भाजपा का रोजा
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Vinay Jha
17 May ·
रमजान के दौरान भाजपा सरकार आतंकियों के विरुद्ध रोजा रखेगी | भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि आतंकी गुण्डे "यदि" गोली नहीं चलाएंगे, तभी सेना उनपर गोली नहीं चलायेगी | आतंकियों के समर्थन में मजहब के नाम पर जो मुल्ले युवकों को पत्थरबाजी के लिए उकसाते हैं उनके लिए यह निर्णय है, ताकि कश्मीरी युवक पहचान सके कि ये मुल्ले रमजान में कैसा रोजा चाहते हैं |
किन्तु सेना के विशेषज्ञ भी खुलेआम नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं, कहते हैं कि आतंकियों के विरुद्ध सेना की आल-आउट मुहम को बीच में ही तोड़ा जा रहा है, इस तरीके से सरकार करेगी तो आतंकवाद कभी भी समाप्त नहीं होगा | घाटी में आतंकियों के पाँव उखड़ने लगे थे तो एक तरफ पत्थरबाजों को रिहा किया गया और दूसरी तरफ सेना के हाथ बांधें जा रहे हैं ताकि आतंकियों को सँभलने और नयी तैयारी करने का अवसर मिले |
एकतरफा सीज-फायर का अर्थ यह है कि पहले भारतीय सैनिकों को गोली खाने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, गोली खाने के बाद ही सैनिक गोली चला सकेंगे !! इस तरह आतंकियों से लड़ाई सम्भव है ? पहले गोली खाकर मरो, उसके बाद तुम्हारा भूत आतंकियों से लडेगा !
भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि कश्मीरियों को "सन्देश" भेजा जा रहा है (कि भाजपा-पीडीपी सरकार "शान्तिदूतों" की सरकार है)| भाजपा को यही भ्रम है कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को छोड़कर कश्मीर के मुसलमान तब पीडीपी को वोट देने लगेंगे ! किन्तु यदि पीडीपी यदि अपने बल पर सरकार बनाने लायक हो जाय तो भाजपा को ही नहीं बल्कि पूरे देश को ही ठेंगा दिखाकर "कश्मीरियत" का राग अलापने लगेगी | महबूबा मुफ्त से लाख गुना बेहतर तो गुलाम नबी आज़ाद हैं जिनकी सरकार ने हिन्दू तीर्थयात्रियों की सहायता की योजना बनायी थी तो समर्थन वापस लेकर पीडीपी ने उनकी सरकार गिरा दी थी |
"शान्तिदूतों को सन्देश" भेजने के लिए आतुर भाजपा को इस बात की कोई चिन्ता नहीं है कि राष्ट्रवादी मतदाताओं को ऐसी हरकतों से कैसा सन्देश मिल रहा है ! राष्ट्रवादी मतदाताओं ने नाराज होकर नोटा दबा दिया तो भाजपा की क्या हालत होगी ?
कश्मीर के बारे में भाजपा की अपनी कोई नीति नहीं है और कोई शक्ति भी नहीं है, महबूबा मुफ्ती कश्मीर नाम के स्वतन्त्र राष्ट्र की स्वतन्त्र सरकार की मलिका है, जो मर्जी हो वैसा करती है उसे न तो भारतीय सेना रोक सकती है और न केन्द्र सरकार | क्यों ?
भाजपा को जितनी चिन्ता पीडीपी के लिए मुसलिम वोट जुटाने की है उसकी 1% चिन्ता भी कश्मीरी विस्थापितों के लिए नहीं है जो प्लास्टिक के तम्बूओं में 27 वर्षों से रह रहे हैं जिसके पास ही अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों के सरकारी कॉलोनी बसा दिए गए हैं ! भाजपा ऐसा क्यों करती है ?
