क्रिसमस के दिन हिन्दू तुलसी पूजा क्यों मनाएं?

क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्मगुरु जयंत आठवले जी को मारने के लिए कोई इसाई ने धमकीनामा भेजा है, 
James Annamalai is abusing Swami Vivekanand, threatening to Kill Spiritual Guru Dr Jayant Athavale ji & to rape Hindu women.
.https://twitter.com/SwetaSingh_1/status/943544452601102336
https://twitter.com/SwetaSingh_1/status/943544452601102336 


क्या ये रायतावादी इसाई, हम हिन्दुओं को उनके बाप का नौकर समझ बैठे हैं कि जब मन करे, धमकी देने चले आये, और उलटे हमीं से कहे कि हम अलगाववाद चाहते हैं. ऐसे ईसाईयों के ही पिछवाड़े लात मारकर देश से भगाने के लिए ही एवं सेकुलरों को सीधा करने के लिए ही तो तुलसी पूजा अति आवश्यक है.  

अब ये फोटो देखें, की वेटिकेन द्वारा भेजे हुए इसाई लोग यहाँ प्रति हिन्दू इसाई बनाने का कैसा कुचक्र रच ते हैं. 


कुछ रायतावदी लोग +सनातन विरोध के लिये प्रसिद्ध अनार्य नमाजीयों को तुलसी पूजन दिवस रास नहीं आ रहा। कारण पूछो तो कह रहे हैं कि पंचांग के अनुसार नहीं है इसलिये नहीं मनायेंगे, कोई कह रहा है ये भी क्रिसमस की तरह एक प्रकार का अंधविश्वास है। 
एक भाई तो रोज करते हैं तो फिर आज क्यों करें ऐसा पूछ रहे हैं।
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मां दुर्गा की रोज पूजा करते हो फिर नवरात्रियों में विशेष क्यों करते हो खासकर उस दिन जिस दिन महिषासुर का वध किया था। तो नालायकों, इस दिवस को भी इसी दिन इसलिये मनाओ क्योंकि आज के ही दिन एक प्लास्टिक के पेड ने हमारे असली पेड की जगह लेने की कोशिश करी हैं। 'गलत' के विरोध का जो कारण होता है वही 'सही' के समर्थन का स्वाभिविक कारण होता है। 


आज के दिन से आगे के छः दिनों तक वातावरण में जो वैमनस्यता फैलाने का कार्यकर्म चलता है जैसे पार्टीयों में शराब मांस और सम्भोग ड्र्ग्स इत्यादि का सेवन और इनके सेवन से जो हानियां होती हैं जैसे एक्सीडेंट आदि इनको कम करने के लिये विष्णुप्रिया तुलसी का पूजन लाभकारी है। 

अब तुलसी का पूजन ही क्यों है कैसे है इसके लिये हमारे पास शास्त्रीय प्रमाण है। गरुड पुराण कहता है तुलसी का ध्यान मानसिक शांति देता है। नशा आदि की आदत छुडाने के लिये तुलसी के अर्क का सेवन लाभकारी है। अब क्योंकि ये सब गंदगी २५ दिसम्बर से ही शुरु होती है है इसलिये इसको आज के ही दिन मनाया जाना चाहिये। ये तो है इसको मनाने के पीछे का कारण। 

अब आप इसका विरोध क्यों कर रहे हैं इसके पीछे का कारण मुझे नहीं पता। त्यौहारों के पीछे उनके पंचांग से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है उस त्यौहार को मनाने क कारण और उस कारण से उसके पंचांग निर्धारित किया गया है। इसलिये हर त्यौहार की अपनी एक कथा होती है। 

बाकी आपने जो कहा की - "क्या ऐसा करके हम इसाइयों को टक्कर दे रहे हैं।"
तो भैय्या इसाइयों को टक्कर देनी है इसलिये आज( २५ दिसम्बर के दिन इसाइयों के दिन) मना रहे हैं वरना तुलसी पूजन और तुलसी विवाह तो हम देवौउत्तिष्ठ एकादशी को करते ही हैं।

