कलियुगी जनता चाहे राम-राज्य


धर्म के अनुसार चलने के लिए सारी जंजीरें तोड़ डालनी पड़तीं हैं, तब जाकर धर्म की स्थापना होती है, वस्तुतः ये मुद्दा हर दायरे से बाहर का विषय है, इसे किसी दायरे में बाँधा नहीं जा सकता.
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आज लोग सपना देख रहे हैं कि कलियुग के नेता और अफसर ठीक हो जायेंगे और कलियुगी जनता की भलाई के लिए कार्य करेंगे. 
जैसी जनता है वैसे ही नेता चुने जाते हैं. 
अच्छे उम्मीदवारों की जमानत भी यह जनता नहीं बचने देती ! 
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जनता कौन सी दूध की धुली है जो इसे रामराज्य मिलेगा, वह भी कलियुग में ! त्रेतायुग के रामराज्य को जनता ने ही मिट्टी में मिला दिया. 
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धर्म की 25% टांग बची है कलियुग में, 75% जनता और उनके पसन्दीदा नेता अधर्म पर हैं.
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धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः |
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोsवधीत् ||
( मृत धर्म उनको मारता है जो धर्म को मारते हैं, धर्म उनकी रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करते हैं ; अतः धर्म को नष्ट नहीं करें, (क्योंकि तब) धर्म भी हमें नहीं मारता |)
National Law School of India University ने इस श्लोक को अपना आदर्श-वाक्य (motto) घोषित कर रखा है (धर्मो रक्षति रक्षितः)|
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भारतीय संसद और न्यायपालिका ने धर्म की प्राचीन परिभाषा को ही स्वीकृति दी है जिसके अनुसार धर्म को रिलिजन नहीं कह सकते, धर्म का निकटतम अंग्रेजी अनुवाद है "सनातन प्राकृतिक वा ईश्वरीय कानून". 
किस देवी-देवता की पूजा करें यह "सम्प्रदाय" के अंतर्गत आता है, धर्म का पालन तो नास्तिक को भी करना चाहिए.
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किन्तु मीडिया और अधकचरे बुद्धिजीवियों ने धर्म का अर्थ रिलिजन प्रचलित कर रखा है , जो संविधान के विरुद्ध है. 
भारतीय संविधान में काफी बहस के बाद सर्वसम्मति से "सेक्युलर" का अनुवाद "पन्थ-निरपेक्ष" निर्धारित किया गया, "धर्म-निरपेक्ष" नहीं. 
धर्म-निरपेक्ष का अर्थ है अधर्म का साथ देना, अथवा धर्म और अधर्म के बीच निष्पक्ष रहना !!
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वास्तव में धर्म के अनुसार चलने के लिए सारी जंजीरें तोड़ डालनी पड़तीं हैं, तब जाकर धर्म की स्थापना होती है, वस्तुतः ये मुद्दा हर दायरे से बाहर का विषय है, इसे किसी दायरे में बाँधा नहीं जा सकता.
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आइये, जानें धर्म को कर्मों में रूपांतरित करने वाले भगवान के बारे में, और उनसे कुछ सीखें. -
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आपने कभी सोचा है, कि वह जेल में ही क्यों जन्मा?
भादो की काली अँधेरी रात में जब वह आया, तो सबसे पहला काम यह हुआ कि जंजीरे कट गयीं। जन्म देने वाले के शरीर की भी, और कैद करने वाली कपाटों की भी। बस्तुतः वह आया ही था जंजीरे काटने... हर तरह की जंजीर!
जन्म लेते ही वह बेड़ियां काटता है। 
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थोडा सा बड़ा होता है, तो लज्जा की जंजीरे काटता हैं। ऐसे काटता है कि सारा गांव चिल्लाने लगता है- कन्हैया हम तुमसे बहुत प्रेम करते हैं। सब चिल्लाते हैं- बच्चे, जवान, बूढ़े, महिलाएं, लड़कियां सब... कोई भय नहीं, कोई लज्जा नही!
वह प्रेम के बारे में सबसे बड़े भ्रम को दूर करता है, और सिद्ध करता है कि प्रेम देह का नही हृदय का विषय है। माथे पर मोरपंख बांधे आठ वर्ष की उम्र में रासलीला करते उस बालक के प्रेम में देह है क्या? 