क्योंकि राष्ट्रवादी शक्तियों में आपसी एकता का अभाव है जिस कारण सरकार पर दवाब बनाने का सामर्थ्य नहीं है |
क्योंकि सरकार उसी की सुनती है जो अधिक दवाब बना सके ! वरना सरकार की कोई नीति ही नहीं है, केवल सरकार चलानी है !
गाड़ी चलाते रहो, किधर जाना है उससे कोई मतलब नहीं !
क्योंकि सरकार उसी की सुनती है जो अधिक दवाब बना सके ! वरना सरकार की कोई नीति ही नहीं है, केवल सरकार चलानी है !
गाड़ी चलाते रहो, किधर जाना है उससे कोई मतलब नहीं !
राष्ट्रवादी शक्तियों में एकता के असली बाधक हैं अन्धभक्तों की जमात जो सरकार के उन समर्थकों को ही देश के असली शत्रु समझकर गरियाते रहते हैं जो सरकार को हिन्दुत्व के हितों की अनदेखी से रोकना चाहते हैं | अन्धभक्तों के गिरोहों को सुनियोजित तरीके से हर जगह खड़ा किया जा रहा है | असली मुद्दों पर बहस न हो, यही लक्ष्य है |
किन्तु आतंकियों ने रमजान में भी हिंसा पहले भी कभी बन्द नहीं की थी, और इस बार भी लट्टे (लश्कर) ने तो खोलकर कह दिया है कि कोई सीज-फायर नहीं है | इसका अर्थ यह है कि भाजपा पर दवाब डालकर महबूबा मुफ़्ती ने सेना को रोकने का जो कुचक्र रचा है उसे आतंकी संगठन ही असफल कर देंगे और तब सेना को सीज-फायर तोड़ना पड़ेगा | कुल मिलाकर परिणाम यही होगा कि पहले जैसी स्थिति पुनः बन जायेगी, सीज-फायर का एकमात्र परिणाम यह होगा कि नष्ट हो रहे आतंकियों को रमजान के दौरान पुनः संगठित होने का सुनहला अवसर मिल जाएगा |
एकतरफा सीज-फायर से सेना की रणनीति को कुछ झटका तो पँहुचा ही है | महबूबा मुफ्ती को "सैन्य समाधान" पसन्द नहीं है | आतंकियों को "राजनैतिक समाधान" पसन्द नहीं है | तब तो समाधान का एकमात्र रास्ता यह है कि महबूबा की छुट्टी कर दी जय, किन्तु केन्द्र सरकार बदनामी के डर से राष्ट्रपति शासन थोपना नहीं चाहती !
बदनामी कौन करेगा ? अमरीका और उसके मानवाधिकार वाले चेले | अमरीका क्या चाहता है ? हथियार बेचना | हथियार कब बिकेंगे ? जब आतंकी मजबूत बने रहेंगे और भारतीय सेना उनसे लड़ने के लिए इजराइल-अमरीका से हथियार खरीदती रहेगी | और इजराइल-अमरीका चीन के मार्फ़त पाकिस्तान तथा आतंकियों को भी हथियार भेजते रहेंगे, जिसके ठोस सबूत मैं पहले ही दे चुका हूँ | लाभ मिलेगा हथियार के विदेशी सौदागरों को | मरेंगे भारत के सैनिक और हिन्दू-मुसलमान | सेना को पूरी छूट मिल जाय तो आतंकवाद को रमजान समाप्त होने से पहली ही पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है | बिना दण्ड के दुष्टों को सुधारना असम्भव है, संसार के सभी देशों का यही अनुभव रहा है |
विश्व इतिहास में पहली बार आतंकवादियों के विरुद्ध किसी सरकार ने सीज फायर की घोषणा की है, वह भी तब जब आतंकियों के पाँव उखड़ने लगे थे, केवल अन्तिम धक्का बाँकी था |
सेना प्रतीक्षा करेगी कि उधर से पहली गोली चलेगी तभी सेना जवाबी कार्यवाई करेगी | पाकिस्तान के साथ भी तो ऐसी ही नीति है, जिस कारण पकिस्तान की गोलीबारी कभी रुकती ही नहीं | क्या उन जवानों का खून पानी है जिनको पहली गोली चुपचाप खाने का आदेश दिया जा रहा है, और गोली खाने के बाद ही गोली चलाने का आदेश है ?
