आर्थिक-संकल्प-एवं-जमा-बीमा बिल(FRDI)-२०१७ की समस्या एवं समाधान
आर्थिक-संकल्प-एवं-जमा-बीमा बिल; ऍफ़ आर डी आई बिल अर्थात फाइनेंसियल रेजोलुशन एंड डिपाजिट इन्शुरन्स बिल-२०१७. का क्लॉज़-52 पढ़ें. ये बेल-इन का क्लॉज़ है. भारत का 63% पैसा सरकारी बैंक में और 18% पैसा प्राइवेट बैंक में जमा है. विवाद इस बिल के चैप्टर चार के सेक्शन-दो को लेकर भी है, जिसके तहत एक रेजोलुशन कार्पोरेटर से सलाह मशविरे के बाद ये तय किया जाएगा कि दिवालिया बैंक के जमाकर्ता को जमा पैसे के बदले कितनी रकम दी जाये. ये लोग तय करेंगे कि जमाकर्ता को ख़ास रकम मिले या खाते में पूरा पैसा वापस दे दिया जाए.





Resolution Corporation का इससे भी खतरनाक पहलू इसके द्वारा पिछले दरवाजे से पब्लिक सेक्टर बैंकों का निजीकरण करना है। आइये समझते हैं की कैसे इससे बैंकों का निजीकरण होगा
RC(Resolution Corporation) के कार्य
1. Monitoring Financial Firms(वित्तीय फर्मों की निगरानी)
2. Anticipating their Risk of Failure(विफलता के अपने जोखिम की आशंका)
3. Taking Corrective Action(सुधारात्मक कार्यवाही करना)
4. Resolving them in Case of Failure(असफलता के मामले में उन्हें हल करना)इन सब के अलावा RC को दो और शक्तियाँ दी गयी है, जिस कारण बिल विवादों में फंस गया और संसद के पूर्व सत्र में पास नही हो पाया :
1. RC को पूर्ण अधिकार
2. Bail In का अधिकार
RC के आने के पहले दिन से ही कोआपरेटिव बैंकों की शारी शक्तियाँ ख़त्म हो जाएँगी और सारे अधिकार RC को दे दी जाएँगी। यदि किसी कोआपरेटिव बैंक के ठीक से कार्य नही करने की खबर आती है तो तत्काल ही RC बैंक को टेकओवर कर लेगी। RC बैंकों की liability ख़त्म कर सकता है, बैंकों को मर्ज कर सकता है, बैंकों को बंद कर सकता है, बैंकों को liquidate कर सकता है, RC को पूर्ण अधिकार दिए गए हैं। हालाँकि बैंकों के सारे अधिकार समाप्त कर दिए गए है, बैंकों द्वारा ठीक से काम नही करने का बहाना बनाकर RC बैंकों को टेकओवर कर लेगी और अत्यधिक घाटा दिखाकर प्राइवेट फर्मो को handover कर सकती है।
मान के चलिए ऐसी खबर आएगी किसी दिन की बैंक ऑफ़ बड़ौदा या विजया बैंक ठीक से काम नही कर रही है, तो तत्काल ही RC बैंकों को टेकओवर कर लेगा और भारी घाटा दिखाकर उद्द्योगपतियों या अंतर्राष्ट्रीय बैंकरों को handover कर देगा। इस प्रकार से पिछले दरवाजे से बैंकों का प्राइवेटाइजेशन का कुचक्र रचा जा रहा है और हम भारत वासी सदियों से किसी एक व्यक्ति को सत्ता थमाकर सो जाते रहे हैं।


जितने जमाकर्ताओं ने बैंक में सत्तर लाख करोड़ जमा किये हैं, उनको तो बैंक पैसा वापस करना ही चाहेंगी. बैंक क्या अपने हुए नुकसान के लिए इन जमाकर्ताओं को चूना लगाएंगी क्या? या वो जमाकर्ताओं के जमा पैसों में कम पैसा वापस करेगी? या बैंक नोट छापेंगे? या सरकार नोट छपेगी?
इन समस्याओं के दो हिस्से हैं- वर्तमान एन पी ए और भविष्य एन पी ए.

इसके बाद समस्या ये है कि दुबारा कोई डिफाल्टर न हो, इसका क्या उपाय है? बैंक बेतहाशा लोगों को कर्ज न बांटे, इसका क्या उपाय है? http://bit.ly/2mgdn0b
rahulmehta.com/301.htm में अध्याय 9 और 23 पढ़ें. इनमे एन पी ए की समस्या को रोकने के बारे में बताया गया है.