कुछ दिनों से हमारे बीच में एक नये प्रकार के वर्ग ने जन्म लिया है। इनके पास किसी भी समस्या का कोई भी समाधान नहीं है, बस समस्यायें हैं। और अगर कोई इनको समाधान बताता है तो इन्हें उसका प्रचार करने की बजाये बिना सिर पैर के दोष निकालना होता है।ये वर्ग नेत्रत्व का आभाव होने का रुदाली गान करता रहता है पर नेत्रत्व के सामने होने पर भी उसे देख नहीं पाता क्योंकि ये उस नेत्रत्वकर्ता के नेत्रत्व में रहकर भी उसके अनुसार अनुसरण करने के बजाये उसे अपने अनुसार चलाना चाहता है।क्योंकि इन लोगों का देश धर्म संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है न ही ये लोग इसके उत्थान के लिये कोई काम करते हैं। 

लाइक और कमेन्ट की लोकप्रीयता पाने के लिये ये लोग हमेशा अपनी अलग सोच को प्रदर्शित करते रहते हैं। फिर भले ही इसके लिये इन्हें सही और अच्छे कामों का विरोध क्यों न करना पडे ये ऊल जलूल कारणों को ढूंढकर वो भी करते हैं।


हाल के दिनों में भारत में क्रिसमस पर्व का विरोध बढ़ा है और क्यों न बढे? क्रिस्टियन स्कूल हिन्दुओं के बच्चों को हमारे धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग स्कूल में करने पर कड़ी से कड़ी सजा देती है. तब कोई इसाई को नहीं लगता कि वे स्वयं हिन्दुओं को उनके साथ मिलने मिलाने को लेकर विरोध दर्ज कर रहे हैं, वे क्या समझते हैं, हिन्दू कोई उनके बाप के नौकर नहीं हैं कि हमारे बच्चे के द्वारा इस्तेमाल किये गए हिन्दू प्रतिको के ऊपर हमको यातनाएं दें. वे हमको क्या साबित करना चाहते हैं कि हिंदुस्तान उनके वेटिकेन सिटी का गुलाम देश है कि यहाँ के लोग उनसे पूछकर अपने धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग करें. 

अधिक जानकारी के लिए देखें- St Anne school punished an 11-year-old girl for wearing “Tilak” on her birthday at Telangana, India.

Link : http://www.sanskritimagazine.com/newsworthy/christian-school-punished-11-year-old-girl-wearing-tilak-birthday-india


उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक हिंदूवादी समूह ने पत्र जारी कर स्कूलों को क्रिसमस न मनाने की धमकी दी है. वहीं मध्यप्रदेश के सतना ज़िले में क्रिसमस कैरोल गा रहे ईसाई पादरियों को गिरफ़्तार कर लिया गया था. भारत में कैथोलिक ईसाइयों के संगठन ने भी कहा है कि देश धार्मिक आधार पर बंट रहा है और लोगों का सरकार पर भरोसा कम हो रहा है.
खैर...कोई इसाई को कितनी भी मिर्चे लगे, हम हिन्दू तो दुनिया के ऊपर शासन करने के लिए ही पैदा होते हैं, न की किसी की गुलामी करने के लिए. 

इतना सब कुछ जान लेने के बाद भी सेक्युलर फेकू हिन्दुओं के लिए हिन्दू देवी देवता काल्पनिक हैं, और सांता रियल गुरु हैं इनके..ऐसे मूर्खों ने कभी कोई नाम-जाप का फायदा नहीं लिया, ये अपने सुविधाओं के गुलाम हैं, और ऐसे भोगी गुलामी करने को ही पैदा होते हैं और गुलामी में जिंदगी बर्बाद करते हुए ही मरते हैं. 


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सर्वगुणों की खान : तुलसी

तुलसी पूजन दिवस : 25 दिसम्बर
तुलसी एक दिव्य औषधि तो है ही परंतु इससे भी बढ़कर यह भारतीय धर्म-संस्कृति में प्रत्येक घर की शोभा, संस्कार, पवित्रता तथा धार्मिकता का अनिवार्य प्रतीक भी है । 
गरुड़ पुराण में आता है कि ‘तुलसी का पौधा लगाने, पालन करने, सींचने तथा उसका ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्वजन्मार्जित पाप जलकर विनष्ट हो जाते हैं ।’        
पद्म पुराण के अनुसार ‘जो तुलसी के पूजन आदि का दूसरों को उपदेश देता और स्वयं भी आचरण करता है, वह भगवान श्री लक्ष्मीपति के परम धाम को प्राप्त होता है ।’ 
अनेक गुण, अनेक नाम वेदों, पुराणों और औषधि-विज्ञान के ग्रंथों में तुलसी के गुणों के आधार पर उसे विभिन्न नाम दिये गये हैं, जैसे - काया को स्थिर रखने से ‘कायस्था’, तीव्र प्रभावी होने से ‘तीव्रा’, देव-गुणों का वास होने से ‘देवदुंदुभि’, रोगरूपी दैत्यों की नाशक होने से ‘दैत्यघ्नि’, मन, वाणी व कर्म से पवित्रतादायी होने से ‘पावनी’, इसके पत्ते पूत (पवित्र) करनेवाले होने से ‘पूतपत्री’, सबको आसानी से मिलने से ‘सरला’, रस (लार) ग्रंथियों को सचेतन करनेवाली होने से ‘सुरसा’ आदि ।