आक्रमण करना जो नहीं सीखता वह कभी कोई युद्ध जीत ही नहीं सकता | Offence is the best defence. लड़कपन और युवावस्था में जब मैं शतरंज खेलता था तब भी मैंने यही सीखा और कभी नहीं हारता था | आरम्भ में तीव्रगति से अपनी किलेबन्दी की जाती है और उसके बाद शत्रु आक्रमण कर पाए उससे पहले ही इस तरह से आक्रमण करना चाहिए कि शत्रु को आक्रमण करने का अवसर ही न मिल सके | कराटे जैसे मार्शल आर्ट सीखते समय भी मैंने यही सीखा था | जूडो में अपनी शक्ति के प्रयोग द्वारा आक्रमण करने की मनाही है, किन्तु मार खाने की भी मनाही है, शत्रु की शक्ति से ही शत्रु को परास्त करना सिखाया जाता है | युवावस्था में जब मैंने अपने शहर में गुण्डा-विरोधी अभियान चलाया था तब भी मैंने यही नीति अपनाई थी, कभी मुझे स्वयं हाथ नहीं उठाना पड़ा और दर्जनों कांग्रेसी और वामी गुण्डों का स्थायी समाधान कर दिया, पुलिस ने भी सहयोग दिया जबकि कांग्रेस की सरकार थी |
परन्तु भारत तो अपनी ही शक्ति से अपने ही गाल पर चाँटा लगाने का अभ्यस्त है !!
सेना प्रतीक्षा करेगी कि उधर से पहली गोली चलेगी तभी सेना जवाबी कार्यवाई करेगी | पाकिस्तान के साथ भी तो ऐसी ही नीति है, जिस कारण पकिस्तान की गोलीबारी कभी रुकती ही नहीं | क्या उन जवानों का खून पानी है जिनको पहली गोली चुपचाप खाने का आदेश दिया जा रहा है, और गोली खाने के बाद ही गोली चलाने का आदेश है ?
आक्रमण करना जो नहीं सीखता वह कभी कोई युद्ध जीत ही नहीं सकता | Offence is the best defence. लड़कपन और युवावस्था में जब मैं शतरंज खेलता था तब भी मैंने यही सीखा और कभी नहीं हारता था | आरम्भ में तीव्रगति से अपनी किलेबन्दी की जाती है और उसके बाद शत्रु आक्रमण कर पाए उससे पहले ही इस तरह से आक्रमण करना चाहिए कि शत्रु को आक्रमण करने का अवसर ही न मिल सके | कराटे जैसे मार्शल आर्ट सीखते समय भी मैंने यही सीखा था | जूडो में अपनी शक्ति के प्रयोग द्वारा आक्रमण करने की मनाही है, किन्तु मार खाने की भी मनाही है, शत्रु की शक्ति से ही शत्रु को परास्त करना सिखाया जाता है | युवावस्था में जब मैंने अपने शहर में गुण्डा-विरोधी अभियान चलाया था तब भी मैंने यही नीति अपनाई थी, कभी मुझे स्वयं हाथ नहीं उठाना पड़ा और दर्जनों कांग्रेसी और वामी गुण्डों का स्थायी समाधान कर दिया, पुलिस ने भी सहयोग दिया जबकि कांग्रेस की सरकार थी |
परन्तु भारत तो अपनी ही शक्ति से अपने ही गाल पर चाँटा लगाने का अभ्यस्त है !!