मध्यवर्गीय आदमी की समस्याए अब राजनीति की केंद्रबिंदु नही रही अब उसका स्थान धर्म सम्प्रदाय ओर जातीय राजनीति ने ले लिया है. बाज़ार की नजरें अब उसकी छोटी बचत पर लगी हुई है सत्ताधारी दल अब बाजार की शक्तियों के गुलाम है एक जनवरी से पीपीएफ, एनएससी और किसान विकास पत्र जैसी स्मॉल सेविंग्स स्कीमों की ब्याज दरों में एक और कटौती कर दी गयी है राष्ट्रीय लघु बचत कोष गैरजरूरी बताया जा रहा है। वित्त मंत्रालय ने बेहद कम जोखिम और निश्चित लाभ देने वाले सरकारी बॉन्ड पर ब्याज दरें 0.25 फीसदी तक घटा दी हैं आम आदमी को एक तरह से समझाया जा रहा है कि उसकी छोटी-छोटी बचतों पर दिया जाने वाला ब्याज देश को कैसे पीछे धकेल रहा है. भारतीय स्टेट बैंक ने खाते में मिनिमम बैलेंस न रखने वाले लोगों से इस साल 1,771 करोड़ रुपए की राशि वसूल की है ऐसा करने में दूसरे बैंक भी इस साल पीछे नही रहे है.
सरकार कहती है कि कैशलेस हो जाओ और बैंक को अपना मुनाफा कैसे निकालना है यह अच्छी तरह से जानते हैं नोटबन्दी में एटीएम चार्ज के नाम पर भी एसबीआई ने अंधी कमाई की है
गरीब आदमी जब अपने खातों से पैसा निकालने बैंक शाखा जाता हैं तो उसे पता लगता है कि खाते में पड़ी 2000 रुपए की सारी रकम तो चार सौ रुपए महीने के अर्थ दंड के मद में पहले ही खत्म हो गई
गरीब आदमी जब अपने खातों से पैसा निकालने बैंक शाखा जाता हैं तो उसे पता लगता है कि खाते में पड़ी 2000 रुपए की सारी रकम तो चार सौ रुपए महीने के अर्थ दंड के मद में पहले ही खत्म हो गई
1771 करोड़ की यह रकम बैंक के जुलाई-सितंबर के शुद्ध मुनाफे से भी ज्यादा थी. जबकि 2016-17 में एसबीआई ने इस मद किसी तरह का शुल्क नही वसूला था
जब आप किसी दल के निशान के सामने का बटन दबा देते हो तो यह सब बातें क्या आपके जहन में आती हैं ? बिल्कुल भी नही आती है न ! यह सारा मीडिया अखबार ओर जनसंचार के सारे टूल इस तरह से डिजाइन किए जाते हैं कि आपको ये सब बातें याद न रहे आपको सिर्फ वो याद रहे जो जो वो याद रखने देना चाहते हैं.
जब आप किसी दल के निशान के सामने का बटन दबा देते हो तो यह सब बातें क्या आपके जहन में आती हैं ? बिल्कुल भी नही आती है न ! यह सारा मीडिया अखबार ओर जनसंचार के सारे टूल इस तरह से डिजाइन किए जाते हैं कि आपको ये सब बातें याद न रहे आपको सिर्फ वो याद रहे जो जो वो याद रखने देना चाहते हैं.
एक दूसरी समस्या भी है , वो है बैंक में साइबर फ्रॉड होने का. उसके लिए भी बैंक की अक्षमता ही जिम्मेदार है.

प्राइवेट बैंको के जमाकर्ताओं के पासबुक पर बोल्ड में लिखा होना चाहिए कि सरकार इसपर आपको एक पैसे की भी गारंटी नहीं देगी. प्राइवेट बैंक कितना ब्याज दे, इसपर सरकार का कोई रोक टोक नहीं होना चाहिए.

मैं आपको ईमेल करने को नहीं कह सकता क्योंकि फर्जी ईमेल लाखो बनाये जा सकते हैं, जबकि ट्वीटर अकाउंट को आप अपने वोटर कार्ड से लिंक कर या फ़ोन नंबर से लिंक कर वेरीफाई कर सकते हैं.

