भृगु संहिता :--
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Vinay Jha
https://www.facebook.com/vinay.jha.906/posts/1940562242621737
मैकॉले के मानसपुत्रों के अनुसार पाँच हज़ार वर्ष पहले भारतीय संस्कृति के प्रथम बीज पड़े थे, क्योंकि बाइबिल को मानने वालों का कहना है कि ईसापूर्व 4004 में गॉड से सृष्टि रची थी | ये लोग भारत के प्राचीनतम ग्रन्थों का काल ईसापूर्व तीन हज़ार वर्षों तक अथवा उससे भी कम ले जाते हैं |
ऐसी बुद्धि रखने वाले लोग भृगु ऋषि का ज्ञान कितना समझ सकते हैं और कितना सुरक्षित रख सकते हैं ? भृगु संहिता के नाम पर भारत के अनेक भागों में दावे किये जाते रहे है जिनमें से अधिकाँश फर्जी हैं | जो सही भी हैं वे गलत हाथों में हैं |
भारतीय पंजाब के होशियारपुर शहर में रेलवे मंडी है जहाँ पश्चिमी पंजाब से विभाजन के समय ट्रक पर लादकर अन्य ग्रंथों के सहित भृगु संहिता लायी गयी थी | भृगु संहिता मेरे पास भी है | उत्तर प्रदेश के देवरिया में भी एक परिवार दावा करता है |
कोई मूर्ख ही कह सकता है कि भृगु संहिता में ज्योतिष सम्बन्धी सारी बातें हैं | ज्योतिष के तीन स्कन्ध (भाग) हैं --
सिद्धान्त (गणित),
होरा (कुण्डली का विधान) और
संहिता (अन्यान्य) |
सिद्धान्त (गणित),
होरा (कुण्डली का विधान) और
संहिता (अन्यान्य) |
भृगु संहिता में ज्योतिष के सिद्धान्त-स्कन्ध सम्बन्धी रत्ती भर भी कुछ नहीं है | संहिता-स्कन्ध की भी कोई चर्चा नहीं है, यद्यपि मूर्खों ने इसे "संहिता" नाम से प्रचारित कर रखा है | भृगु संहिता का सम्बन्ध होरा-स्कन्ध से है, किन्तु होरा (कुण्डली) के सैद्धान्तिक विषयों की भृगु संहिता में कोई चर्चा नहीं है | भृगु संहिता में बनी बनायी कुण्डलियाँ हैं जिनका फल कहा गया है |
तथाकथित "भृगु-ज्योतिषी" के पास जो व्यक्ति जाता है उसकी व्यक्तिगत कुण्डली का यदि गोदाम में रखी किसी कुण्डली से मेल बैठ जाय तो तथाकथित "भृगु-ज्योतिषी" खटाखट फल बता देते हैं, वरना दिन में तारे गिनने लगता है, क्योंकि कुण्डली-विद्या तो ये लोग कभी पढ़े ही नहीं जो जन्मकाल आदि द्वारा कुण्डली बनाकर फल बता सकें | ये सारे तथाकथित "भृगु-ज्योतिषी" धन्धेबाज हैं, पैसा मिलने पर गोदाम में पन्ने उलटते हैं | अतः जिनके पास असली भृगु-संहिता बची भी है उनको ईश्वरीय सहायता नहीं मिलती, और गोदाम में जो मिल जाता है उसमें जो लिखा है उससे अधिक एक शब्द नहीं बता पाते | फर्जी भृगु-संहिता वाले "भृगु-ज्योतिषी" तो शत-प्रतिशत बकवास बताते हैं, इनके पास असली भी है वे अंश ही बता पाते हैं |
सम्पूर्ण भृगु-संहिता किसी के पास नहीं है, उसमें 62271 लाख मानव-कुण्डलियाँ हैं | यदि मान लें कि एक व्यक्ति के जीवन का वर्णन केवल एक बड़े पृष्ठ में है और 623 पृष्ठों की एक जिल्द है तो ऐसी बड़ी आकार की एक करोड़ पुस्तकें होंगी -- एक पंक्ति में सारी पुस्तकें रखी जायँ तो छ लाख मीटर लम्बी लाइन लग जायेगी | पूरे होशियारपुर शहर में भृगु-संहिता नहीं समा सकती | ये लोग धन्धेबाज हैं, ग्राहकों को फँसाने के लिए झूठ बकते हैं | भृगु ऋषि बहुत पूर्वकाल में हुए थे, उनका ग्रन्थ कलियुग के लिए नहीं है, अतः बचाया भी नहीं गया | पाकिस्तान में सम्पूर्ण भृगु संहिता बच गया यह तो सोचना भी मूर्खता है | भारत के कई भागों में असली भृगु संहिता के छिटपुट अंश बचे हुए हैं जिनमें से अधिकाँश तो दुष्टों ने दबा रखे हैं, जबकि यह राष्ट्रीय धरोहर है और जो इसे दबाकर रखे उसे जेल में ठूँस देना चाहिए, किन्तु सरकारों को वैदिक साहित्य के संरक्षण में रूचि ही नहीं है |
अन्तिम वैदिक ऋषि पराशर जी, जो वेद व्यास जी के पिता और वसिष्ठ ऋषि के पौत्र थे, ने ज्योतिष की सैद्धान्तिक व्याख्या सहित प्रमाणिक ग्रन्थ लिखा जिसका बहुत सा भाग बचा हुआ है और सुलभ है, अन्य किसी ऋषि का कोई भी ज्योतिषीय ग्रन्थ कुण्डली बनाकर फल कहने के लायक स्वरुप में बच नहीं पाया |
दक्षिण भारत में इस प्रकार के ग्रन्थों को "नाडी ग्रन्थ" कहा जाता है |
पराशर ऋषि के होराशास्त्र के आधार पर नाडी-ग्रन्थों तथा भृगु-संहिता सदृश ग्रन्थों का निर्माण कैसे किया जाय इसकी प्राचीन पद्धति का वर्णन गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित "कल्याण" पत्रिका के "ज्योतिष-तत्त्वांक" नाम के वार्षिक विशेषांक में मैंने किया है | किन्तु सही पद्धति ज्ञात होने पर भी सम्पूर्ण भृगु संहिता का निर्माण कोई एक व्यक्ति नहीं कर सकता | एक व्यक्ति तो सम्पूर्ण जीवनकाल में उतना पढ़ भी नहीं सकता, लिखना दूर की बात है ! अतः प्राचीन भृगु-संहिता भी किसी एक ग्रन्थ का नाम नहीं है, भृगु ऋषि द्वारा वर्णित विस्तृत पद्धति के आधार पर विभिन्न पुरातन मनीषियों की रचना है जिसका अधिकाँश काल के गाल में समा चुका है | जो बचे हुए असली ग्रन्थ हैं उन सबको एकत्र करके उन सबकी जाँच की जाय तो लुप्त अंशों का भी पुनर्निर्माण किया जा सकता है, किन्तु कलियुग के ज्योतिषी ऐसा होने नहीं देंगे |
सरकार को चाहिए कि सभी प्राचीन ग्रन्थों और पाण्डुलिपियों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दे और कोई व्यक्ति ऐसी पाण्डुलिपियों को दबाकर रखे तो उसके लिए आजीवन कारावास का दण्ड निर्धारित कर दे, क्योंकि राष्ट्रीय धरोहर की चोरी देश की सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करना है | मेरे पास पाण्डुलिपि नहीं है, सौ वर्ष पहले प्रकाशित पुस्तक की प्रतिलिपि है | भृगु ऋषि ने मुट्ठीभर धन्धेबाजों की पेटपूजा के लिए ग्रन्थ नहीं लिखा था, उनका ग्रन्थ सबके लिए सुलभ होना चाहिए |
भृगु ऋषि OBC या SC/ST में आते तो उनकी बौद्धिक सम्पदा की सुरक्षा हेतु क़ानून कब का बन गया रहता ! किन्तु आधुनिक नेताओं को पता नहीं है कि ऋषि सभी जातियों के पूर्वज हैं, केवल एक जाति के नहीं | संसार का सबसे बड़ा संस्कृत पाण्डुलिपि भण्डार काशी के सरस्वती-भवन में है जहाँ एक पूर्व (कांग्रेसी) राज्यपाल भृगु-संहिता अवैध रूप से ले गए थे, वापस नहीं किये -- यह बात वहीं के प्राध्यापकों ने मुझे बतायी थी |
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सभी सनातनियों के पूर्वज भारतीय ऋषि ही हैं .