रोगों से रक्षा हेतु कवच : तुलसी-मंजरी
तुलसी की मंजरी को भिगोकर शरीर पर छींटना रोगों से रक्षा के लिए कवच का काम करता है । इसके बीजों में पीले-हरे रंग का उड़नशील तेल होता है, जो त्वचा द्वारा शरीर में प्रविष्ट होकर विभिन्न रोगों से रक्षा करता है । 

पूज्यश्री के श्रीमुख से तुलसी-महिमा 
पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है कि ‘‘तुलसी-पत्ते पीसकर उसका उबटन बनायें और शरीर पर मलें तो मिर्गी की बीमारी में फायदा होता है । किसीको नींद नहीं आती हो तो 51 तुलसी-पत्ते उसके तकिये के नीचे चुपचाप रख देवें, नींद आने लगेगी । 

करें तुलसी-माला धारण : तुलसी की कंठी धारण करनेमात्र से कितनी सारी बीमारियों में लाभ होता है, जीवन में ओज-तेज बना रहता है, रोगप्रतिकारक शक्ति सुदृढ़ रहती है । पौराणिक कथाओं में आता है कि तुलसी-माला धारण करके किया हुआ सत्कर्म अनंत गुना फल देता है । 
अभी विज्ञानी आविष्कार भी इस बात को स्पष्ट करने में सफल हुए हैं कि तुलसी में विद्युत-तत्त्व उपजाने और शरीर में विद्युत-तत्त्व को सजग रखने का अद्भुत सामर्थ्य है । जैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि तुलसी का इतना सेवन करने से कैंसर नहीं होता लेकिन हम लोगों ने केवल कैंसर मिटाने के लिए तुलसी नहीं चुनी है । हम लोगों का नजरिया केवल रोग मिटाना नहीं है बल्कि मन प्रसन्न करना है, जन्म-मरण का रोग मिटाकर जीते-जी भगवद्रस जगाना है ।’’
सम्पूर्ण विश्व-मानव तुलसी की महिमा को जाने और इसका शारीरिक, मानसिक, दैविक और आध्यात्मिक लाभ ले इस हेतु  ‘सबका मंगल, सबका भला’ चाहनेवाले पूज्य बापूजी ने 25 दिसम्बर को ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाने की सुंदर सौगात समाज को दी है । विश्वभर में अब यह दिवस व्यापक स्तर पर मनाया जाने लगा है ।

आप भी ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाकर परमात्मा की इस अनुपम कृति का लाभ उठायें व औरों तक इसकी महिमा पहुँचायें । ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाने की विधि तथा अन्य जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम की पुस्तक ‘तुलसी रहस्य’ ।
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संत श्री आशारामजी बापू की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में होनेवाली सत्प्रवृत्तियों की झलक

