भाजपा का रोजा


Vinay Jha
17 May

भारत के मुसलमानों को अपने मजहबी कानून को मानने की छूट है, अतः सभी काफिरों को क़त्ल करके उनको गजवा-इ-हिन्द वाला आतंकवाद लागू करने का कानूनी अधिकार है, लेकिन कपि सिब्बल और प्रशान्त विभीषण जैसे काबिल वकीलों ने अभीतक न्यायालय और सरकार को यह बात समझाई नहीं है .

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भाजपा ठोकर से सुधरने वाली नहीं है, क्योंकि अशुभ मुहूर्त में इसकी स्थापना हुई थी जिस कारण सत्ता इसके भाग्य में लिखी ही नहीं है | वाजपेयी जी या मोदी जी जैसे कुछ अपवाद हैं जिनके व्यक्तिगत राजयोग के कारण भाजपा कभी-कभार सत्तासुख भोग लेती है |
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मनोहर पर्रिकर जी ने रक्षा मन्त्रालय के कानपुर वाले कारखाने से मिलिट्री वाले जूते 2200 रूपये की दर से इजराइल की निजी यहूदी कम्पनी को भिजवाये थे और फिर वही जूते भारतीय सेना के लिए 25000 की दर से खरीदे गए, इसका सबूत मैं पोस्ट कर चुका हूँ | रक्षा मन्त्रालय से जब पुनः गोआ लौटे तो "घुटन" समाप्त हुई और घोषणा की कि महाराष्ट्र की भाजपा सरकार गोमांस नहीं भेजती है अतः कर्नाटक की कांग्रेस सरकार से गोवा में गोमांस मंगाएंगे -- उन वोटरों के लिए जिन्होंने कभी भी भाजपा को वोट नहीं दिया | मनोहर पर्रिकर जैसे नकली हिन्दुओं के कारण ही तो केन्द्र सरकार खुलकर अपने अजेंडे पर कार्य नहीं कर पा रही है |