ऋषियों की रचनाएं सबके लिए होती है, किसी एक परिवार के लिए ऋषि नहीं लिखते थे | मेरा भी अपना परिवार नहीं है, कल मेरी रचनाओं को ऐसे ही दुष्ट अपनी निजी सम्पत्ति घोषित कर देंगे |
बौद्धिक सम्पदा की तुलना भूमि या इमारत से नहीं की जा सकती | और यदि करेंगे भी तो पहले ताजमहल को मुगलों के वर्तमान वंशजों की निजी सम्पत्ति घोषित कर दो , मैं तो उसे राष्ट्रीय धरोहर के लायक नहीं समझता
केवल अपने परिवार के किसी व्यक्ति द्वारा रचित पाण्डुलिपि पर कोई अपना निजी अधिकार जता सकता है, वह भी सीमित काल तक | क़ानून को लागू करने में सरकार सख्ती नहीं बरत रही है | बौद्धिक सम्पदा यदि प्राचीन काल की है और किसी एक वंश तक सीमित नहीं है तो स्वाभाविक रूप से राष्ट्रीय धरोहर है |
रावण संहिता नवांश द्वारा फलकथन की सुन्दर पद्धति है किन्तु केवल नवांश द्वारा, जो ज्योतिष का छोटा सा हिस्सा है.
लोकसभा चुनाव के नतीजे भृगु संहिता से नहीं निकाले जा सकते, भृगु संहिता में केवल बनी-बनायी व्यक्तिगत कुण्डलियाँ रहती हैं | नेताओं की भविष्यवाणी संभव है, यदि उनकी सही कुण्डलियाँ बनी हों तब | जिनका व्यक्तिगत पुण्य अधिक होता है वे कम अध्ययन द्वारा भी सही फल कह सकते हैं, जो लोभी और पापी हैं वे कितना भी पढ़ लें सही फल नहीं कह पाते , हालाँकि पैसे के बल पर प्रचार करा लेते हैं | काशी का सबसे प्रसिद्ध ज्योतिषी लक्ष्मण दास (हलवाई) है जिसे कुछ नहीं आता है, मुट्ठी भर साधारण ब्राह्मण ज्योतिषियों को बिठा रखा है और विज्ञापन द्वारा लोगों को आकर्षित करता है |
त्रिकालदर्शी सर्वज्ञ बनना है ? तब तो ईश्वर ही बनना पडेगा | सम्पूर्ण ज्योतिष केवल वे ही जानते हैं .
मुस्लिमों की "लाल किताब" आधारित तो मूलतः वैदिक ज्योतिष पर ही है, म्लेच्छ स्वयं दिव्य विद्याएँ खोज ही नहीं सकते, किन्तु चोरी करने का भी हुनर नहीं था (क्योंकि कोई भी अच्छा ज्योतिषी उनको सिखाने के लिए तैयार नहीं होता जिस कारण लालची और मूर्ख पण्डितों से सीखा), इतना विकृत कर दिया कि अब उसमें कितना भूसा है और कितना चावल यह छाँटने में जीवन बीत जाएगा |
आदरणीया बहन,बहुत सारी भ्रांतियां डोर कर दीं आपने।इससे लोगों को बेहद लाभ हुआ।जिस तरह आपने सार तत्व प्रस्तुत किया है ज्योतिष का,बेहद मूल्यवान है।अनेक आभार,धन्यवाद।
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