निर्भया सहायता समिति


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प्रियंका रेड्डी जैसों को बिना पिस्तौल आदि के वैसे स्थान पर रात में एक मिनट भी रुकना नहीं चाहिये,भारत की पुलिस रक्षा करने में सक्षम नहीं है । सरकार को चाहिये कि कामकाजी महिलाओं को पिस्तौल मुहैया कराये और प्रशिक्षण भी दे । हर वर्ष ३६ हजार बलात्कार भारत में दर्ज किये जाते हैं,उससे अधिक बिना दर्ज वाले होंगे । हर वर्ष दस−बीस हजार राक्षसों को गोली मारी जायगी तभी प्रभाव पड़ेगा ।

मनुस्मृति के अनुसार बलात्कार को राक्षस−विवाह कहते हैं,अर्थात् बलात्कारी को मनुष्य नहीं बल्कि राक्षस समझना चाहिये यह मानवजाति के आदिपुरुष का आदेश है । राक्षस−वध सनातन धर्म का लक्ष्य है,राक्षसों का बल बहुत बढ़ जाता है तो श्रीविष्णु अवतार लेते हैं,अगले अवतार तक यह पुण्यकार्य हमलोगों के सिर पर है । हत्या पाप है,वध पुण्यकर्म है ।
केवल पिस्तौल से काम नहीं चलेगा,प्रशिक्षण भी अनिवार्य है । प्रशिक्षण के बाद कोई समस्या नहीं होगी,गोली चलाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी,पिस्तौल दिखाने से ही गुण्डे दूर हट जायेंगे और तब फोन पर पुलिस तथा अपने लोगों को बुलाया जा सकता है ।
पिस्तौल ही एकमात्र साधन नहीं है । स्टन गन से मृत्यु नहीं होती;भारत में अवैध है किन्तु न्यायालय या सरकार से कहकर महिलाओं को छूट दिलायी जा सकती है । मिर्ची−पाउडर की पिचकारी जैसे अनेक साधन हैं ।
मोमबत्ती मार्च से राक्षसों पर प्रभाव नहीं पड़ने वाला । गोली मारने के बाद कानूनी मामले का भार स्वयंसेवी संस्थायें लें ।
स्वयंसेवी संस्था आप ही खोल लीजिये,रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उसका बाइ−लॉज फेसबुक पर डालकर सदस्य बनाइये । हजारों या लाखों लोग जुड़ जायेंगे । नाम कुछ भी रख सकते हैं,जैसे कि “निर्भया सहायता समिति” । कानूनी सहायता,शस्त्र प्रशिक्षण,सङ्कटग्रस्त महिलाओं द्वारा फोन किये जाने पर आसपास के लोगों को सूचना देकर अविलम्ब लोगों या पुलिस को भेजना,आदि अनेक कार्य कर सकते हैं ।
स्वयंसेवी संस्था खोलने से पहले फेसबुक पर कुछ दिन प्रचार अभियान चलाकर अच्छे लोगों की टीम बना लें,उसके बाद ही खोलें,चन्दाचोर कमीनों को संस्था से दूर रखें । चन्दाचोरी से बचने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि एक−एक पैसे का हिसाब ऑनलाइन सार्वजनिक रखने का नियम बना दिया जाय और हिसाब को हर दिन या दो−तीन दिनों पर अपडेट किया जाय ताकि चन्दा देने वाला देख सके कि उसके द्वारा दिया गया पैसा सही स्थान पर गया है या नहीं । चन्दे के पैसे से मुकदमे और दौड़−धूप के खर्च चलेंगे । इतना बड़ा देश है,बिना चन्दा के लाखों लोगों की सहायता नहीं कर सकते । अभी लाखों मामले दर्ज हैं किन्तु लटक रहे हैं,उनकी जाँच हो इसके लिये पैरवी और दवाब चाहिये । सावधानी बरतने पर भी कई चन्दाचोर संस्था में घुस ही जायेंगे,अतः पैसे का हिसाब ऑनलाइन तथा सार्वजनिक रखना अनिवार्य करना पड़ेगा । चन्दा भी केवल ऑनलाइन बैंक खाते में ही जाना चाहिये वरना कई लोग चन्दा वसूलकर जेब में रख लेंगे और संस्था को पता ही नहीं चलेगा । किसी एक व्यक्ति द्वारा पैसे की निकासी पर प्रतिबन्ध होना चाहिये । गलत लोग संस्था में रहेंगे तो कानूनी झमेलों में फँसाकर संस्था को नष्ट करके ब्लैकमेल भी कर सकते हैं ।
किसी को गोली मारने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी,सही तरीके से कार्य करेंगे तो पुलिस और न्यायालय भी सुधर जायेंगे । नेता अड़ंगा डालें तो उनके विरुद्ध अभियान चलायें ।
संस्था में महिलाओं का वर्चस्व हो तो बेहतर रहेगा ।
सरकार के “निर्भया फण्ड” और “निर्भया एक्ट” का भी सही प्रयोग हो इसकी देखरेख स्वयंसेवी संस्था को करनी चाहिये ।