संत श्री आशारामजी बापू की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में होनेवाली सत्प्रवृत्तियों की झलक
सत्संग-कार्यक्रमों एवं विद्यार्थी उत्थान शिविरों द्वारा जनजागृति : सत्संग-कार्यक्रम, विद्यार्थी शिविर देश के विभिन्न शहरों, गाँवों व विद्यालयों में अविरत जारी रहते हैं । जिनके माध्यम से समाज में सद्विचारों व संस्कारों का प्रचार होता है।
धर्मांतरण से रक्षा एवं धर्मनिष्ठा की जागृति : विभिन्न सेवा-प्रवत्तियों द्वारा हिन्दू धर्म के प्रति लोगों में दृढ़ निष्ठा जागृत की जा रही है एवं धर्मांतरण पर रोक लगाने का कार्य अथक रूप से जारी है । पूज्य बापूजी ने देश-विदेश में घूम-घूमकर तथा शबरी कुम्भ, नर्मदा कुम्भ आदि आदिवासी क्षेत्रों में भी सतत दस्तक देकर आम जनता के साथ-साथ पिछड़े क्षेत्रों के लोगों में भी धर्म-निष्ठा को मजबूत किया है । जाने-माने हिन्दुत्ववादी सुब्रमण्यम स्वामी ने घोषणा की है कि धर्मांतरण का प्रतिकार करने में संत आशारामजी बापू सबसे आगे हैं । इसी वजह से उन्हें बोगस केस में फँसाया गया है । वे पूरी तरह निर्दोष हैं ।
  आदिवासी, वनवासी व पिछड़े लोगों का विकास धर्मांतरण से रक्षा एवं धर्मनिष्ठा की जागृति : ‘वनवासी उत्थान केन्द्रों’ द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष सेवा जैसे नियमित निःशुल्क अनाज-वितरण, भंडारों (भोजन-प्रसाद वितरण) के अलावा समय-समय पर बापूजी द्वारा वनवासियों को अन्न, वस्त्र, बर्तन, बच्चों को नोटबुकें, मिठाइयाँ आदि के वितरण व भंडारे के साथ नकद दक्षिणा देने का कार्य बड़े पैमाने पर होता है। पिछड़े क्षेत्रों में कीर्तन व भंडारों का नियमित आयोजन आश्रम के सेवाकार्यों का एक मुख्य अंग बन चुका है। आज तक हजारों भंडारों द्वारा लाखों-लाखों दीन, अनाथ, गरीब, आदिवासी लाभान्वित हो चुके हैं।
अभावग्रस्त विद्यार्थियों को मदद : गरीब, अनाथ, असहाय विद्यार्थियों में नोटबुकें, पाठय-पुस्तकें, गणवेश आदि का निःशुल्क वितरण किया जाता है। विद्यार्थियों के लिए विशेष नोटबुकों का निर्माण किया जाता है, जिनमें नैतिक शिक्षाप्रद सुवाक्य-चित्र, प्रेरक प्रसंग, स्मरणशक्ति के विकास के उपाय व सफलता की कुंजियाँ दी जाती हैं।
ग्रामीण व आदिवासी पाठशालाओं में बिछात, डेस्क, कुर्सियाँ आदि भी प्रदान किये जाते हैं।
राशनकार्डों द्वारा अनाज आदि का वितरणः गरीबों, अनाश्रितों व विधवाओं के लिए आश्रम द्वारा हजारों राशनकार्ड वितरित किये गये हैं, जिनके माध्यम से उन्हें हर माह अनाज व जीवनोपयोगी वस्तुओं का वितरण किया जाता है।
‘भजन करो, भोजन करो, पैसा पाओ’ योजना : आश्रम-संचालित इस योजना के अंतर्गत जिनके पास आय का साधन नहीं है या जो नौकरी-धंधा करने में सक्षम नहीं हैं उन्हें सुबह से शाम तक जप, कीर्तन, सत्संग का लाभ देकर भोजन और पैसा दिया जाता है ताकि गरीबी, बेरोजगारी घटे साथ ही जप-कीर्तन से वातावरण की शुद्धि हो।
अनाथालयों में सेवाकार्य : अनाथालयों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री का वितरण किया जाता है।
बाल संस्कार केन्द्र : आश्रम संचालित हजारों ‘बाल संस्कार केन्द्र’ विद्यार्थियों में सुसंस्कार सिंचन के दैवी कार्य में रत हैं।
युवाधन सुरक्षा अभियान : विद्यार्थियों, युवाओं व जनसामान्य में लाखों की संख्या में ‘युवाधन सुरक्षा’ (दिव्य प्रेरणा-प्रकाश) पुस्तकें बाँटी गयी हैं, साथ ही हजारों ‘युवा उत्थान कार्यक्रम’ आयोजित किये जा चुके हैं। ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ से युवानों में नवचेतना आयी है।
युवा सेवा संघ : इसके द्वारा भारतभर में संस्कार सभाएँ चलायी जा रही हैं। हजारों की संख्या में युवान इस संगठन से जुड़कर अपना सर्वांगीण विकास कर रहे हैं।
