐसे शोध विषविद्यालयों में नहीं कराये जाते क्योंकि विषविद्यालयों की रुचि वेद को गरियाने में रहती है,समझने में नहीं ।
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मुझे बचपन से ही बताया गया कि नाथूराम गोडसे अक्ल का अन्धा पागल उन्मादी था । बाद में पता चला कि वह एक सम्पादक और विचारक था । गाँधी को मारना अनुचित था यह मैं भी मानता हूँ किन्तु गोडसे के अदालती बयान को पचास वर्षों तक असंवैधानिक तरीके से दबाना भी अनुचित था,हर किसी को अपनी बात अभिव्यक्त करने का मौलिक अधिकार है ।
अब आप बताइये कि “वध्” धातु के प्राचीन वैदिक अर्थ को समझने वाला गोडसे पागल था
या वेद को बिना समझे गरियाने वाले JNU के प्रोफेसर्प पागल हैं?
नाथूराम गोडसे का बयान नेट पर उपलब्ध है जिसे गोपाल गोडसे ने प्रकाशित कर दिया था,उसे पूरा पढ़ें और तब आप ही निर्णय करें कि उसने हत्या की या वध किया ।
नाथूराम गोडसे ने जो किया उसके लिये तो उसे फाँसी दी गयी,किन्तु नाथूराम गोडसे पर भड़के काँग्रेसियों ने जिन १३००० निर्दोष ब्राह्मणों की हत्या की उसकी न्यायिक जाँच कब होगी?वे काँग्रेसी हत्यारे तो कब के मर चुके हैं किन्तु उनके कुकर्मों का खुलासा क्यों न हो?पुलिस को किस नेता ने आदेश दिया कि हत्यारों पर कार्यवाई नहीं की जाय?१३००० निर्दोष ब्राह्मणों को मारना हत्या थी या वध था?क्या ब्राह्मण होना ही अपराध है?
गोडसे का संघ से कोई सम्बन्ध नहीं था । गोडसे के बहाने संघ पर पाबन्दी भी लगा दी गयी थी जो गैरकानूनी थी ।

गोडसे के भाषाज्ञान पर आप सही बात बोलेंगे तो नौकरी से हाथ धो बैठेंगे ।

सुनियोजित तरीके से न केवल महाराष्ट्री ब्राह्मणों की हत्या हुई बल्कि सारे सबूतों को भी मिटाया,किन्तु बहुत से चश्मदीद गवाहों के बयान ढूँढने पर मिल जायेंगे । जैसे कि इस साइट पर कुछ लिंक हैं —
https://hindugenocide.com/political-crimes/1948-maharashtrian-brahmin-genocide-8000-killed/?fbclid=IwAR2p97Di3iFFhzmQWTvI2BThtvZqVvEezx4hz3grE6CsAKni62mNwk78ZgU 


१३००० की संख्या मैंने नेट पर ही पढ़ी थी,कहीं १०००० तो कहीं ८००० भी मिलता है । इस संख्या में वे लोग सम्मिलित नहीं हैं जो लापता हो गये । जिस काल में संचार के साधन अल्प थे तब बिजली की गति से एक बड़े राज्य में चुन−चुनकर केवल महाराष्ट्री ब्राह्मणों पर बिजली की गति से आक्रमण हुआ और उनको सम्भलने या भागने का अवसर नहीं मिला,जिससे स्पष्ट है कि योजनाबद्ध तरीके से सबकुछ हुआ और पुलिस एवं प्रशासन सोती रही ।
गूगल सर्च करेंगे तो और भी बहुत से लिंक मिलेंगे ।

२००७ में महात्मा गाँधी के पोते ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें कुछ छिटपुट घटनाओं के आधार पर यह “सिद्ध” करने का प्रयास किया कि समूचा ब्रह्मण समुदाय महात्मा गाँधी की हत्या करना चाहता था
https://www.hindujagruti.org/news/1515.html । उस पुस्तक का विमोचन एम⋅ जे⋅ अकबर ने किया जो राजीव गाँधी के प्रवक्ता तथा काँग्रेस सांसद रह चुके थे किन्तु नरेन्द्र मोदी के केन्द्र में प्रवेश के बाद भाजपा में आ गये और मन्त्री बना दिये गये किन्तु बीस महिलाओं द्वारा यौन शोषण का शपथपत्र न्यायालय में देने के बाद २०१८ में त्यागपत्र दे दिये,उन महिलाओं की शिकायत पर कोई कार्यवाई नहीं की गयी ।

आज भी माडिया १९४८ के ब्राह्मणों की सामूहिक हत्या पर एक शब्द प्रकाशित करने के लिये तैयार नहीं है क्योंकि भारत पर पिछड़े वर्ग के पूँजीपतियों का राज है ।

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