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बलात्कारी को मृत्युदण्ड अवश्य मिलना चाहिये,किन्तु भावना को उन्माद की हद तक उभारकर कानून के राज को हटाकर जंगलराज नहीं लाना चाहिये । छिटपुट सुधारों की आवश्यकता है किन्तु हमारे कानून आज भी गलत नहीं है,उनको लागू करने में पुलिस और न्यायालय सक्षम नहीं हैं,उनकी क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दें ।
पुलिस सही तरीके से कार्य करे इसके लिये आवश्यक है कि नेताओं की पैरवी पर लगाम लगे और अच्छे पुलिस अधिकारियों को नेताओं से बचाया जाय । ऐसा हो तो हमारी पुलिय ओवैसी के मुहल्ले में घुसकर एक घण्टे में सारे बलात्कारियों का इलाज कर सकती है । अधिकांश अपराधियों को पुलिस पहले से जानती है किन्तु नेताओं के कारण उनपर कार्यवाई नहीं कर पाती है ।
न्यायालय में इतना सुधार आवश्यक है कि जानबूझकर न्याय को विलम्बित करने वाले न्यायाधीशों पर कार्यवाई हो ।
न्यायाधीशों की संख्या भी कम है ।
न्याय प्रक्रिया को सस्ता बनाना आवश्यक है । आज भी उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों में अंग्रेजी की प्रधानता है जिस कारण जो लोग मँहगे वकील नहीं रख सकते वे स्वयं अपना मुकदमा नहीं लड़ पाते । न्यायालयों में अंग्रेजी को पूरी तरह से हटा देना चाहिये,केवल भारतीय भाषाओं के प्रयोग की अनुमति मिलनी चाहिये,और सारे रेकर्ड केवल राष्ट्रभाषा में रखे जाय और माँग करने पर हल्की फीस लेकर स्थानीय भाषाओं में जिनके अनुवाद की व्यवस्था हो । लोग स्वयं अपने कानूनी कागजात तैयार कर सकें इसका प्रशिक्षण नेट पर सुलभ कराया जाय ताकि वकीलों पर निर्भरता समाप्त हो ।
( जिस मातृभाषा को संविधान की अष्टम सूची में मान्यता नहीं है उसमें भी आप अपने सारे दस्तावेज न्यायालय में दे सकते हैं और बिना वकील रखे स्वयं अपने मुकदमे की पैरवी में बहस कर सकते हैं — यह न्यायिक सुधार बहुत पहले किया जा चुका है । किन्तु अधिकांश लोगों को पता नहीं है क्योंकि वकीलो की फौज लोगों को सही जानकारी नहीं देती । )
भारत में ऐसा कोई नहीं है जो केवल अंग्रेजी ही जानता हो और एक भी भारतीय भाषा नहीं जानता हो । अतः न्यायालय,संसद,विधानसभा,आदि में अंग्रेजी बोलने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिये क्योंकि अंग्रेजी भारत को नष्ट करने वाले शत्रुओं की भाषा है । परन्तु जहाँ आवश्यक है वहाँ अंग्रेजी का प्रयोग हो और जो लोग अंग्रेजी सीखना चाहे उनके लिये सस्ते उपाय हों ताकि अंग्रेजी के नाम पर लूट बन्द हो । चर्च के सिवा कोई अन्य व्यक्ति या संस्था यदि किसी स्कूल के नाम में “कन्वेण्ट” लगाये तो उसकी मान्यता रद्द की जाय ।
इस तरह के अनगिनत सुधार आवश्यक है जो IAS नौकरशाही नहीं हो देगी — जबतक प्रबल जन आन्दोलन न हो और प्रबल राजनैतिक ईच्छा न हो ।
मैंने केवल मामूली उपाय बताये हैं,स्थायी सुधार चाहते हैं तो विषविद्यालयों की यूरोपियन प्रणाली को उखाड़ना होगा जिसमें शास्त्रार्थ की व्यवस्था नहीं है,न्याय और पुलिस के सारे स्थानीय अधिकार ग्राम पञ्चायतों को दिये जाय,और गाँवो में रोजगार सर्जित हो ताकि भारतीय संस्कृति को पश्चिम की नकल करने वाले जहरीले महानगर नष्ट न कर सकें ।
मीडिया और सिनेमा आदि में झूठ एवं अश्लीलता पर रोक हेतु कठोर कानून बने । टीवी डिबेट में किसी विषय के विशेषज्ञों के बदले मूर्खों को बुलाने वाले चैनलों पर कार्यवाई हो । निर्मल बाबा टाइप चैनलों को बन्द कराया जाय ।
आगे भी बहुत कुछ है,किन्तु अधिकांश लोग इतना भी नहीं पचा सकेंगे,मैकॉलेवादी व्यवस्था ने सोचने की क्षमता ही नष्ट कर दी है ।

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