महिला उत्थान मंडल : महिलाओं में भ्रूणहत्या आदि घृणित कर्मों के बारे में विरक्ति पैदा करके उनकी सुषुप्त शक्तियों को जगाने के लिए यह संगठन भी संस्कार सभाएँ चला रहा है। युवतियों एवं महिलाओं के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास हेतु इस संगठन द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाये जाते हैं।
‘संत श्री आशारामजी गुरुकुलों’ की स्थापना : इनमें विद्यार्थियों को लौकिक शिक्षा के साथ-साथ स्मृतिवर्धक यौगिक प्रयोग, जप, योगासन, प्राणायाम, ध्यान आदि के माध्यम से उन्नत जीवन जीने की कला सिखायी जाती है । उनमें सुसंस्कारों का सिंचन किया जाता है तथा उन्हें अपनी महान वैदिक संस्कृति का ज्ञान प्रदान किया जाता है । इस प्रकार आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता का अनोखा संगम हैं ये आश्रम के गुरुकुल ।
गौ-सेवा : आश्रम द्वारा 9 बड़ी एवं अनेक छोटी गौशालाओं का संचालन हो रहा है, जिनमें 8500 गायों की सेवा की जा रही है । इनमें अधिकांश कत्लखाने ले जाने से बचायी गयीं गायें हैं ।
मातृ-पितृ पूजन दिवस (14 फरवरी) ‘वेलेंटाइन डे’ जैसे संयम-विनाशक विदेशी त्यौहारों से अपने देश के किशोरों व युवक-युवतियों की रक्षा करने हेतु पूज्य बापूजी की प्रेरणा से हर वर्ष 14 फरवरी को विद्यालयों, महाविद्यालयों, सोसायटियों, गाँवों-पंचायतों-शहरों एवं घर-घर में ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ मनाया जा रहा है । पूज्यश्री द्वारा समाज को दी गयी इस नयी दिशा से लाखों-लाखों विद्यार्थी अब तक लाभान्वित हुए हैं । छत्तीसगढ़ सरकार ने पूज्य बापूजी की इस पहल से प्रेरणा पाकर ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ (14 फरवरी) को राज्यस्तरीय पर्व के रूप में मनाने का स्वर्णिम इतिहास रच दिया और हर वर्ष वहाँ यह पर्व अनिवार्यरूप से शैक्षणिक संस्थाओं, विद्यालयों में मनाया जा रहा है । माता-पिता की महिमा बतानेवाला सत्साहित्य ‘माँ-बाप को भूलना नहीं’ और फिल्म ‘माँ-बाप को मत भूलना’ बहुत लोकप्रिय हुए हैं ।
तुलसी पूजन दिवस (25 दिसम्बर) : पूज्य बापूजी की पावन प्रेरणा से 25 दिसम्बर को देश-विदेशों में ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाया जा रहा है ।
छाछ वितरण व जल प्याऊ सेवा : बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों, सार्वजनिक स्थलों पर शीतल छाछ व जल की प्याऊ लगायी जाती है तथा इनका निःशुल्क वितरण किया जाता है।
प्राकृतिक प्रकोप व आपातकालीन सेवा : देश पर आयी प्राकृतिक आपदाओं में आश्रम की सेवाएँ और तत्परता हमेशा अग्रणीय स्थान पर रही हैं। चाहे लातूर, भुज के भूकंप हों या गुजरात का अकाल, उड़ीसा व गुजरात में आयी बाढ़ हो या सुनामी का महातांडव - सभी जगह आश्रम द्वारा निरंतर सेवाएँ हुई हैं।
व्यसनमुक्ति अभियान : आज आश्रम द्वारा चलाये जा रहे ‘व्यसनमुक्ति अभियान’ से बड़ी संख्या में व्यसनी लोग व्यसनमुक्त हो रहे हैं।
विद्यार्थी उज्ज्वल भविष्य निर्माण शिविर : विद्यार्थियों की छुट्टियों का सदुपयोग कर उन्हें संस्कारवान, बुद्धिमान, उद्यमी, परोपकारी बनाने हेतु शुरू किये गये ये शिविर विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों द्वारा खूब सराहे गये हैं। इन शिविरों में विद्यार्थियों को यौगिक शिक्षा, आदर्श दिनचर्या, आदर्श विद्यार्थी कैसे बनें, परीक्षा में अच्छे अंक कैसे प्राप्त करें - जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर उत्तम मार्गदर्शन दिया जा रहा है।