आतंकवाद समाप्त हो जाएगा तो हथियारों के सौदागर भूखों मर जायेंगे और नेताओं को चुनावी खर्च गोरक्षक तो दे नहीं पायेंगे |
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मूर्खों और अन्धभक्तो को मेरे पन्ने पर आने की आवश्यकता नहीं है | कुछ लोग मेरे पन्ने पर जानबूझकर झूठी बहस कर रहे हैं कि गृह मन्त्रालय ने गोलीबारी रोकने की आज्ञा दी है ,अतः सेना के लिए यह आज्ञा नहीं है | ऊपर टिप्पणी में मैंने साफ़ लिखा है कि भाजपा प्रवक्ता (संवित पात्र) और सेना के वरिष्ठ (अवकाशप्राप्त) उच्चाधिकारियों की बहस देखने के बाद मैंने यह लेख लिखा है | संवित पात्र ने एकबार भी ऐसी बकवास नहीं की जो ये अन्धभक्त लोग कर रहे हैं | चूंकि कुछ भाड़े (और मुफ्त के) अन्धभक्त टट्टूओं का प्रचार सुनियोजित रूप से चलाया जा रहा है कि कश्मीर में आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कोई सीज फायर नहीं हुआ है और केवल गृह मन्त्रालय के अधीन पुलिस को ही सीज फायर की आज्ञा दी गयी है, अतः स्पष्टीकरण दे रहा हूँ जिसे लेख में भी जोड़ रहा हूँ | यह स्पष्टीकरण बहुत पहले मैं एक लेख में दे चुका हूँ |
भारतीय सेना पर 13 लाख की हदबन्दी लागू है, इससे अधिक भर्ती सेना नहीं कर सकती | अतः 1989 में पाकिस्तानी परमाणु बम और भारतीय राजनीति में दीर्घ अस्थिरता का युग आरम्भ होने के परिणामस्वरूप जेहादी आतंकवाद बढ़ने के बाद उससे निबटने के लिए सेना को बल बढाने की आवश्यकता अनुभव हुई तो असम राइफल जैसे विशेष अर्धसैनिक बलों को प्रभार दिया गया जिनपर संख्या बढाने की कोई रोक नहीं है | असम राइफल जैसे अर्धसैनिक बलों में सेना के सबसे अच्छे प्रशिक्षित कमांडो भेजे जाते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद से ही निबटना है | अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत ये आते हैं, अतः गृह मन्त्रालय के अधीन हैं | किन्तु इनमें सेना के ही चुने हुए सर्वश्रेष्ठ जवान आते हैं और सेना के अधिकारियों को ही इनपर नियंत्रण रखने का प्रभार मिलता है (विस्तार के लिए एक उदाहरण है -- https://en.wikipedia.org/wiki/Assam_Rifles…) | सेना से तालमेल बिठाकर ही कश्मीर (और असम, नागालैंड, आदि) में आतंकी संगठनों के विरुद्ध कार्यवाइयां की जाती हैं | BSF केवल सीमा पर कार्यवाई कर सकती है, कश्मीर घाटी के अन्दरूनी भागों में आतंकवाद से निबटने की मुख्य जिम्मेदारी इन अर्धसैनिक बलों पर ही है जो कागजी तौर पर गृह मन्त्रालय के अधीन हैं किन्तु व्यवहार में सेना के अंग हैं क्योंकि उनके जवान और अधिकारी सेना के ही हैं, मुख्यतः थलसेना के | जेहादी आतंकी भी पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रशिक्षित कमांडो ही होते हैं, उनसे निबटने में भारतीय सेना के प्रशिक्षित कमांडो ही सक्षम हो सकते हैं | किन्तु संख्या के परिसीमन के कारण इन सर्वोत्तम कमांडो को विशिष्ट अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत रखा जाता है | इनका नियन्त्रण साउथ ब्लॉक में स्थित PMO से उत्तर स्थित नार्थ ब्लॉक से होता है जिसमें नीचे रक्षा मन्त्रालय है और ऊपर गृह मन्त्रालय, इन विशिष्ट बलों का नियन्त्रण दोनों के तालमेल से होता है किन्तु व्यवहार में सेना नियन्त्रण करती है क्योंकि सारे अधिकारी सेना के ही होते हैं |