जीएसटी के बारे कई मिथ थे जो पूरी तरह से टूट गए है जब इसे लागू किया गया. तब यह कहा गया था कि उत्पाद निर्माता राज्यो से उपभोक्ता राज्यों को यानी जिन राज्यों में सामान का उपभोग किया जाता है, उन्हें जीएसटी से ज्यादा फायदा मिलेगा क्योंकि यह अंतिम चरण पर आधारित कर हैं लेकिन आज इन छह महीनों की हकीकत यह है कि उपभोक्ता राज्यों ने विनिर्माता राज्यों के मुकाबले ज्यादा राजस्व घाटा दर्ज किया है.
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वजह से अक्टूबर में दिल्ली को छोड़कर सभी राज्यों ने राजस्व घाटा दर्ज किया
ओर यह कोई छोटा मोटा घाटा नही है करीब 17 राज्यों ने 25 फीसदी से 59 फीसदी राजस्व घाटा दर्ज किया है। पुद्दुचेरी, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ ने क्रमश: अनुमान के मुकाबले 59 फीसदी, 50 फीसदी और 46 फीसदी कम राजस्व पाया है। वहीं उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने क्रमश: 17 फीसदी और 16 फीसदी कम राजस्व हासिल किया हैं आखिर इस राजस्व घाटे की भरपाई कौन करेगा सीधी बात यह है कि इस घाटे की पूर्ति करना जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक के अधीन केंद्र सरकार का दायित्व है. लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि क्या यह जिम्मेदारी केंद्र निभा रहा है हकीकत यह है कि देशभर में जीएसटी लागू होने के बाद राजस्व भरपाई के लिए राज्य सरकार को केंद्र से मिलने वाली मदद कम हो गई हैं हम यदि मध्यप्रदेश की ही बात करे, तो आप पायंगे की जीएसटी से पहले जो कर राज्य शासन वसूलता था अब वह जीएसटी जैसी एकीकृत टेक्स व्यवस्था के कारण अब नही वसूल पा रहा है.
हालांकि इसकी भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश के लिए प्रतिमाह 1660 करोड़ रुपए सुरक्षित राजस्व देने का वादा किया था लेकिन अगस्त, सितंबर और अक्टूबर 2017 में 941 करोड़, 949 करोड़ व 1234 करोड़ रुपए प्राप्ति हुई जो कि सुरक्षित राजस्व से माहवार 43, 43 और 26 प्रतिशत कम है। भविष्य में महीनों में भी प्राप्त राजस्व, सुरक्षित राजस्व से कम रहने का अनुमान है.
यदि यह स्थिति मध्यप्रदेश के साथ है तो आप समझ सकते है कि बाकी राज्यों के लगभग यही हालात होंगें जब केंद्र के पास पैसा आएगा ही नही तो वह राज्यों को क्षतिपूर्ति कैसे करेगा ? यह एक तरह से विस्पोटक स्थिति पैदा हो गयी है हम बारूद के ढेर पर बैठे हुए है.
हालांकि इसकी भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश के लिए प्रतिमाह 1660 करोड़ रुपए सुरक्षित राजस्व देने का वादा किया था लेकिन अगस्त, सितंबर और अक्टूबर 2017 में 941 करोड़, 949 करोड़ व 1234 करोड़ रुपए प्राप्ति हुई जो कि सुरक्षित राजस्व से माहवार 43, 43 और 26 प्रतिशत कम है। भविष्य में महीनों में भी प्राप्त राजस्व, सुरक्षित राजस्व से कम रहने का अनुमान है.
यदि यह स्थिति मध्यप्रदेश के साथ है तो आप समझ सकते है कि बाकी राज्यों के लगभग यही हालात होंगें जब केंद्र के पास पैसा आएगा ही नही तो वह राज्यों को क्षतिपूर्ति कैसे करेगा ? यह एक तरह से विस्पोटक स्थिति पैदा हो गयी है हम बारूद के ढेर पर बैठे हुए है.
समाधान:
१) राइट-टू-रिकॉल-रिज़र्व बैंक गवर्नर के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476074975818820
२) पब्लिक में नार्को टेस्ट – बलात्कार , हत्या , भ्रष्टाचार , गौ हत्या आदि के लिए नारको टेस्ट का कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476072475819070
३) राईट टू रिकॉल मंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476084522484532
४) ज्यूरी सिस्टम के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475753109184340
५) राईट टू रिकॉल सांसद के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1475749302518054
६) राईट टू रिकॉल मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476067969152854
७) राइट-टू-रिकॉल विधायक के लिए प्रस्तावित कानून ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476073165819001
सांसद व विधायक के नंबर यहाँ से देखें nocorruption.in/
.
” माननीय सांसद/विधायक महोदय, मैं आपको अपना एक जनतांत्रिक आदेश देता हूँ कि‘ “राइट-टू-रिकॉल-रिज़र्व बैंक गवर्नर के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट : fb.com/notes/1476074975818820 ”
को राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से इस क़ानून को लागू किया जाए, नहीं तो हम आपको वोट नहीं देंगे.
धन्यवाद,
मतदाता संख्या- xyz ”
इसी तरह अन्य ड्राफ्ट के लिए भी आदेश भेज सकते हैं .