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भाजपा  प्रवक्ता (संवित पात्र) और सेना के वरिष्ठ (अवकाशप्राप्त) उच्चाधिकारियों की बहस देखने के बाद मैंने यह लेख लिखा है | संवित पात्र ने एकबार भी ऐसी बकवास नहीं की जो ये अन्धभक्त लोग कर रहे हैं | चूंकि कुछ भाड़े (और मुफ्त के) अन्धभक्त टट्टूओं का प्रचार सुनियोजित रूप से चलाया जा रहा है कि कश्मीर में आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कोई सीज फायर नहीं हुआ है और केवल गृह मन्त्रालय के अधीन पुलिस को ही सीज फायर की आज्ञा दी गयी है, अतः स्पष्टीकरण दे रहा हूँ जिसे लेख में भी जोड़ रहा हूँ | यह स्पष्टीकरण बहुत पहले मैं एक लेख में दे चुका हूँ |
भारतीय सेना पर 13 लाख की हदबन्दी लागू है, इससे अधिक भर्ती सेना नहीं कर सकती | अतः 1989 में पाकिस्तानी परमाणु बम और भारतीय राजनीति में दीर्घ अस्थिरता का युग आरम्भ होने के परिणामस्वरूप जेहादी आतंकवाद बढ़ने के बाद उससे निबटने के लिए सेना को बल बढाने की आवश्यकता अनुभव हुई तो असम राइफल जैसे विशेष अर्धसैनिक बलों को प्रभार दिया गया जिनपर संख्या बढाने की कोई रोक नहीं है | असम राइफल जैसे अर्धसैनिक बलों में सेना के सबसे अच्छे प्रशिक्षित कमांडो भेजे जाते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद से ही निबटना है | अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत ये आते हैं, अतः गृह मन्त्रालय के अधीन हैं | किन्तु इनमें सेना के ही चुने हुए सर्वश्रेष्ठ जवान आते हैं और सेना के अधिकारियों को ही इनपर नियंत्रण रखने का प्रभार मिलता है (विस्तार के लिए एक उदाहरण है -- https://en.wikipedia.org/wiki/Assam_Rifles...) | सेना से तालमेल बिठाकर ही कश्मीर (और असम, नागालैंड, आदि) में आतंकी संगठनों के विरुद्ध कार्यवाइयां की जाती हैं | BSF केवल सीमा पर कार्यवाई कर सकती है, कश्मीर घाटी के अन्दरूनी भागों में आतंकवाद से निबटने की मुख्य जिम्मेदारी इन अर्धसैनिक बलों पर ही है जो कागजी तौर पर गृह मन्त्रालय के अधीन हैं किन्तु व्यवहार में सेना के अंग हैं क्योंकि उनके जवान और अधिकारी सेना के ही हैं, मुख्यतः थलसेना के | जेहादी आतंकी भी पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रशिक्षित कमांडो ही होते हैं, उनसे निबटने में भारतीय सेना के प्रशिक्षित कमांडो ही सक्षम हो सकते हैं | किन्तु संख्या के परिसीमन के कारण इन सर्वोत्तम कमांडो को विशिष्ट अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत रखा जाता है | इनका नियन्त्रण साउथ ब्लॉक में स्थित PMO से उत्तर स्थित नार्थ ब्लॉक से होता है जिसमें नीचे रक्षा मन्त्रालय है और ऊपर गृह मन्त्रालय, इन विशिष्ट बलों का नियन्त्रण दोनों के तालमेल से होता है किन्तु व्यवहार में सेना नियन्त्रण करती है क्योंकि सारे अधिकारी सेना के ही होते हैं |
अतः इन अन्धभक्तों के बहकावे में न आयें कि कोई सीज फायर नहीं हुआ है | भाजपा प्रवक्ता भी इतना बड़ा झूठ नहीं बोलते | भारतीय सेना जिन बलों के मार्फ़त आतंकवाद से लड़ रही है वे केवल कागजी तौर पर ही गृह मन्त्रालय के अधीन हैं, उनपर IPS और IAS अधिकारियों का आदेश व्यवहार में नहीं चलता है | सेना के अधिकारी सिविलियन अधिकारियों को "सैन्य मामलों" में कीड़े-मकोड़े समझते हैं क्योंकि इन कीड़ों-मकोड़ों को युद्ध का कोई अनुभव नहीं होता, सेना के कार्य में ये कीड़े-मकोड़े दखल देने का साहस नहीं करते |
भारतीय सेना पर 13 लाख की हदबन्दी लागू है, इससे अधिक भर्ती सेना नहीं कर सकती | अतः 1989 में पाकिस्तानी परमाणु बम और भारतीय राजनीति में दीर्घ अस्थिरता का युग आरम्भ होने के परिणामस्वरूप जेहादी आतंकवाद बढ़ने के बाद उससे निबटने के लिए सेना को बल बढाने की आवश्यकता अनुभव हुई तो असम राइफल जैसे विशेष अर्धसैनिक बलों को प्रभार दिया गया जिनपर संख्या बढाने की कोई रोक नहीं है | असम राइफल जैसे अर्धसैनिक बलों में सेना के सबसे अच्छे प्रशिक्षित कमांडो भेजे जाते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद से ही निबटना है | अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत ये आते हैं, अतः गृह मन्त्रालय के अधीन हैं | किन्तु इनमें सेना के ही चुने हुए सर्वश्रेष्ठ जवान आते हैं और सेना के अधिकारियों को ही इनपर नियंत्रण रखने का प्रभार मिलता है (विस्तार के लिए एक उदाहरण है -- https://en.wikipedia.org/wiki/Assam_Rifles...) | सेना से तालमेल बिठाकर ही कश्मीर (और असम, नागालैंड, आदि) में आतंकी संगठनों के विरुद्ध कार्यवाइयां की जाती हैं | BSF केवल सीमा पर कार्यवाई कर सकती है, कश्मीर घाटी के अन्दरूनी भागों में आतंकवाद से निबटने की मुख्य जिम्मेदारी इन अर्धसैनिक बलों पर ही है जो कागजी तौर पर गृह मन्त्रालय के अधीन हैं किन्तु व्यवहार में सेना के अंग हैं क्योंकि उनके जवान और अधिकारी सेना के ही हैं, मुख्यतः थलसेना के | जेहादी आतंकी भी पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रशिक्षित कमांडो ही होते हैं, उनसे निबटने में भारतीय सेना के प्रशिक्षित कमांडो ही सक्षम हो सकते हैं | किन्तु संख्या के परिसीमन के कारण इन सर्वोत्तम कमांडो को विशिष्ट अर्धसैनिक बलों के अन्तर्गत रखा जाता है | इनका नियन्त्रण साउथ ब्लॉक में स्थित PMO से उत्तर स्थित नार्थ ब्लॉक से होता है जिसमें नीचे रक्षा मन्त्रालय है और ऊपर गृह मन्त्रालय, इन विशिष्ट बलों का नियन्त्रण दोनों के तालमेल से होता है किन्तु व्यवहार में सेना नियन्त्रण करती है क्योंकि सारे अधिकारी सेना के ही होते हैं |अतः इन अन्धभक्तों के बहकावे में न आयें कि कोई सीज फायर नहीं हुआ है | भाजपा प्रवक्ता भी इतना बड़ा झूठ नहीं बोलते | भारतीय सेना जिन बलों के मार्फ़त आतंकवाद से लड़ रही है वे केवल कागजी तौर पर ही गृह मन्त्रालय के अधीन हैं, उनपर IPS और IAS अधिकारियों का आदेश व्यवहार में नहीं चलता है | सेना के अधिकारी सिविलियन अधिकारियों को "सैन्य मामलों" में कीड़े-मकोड़े समझते हैं क्योंकि इन कीड़ों-मकोड़ों को युद्ध का कोई अनुभव नहीं होता, सेना के कार्य में ये कीड़े-मकोड़े दखल देने का साहस नहीं करते |

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