योग-प्रशिक्षण : साधक-साधिकाओं द्वारा विभिन्न विद्यालयों में ध्यान-साधना, स्मृतिवर्धक प्रयोग आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है।
पर्यावरण सुरक्षा अभियान : पर्यावरण की शुद्धि के लिए पीपल, आँवला, तुलसी, वट व नीम के पौधे लगाये जाते हैं । इससे अरबों रुपयों की दवाइयों का खर्च बचता है । ये वृक्ष शुद्ध वायु के द्वारा प्राणिमात्र को एक प्रकार का उत्तम भोजन प्रदान करते हैं । पूज्य संत श्री आशारामजी बापू कहते हैं कि ये पौधे एवं वृक्ष लगाने से आपके द्वारा प्राणिमात्र की बड़ी सेवा होगी ।
संकीर्तन यात्राएँ व प्रभातफेरियाँ : वातावरण में सात्त्विकता, पवित्रता लाने तथा वैचारिक प्रदूषण दूर करने हेतु भारतभर में हरिनाम संकीर्तन यात्राओं व प्रभातफेरियों का आयोजन किया जाता है, जिनके दौरान सत्साहित्य-वितरण भी किया जाता है।
चिकित्सा-सेवा : आयुर्वैदिक, होमियोपैथिक, प्राकृतिक चिकित्सा व एक्युप्रेशर - इन निर्दोष चिकित्सा पद्धतियों से निष्णात वैद्यों द्वारा विभिन्न स्थानों में उपचार किये जाते हैं, साथ ही देश के सुदूर क्षेत्रों में ‘निःशुल्क चिकित्सा शिविरों’ का आयोजन किया जाता है। आदिवासी व ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ आसानी से चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती, वहाँ भी सेवा के लिए आश्रम के चल-चिकित्सालय पहुँच जाते हैं।
अस्पतालों में सेवा : मरीजों में फल, दूध, दवाएँ व सत्साहित्य का वितरण किया जाता है।
सत्साहित्य केन्द्र : समाज के गरीब-से-गरीब, हर वर्ग के व्यक्ति को घर बैठे जीवनोद्धारक आध्यात्मिक मूल्यों का लाभ मिल सके इस उद्देश्य से देशभर में सत्साहित्य-वितरण के लिए स्थायी व चलित केन्द्र चलाये जा रहे हैं, जहाँ से अत्यल्प मूल्य में सत्साहित्य प्रदान किया जाता है।
जेलों में कैदी उत्थान सेवा : कैदियों के सर्वांगीण उत्थान हेतु पूरे भारतवर्ष में सैकड़ों जेलों में निःशुल्क सत्साहित्य-वितरण व सत्संग-कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। अब तक लाखों बंदियों को लाभ मिल चुका है। उन्हें भगवन्नाम-लेखन पुस्तिका दी गयी है ताकि वे फुरसत के समय का सदुपयोग कर भगवन्नाम-लेखन कर सकें। जेल के पुस्तकालय में आश्रम द्वारा प्रकाशित 118 किताबों का सेट व पूज्यश्री के सत्संग की सी.डी., कैसेट भी दी जाती हैं।
वातावरण व विचारों की शुद्धि : इस हेतु ‘विश्व शांति यज्ञ’, ‘विश्व मांगल्य यज्ञ’ एवं ‘महामृत्युंजय यज्ञ’ आदि का आयोजन होता है।
सत्साहित्य व मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशनः आश्रम द्वारा 14 भाषाओं में 574 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया जा रहा है। मासिक पत्रिका ‘ऋषि प्रसाद’ हिन्दी, मराठी, गुजराती, उड़िया, तेलुगु, कन्नड़, सिंधी, सिंधी (देवनागरी), बंगाली व अंग्रेजी भाषाओं में और मासिक समाचार पत्र ‘लोक कल्याण सेतु’ हिन्दी, मराठी, गुजराती व ओड़िया भाषाओं में प्रकाशित किया जा रहा है। ‘ऋषि प्रसाद’ के देश-विदेश में करोड़ों पाठक हैं।
मौन मंदिर : करीब 140 आश्रमों में ‘मौन मंदिर साधना’ की व्यवस्था है, जिसमें साधक सात दिन का मौन-व्रत लेकर दिव्य आध्यात्मिक अनुभूतियों का अनुभव करते हैं।
दिव्य प्रेरणा-प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिता : विद्यार्थियों को संयम शिक्षा प्रदान करने हेतु देशभर में अनेक वर्षों तक आयोजित हुई इस प्रतियोगिता में हजारों विद्यालयों के लाखों विद्यार्थियों ने भाग लिया एवं पुरस्कार पाये ।
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जय हिन्द....जय सैन्य हिन्दू...जय तुलसी-दिवस,........जय भवानी......हर हर महादेव !!

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