अतः इन अन्धभक्तों के बहकावे में न आयें कि कोई सीज फायर नहीं हुआ है | भाजपा प्रवक्ता भी इतना बड़ा झूठ नहीं बोलते | भारतीय सेना जिन बलों के मार्फ़त आतंकवाद से लड़ रही है वे केवल कागजी तौर पर ही गृह मन्त्रालय के अधीन हैं, उनपर IPS और IAS अधिकारियों का आदेश व्यवहार में नहीं चलता है | सेना के अधिकारी सिविलियन अधिकारियों को "सैन्य मामलों" में कीड़े-मकोड़े समझते हैं क्योंकि इन कीड़ों-मकोड़ों को युद्ध का कोई अनुभव नहीं होता, सेना के कार्य में ये कीड़े-मकोड़े दखल देने का साहस नहीं करते |
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मूर्खों और अन्धभक्तो को मेरे पन्ने पर आने की आवश्यकता नहीं है | कुछ लोग मेरे पन्ने पर जानबूझकर झूठी बहस कर रहे हैं कि गृह मन्त्रालय ने गोलीबारी रोकने की आज्ञा दी है ,अतः सेना के लिए यह आज्ञा नहीं है | ऊपर टिप्पणी में मैंने साफ़ लिखा है कि भाजपा प्रवक्ता (संवित पात्र) और सेना के वरिष्ठ (अवकाशप्राप्त) उच्चाधिकारियों की बहस देखने के बाद मैंने यह लेख लिखा है | संवित पात्र ने एकबार भी ऐसी बकवास नहीं की जो ये अन्धभक्त लोग कर रहे हैं | चूंकि कुछ भाड़े (और मुफ्त के) अन्धभक्त टट्टूओं का प्रचार सुनियोजित रूप से चलाया जा रहा है कि कश्मीर में आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कोई सीज फायर नहीं हुआ है और केवल गृह मन्त्रालय के अधीन पुलिस को ही सीज फायर की आज्ञा दी गयी है, अतः स्पष्टीकरण दे रहा हूँ जिसे लेख में भी जोड़ रहा हूँ | यह स्पष्टीकरण बहुत पहले मैं एक लेख में दे चुका हूँ |
भारतीय सेना पर 13 लाख की हदबन्दी लागू है, इससे अधिक भर्ती सेना नहीं कर सकती | अतः 1989 में पाकिस्तानी परमाणु बम और भारतीय राजनीति में दीर्घ अस्थिरता का युग आरम्भ होने के परिणामस्वरूप जेहादी आतंकवाद बढ़ने के बाद उससे निबटने के लिए सेना को बल बढाने की आवश्यकता अनुभव हुई तो असम राइफल जैसे विशेष अर्धसैनिक बलों को प्रभार दिया गया जिनपर संख्या बढाने की कोई रोक नहीं है | असम राइफल जैसे अर्धसैनिक बलों में सेना के सबसे अच्छे प्रशिक्षित कमांडो भेजे जाते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद से ही निबटना है | अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत ये आते हैं, अतः गृह मन्त्रालय के अधीन हैं | किन्तु इनमें सेना के ही चुने हुए सर्वश्रेष्ठ जवान आते हैं और सेना के अधिकारियों को ही इनपर नियंत्रण रखने का प्रभार मिलता है (विस्तार के लिए एक उदाहरण है -- https://en.wikipedia.org/wiki/Assam_Rifles…) | सेना से तालमेल बिठाकर ही कश्मीर (और असम, नागालैंड, आदि) में आतंकी संगठनों के विरुद्ध कार्यवाइयां की जाती हैं | BSF केवल सीमा पर कार्यवाई कर सकती है, कश्मीर घाटी के अन्दरूनी भागों में आतंकवाद