ट्वीट करने का तरीका: होम में जाकर तीन टैब दिखेगा, उसमे एक खाली बॉक्स दिखेगा जिसमे लिखा होगा कि “whats happening” जैसा की फेसबुक में लॉग इन करने पर पुछा जाता है कि आपके मन में क्या चल रहा है- तो अपने ट्विटर अकाउंट के उस खाली बॉक्स में लिखें ” @PMO India I order you to print draft “RTR-RBI-GOVERNOR : fb.com/notes/1476074975818820 in gazette notification asap” . इसी तरह अन्य ड्राफ्ट के लिए भी आदेश भेज सकते हैं . बस इतना लिखने से पी एम् को पता चल जाएगा, सब लोग इस प्रकार ट्विटर पर पी एम् को आदेश करें.


अन्य कानूनी ड्राफ्ट की जानकारी के लिए देखें fb.com/notes/1479571808802470
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नोट:
Bail In का प्रावधान आया कहाँ से
2008 के वित्तीय मंदी के बाद अमेरिका को ये समझ में आ गई की अब वो Bail Out कर बैंकों को बचा नही सकता क्योंकि वहाँ की अधिकतर बैंक प्राइवेट सेक्टर के हैं। अब उनलोगों ने दूसरे मैकेनिज्म के विषय में सोचना आरम्भ किया। G7 देशों ने मिलकर एक नए बोर्ड का गठन किया, Financial Stability Board। बाद में उनलोगों ने G20 देशों को भी अपने साथ मिलाया और भारत भी G20 देशों में शामिल है। FSB ने Bail In के लिए एक ड्राफ्ट प्रस्तावित किया। इनलोगों ने एक नोट लाया Key Attributes of Effective Resolution। इसी key attribute से FRDI Bill में Bail In का प्रावधान हुबहु नक़ल की गयी है। इस बिल के क्या प्रभाव हो सकते हैं, एक पूर्व घटित घटना से समझते हैं।
चार वर्ष पूर्व साइप्रस ने यह बिल पास किया था। 2013 में जब Bank of Cyprus डूब रहा था तो ग्राहकों का 37.5 % liability(उधार) को equity में परिवर्तित कर दी गयी अर्थात ग्राहकों के पैसे का 37.5% हिस्सा उन्हें तत्काल चुकाने से इनकार कर दिया गया। यदि ऐसा ही भारत में हुआ तो क्या होगा ? सोचिये यदि किसी दिन किसी भी भारतीय बैंक की दिवालिया होने की खबर आई तो क्या होगा ?
SBI का उदाहरण ले लेते है, क्योंकि इसका NPA भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच चूका है। अकेले SBI का NPA पूरे 38 बैंकों के NPA का 22.7% है। जून 2017 में आये आंकड़ों के अनुसार SBI का NPA 1,88,068 करोड़ तक पहुँच चुकी है। आंकड़ों के अनुसार मार्च 17 तक SBI का total deposit 20,44,751.39 करोड़ है। अगर बैंक दिवालिया होने की स्थिति में इस deposit का 40% भी equity में बदल दे तो ग्राहकों का लगभग 6,13,425.41 करोड़ सीधे डूब जाएगा। मैंने न्यूनतम लिया है यदि RC चाहे तो पुरे पैसे को equity में बदल सकती है। फिर यदि बैंक बचा तो ग्राहकों के पैसों कि रीकवरी संभवतया 10-15 वर्षों में हो जाये अन्यथा ग्राहकों को इन पैसों से हाथ धोना पड़ेगा।
Bail In की जरूरत क्यों पड़ी
RBI के आंकड़ों के अनुसार जून 2017 तक बैंकों का NPA बढ़कर 8,29,338 लाख करोड़ तक पहुँच चूका है। जिस कारण सारे बैंक मरणासन्न अवस्था में आ गए। विभिन्न Defaulters से पैसे वसूलने की जगह, पहले तो इन बैंकों को बचाने के लिए सरकार ने विमुद्रीकरण किया फिर 2.11 लाख करोड़ का Bail Out देकर बैंकों को Remonitize किया और जब बात तब भी नही बनी तो अब सरकार ने Bail In का प्रावधान लाया है, जिसके अंतर्गत अब ग्राहकों के पैसों से ही बैंकों का पुनरुत्थान होगा। बैंक डूबने की अवस्था में ग्राहकों को उनकी liability के ही अनुसार equity दे देगी।
Equity क्या है
Equity एक प्रकार का शेयर है अर्थात बैंक आपको आपके liability के अनुसार शेयर दे देगी, जिसकी वैल्यू तत्काल जीरो होगी क्योकि बैंक उस समय डूब रही होगी। यदि बैंक 5 या 10 वर्ष में पुनः खरी हो पायी, तो ही ग्राहकों के पैसों की रिकवरी हो पाएगी अन्यथा बैंक के साथ ग्राहकों के पैसे भी डूब जायेंगे।
जय हिन्द, जय भारत, वन्दे मातरम् ||
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.