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माथे पर मोर मुकुट बांधे वह बालक इस तरह स्वयं को गोस्वामी सिद्ध करता है। वह एक ही साथ "पूर्ण पुरुष" और "गोस्वामी" की दो परस्पर विरोधी उपाधियाँ धारण करता है।
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फिर वह उंच नीच की बेड़ियां काटता है और राजपुत्र हो कर भी सुदामा जैसे दरिद्र को मित्र बनाता है, और मित्रता निभाता भी है। ऐसा निभाता है कि युगों युगों तक मित्रता का आदर्श बना रहता है।
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कुछ दिन बाद वह समाज की सबसे बड़ी रूढ़ि पर प्रहार करता है, जब पूजा की पद्धति ही बदल देता है। अज्ञात देवताओँ के स्थान पर लौकिक और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा को प्रारम्भ कराना उस युग की सबसे बड़ी क्रांति थी। वह नदी, पहाड़, हल, बैल, गाय, की पूजा और रक्षा की परम्परा प्रारम्भ करता है। वह इस सृष्टी का पहला पर्यावरणविद् है।
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थोडा और बड़ा होता है तो परतंत्रता की बेड़ियां काटता है, और उस कालखंड के सबसे बड़े तानाशाह को मारता है। ध्यान दीजिये, राजा बन कर नही मारता, आम आदमी बन कर मारता है। कोई सेना नहीँ, कोई राजनैतिक गठजोड़ नहीं। एक आम आदमी द्वारा एक तानाशाह के नाश की एकमात्र घटना है यह।
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इसके बाद वह सृष्टि की सबसे बड़ी बेड़ी पुरुषसत्ता पर प्रहार करता है। तनिक सोचिये तो, आज अपने आप को अत्याधुनिक बताने वाले लोग भी क्या इतने उदार हैं कि अपनी बहन को अपनी गाड़ी पर बैठा कर उसके प्रेमी के साथ भगा दे? पर वह ऐसा करता है। ठीक से सोचिये तो स्त्री समानता को लागु कराने वाला पहला व्यक्ति है वह। वह स्त्री की बेड़ियां काटता है।
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कुछ दिन बाद वह एक महान क्रांति करता है। नरकासुर की कैद में बंद सोलह हजार बलात्कृता कुमारियों की बेड़ी काट कर, और उनको अपना नाम दे कर समाज में रानी की गरिमा दिलाता है।
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फिर अपने जीवन के सबसे बड़े रणक्षेत्र में अन्याय की बेड़ियां काटता है। कहते हैं कि यदि वह चाहता तो एक क्षण में महाभारत ख़त्म कर सकता था। पर नहीं, उसे न्याय करना है, उसे दुनिया को बताना है कि किसी स्त्री का अपमान करने वाले का समूल नाश होना ही न्याय है। 
वह स्वयं शस्त्र नहीं छूता, क्योकि उसे पांडवों को भी दण्डित करना है। स्त्री आपकी सम्पति नही जो आप उसको दांव पर लगा दें, स्त्री जननी है, स्त्री आधा विश्व् है। वह स्त्री को दाव पर लगाने का दंड निर्धारित करता है, और पांडवों के हाथों ही उनके पुर्वजों का वध कराता है। 
अर्जुन रोते हैं, और अपने दादा को मारते हैं। 
धर्मराज का हृदय फटता है पर उन्हें अपने मामा, नाना, भाई, भतीजा, बहनोई को मारना पड़ता है। 
अपने ही हाथों अपने बान्धवों की हत्या कर अपनी स्त्री को दाव पर लगाने का दंड वे जीवन भर भोगते हैं। वह न्याय करता है। वह अन्याय की बेड़ियां तोड़ता है।
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"यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारतः॥ 
अभ्युत्थानंधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ 
परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम॥ 
धर्म संस्थापनार्थाय, सम्भवामि युगे युगे॥
(हे भारत ! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूपको रचता हूँ (अर्थात् साकाररूपसे प्रकट होता हूँ) ।
साधु पुरुषोंके उद्धारार्थ, दुष्कर्मीयोंके विनाशार्थ और धर्म की पुनःस्थापना करनेके लिए मैं युग-युगमें प्रकट हुआ करता हूँ ।)"
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शब्दार्थ सही लिखा है, किन्तु भीतर बड़ा गूढ़ अर्थ छुपा है जिसपर किसी भाष्यकार का ध्यान नहीं गया. 
जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब प्रकट नहीं होते, क्योंकि तब तो कलियुग में लगातार प्रकट होते रहते ! तब-तब हर युग में प्रकट होते हैं ! अर्थात हर युग में अवतारों की संख्या नियत रहती है. 
इसका यह भी अर्थ है कि धर्म की हानि भी हर युग के विशिष्ट कालखण्डों में ही बढ़ती है, जिसका कारण यह है कि बुरे लोगों का जन्म उन कालखण्डों में अधिक होता है ताकि उनको भी मर्त्यलोक में आने का अवसर मिले.
बुरे लोग बलवान हो जाते हैं तो अवतार की आवश्यकता पड़ती ही है ताकि कालचक्र का सन्तुलन न बिगड़े.
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कालचक्र बड़ा ही गूढ़ विषय है, पूरी तरह केवल महाकाल और महाकाली को पता है.
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महाभारत के आरम्भ में ही लिखा है कि पूरे ग्रन्थ में 8800 "गूढ़ अर्थ" वाले श्लोक हैं, उन्हीं गूढ़ अंशों में गीता भी है. 
दुष्टों ने इसका अर्थ यह लगाया कि महाभारत में पहले केवल 8800 श्लोक ही थे !! 
ये 8800 श्लोक दुष्टों के माथे में घुसेंगे ही नहीं. 
ये गूढ़ श्लोक इतने गूढ़ हैं कि जितनी बार पढेंगे उतनी बार नए अर्थ लगेंगे, और हर बार भ्रम होगा कि इस बार पूरा अर्थ लगा लिया !!
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आपके संस्कार कैसे हैं इसपर निर्भर करेगा कि आप कितना अर्थ लगा पाते हैं और जितना अधिक सही अर्थ आप लगा पाते हैं उतना ही आपके संस्कारों को सुधारने में इस प्रकार के गूढ़ श्लोक काम आयेंगे. 
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शास्त्रों में बारम्बार कहा गया है कि देवताओं को परोक्ष (गूढ़) भाषा पसन्द है.
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वह मानव इतिहास का एकमात्र नायक है, महानायक।
रियल हीरो है
वह! कन्हैया...भारत का प्राण कन्हैया... इस जगत का सबसे बड़ा गुरु कन्हैया... सबसे अच्छा मित्र कन्हैया... सबसे बड़ा प्रेमी कन्हैया... सबसे अच्छा पति कन्हैया... सबसे अच्छा पुत्र कन्हैया... सबसे अच्छा भाई कन्हैया... कन्हैया...
स्वागत कीजिये उसका! 
आओ कान्हा, काटो हमारी बेड़ियां!

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