से निबटने की मुख्य जिम्मेदारी इन अर्धसैनिक बलों पर ही है जो कागजी तौर पर गृह मन्त्रालय के अधीन हैं किन्तु व्यवहार में सेना के अंग हैं क्योंकि उनके जवान और अधिकारी सेना के ही हैं, मुख्यतः थलसेना के | जेहादी आतंकी भी पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रशिक्षित कमांडो ही होते हैं, उनसे निबटने में भारतीय सेना के प्रशिक्षित कमांडो ही सक्षम हो सकते हैं | किन्तु संख्या के परिसीमन के कारण इन सर्वोत्तम कमांडो को विशिष्ट अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत रखा जाता है | इनका नियन्त्रण साउथ ब्लॉक में स्थित PMO से उत्तर स्थित नार्थ ब्लॉक से होता है जिसमें नीचे रक्षा मन्त्रालय है और ऊपर गृह मन्त्रालय, इन विशिष्ट बलों का नियन्त्रण दोनों के तालमेल से होता है किन्तु व्यवहार में सेना नियन्त्रण करती है क्योंकि सारे अधिकारी सेना के ही होते हैं |
अतः इन अन्धभक्तों के बहकावे में न आयें कि कोई सीज फायर नहीं हुआ है | भाजपा प्रवक्ता भी इतना बड़ा झूठ नहीं बोलते | भारतीय सेना जिन बलों के मार्फ़त आतंकवाद से लड़ रही है वे केवल कागजी तौर पर ही गृह मन्त्रालय के अधीन हैं, उनपर IPS और IAS अधिकारियों का आदेश व्यवहार में नहीं चलता है | सेना के अधिकारी सिविलियन अधिकारियों को "सैन्य मामलों" में कीड़े-मकोड़े समझते हैं क्योंकि इन कीड़ों-मकोड़ों को युद्ध का कोई अनुभव नहीं होता, सेना के कार्य में ये कीड़े-मकोड़े दखल देने का साहस नहीं करते |
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भारत के मुसलमानों को अपने मजहबी कानून को मानने की छूट है, अतः सभी काफिरों को क़त्ल करके उनको गजवा-इ-हिन्द वाला आतंकवाद लागू करने का कानूनी अधिकार है, लेकिन कपि सिब्बल और प्रशान्त विभीषण जैसे काबिल वकीलों ने अभीतक न्यायालय और सरकार को यह बात समझाई नहीं है .
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भाजपा ठोकर से सुधरने वाली नहीं है, क्योंकि अशुभ मुहूर्त में इसकी स्थापना हुई थी जिस कारण सत्ता इसके भाग्य में लिखी ही नहीं है | वाजपेयी जी या मोदी जी जैसे कुछ अपवाद हैं जिनके व्यक्तिगत राजयोग के कारण भाजपा कभी-कभार सत्तासुख भोग लेती है |
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मनोहर पर्रिकर जी ने रक्षा मन्त्रालय के कानपुर वाले कारखाने से मिलिट्री वाले जूते 2200 रूपये की दर से इजराइल की निजी यहूदी कम्पनी को भिजवाये थे और फिर वही जूते भारतीय सेना के लिए 25000 की दर से खरीदे गए, इसका सबूत मैं पोस्ट कर चुका हूँ | रक्षा मन्त्रालय से जब पुनः गोआ लौटे तो "घुटन" समाप्त हुई और घोषणा की कि महाराष्ट्र की भाजपा सरकार गोमांस नहीं भेजती है अतः कर्नाटक की कांग्रेस सरकार से गोवा में गोमांस मंगाएंगे -- उन वोटरों के लिए जिन्होंने कभी भी भाजपा को वोट नहीं दिया | मनोहर पर्रिकर जैसे नकली हिन्दुओं के कारण ही तो केन्द्र सरकार खुलकर अपने अजेंडे पर कार्य नहीं कर पा रही है |
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.